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दादा

13 सितम्बर 2023

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लाहौर की बड़ी नहर के दाँवे किनारे की सड़क पर दादा साइकल पर चले जा रहे थे। उनसे प्रायः बीस क़दम पीछे-पीछे दूसरी साइकल पर श्रा रहा था जीवन । माडलटाउन जाने वाला पुल लाँघ वे नहर के दूसरे किनारे हो गये। कुछ दूर आकर दादा साइकल से उतर गये। उनके समीप पहुँच कर जीवन भी साइकल से उतर गया। जीवन ने दोनों साइकल थाम लिये | दादा ने साइकल के पीछे के रियर पर बँधे धोती तौलिये में लिपटा सामान लेकर सावधानी से घास पर रख दिया। धोती-तौलिये को जिस सतर्कता से घास पर रखा गया, उसी से स्पष्ट था कि वह निरा धोती- तौलिया ही नहीं था।

जीवन दोनों साइकलों को आपस में भिड़ा खड़ा करने की कोशिश कर रहा था। उसकी ओर देख मुझें लाइट से दादा ने कहा- 'कई दफे तो तुम्हें कहा है कि साइकलें इस तरस उलझा कर मत रखा करो; अगर कभी झपट कर साइकलें उठानी पड़े तो क्या हो ?'

'भूल गया था दादा !' जीवन ने उत्तर दिया और साइकलों को घास पर रखे तौलिये-पोती के समीप दायें-बायें टिका दिया। धोती तौलिये को बीच में ले दोनों बैठ गये। बहते जल की ओर सतृष्ण दृष्टि से देख जीवन मे कहा' तबीयत होती है, नहा लें ।'

'पागल है ?' दादा ने उत्तर दिया- 'भीगे कपड़े कहाँ फेंकेगा ?

'नहाने थोड़े ही जा रहा हूँ १ सिर्फ तबीयत की बात कह रहा था ''बी० एम० श्राता ही होगा ।'

दादा की ओर करवट से लेट जीवन ने गुनगुनाना शुरू किया ।

'माँ हमें विदा दो जाते हैं हम विजयकेतु फहराने आज........


उसे टोककर दादा ने कहाजाने क्यों शंका होती है कि बी० एम० झायेगा नहीं। जाने क्यों वह इस 'मनी-एक्शन' (डकैती) को टाले जा रहा है। पहली दफे उसने कह दिया था कि उस मुखबिर को शूट करने का अच्छा मौका है, डकैती हो जाने से वो मौका निकल जायगा। बाद में कह दिया, मुखर अचानक शहर छोड़कर चला गया। दूसरी दफे उसने बहाना कर दिया कि उन लोगों के लाहौर के अड्डे पर पुलिस को सन्देह हो गया है, वहाँ किसी का आना-जाना सुरक्षित नहीं; इसलिये वहाँ से तैयारी नहीं हो सकती..."

कलाई की घड़ी की ओर देखते हुए जीवन ने कहा 'मुझे तो यही समझ नहीं आ रहा कि उसके साथ के दो आदमी मौकों पर मारे गये। तीसरे मो पर उसके साथ का श्रादमी गिरफ्तार हो गया परन्तु उसपर कम ाँच नहीं श्राती" ""दादा आ तो रहा है, देखो! पर है

हो

पुल पर मुड़ते समय बी० एम० ने घूमकर पीछे की ओर देख लिया। उन लोगों के समीप पहुँच साइकल को नहर की पटरी पर खड़ाकर वह जीवन और दादा के पास या बैठा ।

मश्नात्मक दृष्टि से उसकी ओर देख दादा ने पूछा—'क्यों?'

रूमाल से माथे का पसीना पोछ कर बी० एम० ने उत्तर दिया- 'दादा मुश्किल ही दिखाई देता है। कपड़ा मिलों की हड़ताल को वजह से शहर की सड़को पर पुलिस की संख्या बहुत बढ़ गई है और आढ़त की उस दुकान पर आजकल मिले बन्द होने से माल भी नहीं आ रहा। आज वह भी ख़बर मिली है कि कम्यूनिस्टों की पार्टी उस दुकान पर धरना देने वाली है। ऐसो

हालत में अमोती कुछ नहीं हो सकता ।'

'लेकिन हम तो देहलो में वायदा करके आये हैं कि दस तारीख तक

रूपया जरूर भेज देंगे; यहाँ सोलह भी हो गई

इस तरह हमारा विश्वास

कौन करेगा १' जोवन ने दादा की ओर देखकर कहा।

अँगूठे का नाखून दाँत से काटते

के लिये एक तरीका हो सकता है

हुए मो० एम० ने कहा- 'दादा, रुपये पाँच हज़ार तक हमें आसानी से मिल

सकेंगे।''''यदि इस यहाँ की हड़ताल को तुड़वाने में थोड़ी भी मदद कर सकें ।'

'क्या १' - विस्मय से दादा ने पूछा- 'क्या मतलब '

'यही कि यदि हम अपनी

सात कम्युनिस्टों की शरारत ने उत्तर दिया ।

है

पार्टी की ओर से यह पर्चे बँटवा दें कि यह

और देश हित के विरुद्ध है ।' बी० एन० ने उत्तर दिया ।


हुए अल की ओर देखकर दादा ने पूछा- तुम्हारा मतलब है कि इन भूसे मरते हजारों मजदूरों के साथ भोला करें जो लांग अपने पेट की रोटी के लिये लड़ रहे हैं, उनकी टाँग सीट लें

पर इन दलालों से लाभ क्या आप देखिये इनकों से देश के

यह तो महज एक शरारत है। नये उगते हुए उद्योग बन्दों को कितना का पहुँच रहा है। यदि मि शान्ति पूर्वक चल सकें तो इन्हीं मिलों के मुनाफे से दूसरी मिले मन सकती है आपको मालूम है कि यह कम्युनिट जापानी कर्मों से रुपया खाकर देशी मिलों को नुकसान पहुँचा रहे हैं केव अपनी पार्टी मजदूर बनाने के लिये। इस समय हमारे लिये भी अक्सर है। इन पूँजीपतियों की सहायता से हम अपनी पार्टी की विधि सुधार सकते हैं। आजकल इन मिलों को साठ-सत्तर इज़ार का नुकसान रोजाना हो रहा है। कालका चाना कुछ भी मुश्किल नहीं देश के व्यापार को लाभ पहुँचाने के साथ-साथ इन मनन (अकेली ) के नगड़े से भी बच सकते हैं।"

'' दादा ने अपनी दृष्टि रहते हुए जल से वृद्धों की चोटियों की ओर आते हुए बारे में दूसरे साथियों से सलाह किये बिना कुछ नहीं कहा जा सकता |कम-से-कम अली से पूछना होगा

अपनी बात पर देने के लिये बी० एम० ने कहा-ना समय कहाँ है कुछ करना हो जल्दी ही करना चाहिये

तो दो- एक रोल में मों भी टूट जाने वाली है। यह तो इनारे लिये लाभ उठाने का मौका है ! और धन को 'नीट' (डी) के लिये मैं दूसरी जगह प्रयन्ध करूँ?

जीवन की ओर देखकर दादा ने उत्तर दिया-

लेकिन तुम्हारे सभी प्लान पेश हो रहे हैं, चार्ज क्या है? जरासे और अच्छा तो फिर चलें !

तीनों उठ खड़े हुये। बी० एम० पुत से सेन्ट्रल वेश की अं गया। दादा और जीवन अपना धोती-तौलिया लाइक के पीछे बाँधकर जिस राह आये थे, उसी राह पैदल लौट चले। सहसा लड़े हो, दादा ने 'कहा- 'जीवन, तुमने पी० एम० की बात सुरी क्या तमाश यह रोज

है

वह

मज़दूरों का साथ देगे या मिल मालिकों का

की खाली नमी राजनीति कुछ समझ नहीं आती। सोशलिज्म भी चलता है, देश-भक्ति भी चलती है। जीता है, हमें बनाने लगता है। एक नई मोरी रोल निकल जाती है। यह जापान की एक नई बात सुनी। अपने हो

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साथियों के साथ बन कर बात करने में मेरा दिल कटकर रह जाता है, पर यहाँ किसी पर और तो है नहीं मानें तो डिसिप्लिन,

करूँ क्या

नहीं तो यहाँ हरएक तीसमारखों है ही। क्या समझते हो तुम बोलो क्या करें '

"तुम क्या समझते हो बोलो,

जीवन ने कहा- 'दादा, कल में अनारकली बाज़ार से गुज़र रहा था, उस समय इन हस्तालियों के वाशवियर और वे लड़कियाँ रोलवाला बौरा इक्तालियों के लिये भोली में चन्दा माँग रही थीं। कुछ बदमाश उन पर कंकड़ फेंक रहे थे। कुछ उन्हें जापानियों के 'एजेस्ट' कह कर तालियाँ बजा रहे थे, कोई रूसियों का एजेक्ट बताता था। एक बदमाश लड़के ने नाली से कपड़ा भिगोकर शैलबाला के सिर पर फेंक दिया। एक मज़दूर गाली देकर उस लड़के की तरफ़ लपका। यह कम्यूनिस्ट रफीक भी साथ था। उसने मन- दूर को गर्दन से पकड़ लिया। सचमुच मैया, स्वयं मेरी तबीयत में खाया कि बदमाश लड़के को गोली मार हूँ। यही मुश्किल से अपने आपको रोका। और यह बी० एम० शैतनाला और कम्यूनिस्टों की बाबत क्या-क्या कहता या १ दादा जानते हो कपड़ा मिल की हड़ताल का सेक्रेटरी वह सुलतान कौन है ! वह हमारा अपना हरीश हो पार्टी से निकाल देने के बाद उनमें जा मिला है।

"क्या बकते हो ....... दादा ने टोका

'दादा तुम्हारी कसम ! तुम जानते हो उसने किया क्या है ''सामने, नीचे के दो दाँत निकलवा दिये हैं, इससे उसकी आवाज़ भी नहीं पहचानी जाती। चेहरे पर तमाम फोड़े के दाग जैसी खाल बन गई है। शायद तेजाब लगाकर सात जला डाली है चेहरा बहुत बदसूरत और पिनौना हो गया है और उस पर छूटी हुई दाढ़ी-मूंछ रखाली है। बीमार सा जान पड़ता था। चेहरा ऐसा बदला है कि पिलकुल पहचाना नहीं जाता और न आवाज ही ! वह तो मैं उधर से साइकल पर जा रहा था, मिल से लोटता हुआ वह साइकल पर राह में मिल गया। मुझे देख उसने मुस्करा दिया तो उससे दो बातें हुई। कहने लगा-दादा तो नाराज़ होंगे, पर पेरी तरफ़ से याद करना । उसका ख़याल कर आँसू आने लगे......

'तुझे हरदम आँसू ही आया करते हैं। मुझे बेहद शरम मालूम हो रही है। दिल्ली वाले लोग हमें क्या कहते होंगे कौन हमारा पतवार फरेगा नामुखाइ दो हज़ार इन हथियारों में फूंका ! क्या दूध दे रहे हैं यह १ किसका एलवार किया जाय ? हम सब से तो हरी अच्छा रहा। हम उसे मारने


को फिर रहे थे कितने हैं, ऐसी हालत में जो पुलिस से नहीं जा मिलते और यहाँ बड़े राजनीतिश आये हैं, सलाह देते हैं कि मज़दूरों का खून बेचकर रुपया लाखो

दादा को चुप देख साइकल का मं क खटखटाते हुये जीवन बोला- 'दादा, एक काम क्यों न करें उस प्राढ़त की बुच्चन पर जाकर मैं खुद क्यों न देखूं ! इन लोगों को छोड़ो "अपना दिलीवाला तीसरा आदमी है ही। रुपया हमें दिल्ली ज़रूर भेजना है, नहीं तो हमारी बात का मोल नहीं रहेगा।'

जीवन सच कहता हूँ, शरम के

पाये तो झूठे कहलाने का कलंक सवाल है। चाहे जो ख़तरा हो को रहने दो। दादा ने दाँत से

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मारे नरा जा रहा हूँ। अरे कुछ कर नहीं तो न आये। इसमें मेरी अपनी इज्जत का मैं आज ही यह काम करूँगा। पी० एम० मूँछ काटते हुये कहा।

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अगले दिन प्रातःकाल अवारों के मुख पृष्ठ पर मोटे-मोटे चारों में

1

'लाहौर के बाजार में सशस्त्र डकैती बाकू पिस्तोल के जोर २७ हज़ार छीन ले गये।'

नीचे महीन अक्षरों में उफेती का खुलासा यथा

'जीवाराम भोलाराम की छात में डकैती हो गई। दुकान बन्द होने से कुछ समय पहले दो डाकू व्यापारियों के मेट में कपड़े की कुछ गाँठों का सौदा करने के लिये आये। दुकान के नौकरों को नमूने के थान लेने के लिये गोदाम भेज दिये जाने पर डाकुओं ने अपने कपड़ों से छुरे और तमंचे निकाल कर मालिक बुकान और मुनीम से तिजोरी की चायी माँगो हटने में दूसरे बाकू दुकान पर चढ़ आये। दुकान के मालिक को या तो कुछ सुंभा दिया गया या किसी बेधार के भारी इथिवार से उनके सिर पर चोट मार कर बेहोश कर दिया गया। बदन पर चोट का कोई निशान नहीं मिला। डाक्टरी रिपोर्ट है कि उनकी मृत्यु या तो दिमाग पर सख्त चोट आने से या सहता हृदय की गति रुक जाने से हुई है। दोनों सुनोमों के हाथ पोठ पोछे बाँधकर उनके मुख में कपड़ा हूँस दिया गया। टेलीफोन का तार काट दिया गया। तिजोरो से सत्ताइस हज़ार के नोट और कुछ नकदी लेकर डाकू गायब हो गये। जिस समय नौकर यान लेकर लोटे डाकू गायर हो चुके थे। मालिक गद्दी के सहारे बैठे थे परन्तु निष्प्राण मुनीम के मुंह में कपड़ा भरा था और हाथ

पैर बचे थे। नौकरों के सहायता के लिये चिल्लाने पर पुलिस को खबर दी गई। डाकुओं की संख्या का ठीक पता नहीं चला परन्तु वे सशस्त्र मे पुलिस मामले की सोख सरगर्मी से कर रही है।"

जो लोग इतालियों के उपद्रव से परेशान थे, उन्होंने चुपके-चुपके कहा यह इन्हीं लोगों की बदमाशी है। रफीक, सुज्ञान और उनके साथियों को भी भय हुआ कि मिल मालिक पदयंत्र कर उन्हें पुलिस के चंगुल में न फँसा है परन्तु उन्हें भरोसा था कि डकेती की रात जिस समय वे हतालियाँ की सभा कर रहे थे, पुलिस मौजूद थी इसलिये उनके डकैती में सम्मिलित न होने का प्रमाण पुलिस के पास मौजूद था.

दो सप्ताह बीत गये । इकैती की बात लोग भूल गये शहर मैं और उसके परिणाम का हो चर्चा चल रहा था, उसी के सम्बन्ध में समाचार. पत्री में छपती थी, उसी के सम्बन्ध में अनुमान लगाये जाते थे। शैक्ष- बाला दो-एक दूसरी लड़कियां और कुछ और लड़कों को ले हस्तालियों के लिये चन्दा उगाहने और सहानुभूति के प्रस्ताव पास करने में लगी थी। उसकी प्रशंसा और निन्दा दोनों ही होती। कुछ लोग उसे उत्साही और स्थानी कार्यकर्ता बताते और कुछ कहते कि वह नये-नये लड़कों से मिलने की शौकीन है। अब उसने निन्दा और स्तुति की चिन्ता छोड़ दी थी। अब संक वह अपने पिता की राय की कद्र करती थी, उनसे डरती थी परन्तु अब उसने उनकी पह भी छोड़ दी। उसके पिता भी चुप थे। वे उसे स्वतन्त्रता दिवे

परन्तु लड़की की निजी आवश्यकता के इलावा पथा बिलकुल न देते । कभी पेट्रोल के लिये जेब में पैसे न होने पर वह पैदल ही घूमती-फिरती । ऐसी ही हालत में संध्या के आठ बजे वह एक सभा से लौट रही थी। अपने मकान के अहाते के भीतर पैर रखते ही उसे पीछे से किसी ने पुकारा- बहिन पाला

लोटकर उसने देखा, एक दोहरे कद का व्यक्ति बंद ग का कोट पाय- जामा, पगड़ी पहरे, चश्मा लगाये उसकी ओर देख रहा है। पुकारने वाले व्यक्तिको वाता पहचान न सकी परन्तु उत्तर दिया 'कहिये ?'

आगन्तुक ने समीप आकर आँखों से चश्मा उतार पूछा 'मुझे पहचाना नहीं [.....मुझे तुम दादा कहती थीं '

दादा .......विस्मय से वह देखने लगी। पहचान कर वह दादा को भीतर निया ले गई। भीतर के फंसरे में उन्हें कुर्सी पर बैठा कर शैलाता ने


कहा- दादा, आपने तो मुला ही दिया। इम लोग तो बड़ी मुसीबत में फँस गये। कब आये पी० एम० मने में हैं.....

दो हफ्ते से मैं यहीं हूँ !' दाबा ने कहा- 'और बहुत कुछ जानता भी हूँ। हरीश तो सुलतान बन गया है। किस तरह चेहरा विगाद लिए है। उस रोन मालूम होने पर उसे दूर से देखने गया ... दादा होंठ काटकर प हो गये। गले में अपरोध के कारण बोलने में कठिनाई अनुभव होने लगी। उस ओर ध्यान न होने से ठोड़ी पर जंगली रख शेतवाला कहती चली गई— "मुंह तमाम तेज़ाब से जला लिया है दादा, सामने के दो दाँत निकलवा दिये है। मैंने कहा, चेहरा ऐसे क्यों विगाह रहे हो, वो कहते हैं चेहरे से क्या होता है चेहरा बदले विना मैं जनता में काम नहीं कर सकता। जब बम पितोस लिये लिये फिरने में मेरा विश्वास नहीं तो मुझे जनता में काम करना होगा ।'

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चश्मा हाथ में ले फर्श की ओर देखते हुए दादा बोले- 'मुझे अफसोस है उस रोज़ हीरा और तुम्हारी बात जो कुछ कहा था उसका प्रमात न करना मुझे अपने आदमियों का एतबार करना था तुम्हारी इक्वाल का क्या हाल है ?'

'दादा, फेल हो जायगी' लम्बी साँस खींच कर शैल ने उत्तर दिया- 'इतने दिन किसी तरह निभाया। कानपुर, बम्बई अहमदाबाद से मदद मंगाई । यहाँ के लोगों को तो जाने क्या हो गया है ? उ हमें जापानियों का एजेन्ट बताते हैं। मिल मालिक कई हजार रुपया रोज़ खर्च कर रहे है। हमारे खिलाफ़ अचारों वाले उल्टी खबरें छापते हैं। जहाँ हम सभा करते हैं,

उनके आदमी आकर हल्ला कर देते हैं मालिक लोग इस समय मीतर ही मीतर घबरा गये हैं इसीलिये हम्वाल तुमाने की दम तोड़ कोशिश कर रहे हैं। अगर इस समय इस सात दिन के लिये भी जम जायें तो मज़बूर जीत जायें और अगर मज़दूर इस समय हार गये, तो फिर कई खास के लिये दब जायेंगे। हालत में इतनी बुरी है कि इड़ताल तो कमी की टूट चुकी होती। यह तो रफीक और हरीश की बातें हैं की मजदूर अपने भविष्य का समाक्षा कर हुए है।

'रूपया होने से ही आपकी हड़ताल सफल हो जायगी ?'

कितना रुपया इस समय चाहिए आपको ' दादा ने दोनों हाथ को बाँधते हुए पूछा।

'इस समय तो दादा अगर दस हज़ार मिल जायें तो हम मज़दूरों को बीस दिन लड़ा सकते हैं। आप जानते हैं कि मज़दूर मुडी भर बने पर जी सकते हैं। यहाँ उन्हें तीन-तीन दिन अन बिना गुज़र रहे हैं।'

कोट के बटन खोल दादा ने कई जेवों से निकाल निकाल नोटों के छोटे बड़े बन्डल शैल की गोद में फेंकने शुरू किये और बोले—यह पीस हज़ार है। अ हम लोगों का काम चल जायगा हरीश की टेक्नीक और थियोरी की पेचीदा बातें मैं नहीं जानता। सिपाही आदमी हूँ, हरी को यह मेरी भेंट है क्योंकि वह तथा सिपाही है।''''' "अपनी समझ की बात है—उलमान के भाव से सिर हिलाते हुए उन्होंने कहा, मुझे रुपये से मतलब नहीं। जो देना था वह चुका दिया। बाको वह बिन लागा का है, उन्हीं के पास जायसमुन्दर का जल समुन्दर में हाँ हरीश से मेरा प्यार कहना कि कहना कि भगड़े की उन वादों को भूल जाय 1 फिर कभी किसी काम आ सकूँगा तो देखूंगा अच्छा अब चलता हूँ।

परन्तु दादा उठे नहीं। दोनों हाथों के पंजे मिलाकर कुर्सी पर कुछ धागे सुक फर्श की ओर नज़र किये दाँतों से मूँछों को खोटते हुए उन्होंने कहा- 'कितनी जल्दी समय बदल गया है। ऐसा जान पड़ता है कि नदी को पर करने के लिये हमने नाव ठेलनी शुरू की थी परन्तु नाच के नीचे से जल की धारा दी हट गई और हम आ टिके हैं सूखी रेती पर। जज्ञ को चारा दूसरी ओर घूम गई है। हरी ठोक कहता है, बजाब जल की धारा को घुमाकर नाव के नीचे लाने के नाम को ही उस ओर पीटना चाहिए उसो और दृष्टि किये रहकर जैसे में फ्र से ही बात कर रहे हों, उन्होंने कहा- 'मेरा मतलब हैं, जनता की जलधारा से।' और वे चुप हो गये ।

शैल चुपचाप उनकी और देख मन में सोच रही थी, वह आदमी कितना सीधा है अपनी पात को संकेत रूप में कहने से इसे संतोष न हुआ। स्पष्ट शब्दों में कहे बिना उससे रहा न गया।

मैं चलता हूँ, नमस्कार '

राह दाया उठ खड़े हुए 'दादा, यह सब आप अपने ही हाथ से उन्हें दें तो वे बहुत प्रसन्न

होंगे प्रसन्नता से चलती हुई आँखों से शैताला ने कहा । 'न, न, यह सब तमाशा मुझे नहीं चाहिए। तुम उसे दे देना, " आया है खाता या प्रसन्न होने वाला ।'


"दादा  इसमें कोई भय तो नहीं नल ने पूछा और अपन आशंका से स्वयं ही साबित हो गई।

'मेरे हाथ से भय की बात न होगी का काम मनदारों से करना होगा। ही तो सममदार है। कम्यूनिस्टों की याद में नहीं जानता.

दोनो

बकते बहुत बचने वाला आदमी ठीक नहीं होता। अच्छा अब चलता हूँ। दादा के चले जाने के बाद शैल उन नोटों को हाथ में लिये बैठी रही। मोहानाथ-जीवाराम के यहाँ दुई बकैती का समाचार पत्रों में पढ़ा स्थान उ याद आने लगा और डकैती और हत्या के अपराध का परिणाम भी हाथों में थमे डकैती के नोटों के बल से शरीर में एक विचित्र आशंका का रोमांचा अनुभव होने लगा। उसने सोचा भावों पर अत्याचार कर यह रुपया छीना गया था। फिर जीवाराम भोलाराम की हत्या कर उनसे यह रुपया ना गया और अब जिसके दामों में यह रुपया जायेगा, उनकी हत्या किये बिना मो नहीं रहेगा । उसे अनुभव हुआ कि डकैती का यह रुपमा हरीश के प्राय से गा

1

शदा बकैती के अपराध से रूपया लाकर बिना किसी होम, मोह और स्वार्थ के इस रूपये को दूसरों की ओर कराकर स्वयम् तो पाप से मुक्त हो गये परन्तु जो इस रुपये का व्यवहार करेगा, वह बच न सकेगा। एक द मन में विचार आना उन सब नोटों को जलाये और तभी सवाल था गया कि कितनी जोखिम से यह रुपया लाया गया है उसी समय अन्न के दाने-दाने के लिये तरसते हुए हस्ताकी मजदूरों की कार भीख माँगती हुई दिखाई देने लगों । इसके बाद ठेवा से जो हरीश के मुख पर उसे मुस्कराहट दिखाई दी । इरो कह रहा था— चाहरे तुम्हारा बम रुपया है क्या वह एक साधन है, एक शक्ति है, उसे अच्छे या बुरे कान में लगाया जा सकता है। हम तो कितों पर अत्याचार करने नहीं जा रहे उसी समय अपने पिता की आँसू भरी आँखें दिखाई दीं। बचपन में अपनी गोद में बैठा कर दाँतों तले उँगली दबाकर ने उसे समझाते थे- 'बेटा, झूठ और चोरी महापाप है। इससे मनुष्य को सदा डुल होता है।' शैको अनुभव हुआ कि फिर में चक्कर आने से वह पर गिर पड़ेगी। ऊंचे स्वर में उसने पुकारा- वाइवर गाड़ी निकालो। उसे जान पड़ा वह भय से काँप रही है। बिना एक घूंट जल पिये ही उस रुपये को सौंप आने के लिये वह घर से निकल पड़ी।

मनुष्य के साहस की एक सीमा होती है। परिस्थितियों से वह लड़ता है। परन्तु कई के उनसे हार माननी पड़ती है रफीक, सुलतान और कृपाराम मी हार मानने के लिये विवश हो गये। निराश होकर वे हड़ताल समाप्त कर देने के उपाय सोच रहे थे। चिन्ता यही थी कि यह काम किसी प्रकार सम्मान- पूर्वक हो जाय। उसी समय शैल की गाड़ी पहुंची। रीक और हरीश को बुलाकर शैल ने नोटों के घर थमा दिये। आये घंटे में क्वार्टरों और

मालिकों के बैंगलों तक पर पहुँच गई कि

बम्बई से इक्तातियो के लिये बहुत मारी मदद या पहुँची है, वे महीनों  लड़  सकते हैं।

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रचनाएँ
दादा कामरेड
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दादा कामरेड पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। इसे हिंदी साहित्य में एक अग्रणी राजनीतिक उपन्यास माना जाता है। उपन्यास अर्ध-आत्मकथात्मक है, और हरीश नाम के एक युवक की कहानी कहता है जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो जाता है। उपन्यास स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है, और क्रांतिकारी संघर्ष के शक्तिशाली और मार्मिक चित्रण के लिए इसकी प्रशंसा की गई है। यह उपन्यास 20वीं सदी की शुरुआत पर आधारित है और इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में हरीश के बचपन से होती है। हरीश एक प्रतिभाशाली और जिज्ञासु लड़का है, और वह स्वतंत्रता और समानता के उन विचारों की ओर आकर्षित होता है जो उसने अपने पिता, एक गांधीवादी राष्ट्रवादी से सुने थे। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, हरीश स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गया और अंततः उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। जेल में, हरीश की मुलाकात अनुभवी क्रांतिकारी दादा से होती है, जो उसके गुरु बन जाते हैं। दादा हरीश को वर्ग संघर्ष के महत्व के बारे में सिखाते हैं, और वह हरीश को एक बेहतर दुनिया के लिए संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित करते हैं। जेल से रिहा होने के बाद, हरीश एक पूर्णकालिक क्रांतिकारी बन गया, और उसने अपना जीवन स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के संघर्ष में समर्पित कर दिया। दादा कामरेड एक शक्तिशाली और मार्मिक उपन्यास है जो स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है। यह उपन्यास हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है और क्रांतिकारी संघर्ष के यथार्थवादी चित्रण के लिए इसकी सराहना की गई है।
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 दुविधा की रात

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 तीन रूप

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 शैलपाला अपने कमरे में बैठी जरूरी पत्र लिख दी थी। नौकर ने जबर दी, दो आदमी उससे मिलने आये हैं। लिखते-लिखते उसने कहा- नाम पूछकर श्रो लोटकर बोकर ने उसे एक चिट दियां चिट देखते ही वह तुरन्त बाहर आई। ह

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मनुष्य

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 दिन-रात और अगले दिन संध्या तक बरफ गिरती रहने के बाद रात में बादल पढ़ कर उस पर पाला पड़ गया। सुबह से स्वच्छ नीले आकाश में सूर्य चमक रहा था। नीचे विछे अनंत श्वेत से प्रतिबिम्बत धूप की कई गुणा मढ़ी

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 ० आर०' और 'हरीश' वह दो नाम अमरनाथ के मस्तिष्क में बारी-बारी से चमकते अपनी शक्ति पर सन्देह करने की कोई गुंजाइश न थी "ठीक बाद था ठीक उसने अपना नाम ० कारखाना और पद उसका नाम बताती है, 'परी' ये सोचते

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 पहेली

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 सुलतान १

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पंजाब-मिल, सितारा-मिल, डाल्टन मिल आदि कपड़ा मिलों में डेढ़ मास ताल जारी थी। हड़ताल समाप्त होने के आसार नज़र न आते थे। जून की गरमी में जब लू धूल उड़ा-उड़ा कर राह चलने वालों के चेहरे झुलसा देती थी राबर्

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दादा

13 सितम्बर 2023
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 लाहौर की बड़ी नहर के दाँवे किनारे की सड़क पर दादा साइकल पर चले जा रहे थे। उनसे प्रायः बीस क़दम पीछे-पीछे दूसरी साइकल पर श्रा रहा था जीवन । माडलटाउन जाने वाला पुल लाँघ वे नहर के दूसरे किनारे हो गय

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 न्याय !

13 सितम्बर 2023
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 दकताल में माज़दूरों की जीत होगई। उत्साहित हो कर दूसरों मिलों और कारखाना के मज़दूरों ने भी मज़दूर समायें बनानी शुरू कर दीं। कई मिलों में और कारखानों के क्वार्टरों में रात्रि पाठशालायें जारी हो गई।

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 दादा और कामरेड

13 सितम्बर 2023
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 अदालत से लोड कर शैक्ष ज्वर में पलंग पर लेट गई। ज्वर मूर्छा में परिणित हो गया। उसे कुछ देर के लिये होश आता तो वह अपने इधर-उधर देख कर कुछ सोचने लगती और फिर बेहोश हो जाती। मुआजी उसके सिराहने बैठीं ब

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