भइया मनोहर का पसंदीदा खेल आज भी क्रिकेट है. लेकिन दिक्कत यह हो गई कि लड़कपन में उन्होंने क्रिकेट का इतना मतलब समझा कि हर गेंद को हौंककर किसी तरह सीमापार करना है. इस तरह बल्ला चूमकर वह चऊआ मारना तो सीख गए, पर तकनीकी ज्ञान से रह गए महरूम. कस्बे में कू-ए-यार की खाक तो उन्होंने खूब छानी पर क्रिकेट के मैदान में ‘गली’ किधर-कू होती है, ये उनके पल्ले नहीं पड़ा.
अब भइया मनोहर खेलते नहीं हैं, पर किरकिट देखते जरूर हैं. लेकिन गोल मैदान का नक्शा उनके लिए आज भी पहेली है. कौन सा डीप है और कौन सा फाइन, एकौ फील्डिंग पोजीशन उनको समझ में नहीं आती थी. फिर एक दिन गली के एक सुदर्शन युवक ने उन्हें सारा गणित झटके में समझा दिया.
लड़का कहिस कि समझ लो क्रिकेट का मैदान है एक गोल प्लॉट. प्लॉट पर बीचोंबीच खींच दी वर्टिकल लाइन कि मैदान दो हिस्सों में बंट गया. बल्लेबाज के पैर जिस तरफ हैं, वो है लेग साइड और हाथ की तरफ वाला एरिया है ऑफ साइड. फिर ऑफ और लेग दोनों साइड को बांटा कुछ और खांचों में. हर एरिया बन गया एक फील्डिंग पोजीशन और हर फील्डिंग पोजीशन पर लगा दिया एक फील्डर.
फिर मैदान पर बनाया 30 यार्ड का एक गोला. 30 यार्ड मतलब 27.4 मीटर. अब ध्यान ये रखना है कि सर्कल के अंदर और उसी जानिब में बाहर की पोजीशन के नाम होते हैं एक जैसे. बस बाहर वाले में ‘डीप’ या ‘लॉन्ग’ जुड़ जाता है. जैसे सर्कल के अंदर कवर तो उसी दिशा में बाउंड्री के पास बढ़ जाइए तो हो जाएगा डीप कवर. बल्लेबाज से 180 डिग्री पर सर्कल के अंदर पॉइंट, तो उसी दिशा में डीप पॉइंट. सर्कल के अंदर मिड ऑफ तो उसी दिशा में सर्कल के बाहर लॉन्ग ऑफ.
जो पोजीशन बाउंड्री के नजदीक है उसके साथ ‘लॉन्ग’ या ‘डीप’ जोड़ना है, इत्ता गणित धंसा लो दिमाग में. अब बढ़ते हैं आगे. तो मोटा-मोटी क्रिकेट के मैदान में ये फील्डिंग पोजीशन होती हैं.
ऑफ साइड में:
1. मिड ऑफ-लॉन्ग ऑफ: ऑफसाइड पर गेंदबाज के पीछे बाउंड्री के पास की जगह ‘लॉन्ग ऑफ’ कहलाती है. लॉन्ग ऑफ की दिशा में ही अगर फील्डर 30 यार्ड सर्कल के अंदर खड़ा है तो कहा जाएगा कि मिड-ऑफ पर खड़ा है. भारत में सौरव गांगुली और सुरेश रैना के मिड ऑफ पर खेले गए शॉट सबसे सुंदर माने जाते हैं.
2. कवर-डीप कवर: मिड ऑफ से थोड़ा और स्क्वायर हो जाएं. बोले तो ऑफ साइड में एकदम बीच का एरिया. यह कहलाता है कवर. इसी तरफ जब गेंद सर्कल के बाहर निकल जाए तो कहेंगे कि डीप कवर पर चली गई है. सचिन तेंदुलकर की कवर ड्राइव बहुत क्लासिक हुआ करती थी.
3. पॉइंट-डीप पॉइंट: बल्लेबाज के ऑफ साइड से ठीक 90 डिग्री पर लाइन खींचिए. यह लाइन जहां 30 यार्ड सर्कल से टकराएगी, वह जगह है पॉइंट. इसी तरफ बाउंड्री के पास बढ़ जाएं तो आ जाएगा डीप पॉइंट. क्रिकेट के मैदान की सबसे अहम जगह है पॉइंट . टीमें अपना सबसे फुर्तीला फील्डर यहां तैनात करती हैं, जो उछलने-कूदने में उस्ताद होता है. किसी गोताखोर की तरह वह सनसनाते शॉट्स को रोकता है और रन बचाता है. अपने यहां युवराज ने यह पोजीशन लंबे समय तक संभाली.
4. पॉइंट और कवर के आस-पास: कवर और पॉइंट के बीच में दो फील्डिंग पोजीशन हैं. कवर पॉइंट और उसके बगल में फॉरवर्ड पॉइंट. पॉइंट से थोड़ा और पीछे (विकेट के) बढ़ जाएं तो आ जाएगा बैकवर्ड पॉइंट.
5. स्लिप: बल्ले का किनारा लेकर हर गेंद विकेटकीपर के दस्तानों में नहीं जाती. कुछ छिटककर जरा दूर भी चली जाती हैं. इसके लिए कीपर के ऑफ साइड की ओर भी कुछ खिलाड़ी खड़े किए जाते हैं जिनकी जिंदगी का एक्कै मकसद होता है, कैच लपकना. ये पोजीशंस कहलाती हैं स्लिप. कीपर के बगल वाला फर्स्ट स्लिप, फर्स्ट स्लिप के बगल वाला सेकेंड स्लिप, फिर थर्ड, फोर्थ, फिफ्थ कितनी भी स्लिप हो सकती हैं. ये स्लिप एक चाप (पैराबॉलिक) के आकार में खड़ी की जाती हैं. टेस्ट में तो लगभग हर समय एक न एक स्लिप मौजूद रहती है, पर वनडे में आम तौर पर शुरुआती ओवरों में ही स्लिप ली जाती है.
6. गली: स्लिप और पॉइंट के बीच में होती है एक संकरी सी जगह, जो कहलाती है गली. पंजाबी में कहें तो यह जगह है थोड़ी सी औक्खी. बेसिकली कैचिंग पोजीशन है. अगर तेज गेंदबाजों को बाउंस और स्विंग अच्छा मिल रहा हो तो गेंद किनारा लेकर गली की जानिब भी निकल सकती है. वैसे आजकल गली में खिलाड़ी बहुत कम रखे जाते हैं. पर टेस्ट मैच में जब फील्डिंग टीम एग्रेसिव खेल रही हो, तो कप्तान गली ले लेता है.
7. थर्ड मैन: एक रेखा खींचिए जो बल्लेबाज से विकेटों के पीछे करीब 45 डिग्री का कोण बनाती हुई जाती हो. यह लाइन जहां सर्कल से टकराती है, वह जगह है शॉर्ट थर्ड मैन. इसी में थोड़ा और पीछे चले जाइए तो थर्ड मैन आता है. थर्ड मैन उस दिशा के सिंगल रन रोकता है और उससे यह भी एक्सपेक्टेड है कि फुर्ती से दौड़कर डीप पॉइंट पर जाने वाले चौके भी रोक ले.
8. सिली पॉइंट: ऑफ साइड में बल्लेबाज और पिच के बिल्कुल पास, कैच लपकने को आतुर. टेस्ट मैचों में स्पिनरों के साथ कप्तान सिली पॉइंट ले लेते हैं, कि बल्लेबाज जब डिफेंस करेगा तो टर्न लेती गेंद किनारा लेकर उछलेगी और सिली पॉइंट वाला बंदा लपक लेगा. सिली पॉइंट फील्डर की मौजूदगी बल्लेबाज पर साइकोलॉजिकल दबाव भी बनाती है, क्योंकि वह बल्लेबाज के इतने करीब होती है कि उसकी आंखों में खटकती रहता है. शायद इसीलिए ज्ञानियों ने उसे ‘सिली’ कहा है.
लेग साइड में:
1. मिड ऑन-लॉन्ग ऑन: मैदान के लेग साइड वाले हिस्से में गेंदबाज के पीछे की जगह कहलाती है मिड ऑन. इसी दिशा में बाउंड्री के पास बढ़ें तो हो जाएगा लॉन्ग ऑन. और लॉन्ग ऑन और मिड ऑन के बीच में होता डीप मिड ऑन.
2. मिड विकेट: कवर के ठीक सामने वाली लेग साइड की पोजीशन है मिड विकेट. नाम से ही पोजीशन का अंदाजा हो जाता है. मैदान के लेग साइड वाले हिस्से के बीचों बीच, 30 यार्ड सर्कल के अंदर. मिड विकेट को पीछे ले लीजिए तो हो जाएगा डीप मिड विकेट. कोई गेंदबाज जल्दी राहुल द्रविड़ के पैरों पर गेंद नहीं फेंकता था, क्योंकि वह दन्न से छुआकर उसे मिड विकेट पर मोड़ देते थे. और असल लोच तो लक्ष्मण की कलाइयों में था. ऑफ साइड के बाहर पड़ी गेंद को भी मिडविकेट पर मोड़ देते थे.
3. स्क्वायर लेग: बल्लेबाज के पैरों से 180 डिग्री की सीध में जो जगह है, वह कहलाती है स्क्वायर लेग. पीछे डीप स्क्वायर लेग है. उसे ही थोड़ा फाइन (विकेटों के पीछे की तरफ) कर दिया तो हो गया डीप बैकवर्ड स्क्वायर लेग.
4. फाइन लेग: जैसे ऑफ साइड में थर्ड मैन है, वैसे ही लेग साइड में फाइन लेग. विकेटों के पीछे करीब 45 डिग्री. 30 यार्ड के सर्कल शॉर्ट फाइन लेग और बाहर बाउंड्री के पास फाइन लेग. क्रिकेट के खेल में फाइन का मतलब है विकेटों के पीछे. कमेंटेटर कहे कि बल्लेबाज ने फाइन खेला है तो समझिए कि गेंद विकेटों के पीछे जा रही है.
5. शॉर्ट लेग: यह भी कैचिंग पोजीशन है. सिली पॉइंड को ही उठाकर लेग साइड पर ले आइए, एकदम पिच के पास, तो वह शॉर्ट लेग कहलाता है.
मोटा-मोटी यही फील्ड पोजीशन हैं, पर इनके बीच में भी कुछ पोजीशन हैं. मसलन, मिडविकेट और स्क्वायर लेग के बीच में फॉरवर्ड स्क्वायर लेग होता है. टी-20 और टेस्ट मैचों में आपको कभी-कभी शॉर्ट मिड-ऑन भी मिल जाएगा. बाकी फील्डिंग सजाने की अपनी-अपनी स्ट्रेटजी होती ही है. मसलन वनडे मैच में दाएं हाथ के बल्लेबाज को ऑफ स्पिनर गेंद फेंक रहा है तो मिडविकेट या डीप मिडविकेट को खाली नहीं रखा जाता. अगर लेग स्पिनर है तो डीप कवर या कवर पर मुस्तैद फील्डर रखे जाते हैं. आखिरी ओवरों में यॉर्कर फेंकने का प्लान है तो सामने की तरफ और फाइन लेग पर फील्डर रखते हैं. बाउंसर खिलाते हुए भी स्क्वायर के इलाके खाली नहीं छोड़े जाते.
तो इस तरह भइया मनोहर को उस सुदर्शन युवक से क्रिकेट की फील्डिंग पोजीशन का सहज ज्ञान प्राप्त हुआ. कृतज्ञ भइया ने युवक को थैंक्यू कहा और फिर मूंछों पर हाथ फेरते हुए हाईलाइट को नई लाइट में देखने के मकसद से घर रवाना हो गए
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