मेरे साथ हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा ये शहर भी मर रहा है. बहुत पहले कहीं पढ़ी थी ये लाइन. अब सच लगने लगी है. मुंबई का एयर इंडिया बिल्डिंग जंक्शन इलाका. मरीन ड्राइव के बिल्कुल सामने. दिन भर खूब भीड़ रहती है यहां. लेकिन ऐसे लोगों की भीड़ का फायदा क्या. सड़क किनारे दिन-दहाड़े एक आदमी ने फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया. लेकिन वहां मौजूद लोगों ने ध्यान ही नहीं दिया. 10 कदम की दूरी पर ही कुछ मजदूर ज़मीन खोदने में बिजी थे. ये एरिया ऐसा है जहां पुलिस भी हर वक़्त तैनात रहती है. हर 3 मिनट पर पच्चीसों गाड़ियां सिग्नल पर रुकती हैं. लेकिन किसी ने भी ध्यान नहीं दिया. या शायद देखकर भी इग्नोर ही कर दिया कि कोई आदमी सड़क किनारे पेड़ से लटक रहा है. शायद वो तब तक जिंदा रहा हो. बहुत देर बाद किसी ने ध्यान दिया. उसने तुरंत पुलिस को बताया. पुलिस भागकर पहुंची. आदमी को फंदे से निकाला गया. हॉस्पिटल लेकर गए. लेकिन तब तक वो मर चुका था. इंसानियत वाली बात तो है ही. लेकिन सेफ्टी की नज़र से भी देखें. सड़क पर खुले आम कोई भी क्राइम हो जाए. लोग ‘बिजी’ होने की वजह से ध्यान ही नहीं देंगे. निकल जाएंगे किसी भी रेपिस्ट या मर्डरर के बगल से. अभी कुछ दिनों पहले ओडिशा की खबर आई थी. एक आदमी अपनी पत्नी की लाश कंधे पर लेकर गया था. क्योंकि किसी ने भी कंधा नहीं दिया. भाई साहब. इतने बिजी होकर आप क्या कमा लोगे? इंसान तो कम से कम इंसान जैसा बिहेव करे. वैसे मुंबई पुलिस जोन 1 के DCP मनोज शर्मा ने कहा. वो लोग उस आदमी की फोटो के ज़रिये पहचान पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं.