चिट्ठियां तो बहुत सारी आयी थीं ।
मगर, खबरें जुगायीं नहीं ।
क्या पता था कि दुनिया
एक दिन यह हाल भी पूछेगी,
जिनका कोई जवाब नहीं,
ऐसे सवाल भी पूछेगी?
सवाल उनका, जो सब कुछ
लूट कर चले गये ।
यानी यह बात कि यार,
तुम कैसे छले गये ?
चाँद के बुलावे पर प्रकाश में घूमने की बात !
सितारों की महफिल में बैठ कर झूमने की बात !
बात वह जिसके किनारे तेज धार होती है ।
जरा-सा चूके नहीं
कि कलेजे के आर-पार होती है ।
अपनी चिता आप बना कर
उस पर सोने की बात,
जिस दर्द को कोई न समझे,
उससे कराहने और रोने की बात ।
तारों से जो धूल झरती है,
उसे, दोने में सजाता हूँ।
इतिहास में लीक नहीं,
छाँह छोड़े जाता हूँ।