ये कहानी तब की है जब रावण गया था मर. उसके मरने के बाद भगवान राम ने विभीषण को लंका में रखने को भगवान विष्णु की मूर्ति दी. अब भले रावण के मरने में विभीषण का सबसे बड़ा हाथ रहा हो लेकिन देवता लोग इतने खुन्न्सी थे कि उनसे ये तक बर्दाश्त न हो रहा था, कि विभीषण जो फाइनली तो राक्षस ही है. भगवान की मूर्ति लंका में लगाए.
सब देवता गणेश जी के पास गए और कहे अब आपय कुछ करो. बस ये मूर्ति लंका नहीं पहुंचनी चाहिए. गणेश जी ने चैलेंज एक्सेप्ट कर लिया. मूर्ति के बारे में कहा गया था. उसे जहां जमीन पर धर दोगे वहीं पर हमेशा के लिए रह जाएगी.
विभीषण मूर्ति लेकर चला और वहां पहुंचा जहां आज का तिरुचिरापल्ली माने त्रिचि है. वहां बहती है कावेरी नदी. नदी देखकर विभीषण ने सोचा धूल से धुधुरिया गए हैं काहे न नहा के आगे बढ़ें. पर समस्या ये थी कि मूर्ति जमीन पर नहीं रखी जा सकती थी. जो रखते तो वहीं धरा जाती हमेशा के लिए.
तभी विभीषण को एक बच्चा नजर आया. वो बच्चा और कोई नहीं गणेश जी थे. बच्चे को पकड़कर विभीषण ने कहा. मोर लल्ला एक काम कइ दो हमारा. हम नहाने जाते हैं हमारे नहाते भर इ मूर्ति थेम के ठाड़े रहो. गणेश जी बोले – हओ,जाओ नहाय आओ.
जैसे ही विभीषण नहाने गए. गणेश जी मूर्ति जमीन पर रख दिए. विभीषण लौटा तो मूर्ति को जमीन पर रखा देख मूंड़ पीट लिया. उस लड़के को खोजने लगा. पर लड़का तो भागकर पहाड़ की चोटी पर जा बैठा था. विभीषण ढूंढ़ते-ढूंढ़ते उस लड़के AKA गणेश जी को पा गए. पाए तो खिसिया के सिर में मार दिए. गणेश जी चोटा गए. सिर में घाव हो गया. चोट का निशान बन गया. विभीषण कुछ और करता इसके पहले गणेश जी ने अपना असली रूप दिखाया.
विभीषण बहुत पछताया. हाथ-गोड़ जोड़ने लगा. माफी मांगा और वहां से आगे बढ़ लिया. गणेश जी उस दिन से उस पहाड़ी की चोटी ऊची पिल्लयार पर बस गए. आज भी वहां गणेश जी की मूर्ति के सिर पर चोट का निशान दिखता है.