••॥ गीदड़ भपकी ॥••
दोपहर में विचार आया की क्यों ना सड़क मार्ग से ही मुंबई से सागर पहुँचा जाए ? अपने विचार को अमल में लाते हुए शाम छह बजे मुंबई से सागर की ओर निकल गया।
रोड, लोड, कंडिशन ऑफ़ विहकल एंड कंडिशन ऑफ़ ड्राइवर दुरुस्त होने के कारण क़रीब रात १२ बजे मध्यप्रदेश की सीमा में प्रवेश कर गया।
चाय पानी की इच्छा से एक ठीक ठाक सा ढाबा देख रुक गया, ढाबे पर भीड़ नहीं थी लेकिन शोर शराबा ज़्यादा था। गाड़ी में बैठे हुए ही मामले का जायज़ा लिया तो देखा की चार लोग मिलकर एक शालीन से दिखने वाले हृष्ट पुष्ट आदमी को गालीयाँ देते हुए पीटने की धमकी दे रहे हैं किंतु पीट नहीं रहे हैं !! उनकी धमकियाँ सुनके मैं भी सकते में आ गया। मुझे लगा की मैं आज किसी भयंकर ख़ून ख़राबे का गवाह बनने जा रहा हूँ। किंतु वह व्यक्ति जिसे पीट के पस्त करने की बात की जा रही थी, जिसे धमकाया जा रहा था, उन चारों नवजवानों के क्रोध से प्रभावित हुए बिना, शांति से बैठा हुआ निर्विकार भाव से भोजन करता रहा। अपनी धमकीयों को निष्प्रभावी देख वे चारों लड़के उसे कल तक की मोहलत देकर चले गए।
वातावरण अप्रत्याशित रूप से शांत हो गया।
मैं उस व्यक्ति की दिलेरी से प्रभावित हुआ और मामले को समझने की नियत से उससे बात करने लगा। मुझे रात को १२ बजे ढाबे पर देख पहले तो उसे विश्वास नहीं हुआ फिर कन्फ़र्म करने के लिए मेरे नमस्कार का जवाब देते हुए मुझसे पूछा आप आशुतोष राणा ही हैं ना ? मैंने हाँ मैं सर हिला के पुष्टि की और उनसे कहा भाई मानना पड़ेगा आपको, वे चार लोग आपके सर पर खड़े होकर आपको धमकाते रहे लेकिन आप टस से मस ना हुए आपको बिलकुल डर नहीं लगा ? जबकि मुझे तो लग रहा था कि आज भयंकर ख़ून ख़राबा हो जाएगा, वे चारों ही बड़े भयानक मूड में थे।
उसने बहुत सहजता से कहा साहब मैं इनको और इनकी औक़ात को बहुत अच्छे से जानता हूँ, मेरे ही गाँव के गुंडे हैं। ये गीदड़ भपकी देने में मास्टर हैं। सिर्फ़ धमकाना जानते हैं, किसी को धमक देने की इनकी औक़ात नहीं है, बेहद फट्टू क़िस्म के लौंडे हैं। कुछ लोग इनकी गीदड़ भपकी से डर जाते हैं जिस कारण ये उच्चके, गाँव भर के दादा बने हुए हैं। आप इनकी पुकपुकाहट का अन्दाज़ इसी से लगा लीजिए, मुझे डरता ना देख ये चारों ख़ुद ही बुरी तरह डर गए, ना इनसे मारते बन रहा था और ना भागते, इसलिए अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए मुझे कल देख लेने की धमकी के साथ ऐंड़ते हुए निकल लिए। अरे !! जब इनको मुझे देखना ही है तो कल तक इंतज़ार क्यों करना ? आज ही निपटा दो.. और हँसते हुए बोला ये डरपोक ड़ेरिंगबाज़ लफ़ंगे हैं सर, तभी तो गुट्ट बना कर घूमते हैं। उसने मुझसे राम राम की, एक सेल्फ़ी खींची, अपनी मोटर साइकल में किक मारा और बेधड़क निकल गया।
मैं चाय पीकर अपनी गाड़ी में बैठ कर आगे बढ़ गया, मेरे दिमाग़ में उसके द्वारा इस्तेमाल किया हुआ गीदड़ भपकी का प्रचलित मुहावरा घूम रहा था। गीदड़ जो बेहद डरपोंक प्राणी होता है, जो अन्य जानवरों का छोड़ा हुआ माँस खाता है, दूसरों की झूठन पर पलने वाला सियार। जी इसे अंग्रेज़ी में फ़ॉक्स और बुंदेलखंडी में 'लड़ैया' भी कहा जाता है। ये स्वयं का घर बनाने में विश्वास नहीं करते, ये दूसरों के बने बनाए घर पर क़ब्ज़ा ज़माने की फ़िराक़ में लगे होते हैं। इनकी विशेषता है की यदि एक ने हुआऽऽऽ हुआऽऽऽ की आवाज़ लगाई तो इनका पूरा कुनबा हुआऽऽ हुआऽऽऽ करने लगता है। मैं सोचने लगा की जब ये लड़ने से डरते हैं तो फिर इनको 'लड़ैया' क्यों कहा जाता है ? लेकिन यह तो प्राणी मात्र की फ़ितरत है, प्राणी में जो गुण नहीं होता वह उसी गुण का टैग अपने ऊपर लगा लेता है जिससे संसार उसकी कमज़ोरी को भाँप ना सके। वैसे सियार स्वयं लड़ने से डरते हैं किंतु अन्य प्राणियों को आपस में लड़वा देने की कला में सिद्ध होते हैं। संभवत: इनके इसी गुण के कारण हमारे बुंदेलखंडी बुज़ुर्ग, गीदड़ उर्फ़ सियार उर्फ़ फ़ॉक्स को लड़ैया कहने लगे।
सोचते-सोचते मेरी आँख लग गयी, मैं सो गया। अचानक मैं विस्मय से भर गया, मैंने देखा की एक गीदड़ और गीदड़ी बुंदेलखंडी में बात करते हुए चले जा रहे थे।
गीदड़ी ने गीदड़ से कहा- सुनो दो चार दिना में अपने बाल बच्चे हो जें हैं, सो कोई थान देखो झाँ अपन रह सकें।
गीदड़ बोला- ओ की चिंता तुम नै करो परमेसरी (परमेश्वरी) अपन शेर की मांद पै क़ब्ज़ा कर हैं, उतईं अपने बच्चा जनम लें हैं।
गीदड़ी- तुम पगलया तो नई गए ? नाहर की मांद पे क़ब्ज़ा ? हम जनम देबे की बात कर रए हैं और तुम मरबे की जुगाड़ में लगे हो।
गीदड़- तुम लुगाइयों की जा भौत बुरी आदत है, ज़माने भर के लोगन पे बिस्वास करती हों, मनो अपने आदमी पे नई। हम तुमसे जैंसी कहें वैंसो करो। बा देखो सामने नाहर की मांद हैगी.. नाहर अबै घरे नई है। अपन उते रें हैं। जैसइ तुमें दरवाज़े पे शेर दिखाए तुम हमें इशारा करना, हम तुमसे ज़ोर से पूँछ हैं काय 'चंद्रबदनी' रानी ? तुम कहना हाँ 'मलपसार' राजा। और फिर गीदड़ ने फुसफुसा के गीदड़ी के कान में कुछ कहा और दोनों शेर की मांद में घुस गए।
गीदड़ी ने एक साथ दो बच्चों को जन्म दिया। बच्चे अभी दो दिन के ही हुए थे की उस मांद में रहने वाला शेर वापस लौट आया, मांद के दरवाज़े पर पहुँचते ही शेर को लगा की कहीं कुछ गड़बड़ है, कोई उसकी अनुपस्थिति में उसकी मांद में घुस गया है।
इधर गीदड़ी ने दरवाज़े पर खड़े शेर को देख लिया और अपने पतिदेव के निर्देशानुसार उसने आराम से सोए हुए अपने दोनों बच्चों को चटाचट दो थप्पड़ जड़ दिए !! अचानक हुए हमले से बच्चे डर के मारे ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। इधर गीदड़ ने तुरंत एक पोला बाँस का टुकड़ा उठा के अपने मुँह के पास लगा लिया जिससे उसकी आवाज़ गहरी हो जाए और डाँटते हुए बोला.. क्यों चंद्रबदनी रानी ? वहाँ से आवाज़ आयी हाँ मलपसार राजा।
राजा बोले- बच्चे क्यों रो रहे हैं ?
रानी ने जवाब दिया बोली- नाहर का पुराना गोश्त रखा है लेकिन बच्चे नाहर का ताज़ा गोश्त माँग रहे हैं।
ये सुनके दरवाज़े पर खड़ा शेर सोच में पड़ गया उसे लगा कि पता नहीं कौन प्रतापी राजा घुस गया है मांद में ? जिसके बच्चे शेर का माँस खाते हैं !! और अब वे ताज़े गोश्त की माँग कर रहे हैं। हम तो बड़े होने के बाद कभी-कभी नरभक्षी हो जाते हैं लेकिन इसके छोटे बच्चे "नाहरभक्षी" हैं !!! कहीं इस प्रतापी राजा की मुझ पर दृष्टि पड़ गयी तो ये अपने बच्चों की इच्छा पूरी करने के लिए इसी वक़्त मुझे मार डालेगा। अपनी मृत्यु का विचार आते ही शेर बुरी तरह घबरा गया और बिना समय गँवाये वहाँ से भाग खड़ा हुआ।
शेर जंगल का राजा होता है और उसकी मांद उसका महल, उसके महल पर किसी और ने क़ब्ज़ा कर लिया था यह शेर के लिए बेहद अपमान का विषय था, बेघर हो जाने के कारण उसे दर दर भटकना पड़ रहा था सो अलग। अपनी व्यथा को उसने अपने साथी शेरों से साझा किया कि एक "नाहरभक्षी" ने मेरी मांद पर क़ब्ज़ा कर लिया है।
सभी शेर चिंता में पड़ गए, उन चारों शेरों ने सलाह की-कि हम चारों एक साथ तुम्हारी मांद पर चलते हैं देखते हैं की माजरा क्या है ?
चारों शेरों को एक साथ मांद के दरवाज़े पर चुपचाप खड़ा देख गीदड़ी ने फिर अपने सोते हुए बच्चों को ज़ोर से चिकोटी काटी वे बेचारे दर्द से चित्कार उठे, गीदड़ राजा ने फिर गहरी आवाज़ में पूछा क्यों चंद्रबदनी रानी बच्चे क्यों रो रहे हैं ?
रानी ने झल्लाकर कहा- ये नाहर का बासा गोश्त खाने तैयार नहीं हैं इनको एकदम ताज़ा मरे हुए नाहर का गोश्त खाना है।
राजा ने कहा अरे वाह, देखो बच्चों की क़िस्मत से एक नहीं चार-चार नाहर गुफ़ा के दरवाज़े खड़े हैं, और भयंकर क्रोध से बोला- रानीऽऽ .. उठा तो मेरी बिजरिया खाँड़ा ( बिजली की तलवार ) मैं झंई से मारूँगा सम्मुख खड़े बैरी के मुँह पे।
ये सुनना था की उनपर "बिजली की तलवार" से हमला होने वाला है, उन चारों शेरों ने दहशत में दौड़ लगा दी।
ये अपमान शेरों से बर्दाश्त नहीं हुआ और उन सबने इस समस्या के समाधान के लिए "अखिल जंगल शेर फ़ेडरेशन" की सभा बुलाई जिसमें जंगल के सभी शेर इकट्ठा हुए, यहाँ तक की उन्होंने उसमें बंडा शेर को भी बुलाया जिसकी एक हादसे में पूँछ कट गई थी जिसके कारण बंडा को भय बैठ गया था, वह शेरों की बिरादरी का सबसे डरपोंक शेर था। लेकिन यह आपातक़ालीन समय था इसलिए हर एक शेर महत्वपूर्ण था।
सभा के अध्यक्ष "काने शेर" ने जो सबसे दिलेर और चतुर भी माना जाता था कहा की हम सभी एक साथ उस गुफ़ा पर चलते हैं और उस नाहरखोर का पता लगाते हैं। वे सभी मांद के सामने पहुँच कर रुक गए। पच्चीस तीस शेरों को एक साथ देख गीदड़ी घबरा गई, उसने गीदड़ से कहा की अब बचना बहुत मुश्किल है, जंगल के पूरे शेर इकट्ठे होकर आए हैं। ख़ौफ़ज़दा कर देने वाली इस ख़बर को सुनकर गीदड़ को हँसी आ गई। गीदड़ी उसे हँसता देख और भयभीत हो गई उसे लगा कि उसका पति भयानक मौत की ख़बर सुनकर पागल हो गया है। उसने गीदड़ को झँझोड़ते हुए पूछा क्या हुआ तुम्हें ? गीदड़ ने उसे शांत करते हुए कहा- हे चंद्रमा के जैसे बदन वाली मेरी चंद्रबदनी, वास्तविक भय से कही बहुत बड़ा काल्पनिक भय होता है। इसी काल्पनिक भय के कारण "स्वयं की शक्ति" पर भरोसा करने वाले शेर अब "समूह की शक्ति" पर भरोसा करने लगे, और गुट बनाकर गीदडों को मारने आए हैं। ये किसी भी गीदड़ के लिए गर्व की बात है की उसने शेरों को भयभीत कर दिया।
जो शेर आजतक एक दूसरे के साथ खड़े होने में अपनी तौहीन समझते थे, वे आज मृत्यु से नहीं, मृत्यु के भय से संगठित हो गए हैं। मृत्यु को नहीं, "मृत्यु के भय" को जीतना साहसी होने की निशानी है। तुम बिलकुल चिंता मत करो, ये शेर हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। निर्भय व्यक्ति भय को नहीं पकड़ता, लेकिन भय यदि एक बार निर्भय को पकड़ ले तो फिर वो उस व्यक्ति को कभी नहीं छोड़ता। तुमने कहा की सब शेर आए हैं ? इसका मतलब है की वह "पुँछकटा बंडा" भी होगा इनके साथ ?
गीदड़ी ने कहा हाँ वह भी है। लेकिन पीछे पीछे ही घूम रहा है। ये सुनकर गीदड़ मुस्कुराते हुए बोला- सबसे पहले अपन अपने बाल बच्चों को लेकर मांद के अंदर इस ऊँचे पेड़ पर चढ़ जाते हैं। शेर पेड़ पर नहीं चढ़ सकते, हम वहीं से इनका तमाशा बनाएँगे। लोग कहते हैं कि क्या शेर से पाला पड़ा है, लेकिन अब से ये ही लोग कहेंगे की क्या गीदड़ से पाला पड़ा है। भयभीत शेर, डरपोंक गीदड़ से भी ज़्यादा कमज़ोर होता है।
इधर मांद के दरवाज़े पर शेरों ने योजना बनाई, तय हुआ कि सबसे आगे 'काना' शेर चलेगा क्योंकि वह सबसे ख़ूँख़ार, हिम्मती, अनुभवी और चतुर है, किसी भी ख़तरे से तत्काल निपटने की उसमें क्षमता है। बाक़ी के शेर उसका अनुसरण करेंगे, पुँछकटे बंडा शेर ने अपने को सबसे पीछे रखा हुआ था क्योंकि जबसे उसकी एक हादसे में पूँछ कटी थी तब से एक हीनभावना और अज्ञात भय ने उसे घेर लिया था।
शेर अंदर पहुँचे देखा गुफ़ा बिलकुल ख़ाली है, वहाँ किसी के भी होने का नामोनिशान तक नहीं था। उन्होंने मांद का चप्पा चप्पा छान मारा लेकिन कुछ हाथ ना लगा। अचानक काने शेर को जम्हाई आयी जम्हाते हुए उसने मुँह ऊपर किया तो देखा पेड़ पर गीदड़ अपने परिवार के साथ छुपा हुआ है। शेरों के भय का कारण ये हरामखोर गीदड़ है !!! ये जानकर काना वितृष्णा से भर गया और रौद्र रूप धारण कर दहाड़े हुए बोला हमारी जूठन पर पलने वाले कायर हरामखोर गीदड़ तेरी इतनी औक़ात की तू हम शेरों से पंगा लेगा ? ठहर साले नीच, मैं अभी तेरे परिवार के चिथड़े बिखेर दूँगा।
गीदड़ इस बात को जानता था की बलिष्ठ का नाश उसका क्रोध ही करता है, इसलिए चतुर लोग ताक़तवर का क्रोध शांत करने का प्रयास नहीं करते बल्कि वे उनके क्रोध को भड़काने की जुगत करते हैं। सो काने शेर का क्रोध बढ़ाने की नियत से गीदड़ ने उसका उपहास सा उड़ाते हुए कहा- धरती पर खड़े होकर आसमान को धमकाने की कुचेष्टा करने वाली "बड़ी बिल्ली", यह तेरी मूर्खता का प्रमाण है जो वृक्ष पर चढ़ने की क्षमता ना होने के बाद भी वृक्ष पर लगे फल की आशा कर रहा है। शेर के नाम से विख्यात बिल्ली की औलाद, गरजने भर से जीव को इच्छित फल की प्राप्ति नहीं होती, उसके लिए सार्थक कर्म करना पड़ता है। मेरे माँस के टुकड़ों पर पलने वाले काणे, अपने से ऊँचाई पर बैठे जीव को प्रणाम करना सीख। याद रख "जैसा अन्न वैसा मन", हम गीदड़ों के निरंतर भक्षण से तू शेर होते हुए भी गीदड़ हो गया है। और तेरा सामना करते-करते हम गीदड़ होते हुए भी शेर हो गए हैं। किसी शेर का गीदड़ होना यदि अकल्याणकारी है, तो किसी गीदड़ का शेर हो जाना घातक। इसलिए भाग यहाँ से नहीं तो इतना पीटूँगा की तुझे तेरी मौसी याद आ जाएगी।
शेर मरने से नहीं डरता लेकिन अपमानित होने से अवश्य डरता है। सो काना शेर अपमान की पीढ़ा से धधाकर जल उठा, उसने सभी शेरों से चीख़ कर कहा की अब इस नीच गीदड़ को फाड़ के फेंक देना चाहिए, शेर बंधुओं हम शेर हैं हमारी गर्जना मात्र से जीवों के गर्भ गिर जाते हैं। किंतु हम पेड़ पर नहीं चढ़ सकते, इसलिए अपनी इस कमज़ोरी को समाप्त करने के लिए हमें एक दूसरे का सहयोग करना होगा आइये हम पिरामिड बनाकर शिखर पर बैठे हुए इस दुष्ट गीदड़ का नाश करते हैं, ताकि भविष्य में फिर कोई गीदड़ हम शेरों को अपमानित ना कर सके।
पेड़ की ऊँचाई पर बैठा गीदड़ निश्चिन्त था क्योंकि वो बहुत अच्छे से शेरों की इस कमज़ोरी को जानता था की शेर सब कुछ कर सकते हैं किंतु वे किसी दूसरे शेर के नीचे नहीं खड़े हो सकते।
शेरों का आत्माभिमान, उनके शेरत्व का गौरव ही उनके क्षरण और मरण का कारक होता है।
शेर किसी दूसरे के नियंत्रण को तो बर्दाश्त कर लेते हैं किंतु "स्वजातीय" की अधीनता से उनका "जातीय गौरव" आहत होता है। सो "काने शेर" के पिरामिड बनाके गीदड़ को सबक़ सिखाने के सुझाव ने सभी शेरों को चिंता से भर दिया। वे गीदड़ के द्वारा दी गई चुनौती को भूलकर अपनी श्रेष्ठता पर बहस करने लगे।
झगड़ा शिखर पर खड़े होने का नहीं था बल्कि निचले स्थान पर "ना खड़े" होने का था।
उन्हें काने के सबसे ऊपर खड़े हो जाने पर एतराज़ नहीं था, किंतु वे स्वयं नीचे खड़े होने को तैयार नहीं थे।
वे शीर्ष स्थान पर स्वयं को प्रतिष्ठित किए जाने के लिए लालायित नहीं थे, किंतु स्वयं को निम्न स्थान पर देखना उन्हें नागवार था। प्रश्न नेतृत्व का नहीं अनुसरण का था।
शेर की मांद में ही शिखर पर बैठा हुआ गीदड़ शेरों की प्रकृति से भली भाँति परिचित था सो वह जानता था कि मांद के नाम पर मजबूरी में किया जाने वाला सहयोग या समर्पण, स्वैच्छिक विद्रोह से अधिक घातक होता है। इसलिए वह आश्वस्थ था की आज एक गीदड़ शेरों के अपार संख्या बल के बाद भी उन्हीं की मांद में उनकी पराजय का कालजयी इतिहास लिखने वाला है।
इधर "पुँछकटे शेर बंडा" ने सोचा की यह अनुकूल अवसर है अपनी कायरना छवि को दुरुस्त करने का, सो उसने अपने भय को त्याग के नाम पर स्वयं को सबसे नीचे स्थान पर रखने की पेशकश की, उसने अपने भय पर पर्दा डालने की नियत से ओजपूर्ण भाषण दिया की शेरों के गौरव की रक्षा के लिए यदि उसे स्वयं के गौरव का हनन भी करना पड़े तो वह सहर्ष सबसे नीचे खड़ा रहने के लिए तैयार है। भाइयो अपने पिंड ( गाँव ) की रक्षा के लिए ही मैंने अपनी पूँछ कटवा दी। आज मांद की मर्यादा के लिए यदि मुझे मरना भी पड़े तो परवाह नहीं। शेरत्व की रक्षा के लिए अपनी पूँछ को उत्सर्ग करने वाला मैं बंडा शेर, आज सहर्ष अपने प्राणों की आहुति देने लिए तैयार हूँ।
भय, साहस और त्याग ये छुआ-छूत की बीमारी जैसे होते हैं। बंडा के ओजस्वी भाषण और त्याग-बलिदान के भाव से प्रभावित होकर सभी शेर साधू-साधू की हर्ष ध्वनि करने लगे और "बंडा" को सबसे नीचे रखकर उसके ऊपर एक-एक करके चढ़ने लगे।
शेरों का पिरामिड बनता देख गीदड़ी घबरा गई उसे लगा की यह उसके परिवार के जीवन का आख़िरी क्षण है, उसने रोते हुए अपने पति गीदड़ से कहा- हे प्राणनाथ अपने से अधिक बलशाली को चुनौती देने का परिणाम भयंकर मौत होता है। गीदड़ ने मुस्कुराते हुए उससे कहा मेरी प्राणप्रिये- दुश्मन क्रोध का नहीं शोध का विषय होता है, इसलिए भय त्यागो और शेरों पर गीदड़ों की ऐतिहासिक विजय की साक्षी बनो। ध्यान से देखो इन शेरों के साहसिक अभियान की इमारत की जड़, पुँछकटे भयभीत बंडा पर खड़ी है। इन शेरों का साहस और गौरव भय की नींव पर खड़ा है। मैं काने शेर के साहस पर नहीं, पुँछकटे बंडा के भय पर चोट करूँगा। मैं जानता हूँ ये डरपोंक बंडा, सहिष्णुता या त्याग के कारण नहीं अपने भय के कारण सबसे नीचे खड़ा है, ताकि ये सुरक्षित रह सके। वह सबसे कमज़ोर कड़ी है मुझे उसी पर चोट करनी है। ये शेर क्रोधी अहंकारी ही नहीं मूर्ख भी हैं जो इस भयभीत के भरोसे बढ़ रहे हैं।
इधर शेर एक के ऊपर एक चढ़ते चले जा रहे थे, वे गीदड़ के बिलकुल क़रीब पहुँच चुके थे अब काने शेर के शीर्ष पर पहुँचते ही इस अधम गीदड़ का नाश होने वाला था। किंतु जैसे ही काना ऊपर की ओर बढ़ा, वैसे ही गीदड़ ने अपनी क्रोध पूर्ण आँखों को "बंडा" की भयपूर्ण आँखों में गड़ाकर भयंकर गर्जना करते हुए ललकार कर कहा- ऐ चंद्रबदनी रानी उठा तो मेरो बिजरिया खांडा, मैं यहीं से खींच के मारूँगा सबसे नीचे छुपे हुए मेरे घोर बैरी पुँछकटे बंडा को। ये सुनते ही बंडा बुरी तरह घबरा गया, उसे लगा की मलपसार को सिर्फ़ उसके ही प्राण चाहिए हैं !! अपनी जान बचाने की ख़ातिर बंडा बेतहाशा वहाँ से भाग खड़ा हुआ उसके भागते ही सभी शेर जो उसके ऊपर खड़े थे भरभरा कर नीचे गिर पड़े, बंडा को भागता देख अन्य शेर भी किसी अप्रत्याशित ख़तरे की आशंका से भागने लगे शेरों में मची हुई भगदड़ देख काना भी हदबदा कर भाग खड़ा हुआ। शेरों को भागता देख मलपसार गीदड़ ठठाकर हँसते हुए अपनी पत्नी से बोला- देखा चंद्रबदनी रानी, गीदड़ भपकी में शेरों को भयभीत कर भगा देने की विकट क्षमता होती है, अब से शेर की मांद ही हमारा महल होगा। हम गीदड़ सपरिवार यहीं पर सुखपूर्वक रहेंगे।
गीदड़ के हाथों शेरों के पराभव को देख मैं बेचैन हो गया था कि तभी अचानक एक तेज़ आवाज़ से मेरी नींद खुल गई, ओह !! मैं स्वप्न देख रहा था। इस बात का अहसास होते ही मैं शांत हो गया। मैंने देखा की मैं भोपाल की रेल्वे क्रॉसिंग पर खड़ा हूँ और सामने से एक रेलगाड़ी तेज़ी से हॉर्न बजाती हुई गुज़र रही है। रेल के डिब्बों को अपने सामने तेज़ी से गुज़रता देख मैं इस रोचक स्वप्न के बारे में सोच रहा था की क्षमतवान शेरों की असामर्थ्य के कारण नहीं, बल्कि उनके व्यक्तिगत अहम् से उपजे ऊँच नीच के भाव, मात्र स्वयं के प्रति आत्माभिमान की भावना, आक्रांता की धूर्तता का उत्तर मूर्खता से देना, जातीय अभिमान के नाम पर किसी कल्याणकारी अभियान में नीचे और पीछे नहीं खड़े रहने का भाव और पुँछकटा बंडा के काल्पनिक भय के कारण ही शेर की मांद पर लम्बे समय तक गीदड़ का क़ब्ज़ा रहा।
भय को पकाने की कला ही "भयपकी" कहलाती है। गीदड़ों का सामूहिक रूदन, सामूहिक विलाप, सामूहिक मिलाप, सामूहिक हुआऽऽ हुआऽऽ के कारण गीदड़ भय को पकाने में उस्ताद होते हैं इसलिए लोगों ने भयपकी को ही "गीदड़ भपकी" के नाम से मशहूर कर दिया।
भोर के प्रकाश में वह गीदड़ एक बार फिर मेरे मस्तिष्क में आकर खड़ा हो गया और बोला- राणा जी, किसी भी सफलता के लिए मज़बूत और निर्भीक आधार की आवश्यकता होती है, क्योंकि भय के बीज से सिर्फ़ मूर्खता का फल ही पैदा होता है।
नेता कितना की शौर्यवान क्यों ना हो किंतु उसके नीचे और पीछे खड़े रहने वाले उससे अधिक शौर्यवान और वीर होने चाहिए। नेता को चाहिए की वह अपने अधीनस्थ लोगों को असुरक्षित नहीं, सुरक्षित करे क्योंकि असुरक्षा की नींव पर सुरक्षा के महल खड़े नहीं होते। भयभीत पर भरोसा- भूत का भरोसा होता है, "काणे" ने भयभीत "बंडा" पर निर्भीक शेरों को चढ़ जाने दिया परिणामस्वरूप दिलेर होते हुए भी काणे को पराजित अपमानित होना पड़ा। याद रखो शेरों को गीदड़ की दिलेरी ने नहीं शेर की कायरता ने ही पराजित किया है। अगली बार तुमको दिलेर बंडा के पुँछकटे भयभीत बंडा होने का रहस्य बताऊँगा, ये कहते हुए गीदड़ ग़ायब हो गया।~आशुतोष राणा