भुलाए नहीं भूलता ,
ये इश्क यादगार रहता है,
कभी चांद में खोया ,
कभी हवाओं में महकता,
कभी बारिशों में बरसता,
कभी पतझड़ में गुम सा,
कभी धूप में दमकता सा,
कभी मंदिर के प्रांगण में बिखरी सुगंध सा,
कभी औंस की नमी सा,
कभी फूलों की सुंदरता जैसा,
कभी उद्दंडी सा नन्हे बालक जैसा,
कभी दर्द में सहमा सा,
कभी राह में भटके मुसाफिर जैसा,
कभी शहद में घुले शब्दों की मिठास सा
कभी नीम का स्वाद लिए कुछ कड़वा सा,
कभी आंधी में उड़ती धूल सा,
कभी गीली मिट्टी से उठती सौंधी सी महक सा,
कभी दुधमुहे बच्चे की किलकारी सा,
सुनो...
घोल दी हैं महक अपनी,
मैने इन फिज़ाओं में.....
तुम्हे उम्र भर महसूस होगा,
मेरा वजूद आस पास कहीं..!