शिल्प विधान- ज र ज र ज ग, मापनी- 121 212 121 212 121 2 वाचिक मापनी- 12 12 12 12 12 12 12 12.
"छंद पंचचामर"
सुकोमली सुहागिनी प्रिया पुकारती रही।
अनामिका विहारिणी हिया विचारती रही।।
सुगंध ले खिली हुई कली निहारती रही।
दुलारती रही निशा दिशा सँवारती रही।।-1
बहार बाग मोरिनी कुलांच मारती रही।
मतंग मंद मालती सुगंध छाँटती रही।।
लुभा गए अनेक गुंज कुंज ताकती रही।
उड़ान के विचार में पतंग सारती रही।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी