अलगाव...
गहरे हैं ज़ख्म लेकिन ,
कोई निशान बाकी अब नही,
पहले थी नदी खामोश सी,
लेकिन,
जरा सा भी सब्र मुझमें बाकी अब नही,
झर झर बहे बहुत ,
नम आंखो से आंसू कभी,
खत्म हुई भावनाएं सारी,
कोई मोह बाकी अब नही,
गंभीर हो गया वो सब ,
जो व्यंग्य सा लगता था कभी,
जीवन में जीवन जैसा लगता,
कुछ भी बाकी अब नही..!