रक्षा करो ! रक्षा करो !
देवता! हमारा क्या गुनाह है?
तीन ककारों में पड़ी दुनिया तबाह है ।
संसार तुमने बहुत सोच-समझ कर रचा है ।
मगर, एक-एक से पूछ कर देख लो,
कामिनी, कंचन और कीर्ति से कौन बचा है !
मुनियों ने मेनका को गोद में बिठाया ।
राजाओं ने कंगालों का कोष चुराया ।
और कीर्ति?
यह चश्मा तो सर्वत्र उबलता है ।
शहीद शहीद की जड़ खोदते हैं
और एक साधु दूसरे साधु से जलता है ।
सच है कि कामिनी काल पा कर छूट जाती है ।
लेकिन कंचन और कीर्ति ?
रक्षा को, रक्षा करो देवता ।
जब तक जीवित हैं,
कुछ न कुछ खाना ही पड़ेगा ।
जितने अच्छे हैं,
उससे ज्यादा बताना ही पड़ेगा ।