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भग्न वीणा

रामधारी सिंह दिनकर

24 अध्याय
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3 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

भग्न वीणा युगदृष्टा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की सुभाषितों से भरी ऐसी कविताओं का संकलन जिसमें महाकवि के जीवन के उत्तरार्द्ध की दार्शनिक मानसिकता के दर्शन होते हैं । इस संग्रह में संगृहीत की गई कविताएँ परम सत्ता के प्रति निश्चल भावना से समर्पित हैं । मनुष्य–मन की विराटता का यहाँ परिचय होता है । नई साज–सज्जा और सरल सुबोध भाषा–शैली में प्रकाशित यह कृति सभी प्रबुद्ध पाठकों के लिए पठनीय है । 

bhagn vina

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पुस्तक के भाग

1

निवेदन

18 फरवरी 2022
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मैंने अपने आपको  क्षमा कर दिया है।  बन्धु, तुम भी मुझे क्षमा करो।  मुमकिन है, वह ताजगी हो,  जिसे तुम थकान मानते हो।  ईश्वर की इच्छा को  न मैं जानता हूँ,  न तुम जानते हो।  

2

राम, तुम्हारा नाम

18 फरवरी 2022
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राम, तुम्हारा नाम कंठ में रहे,  हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे,  दुख से त्राण नहीं माँगूँ।     माँगू केवल शक्ति दुख सहने की,  दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया  अकातर ध्यानमग्न रहने की।     देख तुम्हा

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संपाती

18 फरवरी 2022
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तुम्हें मैं दोष नहीं देता हूँ।  सारा कसूर अपने सिर पर लेता हूँ।     यह मेरा ही कसूर था  कि सूर्य के घोड़ों से होड़ लेने को  मैं आकाश में उड़ा।     जटायु मुझ से ज्यादा होशियार निकला  वह आधे रास

4

चिट्ठियां

18 फरवरी 2022
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चिट्ठियां तो बहुत सारी आयी थीं ।  मगर, खबरें जुगायीं नहीं ।     क्या पता था कि दुनिया  एक दिन यह हाल भी पूछेगी,  जिनका कोई जवाब नहीं,  ऐसे सवाल भी पूछेगी?     सवाल उनका, जो सब कुछ  लूट कर चले

5

निस्तैल पात्र

18 फरवरी 2022
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एक वक्त ऐसा आता है,  जब सब कुछ झूठ हो जाता है,  सब असत्य,  सब पुलपुला,  सब कुछ सुनसान ।     मानो, जो कुछ देखा या, इन्द्रजाल था ।  मानो, जो कुछ सुना था, सपने की कहानी यी।     जिन्दगी को जितना

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रहस्य और विज्ञान

18 फरवरी 2022
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इतना जिया कि जीते-जीते  सारी बात भूल गया।     शब्दों के कुछ निश्चित अर्थ  मैंने भी सीखे थे ।  और उन अर्थों पर मुझे भी नाज था ।  और नहीं, तो उतने ज़ोर से  बोलने का क्या राज़ था?     स्त्रियों के

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कविता और विज्ञान

18 फरवरी 2022
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हम रोमांटिक थे;  हवा में महल बनाया करते थे ।  चाँद के पास हमने एक नीड़ बसाया था,  मन बहलाने को हम उसमें आया-जाया करते थे ।     लेकिन तुम हमसे ज्यादा होशियार होना,  कविता पढ़ने में समय मत खोना । 

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नेमत

18 फरवरी 2022
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कविता भक्ति की लिखूँ  या श्रृंगार की,  सविता एक ही है,  जो शब्दों में जलता है ।     अक्षर चाहे जो भी उगें,  कलम के भीतर  भगवान मौजूद रहते हैं ।     दूसरों से मुझे जो कुछ कहना है,  वह बात प्र

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रक्षा करो देवता

18 फरवरी 2022
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रक्षा करो ! रक्षा करो !  देवता! हमारा क्या गुनाह है?  तीन ककारों में पड़ी दुनिया तबाह है ।     संसार तुमने बहुत सोच-समझ कर रचा है ।  मगर, एक-एक से पूछ कर देख लो,  कामिनी, कंचन और कीर्ति से कौन बच

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बच्चे

18 फरवरी 2022
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जी चाहता है, सितारों के साथ  कोई सरोकार कर लूँ।  जिनकी रोशनी तक हाथ नहीं पहुंचते,  उन्हें दूर से प्यार का लूँ।     जी चाहता है, फूलों से कहुँ  यार ! बात करो ।  रात के अँधेरे में यहाँ कौन देखता

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सूर्य

18 फरवरी 2022
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सूर्य, तुम्हें देखते-देखते  मैं वृद्ध हो गया ।  लोग कहते हैं,  मैंने तुम्हारी किरणें पी हैं,  तुम्हारी आग को  पास बैठ का तापा है ।    और अफवाह यह भी है  कि मैं बाहर से बली  और भीतर से समृद्

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कविता और आत्मज्ञान

18 फरवरी 2022
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 कविता क्या है ?  महर्षि रमण ने कहा ।  मानसिक शक्तियों का मन्थन कर  कीर्ति उत्पन्न करना,  मन में जो आकृतियां घूम रही हैं,  उन्हें निकाल कर  बाहर के अवकाश को भरना।     किन्तु, आत्मज्ञान की राह

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खोज

18 फरवरी 2022
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खोजियो, तुम नहीं मानोगे,  लेकिन संतों का कहना सही है ।  जिस घर में हम घूम रहे हैं,  उससे निकलने का रास्ता नहीं है ।     शून्य औए दीवार, दोनों एक हैं ।  आकार और निराकार, दोनों एक हैं ।     जिस

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कुंजी

18 फरवरी 2022
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घेरे था मुझे तुम्हारी साँसों का पवन,  जब मैं बालक अबोध अनजान था।     यह पवन तुम्हारी साँस का  सौरभ लाता था।  उसके कंधों पर चढ़ा  मैं जाने कहाँ-कहाँ  आकाश में घूम आता था।     सृष्टि शायद तब भी

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परंपरा

18 फरवरी 2022
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परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो  उसमें बहुत कुछ है  जो जीवित है  जीवन दायक है  जैसे भी हो  ध्वंस से बचा रखने लायक है     पानी का छिछला होकर  समतल में दौड़ना  यह क्रांति का नाम है  लेकिन घाट ब

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गाँधी

18 फरवरी 2022
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देश में जिधर भी जाता हूँ,  उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ  "जड़ता को तोड़ने के लिए  भूकम्प लाओ ।  घुप्प अँधेरे में फिर  अपनी मशाल जलाओ ।  पूरे पहाड़ हथेली पर उठाकर  पवनकुमार के समान तरजो ।  कोई तू

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लेन-देन

18 फरवरी 2022
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लेन-देन का हिसाब  लंबा और पुराना है।     जिनका कर्ज हमने खाया था,  उनका बाकी हम चुकाने आये हैं।  और जिन्होंने हमारा कर्ज खाया था,  उनसे हम अपना हक पाने आये हैं।     लेन-देन का व्यापार अभी लंबा

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भगवान के डाकिए

18 फरवरी 2022
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पक्षी और बादल,  ये भगवान के डाकिए हैं  जो एक महादेश से  दूसरें महादेश को जाते हैं।  हम तो समझ नहीं पाते हैं  मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ  पेड़, पौधे, पानी और पहाड़  बाँचते हैं।     हम तो केवल यह आ

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शोक की संतान

18 फरवरी 2022
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 हृदय छोटा हो,  तो शोक वहां नहीं समाएगा।  और दर्द दस्तक दिये बिना  दरवाजे से लौट जाएगा।  टीस उसे उठती है,  जिसका भाग्य खुलता है।  वेदना गोद में उठाकर  सबको निहाल नहीं करती,  जिसका पुण्य प्रबल

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अवकाश वाली सभ्यता

18 फरवरी 2022
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मैं रात के अँधेरे में  सिताओं की ओर देखता हूँ  जिन की रोशनी भविष्य की ओर जाती है     अनागत से मुझे यह खबर आती है  की चाहे लाख बदल जाये  मगर भारत भारत रहेगा     जो ज्योति दुनिया में  बुझी जा र

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माध्यम

18 फरवरी 2022
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मैं माध्यम हूँ, मौलिक विचार नहीं,   कनफ़्युशियस ने कहा ।     तो मौलिक विचार कहाँ मिलते हैं,  खिले हुए फूल ही  नए वृन्तों पर  दुबारा खिलते हैं ।     आकाश पूरी तरह  छाना जा चुका है,  जो कुछ जा

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स्वर्ग

18 फरवरी 2022
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स्वर्ग की जो कल्पना है,  व्यर्थ क्यों कहते उसे तुम?  धर्म बतलाता नहीं संधान यदि इसका?  स्वर्ग का तुम आप आविष्कार कर लेते।  

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पर्वतारोही

18 फरवरी 2022
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मैं पर्वतारोही हूँ।  शिखर अभी दूर है।  और मेरी साँस फूलनें लगी है।     मुड़ कर देखता हूँ  कि मैनें जो निशान बनाये थे,  वे हैं या नहीं।  मैंने जो बीज गिराये थे,  उनका क्या हुआ?     किसान बीजो

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करघा

18 फरवरी 2022
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 हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं  दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।  हर ज़िन्दगी किसी न किसी  ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।     ज़िन्दगी ज़िन्दगी से  इतनी जगहों पर मिलती है  कि हम कुछ समझ नहीं पाते  औ

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