उत्तर प्रदेश का जौनपुर. गोमती नदी के किनारे रामघाट नाम का श्मशान घाट. सोमवार की रात. वक्त करीब 11:30 बजे. 70-80 लोग जमा थे. सन्नाटा था. लकड़ियों के ढेर पर ताबूत था, जिसमें उड़ी में शहीद हुए भकुरा गांव के राजेश कुमार सिंह का शव था. अग्नि देने के लिए उनके पिता राजेंद्र कुमार सिंह पत्थर की तरह जड़ वहां खड़े थे. ना आंखों में आंसू, ना किसी से कोई बात. जब एक बाप के सामने 32 साल के जवान बेटे की लाश हो, तो कुछ कहने के लिए बचता ही क्या है.
एक सवाल था जो वहां मौजूद सब लोगों के मन में था. सवाल ये कि क्या शहीद राजेश सिंह को ताबूत समेत अग्नि दी जाए या फिर लोगों के अंतिम दर्शन के लिए लाश को ताबूत से बाहर निकाला जाए? यह सवाल इतना मुश्किल इसलिए बन गया था कि राजेश की लाश श्रीनगर से लेकर बिहार रेजीमेंट के जो साथी यहां आए थे, वो बार-बार एक ही बात दोहरा रहे थे कि लाश को ताबूत से न निकालो. ऐसे ही अंतिम संस्कार कर दो. घर पर अंतिम दर्शन करने वालों की भीड़ होने के बावजूद और घर के लोगों के लाख कहने पर भी ताबूत को नहीं खोला गया था.
…लेकिन एक बाप आखिरी बार अपने बेटे को देख लेने के लिए बेचैन था. श्मशान घाट पर जब पिता ने बेटे को देखने की जिद की तो आखिरकार ताबूत से निकाल कर लाश को जलाने का फैसला किया गया. लेकिन जब ताबूत से लाश बाहर निकाली गई तो यह बात समझ में आ गई कि उनके साथी क्यों लाश को बाहर नहीं निकालने दे रहे थे. क्योंकि शहीद राजेश सिंह की लाश की हालत ऐसी थी कि उसे देख पाना किसी के लिए भी मुश्किल था.
…और फिर बेटे से बात न हो सकी
बिहार रेजीमेंट 6 के सिपाही राजेश कुमार सिंह करीब 20 दिन पहले ही उड़ी में तैनात हुए थे. इससे पहले वो पश्चिम बंगाल में पोस्टेड थे. कश्मीर में चल रहे बवाल की वजह से मोबाइल नेटवर्क भी ढंग से काम नहीं कर रहे हैं. इस वजह से राजेश की घर पर बातचीत भी नहीं के बराबर हो पाती थी. आखिरी बार 2 दिन पहले उन्होंने अपने पिता से छोटी सी बात की थी. राजेंद्र उनसे जम्मू-कश्मीर में तैनाती के बारे में ज्यादा कुछ पूछ पाते, इससे पहले ही फोन कट गया और फिर दोबारा बात नहीं हो सकी.
‘बड़ा होकर पुलिस वाला बनूंगा’
राजेश अपने पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. और फौज में नौकरी करते हुए उन्हें 12 साल हो गए थे. राजेश की बीवी अपने 6 साल के बेटे निशांत के साथ बनारस में रहती हैं, ताकि बेटे की पढ़ाई ठीक से हो सके. सोमवार की शाम राजेश के गांव भाकुरा में लोगों की भीड़ लगी हुई थी. जौनपुर के सांसद और विधायक समेत तमाम अधिकारी वहां पर मौजूद थे. लेकिन राजेश के 6 साल के बेटे निशांत को यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि आख़िर उसके घर पर इतने लोग आज क्यों जमा हैं और सब लोग रो क्यों रहे हैं. वो लोगों से ये भी पूछ रहा था कि उसके घर पर इतने फूल क्यों लाए गए हैं.
पूछने पर निशांत लोगों को बताता कि वो बड़ा होकर पुलिस वाला बनना चाहता है. वो कहता है कि पापा जब भी छुट्टी पर आते हैं, उसके लिए बिस्किट और चिप्स लाते हैं. लेकिन अफसोस अब उसके पापा उसके लिए कुछ भी नहीं ला सकेंगे.
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