हम कच्चे घरों में रहने वाले,
जानते हैं ये बिन मौसम की बारिश,
और ये तेज हवाएं,
कितनी खौफनाक लगती हैं,
वो टीन की छत से आती,
भयावह आवाजें,
वो तेज हवा से घर के सामने पेड़ो का झुकना इधर उधर,
वो सांय सांय करती अजीब सी आवाजें,
हवा के दबाव में सरकी टीन के कारण,
घर के अंदर बारिश की फुहार गिरना,
और बालपन में मन का भयभीत होना,
कि बस आज सब कुछ खत्म हो जाएगा,
बह जाएगा, उड़ जायेगा सब,
आंखो से अश्रुओं का लगातार बहना,
कि न जाने अब दूसरे ही पल क्या होगा,
और हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना करना,
कि भगवान रोक दीजिए ये सब,
वर्ना हमारा घर गिर जायेगा,
फिर कहां रहेंगे हम क्या करेंगे हमारे माता पिता,
मरना क्या होता है बच्चे नही समझते,
लेकिन माता पिता की परेशानी,
उनके चेहरे से भलीभांति पढ़ सकते हैं,
माना के अब नही आती वो आवाजें,
इन पक्के घरों में मगर ,
वो भयानक मौसम देखकर,हम आज भी सिहर जाते हैं,
क्योंकि केवल हम ही नही ऐसे बहुत से बच्चे हैं,
जिन्हे अब भी ये सब झेलना पड़ता है....!
लगती होंगी ये तेज बारिशें अच्छी बड़े घर वालों को,
हमे तो आज भी ये भयभीत करती हैं..!
जीवन कितना कठोर है हमने बचपन से देखा है