ईश्वर ....
पता है किसी किसी परिस्थिति में,
कभी कभी मन इतना अस्थिर हो जाता है कि,
रूठ जाता है ईश्वर तक से ,मन विरुद्ध हो जाता है,
हर तरह के पूजा पाठ से,आस्थाओं से एक दम विपरीत सा,
जब कभी होती है कोई अनहोनी,
जब होता है कोई असहनीय कष्ट,
जब कोई दर्द अपनी हद पार कर जाता है,
जब हम खुद को इतना असहनीय दर्द में घिरा पाते हैं,
जिसका कोई अंत नहीं जिसकी कोई दवा नहीं,
जब हम विफल हो जाते हैं हर तरह से ....
मगर एक वक्त बाद ....
हम फिर ईश्वर की ओर पलट कर आ ही जाते हैं,
क्योंकि हम शून्य हैं ,ईश्वर ही हमारी पहचान है,
उनके बिना हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है,
जो हमारे साथ होता है वो हमारा भाग्य है ,हमारे हाथ की लकीरों का लेखा जोखा है ....
ये बात हमे कुछ वक्त बाद महसूस हो ही जाती है,
जब हम उस दर्द से उस अवसाद से बाहर निकलते हैं,
और वैसे भी हम मनुष्य ईश्वर की बनाई रचना,
हम तो मिट्टी है और मिट्टी का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता,
उसे जिसे रूप में ढालो वो उसी रूप में ढल जाती है..
वो सुकून जो इंसान को जीवन भर कहीं नही मिलता,
एक वक्त बाद वो उसे ईश्वर में ही तलाश करता है,
और उसे वो सुकून प्राप्त भी होता है,जब वो मोह के बंधन से बाहर होता है,सिर्फ ईश्वर में व्याप्त .....
मुझे भी सुकून तलाशना है एक दिन एक दिन मैं भी मोह माया को छोड़ ईश्वर में लीन होना पसंद करूंगी
खैर .. सबकी अपनी अपनी सोच है आस्था है