रिश्ते.....
आजकल रिश्ते वैसे नही रहे ,
जैसे पहले हुआ करते थे,
बस दिखावा, फायदा,और जरूरत,
यही स्तंभ है अब रिश्तों के,
आदर सम्मान, लगाव ,
जुड़ाव, और आत्मीयता,
ये तो कहीं पीछे ही छूट गए,
जैसे कभी दुनिया में थे ही नही,
पहले उम्मीदें नही रहती थी,
विश्वास रहता था कि मेरे रिश्ते मेरे साथ हैं,
पहले सुख दुःख, तकलीफों में,
किसी को बुलाना नही पड़ता था दौड़े आते थे सब,
अब कोई मर भी रहा हो तो,
फासला बढ़ा लेते हैं लोग,
कोई कुछ मांग न ले इसलिए,
अक्सर कीमती चीजें छुपा लेते हैं लोग,
जमीन जायदाद के झगड़े हैं कि,
थमते ही नही,
धन दौलत तो छोड़ो यहां,
मां बाप तक का बंटवारा कर लेते हैं लोग,
बेमुरव्वती का दौर है साहब,
उदास इंसा को कांधा तक नही देता कोई
साथ देना तो बात रही बहुत दूर की,
मुफलिस के आंसू तक नही पोंछ सकता कोई,
ख़ैर टूट ही गए हैं जब भरम सारे,
फिर किस बात के रहे ये रिश्ते सारे,
इक अनचाहा सा बोझ लगते हैं,
रिश्तेदारी के नाम पर ये धब्बे सारे...!