एक वक्त ऐसा आता है,
जब सब कुछ झूठ हो जाता है,
सब असत्य,
सब पुलपुला,
सब कुछ सुनसान ।
मानो, जो कुछ देखा या, इन्द्रजाल था ।
मानो, जो कुछ सुना था, सपने की कहानी यी।
जिन्दगी को जितना ही गहरा खोदता हूँ
उतनी ही दुर्गन्ध आती है ।
मानो, मैं कोई और हूँ
और यह जिन्दगी किसी और ने जी हो।
मगर, अब तो खुशबू बसाने का समय नहीं है ।
सूरज पश्चिम की ओर ढल रहा है।
गरचे चिता अभी जली नहीं है,
मगर जिन्दगी से धुआँ निकल रहा है ।
करम खुदा का!
बन्दे, तुझे वया ग़म है?
तेल की हाँडी निस्तैल हो कर फूटे,
यह क्या कम है?