भाईसाब अंग्रेजी में जिसको ‘कैटरपिलर’ कहते हैं, उसका मतलब हिंदी में कनखजूरा ही होगा न. जिसके डिजाइन में ढेर सारी टांगें बाहर निकली हों. तो अब कनखजूरा छाप ट्रेन हमको शहरों में देखने को मिलेंगी. अब आज कहो, तो आज नहीं होगा भाई. इतना गरम-गरम न भकोसो. बात ये है कि इंडियन रेलवे इंजीनियर के कैटरपिलर ट्रेन के कॉन्सेप्ट ने बोस्टन में ग्लोबल अवॉर्ड जीता है. माने सब कुछ सही रहा, तो ये ट्रेन कभी न कभी देखने को मिलेगी जरूर.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक अश्विनी कुमार उपाध्याय 97 बैच के अफसर हैं. इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस के. 43 साल उमर है. आने वाले सितंबर महीने में ये अपना प्लान मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी, बोस्टन में दिखाएंगे. बढ़िया भौकाली प्रजेंटेशन तैयार करने में बिजी हैं इस वक्त.
कनखजूरा ट्रेन का रंग-रूप और सिस्टम
जाहिर है पूरे शहर में इसका नेटवर्क फैला होगा. साबुनदानी के जैसे छोटे डिब्बे होंगे. अमा साइज बड़ा होगा उनका. अपनी बुलेरो, पजेरो जैसी सीटें लगी होंगी उसमें. सिर्फ बैठने के लिए. खड़े होने की जगह नहीं होगी. बुलेरो में कोई खड़ा हो सकता है क्या? सौ किलोमीटर की स्पीड से दौड़ेगी.
रास्ता इसका कतई आम नहीं होगा. इसके लिए दो पोल लो. ऊपर से एकदम गोल घुमा दो. जैसे 0 में से नीचे का आधा काट के कुत्ते को खिला दिया. इसी आधे 0 पर बीचोबीच में मजबूत तार लटके होंगे. इन्हीं पर चलेगी कनखजूरा ट्रेन. इसमें ऊपर और नीचे, माने दोनों तरफ पहिए लगे होंगे. तभी तो टांगें जैसी निकलेंगी. एक डिब्बे में 20 सवारी भरेंगी. न कम न ज्यादा. इसलिए ओवरलोड का झंझट नहीं. इसमें चढ़ने के लिए लिफ्ट का इस्तेमाल होगा.
क्यों जीता बेस्ट प्लान का अवॉर्ड
हवाई फायर नहीं है. स्पेशल इफेक्ट से बनाई गई हॉलीवुड पिच्चर नहीं है. आयरन मैन जैसी. करीब 500 लोगों के प्लान्स में कंपटीशन था. सबके ऐसे थे कि कागज पर बड़े अच्छे. उन पर फिल्म एकदम धांसू बने साइंस फिक्शन वाली. लेकिन असल में उसको कामयाब बनाना गधे के सिर पर सींग उगाना था. लेकिन अश्विनी के प्लान में बात थी. इसे काम में लाया जा सकता है.
इसमें मेट्रो से 15 गुना कम खर्च बैठेगा. काहे कि इसमें भारी भारी खंभे और स्टेशन बनाने की जरूरत नहीं. न उतनी मशीनरी की. वैसे रास्ते बनाना भी नामुमकिन नहीं है. हर डिब्बे में एक बैट्री रखी जाएगी इमरजेंसी के लिए. अभी तो इनकी टीम तैयारी कर रही है बोस्टन में प्रजेंटेशन दिखाने के लिए. इंटरनेट ऑफ अर्बन ट्रांसपोर्ट के नाम से अपना आइडिया बना रहे हैं. इनको पता है कि उसमें कैसे-कैसे सवाल आ सकते हैं.
जैसे कोई पूछेगा कि “तेज आंधी में ये डिब्बे टपक के उड़ गए तो?” ये लोग चाहते हैं कि हर बात का समाधान ऑन द स्पॉट हो जाए. और फिर दुनिया में कहीं कोई ऐसा शहर हो, जहां ये प्लान जमीन पर साकार हो सके.