बिछड़ना...
आसान कहां है यूं ही साथ चलते चलते बिछड़ जाना,
खो देना किसी अपने को ,किसी जान से भी ज्यादा अज़ीज़ इंसान को अपनी आंखों के आगे जाते हुए देखना और चाहकर भी कुछ न कर पाना
भारी मन से भरी आंखों के साथ किसी को अलविदा कहना बहुत ,बहुत मुश्किल होता है!
उखड़ने लगती हैं सांसे ये सोचकर कि अब नही हो पाएगी फिर कभी मुलाकात ,अब नही मुस्कुराएंगे कभी साथ बैठकर दोनो,अब कभी एक दूसरे के आंसू हम हाथ बढ़ाकर पोंछ नही पाएंगे...
ना जाने कितना आहत होता है मन ये सोच सोचकर कि कैसे कटेगा वो हर पल जो उसके बगैर जीना है हमे,
कैसे हर जगह से मिटा पाएंगे अस्तित्व उसका ,
कैसे खुद को उसके बगैर जीने की आदत लगाएंगे ,
कैसे खुद को समझाएंगे कि उसका इंतजार करना छोड़ दे,
उस हर आस हर उम्मीद को दिल से निकाल फेंके जिसमे उसके लौट आने की जरा सी भी गुंजाइश पैदा होती है...
जो खत्म कर गया है सारे सिलसिले उसे दिल से निकालकर
फिर से जिंदगी की शुरुवात करना बहुत मुश्किल होता है,
टूटे हुए दिल को समेटकर फिर से जीने की कोशिश करना ,
यार बहुत तकलीफ़ देता है सच में बस मौत नही आती बाकी हर उस तकलीफ का सामना करना पड़ता है जो हम कभी सपने में भी किसी दुश्मन के लिए भी कभी नही चाहेंगे
बाकी फिर कभी...