फितरत....
इंसान की फितरत है कि भूल जाते हैं,
फिर भी चीखते चिल्लाते हैं,
गम को रखते हैं ज़हन में जिंदा हमेशा,
मलहम से ही अक्सर खौफ खाते हैं,
अपनी सोच को बांध लेते हैं,
अपने मन के उजालों को खुद ही बुझाते है,
संभलने की नही सोचते कभी,
रेत जैसे ज़ार ज़ार जाते हुए जाते हैं,
चलना है मीलों दूर इस सफर में ए इंसा,
मगर उम्मीद के खिलाफ दो कदम पर थक जाते हैं,
समुंदर जैसी जिंदगी में,
अदना से तालाबों से घबरा जाते हैं,
लाज़िम है कि जीत जाना मुमकिन नहीं,
मगर सही ये भी तो नहीं कि सफर से पहले हार जाते हैं..!