एक बात बताये अफजल गुरु को तो यूपीए सरकार ने लटकाया था। उसे लटकाये भी 2 साल हो गए।जब लटकाया था, तब JNU में कोई विरोध प्रदर्शन नही हुआ, पिछले साल नही हुआ अचानक मरे हुए गुरु के इतने चेले कैसे पैदा हो गए?
इसका मतलब सरकार कुछ तो ऐसा काम कर रही है कि सारे छुपे हुए गद्दार बिलबिलाकर बिल से बाहर आ रहे है। नक़ाब हट रहे है।
शायद सरकार और खुफिया एजेंसियां इन्ही स्लीपर सेल्स, आतंकवादी समर्थकों को चिन्हित करके बेकनाब कर देना चाहती हो ताकि जब इनके खिलाफ कारवाही हो कोई छातीकूट, अवार्ड वापसी गैंग, असहिष्णुता के झंडाबरदार इनके पक्ष में माहौल न बना सके।
अब कँहा गए लेखक कवि फ़िल्मकार क्यों नही विरोध करते इन देशद्रोहियो का ।
पुरस्कार खत्म हो गए हो तो अपने आधार कार्ड ही वापस करिये।
कँहा गए ये लोकतन्त्र विरोधी नेता केजरी लालू मुलायम ओवेशी आज़म इन गीदड़ो ने देश के सपूत सेनिक हनुमन्थप्पा की कुशल क्षेम पूछना तो दूर पूछा तक नही । लानत है इन पर
सत्यता तो ये है अब इनका समय शोर्ट एक्सपाइरी है