शिल्प विधान --चौपाई गुरु लघु (१६ ३=१९) अंत में यति
गोकुल गलियाँ मोहन खेलें रास।
बंसी बाजे मधुवन कोकिल वास॥
दूर नगर बरसाना राधे गाँव।
कुंज गली में तुलसी श्यामा छाँव॥-१
नाचें गाएं झूमत ग्वाला बाल।
दधि-मुख लेपन फोरत हाँडी लाल॥
सखियाँ गागर लेके निकली राह।
कान्हा कंकर चुपके-छुपके चाह॥-२
नयन नजर की चूक मगन चितचोर।
मैना गाए गीत प्रीत वन मोर।
डाल कदम की बैठो मोहन आज।
यमुना प्यासी पय लाओ ऋतुराज॥-३
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी