"छंद मुक्त काव्य"
मेरे सावन की शीलन
मन की कुढ़न
गर्मी की तपन
मेरे शिशिर की छुवन
मधुमास की बहार हो तुम।।
जब से सजा है चेहरे पर शेहरा
तुम ही बहार हो तुम ही संसार हो
कहो तो हटा दूँ इन फूलों की लड़ियों को
दिखा दूँ वह ढ़का हुआ चाँद
मेर जीवन में खिली चाँदनी हो तुम।।
मेरी शहनाई की रागिनी हो
मेरे हवा की आँधी हो
मेरे सूरज की लालिमा हो
मेरे पथ का विश्राम, सपनों की नींद
मेरी दोपहरी, मेरे रात की खनकती शाम हो तुम
मेरी बरखा, ग्रीष्म, शरद, हेमंत ऋतु शिशिर बसंत हो तुम।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी