( प्रेम....... )
मेरा मानना है यदि आपको किसी से प्रेम है तो आपके हृदय में उनके लिए सर्वप्रथम आदर होगा सम्मान होगा,इसका मतलब ये नही वो आपके लिए आदरणीय हो जायेंगे ,अपितु उनका प्रेम आपके लिए सम्मानीय होगा ,ये आदर उनका नही अपने उस प्रेम का आदर है जो आपके हृदय में है उनके लिए ,और उनके हृदय में आपके लिए,
सच कहें तो सच्चा प्रेम कुछ नहीं चाहता,वो स्वयं को एहसासों में खुद ही ढाल लेता है,वो प्रेम कठिन नही होता किसी के लिए बल्कि वो और ज्यादा सहज हो जाता है।
अब एक बात ये भी है कि हम किसी से प्रेम तो करते हैं मगर वो किसी मजबूरीवश हमारा हो नही सकता,तो यहां प्रेम समाप्त नही होता, क्योंकि वो हमारे रोम रोम मे प्रवाहित है एहसासों के द्वारा,वो प्रेम मतलबी नही कि सामने वाले को समझे बिना ।
तरह तरह के इल्जाम लगा दे,उन्हे अपमानित करें।
नही हरगिज नहीं जो आपसे सच्चा प्रेम करेंगे वो आपको कभी अपशब्द कह ही नही सकते क्यूंकि उनकी अंतरात्मा उन्हें इस बात की इजाजत कभी नही देगी ।
वो चाहे कितना भी नाराज होंगे इक दूजे से मगर प्रेम तो नही समाप्त होता है न यूं पल भर में ही तो कैसे गलत कहे अपने ही प्रेम को ,अपने एहसासों को ।
प्रेम सदा सहज रहा है और सभ्य भी हां ये बात अलग है कि बदलती रिवायते बदलता समाज अपना एक अलग नजरिया रखता है इन सब बातों के लिए,कुछ के लिए हमारी बातें भी महज एक भ्रम होगा , मगर जो एहसासों के धागों में समाहित रखते हैं अपने निश्छल प्रेम को, वो हमे अवश्य समझेंगे,
हमे गलत नही कहेंगे।
खैर हमे किसी से कोई सरोकार नहीं ,हम जैसे हैं आगे भी वैसे ही रहेंगे
और प्रेम के मायने हमारे लिए हमेशा यही रहेंगे,एहसासों में समाहित प्रेम,भावनाओं से ओतप्रोत हमारा प्रेम