नवाज़ शरीफ पहले बोल गए थे तो भारत के पास जवाब देने का एक जेनुइन लाभ था. सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय मंच. यूएन जनरल असेंबली की महासभा, न्यूयॉर्क में. उड़ी हमले के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इस मंच पर कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन का मसला उठा गए थे. तब से इंतज़ार था कि सुषमा स्वराज भारत की तरफ से बोलने उतरेंगी तो क्या जवाब देंगी.
साभार :-The Lallantop
सोमवार शाम विदेश मंत्री बोलीं और बेहद संतुलित बोलीं. उनके भाषण में आतंकवाद और उसे शरण देने वाले देशों के लिए भारत की सभी चिंताओं का समावेश था और कड़े जवाब थे. कश्मीर के जवाब में उन्होंने कहा कि जिनके घर शीशों के हों, वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते. मुहावरा पुराना इस्तेमाल किया, लेकिन तेवर कड़े थे. उन्होंने बिना हिचके बलूचिस्तान का नाम लिया और साफ कर दिया कि भारत अब बलूचिस्तान के बारे में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर खुलकर बात करेगा.
उन्होंने भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान, जन-धन योजना, मेक इन इंडिया औऱ डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों के जरिये भारत की विकास यात्रा का जिक्र किया.
सुषमा के भाषण से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साफ कर चुके थे कि भारत युद्ध को रास्ता नहीं मानता है. लेकिन उन्होंने सिंधु जल संधि पर कड़ा फैसला लेने के संकेत जरूर दिए. उन्होंने कहा कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते.
पिछले हफ़्ते ही नवाज़ शरीफ़ ने यहां अपने भाषण में कश्मीर को मुख्य मुद्दा बनाकर बुरहान वानी को हीरो क़रार दिया था. हो सकता है कि सुषमा स्वराज संयुक्त राष्ट्र के मंच से पाकिस्तान को जवाब दें.
क्या बोलीं सुषमा
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आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है, विश्व के कोने-कोने में फ़ैली गरीबी को मिटाना. स्त्रियों और पुरुषों के बीच लैंगिक समानता हो.
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जलवायु परिवर्तन एक ऐसा मुद्दा है जो आज हमारे सामने खड़ा है. प्रकृति के पास अपार संपदा है मगर हमारे लालच के बराबर नहीं. क्लाइमेट जस्टिस प्रधानमंत्री का दिया सूत्र है.
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असीमित खपत पर रोक लगे और जीवन शैली को पर्यावरण के अनुकूल बनाएं. योग इसमें मदद कर सकता है. हमने अपने देश में बहुत महत्वाकांक्षी योजना बनाई है. जलवायु परिवर्तन की दिशा में भारत एक अहम रोल प्ले करेगा.
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हम अमेरिका के दर्द को समझते हैं. हम पर भी उड़ी में आतंकियों ने हमला किया था. अगर हम आतंकवाद से लड़ना चाहते हैं, तो हमें ये समझना होगा कि आतंकवाद मानवाधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन है.
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इन आतंकवादियों को पनाह देने वाले कौन कौन हैं? उनका न कोई अपना बैंक है न कोई फैक्ट्री है. तो कौन इन्हें संरक्षण देता है?
आज छोटे छोटे समूहों ने मिलकर राक्षस का रूप धारण कर लिया है.
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हम आतंकवाद को जड़ से उखाड़ना चाहते हैं तो हमें पुराने समीकरण तोड़ने होंगे, मोह त्यागने होंगे. इच्छाशक्ति की ज़रूरत है. मुश्किल काम नहीं है. अगर कोई देश इस तरह की रणनीति में शामिल नहीं होना चाहता तो मेरी मांग है कि उसे अलग-थलग कर दें. ऐसे देशों की विश्व समुदाय में कोई जगह नहीं होनी चाहिए.(आगे पढ़ें...)