JNUमें लड़कियों को भी पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगते देख कर
इस तरह की लड़कियों को महिला सशक्तिकरण की बहुत चिंता रहती है , इन्हें आज़ादी चाहिए , इन्हें आज़ादी दो , इन्हें कम कपड़े पहनने की आज़ादी दो ,रात भर घूमने की आज़ादी दो, मन माफिक रहने की आज़ादी दो , लो भई मिल गयी, पर क्या किया
तुमने इस आज़ादी के नाम पर ह्म्म्म ????
है न अजीब इत्तेफ़ाक़ कि जब ये सशक्तिकरण का शब्द चलता नहीं था , तब भी किरण बेदी , कल्पना चावला, लक्ष्मी बाई , सरोजनी नायडू , दुर्गा भाभी जैसी सशक्त महिलाएं उभर के आ गयीं और ये JNU की आधी अधूरी लड़कियां शराब के ग्लास हाथ में लिए , सिगरेट के छल्ले उड़ाते , रोज बॉय फ्रेंड की बदली करते , चरस गांजे के सुट्टे लगाते, दूसरों के टैक्स के पैसों से पढाई के नाम पर अपने माँ बाप और देश के माथे पर कलंक लगाते हुए , विधर्मियों के साथ मिल कर देश की बर्बादी की चाह पर नारे लगाती हुई गलीज सोच की लड़कियों से वो वेश्याएं बेहतर हैं जो जिस्म बेचती हैं मगर देश नहीं ..........
आज भी हिंदुस्तान की लाखों महिलाएं जिन्हें सशक्तिकरण की परिभाषा नहीं पता जो गाँव देहात में सर ढंके , खेतों पर जाती हैं , गोबर पाथती हैं वो भी जानती हैं कि अपने देश के लिए गलत न बोलना चाहिए न सुनना चाहिए , ऐसी महिलाएं तुम पढ़ी लिखी लड़कियों के मुंह पर जोरदार तमाचा हैं।
भारत माँ की जय की जगह पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाने वाली सो कॉल्ड ज्यादा होशियार लड़कियों, मेरे घर की सफ़ाई करने वाली तुमसे लाख गुना ज्यादा समझदार हैं, जिसे 15 अगस्त या 26 जनवरी के बारे में कुछ नहीं पता , पता है तो बस इतना कि ये हमारे देश का कोई त्यौहार है .... ये जो उनके मन में "हमारा देश " का भाव है न! वो भाव तुम्हारे सड़े गले चेहरे का नकाब उतारने के लिए काफी है