मैं मुस्कुराऊं तो लोग लांछन लगाते हैं,
चुप रहूं तो घमंडी हूं ये बताते है,
बात कर लूं तो कहते बातूनी हूं बहुत,
अपने आप में रहूं तो अजीब हूं मैं,
अपनी बात रख दूं तो ज्यादा बोलती है,
जवाब न दूं तो कुछ आता जाता नही,
घर से बाहर निकलो तो आवारा है,
रिश्तेदारों से न मिलूं तो रिश्ते निभाने की अकल नही,
रो दूं तो कितनी कमजोर हूं मैं,
तेज आवाज में कहूं तो शर्म लिहाज नही,
तेज चल दूं तो न जाने कौन सी जल्दी है,
धीमे चलूं तो मेंहदी लगी है क्या पैरों में,
खाना अच्छा नहीं तो मां ने कुछ सिखाया नही,
अगर अच्छा है तो सब ही बनाते है इसमें क्या,
लिख रहीं हूं तो और कोई काम नही क्या,
फ्री हूं तो और काम दिखते नहीं क्या,
कितनी बेबस सी हो जाती हैं कुछ स्त्रियां,
जब मायके को छोड़ ससुराल आती हैं...!