shabd-logo

 पहेली

13 सितम्बर 2023

2 बार देखा गया 2




मंग के सामने कुराड़ी में बेत के काउच पर राबर्ट और शैल बैठे दुबे थे। राबर्ट के एक हाथ में सिगरेट था और दूसरे हाथ में एक पर अनेक दिन के बाद प्रतोरा का पत्र आया था राम पत्र पढ़कर रोल को सुना रहा था- जीवन को मैंने मसीह के घरों में अर्पित कर दिया है परन्तु

1

भगवान की इच्छा को टाल नहीं सकती। तुमने मुझे

डाल दिया

भगवान और उनके

है। मैं अपने पहले दो वर्षों में तुम्हें सिखा चुकी हूँ कि पुत्र मसीह के उपवेश में तुम्हें विश्वास नहीं रहा तो तुम्हारा क्रिश्चियन बने रहना केवल एक धोखा है। मेरा और तुम्हारा शारीरिक और

सम्बन्ध टूट चुका है फिर उसे बनाये रखने का आडम्बर करने से क्या लाभ १ जीवन एक साथ बिताने की जो शुन्य विहाय में लेकर इस लोगों ने की थी, उसे पहले तुमने ही बाइबिल में अविश्वास करके तोड़ दिया। मैंने तुमसे छः मास पूर्व ही प्रार्थना की थी कि तुम हिन्दू बनकर हमारे विवाह सम्बन्ध को समाप्त कर दो। मसीह में अदा न रहते हुये भी मुझ पर अपना कानूनी अधिकार बनाये रखने के लिए तुमने मेरी इस प्रार्थना को स्वीकर नहीं किया तुम्हारी यह विह मेरे लिये जीवन संकट हो गई है। जीवन का उद्देश्य धर्म की सेवा होते हुये भी मैं स्त्री हूँ आर्थिक कठिनाइयों की परवाह मैंने नहीं की परन्तु उससे भयंकर कठिनाई मेरे लिये थी, अपने उस साथी के भावों को ठुकराना जिसने अपना जीवन प्रभु के प्यारे दीनों और दुखियों की सेवा में अर्पना कर दिया है। मुझे भी जीवन में एक साथी की ज़रूरत है मसीह को अपना साथी मानकर भी इस पृथ्वी पर बहुत कुछ शेष रह जाता है, जिससे मुल मोहने पर भी हृदय की प्रवृत्ति से मनुष्य विवश हो जाता है।

तुम मुझे दोपी और पापिन कह सकते हो परन्तु वास्तव में दोष तुम्हारा ही है। यदि छः मास पूर्व तुम मेरी प्रार्थना स्वीकार करके हिन्दू बन गये होते,


मैं शान्तिपूर्वक दूसरी जगह विवाह कर सकती थी परन्तु तुमने निर्दयता दिखाई। आज मैं तीन मास से गर्भवती हूँ। तुम मुझे जिलते हो कि मैं

तुम्हें तलाक

दे सकतीं हूँ। तुम जानते हो कि ऐसी अवस्था में मेरा तलाक देने जाना कहाँ तक सम्भव है। ऐसी अवस्था में मेरा यहाँ रहना भी कहाँ तक सम्भव है? इससे मेरी और मेरे साथी की जो बदनामी होगी उससे भविष्य में समाज में रहकर धर्म की सेवा करना भी मेरे और मेरे साथी के लिये असम्भव हो जायगा। मुझे अपने जीवन की विशेष चिन्ता नहीं। मुझे मृत्यु का भी भव नहीं परन्तु आत्महत्या करके मैं निरन्तर नरक की ज्याओं में नहीं जलना चाहती। इससे अधिक मुझे ख्याल है, प्रभु के उस प्यारे का जिसे इन सब कारों से अपमान और कर भोगना पड़ेगा। उसने मसीह की सेवा में जीवन अर्पण कर दिया है। आज उसके पास इतना वन नहीं है कि मेरी सहायता इस समय कर सके।

मेरे गर्म को सन्तान को लोग गैरकानूनी और पाप की सन्तान कहें, वह सहन नहीं कर सकती तुम्हारी हिन्दू न हो जाने की जिद के कारण ही वह सब कुछ हुआ मेरा धामा, मेरे साथी का आया और प्रभु मसीह जानते हैं कि मेरे वर्ष की यह सन्तान निर्दोष है। हमारी परि स्थितियों और कठिनाइयों में उसका कुछ भी अपराच नहीं फिर उसकी हत्या का पाप अपने सिर क्यों लू मैं चाहती हैं, कि उसके उत्पन्न होने तक कानूनी तौर पर मुझे तुम्हारी पक्षी कहलाने का हक रहे और इस कठिनाई के समय तुम किसी एकान्त स्थान में रहने के लिये मेरा प्रबन्ध कर दो सन्तान के जन्म के बाद हम लोग तलाक दे दें। सन्तान के पालन के लिये मैं तुमसे किसी प्रकार का दावा न करूँगी। इससे पूर्व तुमने मुझे आर्थिक सहायता देनी चाही थी परन्तु मैंने उसे स्वीकार नहीं किया ग्राम मैं स्वयम उभार की भीख माँग रही हूँ, केवल उस निर्दोष सन्तान की रक्षा के लिये जो मेरे गर्भ में है। है तुम मुझे निराश न करोगे प्रभु मसीह तुम्हारे हृदय में दया

भाव उत्पन्न करेंगे

राबर्ट को अनुभव हुआ कि उसकी उँगली जल रही है। सिगरेट समाप्त हो उसकी उँगली को जला रहा था। सिगरेट फेंक कर वह अपनी उँगली की और देखने लगा।

उसकी उंगली अपने हाथ में से रोश ने पूछाली

और फिर उँगली को अपने मुँह में से पूछ कुछ पक्षी

राबर्ट हँस दिया' यहाँ तो दिल ही जला पहा है।'

शैल ने राबर्ट के गले में पांडाल उसके पेपर सिर टिकाकर पूछा- 'बीच क्या करोगे

करना क्या चाहिये शेतकी ठोड़ी को ऊपर उठा उसने पूछा- 'सोचो तो सही इस समय वह कैसे संकट में होगी '

हूँ परन्तु इसका मतलब यह है, कि अभी धाउ-दस मास तक हम अपने विवाह की बात नहीं सोच सकते !"

'हाँ, यदि मैं उसकी बात मानूँ तो नहीं सोच सकते' दूसरा सिगरेट अता कर राबर्ट ने उत्तर दिया।

'लेकिन रूमी, इसमें तुम्हारा कुसूर क्या है तुमने उसे सभी दे देने के लिए राम दे दी थी।'शेल ने भी चढ़ाकर कहा।

'कुरी है क्या?' लम्बा कश छोड़ राबर्ट ने उत्तर दिया- "किसी को मुसीबत में देस उसकी पर्वाह न करना भी तो कुर है। यदि लोग मेरी जगह होती और मैं फ्लोरा की जगह, तो वह कहती, तुमने पाप किया है, तुम उसकी सजा भोगो और वह स्वयम् भगवान से प्रार्थना कर

खेती----हे भगवान तू दयामय और न्यायकारी है, मुझे संकट से बच्चा और उसका कर्तव्य समाप्त हो जाता। उसका खात्मा और मन शान्त हो जाते। परन्तु मैं क्या करूँ मैं तो इस बात को अस्वीकार नहीं कर सकता कि वह भयंकर संकट की परिस्थिति में है। न्याय की बात कही तो न्याय के विचार से किसी भी व्यक्ति को दूसरे के संकट से कोई मतलद नहीं न्याय केवल स्वा की रक्षा के लिये हैं।

मेरे जीवन में तो सदा कोई न कोई रुकावट आती ही रहेगी' निराश के स्वर में रोश ने कहा अच्छा करोगे क्या?'

कर यह सकता हूँ कि मंसूरी, नैनीताल या शिमला में उसे एक मकान किराये पर ले हूँ और माइचार खर्च देता जाऊँ लेकिन नैनसी को यह सब माम नहीं होन्द्र चाहिये; मन वह शोर मचा देगी। उसने अभी तक जीवन की कठिनाइयों को देखा नहीं इसलिये उचित अनुचित की धारा उसके मन में बहुत कठोर है सो से वह नाराज़ भी कम नहीं क्योंकि उसकी वजह से हम लोगों की बदनामी भी बहुत हुई है।' राबर्ट का दायां हाथ हाथों में लेकर शैल ने कहा-'तुम्हारी बात जब

1

मैं सोचती हूँ, हैरान रह जाती हूँ"

"तुम्हारा हृदय कितना विशाल है '


"योग से पूछो

हँस दिया।

'मोरा' सिर भटककर रोता ने कहा और कुछ देर चुप रहकर पूछमहत्या क्या सचमुच पाप है

क्या है, यह तो मैं अभी तक समझ नहीं सका। यदि एक व्यक्ति पोवन से करने लगता है तो वह जिये क्यों कम से कम में यदि मन में कोई उत्साह न पाऊँ तो जीना नहीं

और कभी गर्मपाल ने पूछा।

"किसी भी जीव को समाप्त कर देना निर्दयता ही है। यह सोचो, लोकी सन्तान उसकी गोद में खेलेगी तो उसे जीवन में कितना उत्साह, कितनी शांति मिलेगी परन्तु यह भी सोचो, यदि यह सन्तान प्रतोरा के जीवन को केवल संकटमय बना दे और उसके जीवन के लिये समाज में कोई स्थान न हो तो उसे केवल पूछा और विकार का पात्र बनाने के तिथे संसार में खाना ना अन्याय है कुछ समाज की अवस्था पर निर्भर करता है। ईसामसीह को पूजकर भी समाज ग्राम और

पैदा

होना सहन नहीं कर सकता क्योंकि उसके लिये समाज में कोई स्थान जो नहीं। मैं समझता हूँ, मोया समाज में गर्म-निवारण (Birthcontrol) के बिना निर्वाह नहीं। यदि समाज को अस्था पहले से होती

एक पुरुष भाई-भाई मियां रखता और सम्मान में यूनान, मारा और दूसरे देशों की प्रचीन सभ्यता के अनुसार पुरुषों के विनोद के लिये मंग मुखियों की सेनायें होती, समाज में बेकारी का भय न होता तो हो जाती, ईश्वर का वरदान हो होता परन्तु यह तो है नहीं। मनुष्य की अवस्था ऐसी नहीं कि दिन भर पेट भरने के दिया और के लिये उसे अवसर न मिले। प्रकृति उसे भोग की ओर स है। मनुष्य के पास साधन और समय है तो वह मोग की और क्यों न साय तुम व्यर्थ संकोच मत करना एक स्वस्थ युवती यदि प्रत्येक बार गर्भवती होने लगे तो उसके लिये जीवन में मोग का असर कितनी मेरा सकता है? या तो वह प्रति वर्ष एक सन्तान उत्पन्न करेगी, जिसके लिये पृथ्वी पर जगह नहीं था जीवन भर में केवल दो-तीन दफे से अधिक उसे इस ओर ध्यान न देना चाहिये। मचर्य का उपदेश देने बाले कितने महात्मा है जो स्वयम् इस कोठी पर पूरे उतरेंगे इसी आवश्य- कता को पूरा करने के लिये सभ्यता ने पाओ को

दिया था।

इस नई सभ्यता के ज़माने में जब स्त्री को पूर्वा समानता का अधिकार देने की बात कही जाती है, तो उसकी भोग की स्वाभाविक प्रकृति को कैसे रोका जा सकता है ? हमारे समाज में गर्भवती हो जाना हो तो खी की सबसे बड़ी परा- धीनता और कमज़ोरी है। पुरुष तो हाथ मान कर सिगरेट पीता हुआ चल देता है परन्तु स्त्री को मुसीबत पड़ जाती है वह क्या करे भोग की प्रवृत्ति प्रकृति की प्रवृत्ति है। संसार के सब धर्मों ने इसका विरोध किया है परन्तु यह ही बसवान बनी है जब तक जीवन की शक्ति है इसे रोका नहीं जा 1 इसके जो परिणाम हमें भोगने पड़ते हैं, ने सामाजिक परिस्थिति के कारण है जय-जय भोग की प्रवृति होती है तब सदा ही सन्तान की इच्छा नहीं होती, फिर सन्तान क्यों हो जिस सन्तान का स्वागत करने के लिये परिस्थितियों न हो, उसे संसार में जाना ही अन्याय है। जीवन में ऐसा समय भी आता है जब सन्तान की इच्छा होती है तभी उसे खाना चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं कि गर्म-निवारण प्रकृति-विरुद्ध है। मैं पूछता हूँ कि # प्रकृति तीन इच्छा उत्पन्न करती है तो उसे रोकना प्रकृति-विरुद्ध है या नहीं और जिन जीवों के लिये समाज में स्थान नहीं, उन्हें पैदा कर देना भी प्रकृति विषय है या नहीं

रापर्ट की माों से कोच अनुभव कर, उससे आांसें न मिलाने के लिये शैल उसका सिगरेट के सोश सिगरेटों से खेल रही थी। एक सिगरेट निकाल उसने मुँह में लगा लिया। राबर्ट ने कहा- 'जाओ तो '

सिर हिला शेल ने कहा-नहीं, तुम बात हो

फिर राह कौन-सी

है तुमने तो सभी ओर से प्रकृति का घेरा डाल दिया है। राबर्ट ने अनुरोध के स्वर में कहा- 'नहीं पहले सिगरेट जलाओ। सूर सूरत स्त्री को सिगरेट पीते देखने से बहुत मला मालूम होता है।'

मैं हूँ !' आश्चर्य प्रकट करने के लिये रोल ने मोहें तान कर पूछा।

- तुम जानती हो कि तुम मुझे बहुत खूबसूरत मालूम पड़ती हो । चकरा जायगा रोल ने कुछ बेबसी से कहा-'तुम अपनी बात कहो, ''मैं स्वयम कई दफ़ सोचा करती हूँ

'तुम सिगरेट जलाश्री धुआँ भीतर न खींचना। चक्कर नहीं चायेगा । 1 अब तुम्हें सिगरेट पीते देखने का शौक़ सवार हुआ है तो मेरी यह ज़िद्द माननी पड़ेगी ।'





कौल ने फकते हुए सिगरेट जलाया । धुएँ का एक दीया कर उसके चेहरे के चारों ओर छा गया। राबर्ट ने कहा बहुत खूब बस ऐसे ही किये जाओ सुन्दर जान पड़ने में मी एक संतोष है न क्यों इसी के लिये तो त्रियां नाक-कान दिदासी है

सिर हिला

बोली- 'म प्रकृति की बात कहो।'

'हाँ तो क्या कह रहा थाहाँ प्रकृति हमें इस बात का प्रबंध करने के लिये विवश करती है कि हम ऐसी राह निकाले कि भोग को इसके परिणाम से अलग किया जा सके। जब हम न चाहें, सन्तान न हो सन्तान ला कारवान बन कर तुल का ही कारण बने। तुम विश्वास रक्खो कि बिना आवश्यकता के मनुष्य कुछ नहीं करता। गर्भनिवारण (Birth-control) प्राकृतिक आवश्यकता है। प्रकृति में यह काम दूसरे तरीके से चलता है। खाँनी एक हज़ार अपडे देती है परन्तु जय एक हजार बच्चे निकलते हैं तो स्वयम् ही उन्हें पूंछ से घेर कर खाने लगती है। जो एक दो बच जाते हैं, वे ही दूसरे जीवों के लिये आत हो जाते है। यदि सभी बच जायें तो प्रकृति में दूसरे जीव समास हो जायें। यही हाल मछलियों और दूसरे जीवों का है। कुछ जो अपनी संख्या स्वयम् कम कर देते हैं, कुछ की दूसरे जीव परन्तु मनुष्य की संख्या कौन कम करे बीमारियाँ आती है, उनका इलाज मनुष्य कर लेता है। अलबत्ता युद्ध की बीमारी का इलाज मनुष्य अभी तक नहीं कर पाया परन्तु सा भी तो तभी शुरू होती है जब जातियाँ और देश अपने देश में जनसंख्या बढ़ने पर भूखों मरने लगते हैं या जन संख्या के सूखे मरने का बहाना करते हैं, गर्म निवारण भी मनुष्यों को उचित संख्या में रखकर उनके जीवन को सुखी बनाने का उपाय है।'

इस सिगरेट को फेंकती हूँ अपने

शैल ने धुएँ से घबरा कर कहा हाथ का समाप्त सिगरेट फेंक कर राबर्ट ने कहा- 'साम्रो मुझे दे दो!'

जूठा नहीं, यह मोठा हो गया है। यों तो तुम अपने होठों को दूर रखती हो। इस सिगरेट के नाते ही सही।'

मुस्कराती हुई बॉलों से रोल ने अपना सिर राबर्ट के कंधे पर रख दिया। धीमे स्वर में राबर्ट ने कहा-'यह मंजूरी है ?'

चूम लिया।

बड़े शरारती हो पीछे हट कर रही थी कि राबर्ट ने उसे

दरवाजे पर मोटर के भोपू की आवाज सुनकर शेज ने उस ओर देखा । 'नैनसी आई होगी' राबर्ट ने बताया बाजार गई थी। हरीश और उसके साथियों के आने में भी देर नहीं है। साड़े छः बज रहे हैं।'

नैनसी बरामदे की योढ़ी की ओर जा रही थी।

शैल ने पुकारा यहाँ आओ न नैना १' और राबर्ट से पूछा-चड़ी चुप रहती है नैना आजकल

'उसकी अपनी उलझने हैं' राबर्ट ने उत्तर दिया—धीत रस की हो गई है। आशा और कल्पना के संसार में मन पला जाने पर जाहिरा विरक्ति और चुप्पी आ ही जाती है मुझसे कई दफे मिराजकर का पता पूछा तुमभ भी तो पूछा था न १ मैंने उचित समन्ध कि बात बहुत आगे बढ़ने से पहले ही समझा दूँ इसलिये बता दिया कि मिराजकर की असल अवस्था क्या है। पन उसे लिखा नहीं जा सकता। ऐसे ही घूमते-घामते जब श्रा निकले ।'

'ठीक तरह समझा दिया है न कहीं कुछ कह न बैठे रोल ने किसा से पूछा- 'खूब अच्छी तरह वह आनती है कि मिराजकर के ख़तरे में पढ़ने का है, हमारा खतरे में पहना लेकिन असर और ही हुआ है। अब वह उसकी बहादुरी और त्याग की बात सोचा करती है। पहले इसकी मित्रता डेविड से थी। अब उससे मिलना बन्द कर दिया है। आज कल वायलिन भी बन्द है। और जानती हो, आजकल फोन डुमला बान पर चढ़ा है; 'जो किसी के काम न आ सके वी एक मुश्त गुबार हूँ !'

दो-तीन मिनट में नैनसी आ गई, कुछ दिन से गाउन पहनना छोड़ कर उसने निरन्तर साड़ी पहनना शुरू कर दिया था और साड़ी का आँचल भी इस बेपरवाही से गले में डाल रखा था कि मानो घर के काम में बहुत व्यस्त रही हो उसे सम्बोधन कर शेश ने कहा 'नैनसी तुम्हारे ये स्वीपराज के हुये हैं '

क्या है, अच्छे हैं बेचारे 'नैनसी ने बेपरवाही से कहा।

चाय के लिये लिये कह दिया नैन १ इसने भी तुम्हारी प्रतीक्षा में नहीं पी राबर्ट ने कहा।

पांच-सात मिनट और न ठहर जाओ, मिराजकर भी आते ही होंगे।' --शेल ने सताइ दीपौने छः से पहले आने की बात थी '

'जल्दी क्या है' कह कर नैनसी सामने की कुर्सी पर बैठ गई ।


उसी समय हरीश साइकल पर याता दिखाई दिया। उपोदी में साइल रखकर हरीश इन लोगों की ओर आ गया। भावे ही उसने पहले चैनमी पूछा 'कहिये मजे में हैं ?'

से

'जी दो बहुत मजे में

हरीश रबर्ट और रोल से हाल चाल पूछ रहा था। नैनी ने उड़ते हुए कहा मैं चाय के लिये कह आऊँ ।'

लोग सातबजे के

हरीश ने रोल और राबर्ट की ओर देखकर याद आयेंगे। मि शर्ट, मेरा मतलब जरा जल्दी खाने का यह था कि मैं आपसे पहले ही अपने विचार कह दूँ। रफीक मजदूरों और दूसरे लोगों में

धार्मिक प्रश्नों को उठाने पर ही जोर दे रहा है। मज़दूर लोग यदि इस ढंग पर चलेंगे तो उनका कख राजनैतिक नहीं हो सकेगा और उनका आन्दोलन बिलकुल संकुचित हो जायगा। मैं चाहता हूँ कि मित्र-भिन्न पेशे के मज़दूरों की केन्द्रीय कमेटी में कुछ आदमी मध्यम श्रेणी के भी रहें, जो उनके आन्दो खान को राजनैतिक कर दिये रखें, क्यों ठीक है न त '

1

सीन

'अरे सब ठीक है, तुम्हारा काम तो हमने शुरू कर ही दिया जलसे हम तुम्हारे करा चुके हैं। कपड़े की मिलों के महलू और बिजली पर के मजदूरों के साथ सहानुभूति के प्रस्ताव पास करा दिये हैं। यशोदा मी अ सांजों में जाती है और नैनसी भी कालिय के पीरियों के आने लगे है तुम्हारा बाज़ार-कर्मचारी संभ भी कायम हो गया है। अब इसे छोड़ी। तुम अपना दात बताओ। नये मकान में ठीक से बस बये

गज निकाल देखने लगा ।

'हाँ' से पेन्सिल से लिखा एक शैल ने मुस्कराती हुई आँखों से रावर्ट की ओर देखकर कहा-'रे राबर्ट ने आँखों से इास कर उसे चुप कराकर स्वयम बात पूरी कर दो नैना ने बड़ी देर कर

मटर के फूल देखे इभर'

आती ही होगी

हरीश यह

इन्हें तो आते ही देखा था... है। हरीश उठा और दो बहुत सुन्दर फूल और दूसरा शैल को शैा ने पूला अपने भी अपना फूल दूध रोज के ही बालों में

हरीश ने काराज़ जेब में रख उत्तर दिया यात है, ऐसी सुगन्ध फैल रही खाकर उसने एक राबर्ट को दिया बालों में खोल लिया। राबर्ट ने लगा दिया।

नैनी मेरे के हाथों चाय की लिवाये था रही थी। उसके आते ही तुम्हारे दो फूल, मिराजकर ने तोड़ लिये !"

राबर्ट ने शिकायत की— नैन, देखो, क्यों, क्या फूल तोड़ने की

ओर देखा ।

'सानो मैं चाय बनाऊँ'

फूलों की बेलों की ओर पसन्द है?'

अच्छे

मनाही है दरीश ने नैनसी की

शैल ने दो अपनी ओर खींच ली मटर के नैनसी ने हरीश से पूछा आपको कौन रंग

ने कहा-'मैं क्या करूँगा ।'

नैनसी को हतोत्साह होते देख राव ने कहा- 'इसे तो अपना लाल रंग ही पसन्द आयेगा, क्वी मिराजकर

कुछ फिकर नैनसी ने केवल लाल रंग के पूल लम्बी-लम्बी व्हनियो से तोड़कर एक गुलदस्ता बना चुपचाप हरीश के सामने कर दिया। 'धन्यवाद' को एक हाथ में आदर से लेकर हरीश अपना प्याला पीता रहा प्याला समाप्त कर उसने नैनसी को सम्बोधन कर कहा- 'इन फूलों की जहां चाहूँ रख सकता हूँ ।'

'क्यों नहीं 'नैनी ने अपने प्याले से ट्रेंड लेकर कहा।

हरीश उठा और नैनसी की पीठ पीछे जा उसने एक-एक कर फूल नैनसी के देशों में पंखे की तरह लगा दिये। नैनसी चुप बैठी रही परन्तु उसका गन्तुमी चेहरा गुलाबी हो गया। हरीश खोच रहा था मंसूरी की यह उदर शफी कुछ करेगी। परन्तु नैनसी चुप थी।

हरीश के अपने स्थान पर आ बैठने पर नैनी ने कहा-'आप की तोटा देना खूप आता है।'

'प्रत्येक वस्तु अपनी ठीक जगह पर अच्छी लगती है' हरीश ने उत्तर दिया। रोल ने नैनती की ओर देखकर कहा 'मिराकर ने तुम्हें रानी बना दिया ! जरा शीशे में देखो तो मालूम हो !......मिराजकर तुम्हें ऐसे शौक भी है

हरीश कुछ उत्तर न दे केवल हंस दिया। रावर्ट ने उठ कर फूलों की क्यारी के पास जा एक सिगरेट और जलाई और टहलता हुआ दूर जा निकला। वहाँ जा उसने पुकारा-शैल ये डिवान्स देखे हें तुमने 'शेल उधर चली गई। हरीश को ठोस प्यावा लेने के लिये चापदानी की और हाय


बढ़ाते देख नैनसी स्वयम् प्याला तैयार करने लगी। हरीश ने उसकी ओर देखकर पूछा- 'छाप इतनी चुप क्यों हैं '

1

आज कल आप हरीश है कि 'उसकी ओर उठाये

'नहीं तो ऐसे ही कुछ नहीं' नैनसी ने उत्तर दिया- 'आपको शायद यह कर हो कि मैं विश्वास के योग्य नहीं। मिराजकर !''' मंसूरी में तो आप खूब बने बिना ही नैनसी ने पूछा।

आप बुरा मान गई। इसमें अविश्वास की तो कोई बात नहीं

'नहीं, बुरा मानने का मुझे क्या अधिकार है 'जैनसी ने ध्याता हरीश की ओर बढ़ाते हुए कहा।

आप ही बताइये कि मुझे इस बात का क्या अधिकार है कि बिना अनुमति के किसी व्यक्ति पर अपने भेदों को छिपाये रखने का बोझ डाल यूँ मुझफ़ी मांगने के ढंग से हरीश ने पूछा।

उचर में नैनसी ने बिस्कुट की प्लेट उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा- लीजिये आपने खाया तो कुछ भी नहीं

इधर-उधर फूलों की ओर देखते हुए हरीश बिस्कुट और चाय समाप्त कर रहा था। नैनसी ने राव का सिगरेट केस बढ़ा सिगरेट पेश कर दिया। हरीश के सिगरेट ले लेने पर एक माचिस जलाकर उसने आगे कर दी।

'शुक्रिया' कुकर हरीश सिगरेट सुलगा रहा था, उसका सिर नैनसी के सिर से टकरा गया। 'मुखाऊ कीजिये' हरीश ने संकोच से दमा मांगी। 'कुछ नहीं' नैनसी फिर चुप हो गई।

'आज आप इतनी चुप क्यों है ' हरीश ने फिर पूछा।

जैसी

'बहुत बोलने से लोग समझ लेते हैं कि व्यक्ति छिछोरा है ने अपनी उँगलियाँ मोड़ उत्तर दिया। उसकी लम्बी पतली गोरो उँगलियाँ की ओर देख हरीश ने उसके शेष शरीर की ओर देखा। उसका बहुत महीन और मुलायम बालों से भरा सिर जिसमें तेल की चिकनाई नहीं, केशों की स्वाभाविक कोमलता स्वयं प्रकट हो रही थी और मटर के लाल फूलों का लगा हुआ पंखा, उसका पतला लम्बा सुख, लंबी गर्दन, महीन साड़ी में से उसके शरीर की आकृति का मलकता ढाँचा, उसका तनिक उमरा हुआ बच, उसकी पतली कमर और फिर कुछ दूर बहकर नीचे गिरती जल की धारा की तरह घुटनों से नीचे गिरती उसकी पिंडलियां, अंत में सैंडल में मढ़े उसके कोमल श्वेत पाँव जिनके चारों ओर साड़ी का घेरा पराग को घेरे रहने वाली फूल ।

पंखुड़ियों की तरह फैला हुआ था। कंधे से कुछ नीचे ब्लाउज़ से बाहर निकल पीलापन लिये, हाथी के दाँतों की तरह चिकनी और कोमल बाई उसकी गोद

में आकर टिकी हुई थी जिन पर केवल एक-एक बहुत महीन काली चूड़ी के अतिरिक्त कुछ न था। एक अस्पष्ट सी सुगन्ध उसके शरीर से आ रही थी। यह सब था फूल की एक कली की भाँति जो खिसकर फेल नहीं गई परन्तु स्फुटोन्मुख हो चुकी है। और फिर नैनसी की हरीश की उपेक्षा के प्रति नाराज़गी ! यह सब मिलकर हरीश को अनुभव हो रहा था कि उसके सन्मुख एक अनुपम सौंदर्य उपस्थित है। वह सोच रहा था कि इससे अधिक सुन्दर रुचिर रूप उसने नहीं देखा परन्तु अजायच घर में रखी उर्वशी की मूर्ति के समान यह केवल देख कर स्तुति करने योग्य वस्तु है। शैल ने जिस वास्तविकता का परिचय उदारता से उसे दिया था। उससे बेशक यह कहीं

सुन्दर है परन्तु शैल पर जो अधिकार उसे है वह तो यहाँ नहीं। शैल के प्रति अनुराग और कृतज्ञता से हरीश का मन भर गया। एक क्षण के लिये उसे नैनसी के स्थान पर शैल ही बैठी दिखाई देने लगी। उसने अपने मन को सचेत किया यह रोल नहीं सब रोल नहीं, जिसके आगे उसकी उच्छृंखलता अपराध न हो !

'चुप' के उस संकट से निकलने के लिये हरीश ने पूछा—'शैल ने आप को भी इस काम में घसीट लिया

कोई किसी को जबरदस्ती नहीं घसीट सकता है उसी तरह सिर झुकाये नैनसी ने विरोध किया ।

हरीश के इस प्रश्न ने रोल की जिरा श्रेष्ठता की ओर संकेत किया और उससे ईषों की जी चिनगारी नैनसी के मन में चटक उठी, हरीश का ध्यान उस ओर न गया। और कुछ कहने को न पाकर बोला- 'आपके फूल वास्तव में ही बहुत सुन्दर हैं। तबीयत चाहती है, इन्हें निरन्तर देखते ही रहें।'

नैनसी ने कोई उत्तर न दिया। वह अपनी उंगलियां उसी तरह तोड़ती रही परन्तु उसका श्रमिमानी हृदय सोच रहा था मैं केवल दिखावे और दिल बहलाने की बात के योग्य हूँ कोई गम्भीर और उत्तरदायित्व की बात थोड़े ही मुझसे की जा सकती है उसी तरह अपनी कोमल उँगलियों पर मन

का असन्तोष प्रकट कर उसने बिना सिर उठाये ही कहा-'आपको इन छोटी-छोटी बातों से मतलब बड़े ही है, यह तो हमारे जैसा के लिये है, जो किसी काम के नहीं।'


हरीश के मन में बंध गया। जिस अधिकार की मांग के लिये यह विद्रधूप किया गया था, उसे न समक उतने सफाई देनी शुरू की यह तो परिस्थिति की बात है, परन्तु जीवन की चाह मनुष्य में होती ही है, सौन्दर्य को यह अनुभव करता ही है।'

अपनी बात ठीक स्थान पर लगते न देख नैनसी ने का दृष्टि से हरीश की

देखा। नैनी को आशा थी कि जिला जिस बात को स्पष्ट नहीं कर की, उसकी दृष्टि उसे कर देगी परन्तु हरीश दूसरी ओर देख रहा था। नैनसी ने फिर आपका जीवन यहाँ इतने संकट में है, आप विदेश क्यों नहीं चले जाते

कैसे चला जाऊँ

- उत्तर में हरीश ने प्रश्न किया ।

'आपके लिए ऐसा कठिन क्या है ? यहाँ आप कितना अधिक अनुभव प्राप्त कर सकेंगे और फिर समय आने पर लौटकर आपके लिये अपना काम करना अधिक आसान होगा। उसके लिए रुपये का प्रबन्ध हो जाना कौन बड़ा कठिन है कभी-कभी मैं भी कुछ दिन के लिये मोप जाने की बात सोचती हूँ!"

सिगरेट से पुषां खचते हुए इरोश ने उत्तर दिया- 'विदेश में पहुँच जाने से मैं सतरे से तो बच जाऊँगा परन्तु ख़तरे से बचने के लिये ही तो मैं घर से निकला नहीं था। जिस काम के लिये सतरा स्वीकार किया है, वह पीछे रह जायगा

तो फिर आप स्वयम् पीछे रहिये, आप बढाते जाइए और दूसरे शादमी धागे आकर काम करें। नैनी ने कहा।

लेकिन जो भी आदमी ये खाकर काम करेगा, अरे में होगा और फिर मैं ही न करूँ तो दूसरे क्यों करेंगे !' - हरीश ने उत्तर दिया।

आपने क्या कम काम किया है इस तरह आपका स्वास्थ्य कैसे रहेगा समय पर खाना न होना धाप नहीं ही क्यों नहीं रहते यहाँ तो किसी प्रकार का सन्देह भी नहीं हो सकता। धात्मीयता से नैनसी ने कहा।

"सन्देह की बात नहीं।" "वो तो अब आप बड़कर जनता में काम करेंगी तो सन्देह आप पर भी होगा ही आप भी खतरे से खाली न रहेंगी। और मैं चाहता हूँ, मज़दूरों की ही बस्ती में रहना। बल्कि मैं तो कोशिश कर रहा हूँ कि किसी मिल में नौकरी मिल जाय तो अच्छा हो। यो अपने खर्च का बोझ लगातार दूसरों पर डालते रहना भी अच्छा नहीं मालूम होता।'

'बोझ इसमें क्या है ! आप को रुपयों की क्ररूरत है 'नैनसी ने पूछा। 'नहीं, अभी तो नहीं।'

'नही ले जाइये, मेरे पास रक्खे हैं" रूरत नहीं ।जैनी ने कहा। 'जब ज़रूरत होगी, ज़रूर ले लूंगा"

है आप मेरी बहिन की तरह हैं।"

'आपकी किसी से कहने की भो

"आपसे कोई संकोच मुझे नहीं

हरीश के इतना समीप आ जाने पर भी नैनसी को संतोष न हुआ। अभी छाती हूँ कहकर वह भीतर चली गई अपना वक्त खोलकर उसने देखा साठ रुपये थे। नोटों को मरोड़कर हाथ में लिये वह बाहर आई। यह हरीश के

1

पास पहुँची हो थी कि गले के दूसरी ओर के दरवाजे से एक पुलिस सार्जेण्ट और कुछ कानस्टेबल भीतर आठे दिलाई दिये। हरीश ने आहिस्ता से कहा- 'तुम परे हट जाओ मुझे गोली चलानी होगी।'

बजाय पीछे हटने के नैनसी और भी समीप आ गई। हरीश ने फिर कहा परे हट जाओ, तुम्हें खामुखाह चोट ब्रा आयेगी ।'

नैनसी दृढ़ता से हरीश पर छाती चोट सहने के लिये उस के सामने हो गई। उससे आगे बढ़ने के लिये अपनी जेब में पिस्तौल के घोड़े पर हाथ रक्से हरीश पुलिस साजेंगट की ओर बढ़ रहा था। पुलिस सार्जेण्ट को अपने रिवाल्वर पर हाथ रखते न देख वह अपना हाथ रोके रहा। काफी समीप श्रा जाने पर सार्जेस्ट ने कहा-'गुड इवनिंग बिना पूछे चले आने के लिये मुखाफ़ कीजिये....आपकी कार का नम्बर क्या है !....... मैं जरा आपकी कार देख सकता हूँ ?'

मोटर का नम्बर बता नैनसी ने कार की ओर इशारा कर दिया। हरीश ने सार्जेण्ट से पूछा- क्यों बात क्या है '

सार्जेंट ने उत्तर दिया- 'घण्टा भर हुआ, मातरोड पर एक कार गवर्नर की कार के मडगार्ड से टकराकर इसी सड़क पर भाग आई थी, उसका पता नहीं चल रहा है। सार्जेण्ट और सिपाही मुधाफ़ी माँगकर चले गये 1

पुलिस को बँगले में खाते देख शैल और राय के हृदय भी धड़कने लगे थे। पुलिस को बाहर जाते और नैनसी और हरीश को परस्पर हँसते देख ये भी समीप खा गये। पुलिस के आने का कारण जान सभी हँसने लगे।

नैनसी ने मुस्कराकर हरीश से कहा- 'आप तो सबको कायर ही समझते है। नैनसी के रुख पर उस रोज़ यह पहली द हँसी आई।


हरीश ने उसकी आँखों में देखकर पूछा—'आप तो बिलकुल मृत्यु का आलिंगन करने के लिये ही आगे बढ़ी थीं '

चिकिया की तरह दूसरी क्यारी की ओर उदककर नैनसी ने कहा- "अहा ! यह नर्गिस तो आपने देखे ही नहीं।'

उसकी रक्षा के लिये अपने आपको गोली का निशाना बनाने के लिये नैनसी की तत्परता चोर उसकी बात का उत्तर न देने में नैनसी की लापरवाही को हरीश न समझ सका । नैनसी उसे एक क्यारी से दूसरी क्यारी की ओर से जा रही थी। अपने जेब में कुछ साइट सी जान कर हरीश ने हाम डालकर कुछ कागज से अनुभव किये निकालकर देखा वे नोट थे। इरीश ने नैनसी की ओर देखा परन्तु वह कह रही थी आपको तो कुछ पल है ही नहीं; न फूलों की न किसी और चीज की ' शुरू में हरीश ने नैनसी की चुप्पी की शिकायत की थी अब वह उसकी चहचहाहट को समझ न पा रहा था।

रखी और उसके साथी के आमाने पर राबर्ट, हरीश और उनमें बहुत देर तक बहस होती रही। हरीश ने रोल को भी उस महल में बुला लिया। उस विचार से सभा में न बुलाई जाने पर अपमान और निराशा से नैनवी वाड़े- सात बजे ही शाल लेकर अपने बिस्तर पर जा लेटी प्रायों की बाली लगा देने पर भी अब उपेक्षा ही मिले तब रोने और मर जाने की इच्छा के अतिरिक्त और क्या किया जा सकता है।

हरीश अपनी बात पर जोर दे रहा था कि मज़दूरों और दूसरे परिश्रम करने वाले लोगों के आर्थिक सुधार का प्रश्न अवश्य उठाया जाय परन्तु उनके सामने मुख्य प्रश्न रखा जाय राजनैतिक उद्देश्य से संगठन का उसी के जरिये ये अपनी माँगें उठायें। कांग्रेस के संगठन द्वारा ही उनकी लड़ाई हो जाय। उसका कहना था कि राजनैतिक शक्ति प्राप्त करके ही हम दक्षित और शोषित वर्ग की कठिनाइयों को दूर कर सकते हैं।

हरीश की बात से सहमत न होकर स्त्रीक कह रहा था कि शोपित और दक्षित लोगों के सामने पहले उनकी रोजमर्रा की कठिनाइयों का प्रश्न उठाना ही ज़रूरी है। राजनैतिक प्रश्नों पर उन्हें संगठित और सचेत करना सम्भव नहीं। जो समस्यायें उनके जीवन में उनके सामने मोजूद है उनको हल करने की कोशिश से ही उनमें शक्ति और चेतना आयेगी, मोटे-मोटे राजनैतिक नारे 'पूर्ण स्वतंत्रता' और 'श्रपनवेशिक स्वराज्य' उनकी समझ में नहीं आ सकते।

कांग्रेस जिस श्रेणी के लोगों से बनी है, वे लोग साधारणतः न तो मज़दूर श्रेणी की कठिनाइयों को समझते हैं और न उनके साथ सहानुभूति ही रखते हैं। कांग्रेस पर जिस श्रेणी का कब्ज़ा है, उनके और मज़दूरो के हितों में विरोध है। कांग्रेस चलती है महात्मा गांधी की नीति पर उस नीति का आधार है कि भगवान की इच्छा से ही मालिक, मालिक बने हैं और मज़दूर मजदूर हैं। मालिक, मालिक रहेंगे और मज़दूर, मज़दूर रहेंगे। मालिकों की दया से ही मज़दूरों की अवस्था सुधर सकती है। इम तो मालिक मशहूर का सम्बन्ध ही मिटा देना चाहते हैं। हम मालिक को मालिक ही नहीं रखना चाहते तो फिर कांग्रेस की मालिक श्रेणी हमें कैसे सहन कर सकती है, कैसे हमें सबल बनने दे सकती है ?

राबर्ट ने समझाने का प्रयख किया' कांग्रेस को ही हमें उस श्रेणी के "हाथों से लेकर मजदूरों और किसानों के हाथों में देना है।'

रजीक ने विरोध किया—यह स्वप्न की बातें हैं। कांग्रेस जिस श्रेणी के दाय में है, वह उस पर से अपना कन्द्रा नहीं छोड़ सकती । तुम अपने मेम्ब की संख्या बढ़ाकर कांग्रेस पर कम्जा करना चाहते हो तुम नहीं जानते कि कांग्रेस ऐसे क़ानून पास कर देगी कि उसमें तुम्हारा बहुमत प्रकट हो ही नहीं सकेगा ? फर्ज़ करो, मेम्बरी की शर्त चवली से हटाकर फिर चर्खा कातना र दिया जाय ''''; तुम बड़े अज़ीय आदमी हो, तुम मज़दूरों का संगठन पूँजीपतियों के अखाड़े में जाकर करना चाहते हो? मजदूरों, किसानों का अपना संगठन हो, और उस संगठन के ज़रिये वे काग्रेस पर मन्त्रा कर लें तो एक बात है। परन्तु वे कांग्रेस के भीतर जाकर ही अपना संगठन करें, यह विचित्र बात है। मज़दूरों को संगठित करने के लिये उनके पेट के सवाल के सिवा और कोई धारा नहीं उन्हें अपनी शक्ति का ज्ञान केवल हड़ताल के रूप में ही हो सकता है। यों संगठित हो जाने के बाद ही मज़दूर राजनैतिक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं। पहले मजदूरों, सब पेशों के मज़दूरों को आर्थिक प्रश्नों पर संगठित करना फिर उनके सयुक्त मोर्चे के हाथ में राजनैतिक शक्ति देना, यही हमारी लाइन है। तुम चाहते हो, पहले राजनैतिक चेतना और बाद में आर्थिक माँग ! यह हो कैसे सकता है १ जिसके हाथ में आर्थिक साधन हैं, वही राजनैतिक शक्ति का मालिक होगा। तुम या कांग्रेस इस तरीके को बदल नहीं सकते। कपड़ा मिल में इस समय ऐसी स्थिति है खड़ा कर सकते हैं, उनको लड़ा सकते हैं। उनकी यह

कि हम मज़दूरों को सफलता दूसरे सब मज़दूरों को संगठित करने के लिये हमारा मोर्चा होगा। मज़दूरों को कांग्रेस


का मेम्बर बनना ठीक है परन्तु कांग्रेस में उनका स्वतंत्र संगठित प्रतिनिधित्व मी आवश्यक है।'

राबर्ट ने फिर कहा ' सिद्धान्त और नीति में तुम्हारी प्रत्येक बात मानता हूँ परन्तु इस हफ्ता के बारे में मैं यह चाहता हूँ कि कांग्रेस ही इसका नेतृत्व करे। मैं मानता हूँ कि कांग्रेस पर कहा रखने वाली शक्ति के हितों और मजदूरों के हितों में विरोध है परन्तु मनुष्यता के नाते हम कांग्रेस को अपने साथ ले जा सकते है !' हरीश ने कहा- जी इस झगड़े को इक्वाल हमें करनी है और राबर्ट, स्ट्राइक कमेटी में हम तुम्हें और शेल दोनों को रखेंगे। इसके अलावा शहर के चार-पाँच श्रादमियों को और रखा जाय ताकि काग्रेस के ऐसे आदमी जिन्हें अपने सार्वजनिक सम्मान का प्रयास हो, समय पर हमें चोखा न दे जायें।'

रफीक ने हरीश से कहा और हम तुम और कृपाराम, अस्तर बगैरा

सब लोग मिलों के सब विभागों की कमेटियाँ करनी शुरू कर दें। अप्रैल की पन्द्रह तारीख़ को मिल के मैनेजर को नोटिस देना है तो उससे पहले सब तैयारी हो आनी चाहिये। मज़दूरो के सामने उनकी हालत रसी आय, हम क्या चाहते है, यह सवाल रखा जाय। हड़ताल की बात अभी केवल उन लोगों को मालूम हो जो बिलकुल अपनी पार्टी के मेम्बर है। नोटिस देने से पहले जो मीटिंग की जायगी उससे पहले सब आदमी के हो जायें। हस्ताल की खबर अगर मालिकों तक पहले ही पहुँच गई तो वे ज़रूर कोई-न-कोई दंगा करा देंगे। मद्रास की 'लक्ष्मी कमलम' मिक्षा में ऐसा हो चुका है।

अनेक बातों के साथ यह मो तय हुआ कि आइन्दा हरीश मिल के वा में ही रहेगा और कपड़ा मिल के सेक्रेटरी का काम करेगा। रोल, राबर्ट और रफीक पर आवश्यक खर्च जुटाने की जिम्मेवारी दी गई।

X

X

X

सभा समाप्त हो जाने के बाद हरीश बरामदे में खड़ा हो चलने की तैयारी कर रहा था और नैनसी शाल के भीतर आँसू बहाती हुई गूढ़ निराशा में सोच रही थी, क्या वह किसी भी काम नहीं सुनाई दे रही थी कह रही थी

घा सकती है उसे बरामदे से बातचीत

हरीश, अपनी साइकिल तुम यहीं रहने

दो तुम्हें गाड़ी में जहाँ तक कहोगे छोड़ आऊँगी।"

हरीश की आवाज़ सुनाई दी 'साइकल की तो मुझे अभी जाकर ही ज़रूरत होगी। मैं साइकता पर ही चला जाऊँगा । हाँ, नैनसी क्या अभी से गई ।'

शाल परे फेंक नैनसी उठ खड़ी हुई आँसू पोंछ और सिर के बालों पर आइने में एक नज़र डाल कर वह आँचल सम्भालती हुई बाहर आई। उसे दिखाई दिया— शैल एक ओर राबर्ट की और दूसरी ओर साइकल याने हरीश की बाँहों में अपनी बाँह वाले शनैःशनैः कदम उठाती हुई कोठी के फाटक की ओर जा रही है।

नैनसी का हृदय शैल के प्रति घृणा से भर गया । उसने सोचा, 'इसका सम्पूर्ण सार्वजनिक कार्य केवल उच्छृङ्खलता का महाना है। हरेश पर डोरे डालने के लिये हमारी कोठी को अड्डा बना लिया है। हमें इस ट से मतलब ? उसे जान पड़ा कि हरीश दिलकुल भोला है, जो उसके फरेब में फँसा है और उसे हरीश से ही क्या मतलब है ? उसे ख्याल आया कि अभी कुछ घण्टे पूर्व उसने ही कैसी मूर्खता की थी यह स्वयं पिस्तौल की गोली से जिद जाने के लिये हरीश के सामने जा सड़ी हुई थी ! बरामदे में खड़े, उसका मस्तिष्क कुहासे से घिर गया। वह समझ नहीं सकी, कि वह क्या चाहती है ? वह स्वयं अपने सन्मुख एक पहेली बन गई।

13
रचनाएँ
दादा कामरेड
0.0
दादा कामरेड पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। इसे हिंदी साहित्य में एक अग्रणी राजनीतिक उपन्यास माना जाता है। उपन्यास अर्ध-आत्मकथात्मक है, और हरीश नाम के एक युवक की कहानी कहता है जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो जाता है। उपन्यास स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है, और क्रांतिकारी संघर्ष के शक्तिशाली और मार्मिक चित्रण के लिए इसकी प्रशंसा की गई है। यह उपन्यास 20वीं सदी की शुरुआत पर आधारित है और इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में हरीश के बचपन से होती है। हरीश एक प्रतिभाशाली और जिज्ञासु लड़का है, और वह स्वतंत्रता और समानता के उन विचारों की ओर आकर्षित होता है जो उसने अपने पिता, एक गांधीवादी राष्ट्रवादी से सुने थे। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, हरीश स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गया और अंततः उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। जेल में, हरीश की मुलाकात अनुभवी क्रांतिकारी दादा से होती है, जो उसके गुरु बन जाते हैं। दादा हरीश को वर्ग संघर्ष के महत्व के बारे में सिखाते हैं, और वह हरीश को एक बेहतर दुनिया के लिए संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित करते हैं। जेल से रिहा होने के बाद, हरीश एक पूर्णकालिक क्रांतिकारी बन गया, और उसने अपना जीवन स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के संघर्ष में समर्पित कर दिया। दादा कामरेड एक शक्तिशाली और मार्मिक उपन्यास है जो स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है। यह उपन्यास हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है और क्रांतिकारी संघर्ष के यथार्थवादी चित्रण के लिए इसकी सराहना की गई है।
1

 दुविधा की रात

11 सितम्बर 2023
1
0
0

  यशोदा के पति अमरनाथ बिस्तर में लेटे अलवार देखते हुए नींद की प्रतीक्षा कर रहे थे। नोकर भी सोने चला गया था। नीचे रसोईघर से कुछ खटके की थापालाई कुँमलाकर यशोदा ने सोचा- 'विशन नालायक जरूर कुछ नंगा

2

 नये ढंग की लड़की

11 सितम्बर 2023
0
0
0

 मध्यम रही अनिथित स्थिति के लोगों की एक अद्भुत चमेली है। कुछ लोग मोटरों और शानदार बंगलों का व्यवहार कर विनय से अपने आपको इस श्रेणी का अंग बताते है। दूसरे लोग मज़दूरी की सी असहाय स्थिति में रहकर भी

3

 नये ढंग की लड़की

11 सितम्बर 2023
0
0
0

 मध्यम रही अनिथित स्थिति के लोगों की एक अद्भुत चमेली है। कुछ लोग मोटरों और शानदार बंगलों का व्यवहार कर विनय से अपने आपको इस श्रेणी का अंग बताते है। दूसरे लोग मज़दूरी की सी असहाय स्थिति में रहकर भी

4

 केन्द्रीय सभा

11 सितम्बर 2023
0
0
0

 कानपुर शहर के उस संग मोहल्ले में आबादी अधिकतर निम्न श्रेणी के लोगों की ही है। पुराने ढंग के उस मकान में, जिसमे सन् २० तक भी बिजली का तार न पहुँच सका था, किवाड़ विज्ञायों के नहीं कंदरी और देखा के

5

 मज़दूर का घर

11 सितम्बर 2023
0
0
0

 हरिद्वार पैसेंजर लाहौर स्टेशन पर आकर रुकी। मुसाफिर प्लेटफार्म पर उत्तरने लगे। रेलवे वर्कशाप का एक कुली, कम्बल ओ और हाथ में दं ओज़ार लिये, लाइन की तरफ़ उतर गया। राक्षत रास्ते से आदमी को जाते देख ए

6

 तीन रूप

11 सितम्बर 2023
0
0
0

 शैलपाला अपने कमरे में बैठी जरूरी पत्र लिख दी थी। नौकर ने जबर दी, दो आदमी उससे मिलने आये हैं। लिखते-लिखते उसने कहा- नाम पूछकर श्रो लोटकर बोकर ने उसे एक चिट दियां चिट देखते ही वह तुरन्त बाहर आई। ह

7

मनुष्य

11 सितम्बर 2023
0
0
0

 दिन-रात और अगले दिन संध्या तक बरफ गिरती रहने के बाद रात में बादल पढ़ कर उस पर पाला पड़ गया। सुबह से स्वच्छ नीले आकाश में सूर्य चमक रहा था। नीचे विछे अनंत श्वेत से प्रतिबिम्बत धूप की कई गुणा मढ़ी

8

गृहस्थ

13 सितम्बर 2023
0
0
0

 ० आर०' और 'हरीश' वह दो नाम अमरनाथ के मस्तिष्क में बारी-बारी से चमकते अपनी शक्ति पर सन्देह करने की कोई गुंजाइश न थी "ठीक बाद था ठीक उसने अपना नाम ० कारखाना और पद उसका नाम बताती है, 'परी' ये सोचते

9

 पहेली

13 सितम्बर 2023
0
0
0

 मंग के सामने कुराड़ी में बेत के काउच पर राबर्ट और शैल बैठे दुबे थे। राबर्ट के एक हाथ में सिगरेट था और दूसरे हाथ में एक पर अनेक दिन के बाद प्रतोरा का पत्र आया था राम पत्र पढ़कर रोल को सुना रहा था-

10

 सुलतान १

13 सितम्बर 2023
0
0
0

पंजाब-मिल, सितारा-मिल, डाल्टन मिल आदि कपड़ा मिलों में डेढ़ मास ताल जारी थी। हड़ताल समाप्त होने के आसार नज़र न आते थे। जून की गरमी में जब लू धूल उड़ा-उड़ा कर राह चलने वालों के चेहरे झुलसा देती थी राबर्

11

दादा

13 सितम्बर 2023
0
0
0

 लाहौर की बड़ी नहर के दाँवे किनारे की सड़क पर दादा साइकल पर चले जा रहे थे। उनसे प्रायः बीस क़दम पीछे-पीछे दूसरी साइकल पर श्रा रहा था जीवन । माडलटाउन जाने वाला पुल लाँघ वे नहर के दूसरे किनारे हो गय

12

 न्याय !

13 सितम्बर 2023
0
0
0

 दकताल में माज़दूरों की जीत होगई। उत्साहित हो कर दूसरों मिलों और कारखाना के मज़दूरों ने भी मज़दूर समायें बनानी शुरू कर दीं। कई मिलों में और कारखानों के क्वार्टरों में रात्रि पाठशालायें जारी हो गई।

13

 दादा और कामरेड

13 सितम्बर 2023
0
0
0

 अदालत से लोड कर शैक्ष ज्वर में पलंग पर लेट गई। ज्वर मूर्छा में परिणित हो गया। उसे कुछ देर के लिये होश आता तो वह अपने इधर-उधर देख कर कुछ सोचने लगती और फिर बेहोश हो जाती। मुआजी उसके सिराहने बैठीं ब

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए