० आर०' और 'हरीश' वह दो नाम अमरनाथ के मस्तिष्क में बारी-बारी से चमकते अपनी शक्ति पर सन्देह करने की कोई गुंजाइश न थी "ठीक बाद था ठीक उसने अपना नाम ० कारखाना और पद उसका नाम बताती है, 'परी' ये सोचते रहे कि वह आदमी क्योदा से परिचित है और इनका परिचय रेलमा के मकान पर हुआ है। गोदाम के यहाँ आती है, इस बात का कि उसने पहले कभी क्यों नहीं किया शहर भर में पाँच-सात परिवारों में हीरो का नाम था उन्हें में जानते मे रोवलासा से उपचा सम्बन्ध कहाँ का परिचय समास के जलवों में आती-जाती है। दूसरे सार्वजनिक कामों में भाग लेती है। सार्वजनिक कार्य केहि से वह देसी काम करने वाली हो लेकिन ग्रहस्थी के घर में ठीक नहीं। फिर उनसे किन करने की नहरो को उनके यहाँ दल दा क्यों गई।
कुछ
उसको चार
उ
दिन बीत चुके थे ये धारा के लिये स्वयम् उनके यहाँ आने का वायदा करके गया था पर आया नहीं।
अपना पता बताने की नारा यह
गाना
यम् उनके यहाँ कराने कोई व्यक्ति आया है, ऐसा भी यह पहली बार ही हुआ। उन्होंने शोदा से तीन चार बार पूछने की कोशिश की' से इम उसे जानती ह नासा के यहाँ के बार उससे मिली हो
एक बार पशोदा ने संक्षिप्त उत्तर दिया।
-कितने दिन की बात है '
-महीना भर हुआ होगा
'क्या बातचीत हुई थी '
यही कांग्रेस के काम की ।'
अमरनाथ हैरान थे। शहर में कांग्रेस का काम करने वाला ऐसा कौन हैं, जिसे वे नहीं जानते १ अपनी शर्टी के सभी धादमियों को वे जानते थे सोश लिस्ट और गरम दल के लड़कों को भी पाला तो निपर आठ-दस जवान
1
लड़के रहते थे, उसी ओर रहती थी। ऐसे लफंगे लड़कों को भी वे जानते ही ये परन्तु इस नौजवान को उन्होंने कभी नहीं देखा। कांग्रेस में काम करने वाला यह आदमी सुह, नेकटाई पहने हुए जानसन कम्पनी' का लिंग इजीनियर बताता था।
वह अपने आपको 'विरेगी.
अमरनाथ ने फिर एक दिन यशोदा से पूछा 'तुम भी कांग्रेस में काम करती हो तुम तो कांग्रेस की मेम्बर नहीं हो
मैं हूँ यशोदा ने उत्तर दिया।
"कम से
'कई दिन से !'
वर्ष
यशोदा को उत्तर देती, बहुत संक्षिप्त घाँसकर पिछले यशोदा का ऐसा भाव उन्हें कभी अनुभव नहीं हुआ। पशोदा के व्यवहार से जान पड़ता था जैसे उसके मन में कुछ मरा हो, वह अपने आप को कुछ समकने लगी हो । अमरनाथ मन की अशांति से उद्विग्न से रहने लगे। उनके पड़ोसी गिरधारीलाल को बैंक की मार्फत प्रायः सभी बड़ी-बड़ी कम्पनियों के माम मालूम थे। अमरनाथ ने 'जिरेमी जानसन' की बाबत उनसे पूछ गिरधारीलाल ने कई दूसरी इंजीनिरिंग कम्पनियों का नाम सुनाकर कहा- 'जिरेमी जनसन का नाम तो कभी नहीं सुना।' अमरनाथ ने कई दूसरे परि विठ लोगों से 'जिरेमी जनसन' के बारे में पूछा
में भी देखा परन्तु यह
मिला।
टेलीफोन की डायरेक्टरी
अतयत्ता अमरनाथ से बात करते परन्तु जिस दिन से अमरनाथ ने बात करते समय एक संकोच का झुक जातीं। अमरनाथ भी जहाँ
नाम उन्हें कहीं न यशोदा स्वभाव से ही कम बीतती थी, समय वह सदा से मुस्कराती रहती हरीश के बारे में खो-खोदकाम पूछे भाम यशोदा के चेहरे पर खा जाता, श्री तक सम्भव था, कम बोलते दोनों के बीच एक र अन्तर आ गया। 1 एक सप्ताह और गुजरने पर अमरनाथ ने फिर साहस कर पूछा उस का नाम हरीश था ' मुझे तो उसने अपना नाम बताया था, जे० आर० शुक्रा
'होगा, मुझे
ने और उन्होंने हरीश ही नाम बताया था
के स्वर में यशोदा ने उत्तर दिया।
कांग्रेस के कैसे काम की बात तुम लोगों में पाठीत हुई थी - अमरनाथ ने पूछा।
ऐसे ही जैसे कांग्रेस का काम होता है, स्वराज्य की बात 'पशोदा ने सिर झुका लिया।
सामने प्रकट कर दी।
इससे अधिक पूढ़ने के लिये कुछ न था परन्तु अमरनाथ की उदासी और स्वर के संकोच ने इन प्रश्नों के नीचे मन में छिपी गहरी आशंका मशोदा के इनके मन में मेरी बात सन्देह है यशोदा दायें रक्खे बैठी सोच रही थी। 'सन्देह' का विचार आते उसके होंठ कांप उठे और अन्याय की अनुभूति से कोम
हाथ की मुट्टी पर ठोड़ी
ही भय और ग्लानि से
की भावना ने उठते हुए
सन्देह आखिर क्यों? मैंने
घंटों
तुझ को दबा दिया क्या किया है किस बात का सन्देह की ओर देख-देख पह सोचती यह मेरा अपमान क्यों कर रहे हैं- मुझ पर यह ज्यादती क्यों कर रहे हैं आखिर मैंने किया क्या है ? यहीं न कि एक आदमी से मेरे परिचय का इन्हें पता लगा मैंने इन्हें यह नहीं बताया कि मैंने कांग्रेस में काम करने की वाचत बातचीत की है काम कर रहे हैं। मैंने तो कभी इनसे नहीं रहे हैं इतनी सी बात पर सन्देह मानो श्री 'सन्देह' के काम के सिवा और को रात भर नीचे के कमरे में ठिकाने की बात उसे तो वे जानते नहीं और जानें वो न जाने क्या समझें बुरी बात की
यह आठ बरस से कांग्रेस का पूछा कि वे क्या और क्यों कर केवल इसीलिये न कि मैं ही हूँ। कुछ कर ही नहीं सकती। हरीश याद था जाती परन्तु यह 1
परन्तु उसमें मैंने फोन
यशोदा कई दफे खूब रोई भी परन्तु इस ढंग से कि कोई देख न सके। वह अन्याय अनुभव कर रही थी और सह जाने के सिवा चारा न था। इसका उपाय या ही क्या है वह मुखाफी माँगे तो किस बात की, यही उसके माग्य में या तो हो रहा है। जैसे विवाह, सन्तान आदि और मातें हुई, उसी तरह यह भी होना था, हो रहा है उसे केवल दुस मा आठ परत में इन्होंने मेरा ऐसा कौन काम देखा कि यह मुझ पर सन्देह करने लगे।
यशोदा अपने घर से बाहर जाने का अभ्यास नहीं था कभी महीने दो महीने में किसी के बुलाने से घंटे दो घरटे को कहीं चली जाती। अब तदीयत
चाहती थी कि इस घर को छोड़कर कहीं चली जाय। या फिर इस जुल्म से उसकी मुक्ति मृत्यु से ही हो सकती है वह मर ही क्यों न जाय उसके मर जाने से हानि ही क्या होगी ? स्त्रियों का मरना जीना ही क्या जब तक पुरुष प्रसन्न है, वे जीती है, पुरुष अपसन्न हो गये, मरना हो गया। सात ने कई दफ़ उससे सत्ता रहने का कारण पूछा। समय-समय पर सोंठ या कुछ और गरम या ठयडी ची खाने की सलाह भी दी। एक ग्राथ दो डक्टर
के पास से जाने की तैयारी की परन्तु यशोदा ने टाल दिया कि उसे कोई तकलीफ़ नहीं।
उदय आकर उससे चिपट जाता। वह उसे गोद में ले लेती। पहले उदय किसी बेमतलब के लिये जिद्द करता तो यशोदा उसे गोद में लेकर पेठ समझाया करती परन्तु अब संकट से छुट्टी पाने के लिये वह उसकी जिद्द मान जाती या फिर चातुर स्वर में कहती बेटा देखो, अब तो तुम पड़े हो गये हो क्यों सताते हो उदय को फुसलाने और बनाने से संतोष न होता परन्तु जब उदय हि में कहता कि वह पिता जी के पास चला जायगा तो यह उसे गोद में से उसके सिर पर हाथ फेरने लगती।
1
एक ही बात यह उससे पूछतीना तुम नहादुर बनोगे उदय म की गोद से छूटने की कोशिश कर कहताच, अपनी इन्दूक ले आऊँ !" उसके पास एक इसाईमन्दूक थी यशोदा ने हरीश के हाथ में देखे हुए पिस्तौल की याद में बेठे के लिये खरीद दी थी। कभी-कभी यशोदा के मन मैं इच्छा होती कि जाकर शैल से मिल आये। इस भय से कि पति कहीं इस बात से और अधिक नाराज न हो जायें, वह मन मार कर रह जाती। वह पीली पड़ती गई। उसे निश्चय हो गया, अब इसी तरह बिसूर विवर कर वह एक दिन समाप्त हो आयेगी।
अमरनाथ को पर का अपना जीवन दिसाकुल नीरस जान पड़ने लगा। बीम के काम में ही वे अपना सब समय लगा देते ऊपर अब वे दिवा भोजन और सोने के समय के न जाते काम करते समय भी प्रायः फ्राउन्टेन पेन दाँतों में दया कर खिड़की से बाहर देखने लगते हरीश सूट पहने सिगरेट पीते हुए उनकी आँखों के सामने नाच आता 'यह रास फोन है ?' सोचने लगते। उसका यह हँस-हँसकर गायें बनाना, शैल के साथ उसका गाड़ी में बैठकर क्षे जाना सब उन्हें उसके मुड़े हुए बदमाश होने का सुबूत जान पड़ता ।
यशोदा के बारे में वे सोचते कि आठ वरस तक मैंने इसका अंधविश्वास किया। आखिर हरीश से क्या उसका एक ही दिन का परिचय है तब फि
वह उसकी याद में इतनी उदास क्यों रहती है। मैं आठ वर्ष में कुछ न हुआ अपनी ही आँखों के सामने के
और यह एक ही दिन में इतना हो गया अपने आप को अपमानित घोर निजी अनुभव करते। जिस मनुष्य की स्त्री उसे निकम्मा समझे, उस मनुष्य का जीवन भी क्या कभी मशोदा को दरख देने की भावना उनके मन में खाती उसे उसके मायके भेज दें और कभी न बुलायें या घर से निकाल दें। दूसरे आदमियों से दोस्ती करने का मला उसे मिल जाय। अनेक असती स्त्रियों के दगड पाने की बात उन्हें बाद आ जाती। परन्तु इससे भी अन्त में उन्हीं का तो अपमान था। यदि स्त्री अती है तो इसमें स्त्री का जितना अपमान है उससे सौगुना अधिक उसके पति का वे सोचते श्री स्वभाव से ही चंचल होती है। यशोदा तो कभी चंचल दिखाई नहीं दी परन्तु स्त्री का क्या विश्वास १ ली पतन और अनाचार का मूल है, उसका कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। इस प्रकार की बातों पर पहले विश्वास नहीं करते थे परन्तु अब उन्हें मालूम पड़ा कि उनकी ती थी। अब उनकी आँख खुली है और अब उन्होंने दुनियाँ को पहचाना है। स्वयं अनेक सुन्दर स्त्रियों को समय-समय पर देखा था। उनके प्रति उन्होंने आकर्षण भी उनमें पैदा हुआ तो क्या अपने मन को उन्होंने सदा वश में रक्खा। परन्तु बी भी क्या है एक लड़के को देखा, वह कुछ सुन्दर भी नहीं, बातूनी कर है और उसके साथ फँस गई।
कभी अमरनाथ के मन में विचार आता कि जो हुआ सो हुआ वे यशोदा को समायें कि उस लड़के का खयाल छोड़ दे। फिर सोचतेन जाने उनका सम्बन्ध कहाँ तक बढ़ चुका है यदि सम्बन्ध केवल मानसिक हो तो एक बात है और यदि वे श्रागे बढ़ चुके हैं परपुरुष से अपनी स्त्री के शारीरिक सम्बन्ध की बात सोचते ही सिर चकरा कर उनकी आँखों में सून उतर जाता। इसके बाद केवल एक ही बात दिखाई देती "मृत्यु" .....यशोदा की अपनी दोनों की!
हरीश से यशोदा के मानसिक और शारीरिक सम्बन्ध की कल्पना अनेक मेर मस्तिष्क में आने पर वे सोचने लगते कि इन दोनों में से कौन अधिक पाप है तर्क ने उत्तर दिया-मानसिक सम्बंध का क्या है; विचार आते हैं और चले जाते हैं परन्तु शरीर तो एक स्थूल पदार्थ है शरीर के साथ जो कुछ हो गया वह तो मिश्रया नहीं जा सकता। इसके बाद तर्क कहता शरीर का क्या है अनेक पदार्थों को हम छूते है हाथ साफ़ कर डालते हैं। ये हमारे शरीर का अंग तो नहीं बन जाते । मनुष्य है क्या? भावों और
विचारों का तशा ही तो जब भावों और विचारों में परिवर्तन या गया तो वह व्यक्ति पहला व्यक्ति ही नहीं रहा। उसे समाप्त समझ लेना चाहिये ! अकेले में बैठकर मे प्रायः लम्बी साँसें लेते। परन्तु प्रत्यक्ष व्यवहार में साम भर उन्होंने अन्तर न धाने दिया। उन्होंने सोचा क्यों न एक दिन वे यशोदा से इस विषय में बात करें ? परन्तु इसके साथ ही ख्याल आता, क्या वह मुझे सच्ची बात बतायेगी यदि मेरे प्रति उसका यह विश्वास होता तो दूसरे पुरुष के प्रति उसका आकर्षण ही क्यों होता है
अँधेरे में ये दोनों अपने-अपने पलंग पर पड़े छत की ओर लगाये रहते। नींद दोनों को ही बहुत देर से जाती परन्तु ये बात न कर सकते। अनेक बार अमरनाथ के होठों तक बात कर रह जाती। एक दो बेर कह डालने के लिये उन्होंने पुकार भी किया- 'दिलो ! यशोदा ने उत्तर दिया- 'जी' परन्तु फिर अमरनाथ को साहस न हुआ। खोचा बात करने से क्या लाभ टाल गये 'उदय को अब स्कूल में भरती करा देना ठीक होगा।' यशोदा ने उत्तर दिया- 'जैसा ठीक समझे !
X
X
X
किसी भी काम में उस्ताह और द िन होने के कारण यशोदा एक शल छोड़कर खाट पर पड़ी पतंगों से भरे आकाश की और गढ़ा रही थी, आखिर इस जीवन का क्या होगा १ मिशन (नौकर) ने खबर दी- दीदी जी, नीचे एक बीबी जी मिलने आई है
'फोन बीबी जी यशोदा ने आराश्य से लेटे-लेटे पूछा उसे शैल का माया परन्तु उसके आने की कोई सम्भावना न समझ यह अपने दूसरे सम्बन्धियों की बात सोच हो रही थी कि ऊपर आकर शैल ने प्रश्न किया- 'कहो कैसे लेटी हो'
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यशोदा तुरंत उठ बैठी 'ऐसे ही कुछ नहीं । श्रानो !' यशोदा ने आत्मी यता से रोल को चारपाई पर बैठा लिया 'बहुत दिनों में दर्शन दिये। कई दफे सोचा कि तुम्हारे यहां जाऊँ, पर जा नहीं सकी अच्छी हो वह तो दी रहा है, खूब अच्छी हो।" यशोदा से बिलकुल सटकर बैठी शैल ने उत्तर दिया मैं कुछ दिन के लिये पहाड़ चली गई थी। हाँ, तुम्हें वह क्या हुआ तुम तो बिलकुल पीली पड़ गई माया है ' यशोदा को चुप देख उसका हाय अपने हाथ में ले शैल ने अनुरोध किया 'बोको
इस ममता और सहानुभूति
कर शो का निराश हृदय
की राह यह जाना चाहता था परन्तु कृमिम हँसी से उसने उसे रोक लिया अपना हाथ उसके पर रख शेल ने पूछा उस रो कोई बाद तो नहीं हुई, जिस रोज़ तुम नीचे जल लेकर गई थीं
कुछ उत्तर न दे बरोदा सिर नीचे किये मुस्कराने का वल कर रही थी। केनरा दोहराने पर उसने कहा होना क्या था
तुम्हें कैसे मा
ऐसे ही पुरुषों के मन में सन्देह बहुत जल्दी पैदा हो जाता है। रोल ने उत्तर दिया- 'हरीश को बहुत चिन्ता हो रही थी। कई दफे उन्होंने तुमने मिलकर पूछने के लिये कहा परन्तु कुछ ऐसे हमले में रही कि बताओ उस रोज मेरी ही भूत समझो तैयार नहीं थे। एक तरह से मैंने ही उन्हें यहाँ
1
नहीं सकी। हरीश तुम्हारे वहाँ आने को वस्टे के लिये दिया
था और ऊपर से गई तुहाँ तो कोई बात तो नहीं हुई हरीश ने अपना नाम इन्हें ये आर शु बताया था तुमसे इन्होंने बाद में पूछा होगा
एक गहरी साँस ले यशोदा ने कहा
अच्छा तुमने बताया हरीश
फिर
.
"फिर क्या यशोदा ने मुँह किया किया स्वमान ही कह चुकी है पुरुष सन्देह के लिये बहाना हूँ देते फिरते है ?
'म से और कुछ नहीं पूछा
कौन है या समझ गये कि
से यह नहीं पूछा, हरीश हैने चिन्ता से पूछा।
करते हैं। इमेली पर गात रख कर यशोदा
'और उसी गम में तुम्हारा मह हाल हो गया हन तुम्हें कोई
नहीं
ने यही कि एक
नई है
समय से दो इसमें तुम्हारा
ने
उसके
इम
सोने पर यह ही कथा जाता है ?"
इन दुनिया में क्या
मर्द का कहना हँसना ही सब कुछ
और मर्द ज्यादती करे त
लिये अपने आपको ये बात रही हो
ती तो बहिन हो ही रही है परन्तु समझ नहीं आता करूँ तो गये।
क्या यशोदा की आँखों में
उसका हाथ अपनी गोद में ले शेल बोलतो की परवाह मत करो या फिर उन्हें बता दो हरीश कौन है मिठे
१
यशोदा के उपकने लगे, उसने कहा 'ग्राठ बरस से क्या मुझे दे पहचान नहीं सके मैं उन्हें अब एक दिन में क्या समझ दूँ !'' बहाने को कहती हो संदेह और ई ही आग उठी है, जानकर यदि वे नहीं बदला लेने का ही प्यास कर बैठें और बताऊँ क्या तुम्हें पद उन्होंने बताया नहीं, जिस रात जेल से भागे थे, अचानक वहाँ आ गये थे रात भर नीचे के कमरे में छिपे बैठे रहे यदि यह भी बताऊँ तो फिर सियासन्देह बड़ने के और क्या होगा।
मह नई बात सुन शेल चकित रह गई। दशौदा के प्रति भक्ति प्रकट करने के लिये उसका हाथ हृदय पर रख बोलीवहन, वो तो तुम ही हो परन्तु एक बात कहूँगी पुरुषों के सन्देह और मलय नाराज़गी की बहुत परवाह करने से या तो उनके जेब के रुमाल की तरह रहो, स्वयम् सोचना अपने जीवन की बात करना छोड़ दो या फिर उन्हें सोचने दो अपने आप समझ जायेंगे मैंने अपनी बात कम बातें नहीं सुनी तुम्हारी तरह चिन्ता करने लगती तो कमी की मर गई होती परन्तु उत्तमें सचाई कितनी है, यह तो मैं ही जानती हूँ अब तक स्त्रियाँ रही है मद के व्यक्तिगत इस्तेमाल की चीन यदि वे अपने व्यक्तित्व को ज़रा भी अलग से खड़ा करने की पेश करेंगी तो उंगली तो जरूर उठेगी। लेकिन थोड़े दिन बाद नहीं। हिम्मत करो। पुरुषों को सहने का अभ्यास होना चाहिये कि स्त्रियाँ भी अपना व्यक्तित्व रखती हैं जो कोई उन्हें देख लेगा ना लेगा, वे उसी की नहीं हो जायेंगी ! पर से बाहर भी निकलोरा और तर ध्यान दो फिर केवल पुरुष के सन्देह पर ही प्राथ दे देने की इच्छा न रहेगी। वे को समझते हैं, क्या यही ठीक है तुम भी तो कुछ बमको 'करू" क्या' बेशी से यशोदा ने उत्तर दिया।
1
यस यही बेमतलब बालों की पद कम और कुछ क्षय की बात! मालूम तो हो, तुम भी कुछ हो ? मर्द की नाराज़गी के सिवा किसी और बात की मी चिन्ता हो ?' रोल ने हँस दिया।
ओन क्या
ग्राम ही मेरे खाय चतो कार्यक्रम में जनता की श्रार्थिक
हम एक सभा कर रहे है, कि कांग्रेस के माँगों को स्थान दिया जाय मेरे पास एक
माय तिला रखा है। तुम उसे पढ़ देना। पहले एक दो दफे पढ़ लेना। निको नहीं। शुरू ऐसे ही होता है। मैं भी बोलू
ये नव्याने या सम यही तो चाहिए
बैठेंगे 'शोदा ने पकर कहा।
और
दो और बीच में बोलने वाली होगी तो पास की जगह पाँच को आदमी आयेंगे। इसी तरह हमारा काम निकलेगा।
संकोच से मुस्करा कर यशोदा ने कही हो इस आयो को सींचने के लिये इसे से जा रही हो
तुम्हारा नाम थोड़े ही लेंगे। वो तुम्हें देखेंगे तुम उन्हें देख
सेना हमें अपनी बात सुनने से वो दल
मी लगेगा तुम्हारा क्या जागा आखिर कुछ करोगी से परसों जब भी तुम मदों के सामने निकलोगी ने पूरे फिर किया
एक करने
जाय
इन यह तो सेहो न सकेमा ईसर हाथ हिलाते हुए दा ने इनकार किया।
तुम्हें करने भी कहा है
इनसे बहुत डर लगता है
"कुछ चोरी करने तो था नहीं रही हो। उन्हें ठीक करने का नही तरीका है। रोल के लिए करने पर शोदा को उठना पड़ा। इस पर कि वह सभा में बोलेगी कुछ नहीं केवल ती पलेगी अमरनाथ पर पर नहीं। यशोदा की सास से शैल ने स्वयम् कहाँ जी मैं इन्हें किये जा रही
हूँ
यशोदा के साथ जाने के लिये शाही बदल रही थी पर उसका शरीर बीच-बीच में काँप उठता था मानो यह पति के विरुद्ध पोर विद्रोह करने की तैयारी कर रही हो वह करे क्या इस समय मानों उसने
अपनी नाल के प दी थी। चलते समय उसने आदत से साड़ी परख लिया।
यहीं से मावावी बनकर चलो शरीर भनेके लिये है तो इसमें गठरी तो न मनो
नही नेता की बात न मानो वह अपने ही ढंग से बखी।
अपनी विद्रोहाचा पर कदम उठाकर घर की कुल की सीढ़ियों
उत्तर रही थी। उसने देखा शैल की मोटर के ड्राइवर से अमरनाथ लड़े कुछ पूछ रहे हैं। उसे अनुभव हुआ, मानो वह गिर पड़ेगी। उसी समय रोल की निसंकोच आवाज सुनाई दी वह बेडकी से अमरनाथ से कह रही थी- 'भाई साहब, इन्हें जरा लिये जा रही हूँ। खुद आकर छोड़ आऊँगी।"
अमरनाथ के कुछ कह सकने के पहले ही शैल ने यहांदा को मोटर में दिया और खुद उसके साथ बैठ ड्राइवर को गाड़ी चलाने का हुकुम दे, अमरनाथ को 'नमस्ते' कर दी।
यशोदा को जब होश आया तो अनुभव हुआ कि उसकी नाव लंगर हा कर प्रबल धार में मही चली जा रही है; किसी एक दूसरे संसार में, जिसका उसके पहले संचार से कोई सम्बन्ध नहीं अब उसका क्या होगा पीछे लौट चलने का कोई उपाय नहीं" "लौटने की इच्छा भी उसे न थी ।
अपने पर पहुँचकर रोल ने लिखा हुआ भाषण यशोदा को पढ़ने के लिये
दे दिया। जैसे जब के मुख से मृत्युदन्ड का फैसला सुन लेने के बाद छोटे- मोटे कष्टों की ओर अपराधी का ध्यान नहीं जाता, उसी तरह मशोदा एफ सीमा तक अनुभूतिहीन और संग्रहीन हो चुकी थी। दो-तीन के वह भाषण पढ़ने के बाद उसे अनुभव होने लगा कि यह सब बातें सही हैं, उसे वे पहनी ही चाहिये और जब वह पति के सामने दो साहस कर बी आई है तो उसे कुछ करना ही होगा।
सभा में भाषण पढ़ने के लिये यह सड़ी हुई तो अनुभव हो रहा था कि उपस्थित लोगों की धाँले उस पर प्रहार कर रही है परन्तु वह प्रहार उसे सहना ही है। उसने भाषण पढ़ दिया। उसका शरीर और मस्तिष्क इतना विचित था कि अपने मुख से निकले शब्द उसे स्वयम् भी सुनाई दे रहे थे। अपना भाषण पढ़ चुकने के बाद जब वह बैठ गई तब दूसरे व्यक्तियों द्वारा कही जाने वाली बातें उसे समझ आने लगी और व्यक्तियों ने जो उत्तर दिये, वह भी उसे समझ आये उसे अनुभव हुआ कि कुछ और भी कहा जाना चाहिये परन्तु यह उसके समर्थ के बाहर की बात थी। शैल को बिना किसी संकोच के बोलते देख उसे ठोष हुआ कि वह अत्यन्त भयानक अवस्था में नहीं पड़ी है।
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इतना सब कुछ हो जाने के बाद जिस समय शैत यशोदा को उसके घर छोड़ने के लिये गाड़ी में ला रही थी तो उसे जान पड़ा रूपसे बड़ी कठिनाई म सामने आयेगी परन्तु अप तो कठिनाई का सामना करने या बच जाने
काम ही नहीं था। यह दो या हो चुकी थी। अमरनाथ या अधिगेोदा का मन चाह रहा था कि वे उसे सेना करे और यह उन्हें सरे तो उसे ना हो है।
शोदा ने बैठक में पहुँचकर देखा अमरनाथ कुर्सी पर बैठे है मानो वे उठके लोटने की प्रतीक्षा से कर रहे थे। वास्तव में अमरनोदा को रोल के साथ जाते देख विदित हो गये थे। मासेने जा रही है, इस विचार के पोर प्रतिहिंता उनके मन में जाग उठी थी। उनसे रहा न गया। वे महमखास कर देने के लिये शैला के घर पहुँचे। बहुत देर तक कोठी के सामने टहलने के बाद से भीतर गये। दया करने पर मालूम
हुआ कि
एक
गई है।
'में 'वास' में पहुँचे और उन्होंने गोदा को
बाबु पढ़ते हुए देखा।
लोग उन्हें पहचान कर क्या कहेंगे इस विचार से वे तुरन्त लौट आये। पर आकर में सोचने लगे कि अब पशोदा उनसे कितनी दूर पहुँच गई है।
"अपनी अगर उसे
जो काम उनके लिये अत्यन्त कठिन था, उसे भी यह हरीश की उंगलियों के इसारे पर कर रही है और वे स्वयम् कितने आकिंचन है। जुता का यह भाव बदलकर फिर उन्हें को चढ़ाया इस घर में रहना है तो जैसे ही रहना होगा।
यह
पति से बिना कुछ कहे ही परोदा ऊपर किस प्रकार ही जाती होता पति का अपमान विद्रोह और वैमनस्य का एलान पर उसने तो विद्रोह और वैमनस्य किया नहीं। उसने आज सभी काम साइड के किये थे। उसने एक दर्क और साइन किया। पति की ओर देख उसने पूछा- तब से यहाँ बैठे हो ? ऊपर भी गई चतयके जान पढ़ते हो दूध गरम कर दूँ
प्रायः तीन मास बाद मशोदा ने पति से इस तरह बात की थी। अमरनाथ बहुत कुछ कहने के लिए तैयार बैठे थे परन्तु यशदा के पहले इतना अधिक कह जाने से वे नि प गये। फिर पहले करने का मौका अपने हाथ में होने के लिए उन्होंने स्वीकार किया-'अच्छा!"
अपना
जितनी देर तक
पर बैठ
दूध गरम करके लाये अमरनाथ निश्चय से फिर तैयार करने लगे। यशोदा दूध का हिस
से आई। अपनी ता कायम रखने के लिये अमरनाथ ने सिताम की लिपाई पर रख दिया और दोनों हाथों की गुडियाँ बाँधते हुए बोले "तुम कुछ कहना है"
यशोदा इसी समय की प्रतीक्षा कर रही थी उत्तर दिया- 'जी '
बैठ जाओ' अमरनाथ बोले यशोदा नीचे की ओर देखती सामने
बैठ गई।
'तुम कहाँ गई थी ?'
-शैलमासा के साथ एक जलसे में ।'
'यह कैसा अलता था '
-' इन्हीं लोगों ने किया था।'
-
-'हूँ, पहले तो तुम अलसी में नहीं जाती थीं '
जी हाँ अब सोचा है कि जाया करूँ कुछ करूँ। सिर झुकाये ही यशोदा ने उत्तर दिया।
'हूँ, वहाँ वो जे० आर० शुफ्ता हरीश भी प्राया था ?' नज़र से यशोदा के सुख की ओर देख अमरनाथ ने पूछा। ने
कह नहीं सकती ''देखा नहीं । यशोदा ने उत्तर दिया और हृदय में उठता ज्वार रोकने के लिये होठ चबा लिये।
हूँ मैं यह समझता हूँ अमरनाथ ने फिर बढ़ता से हाथों की गुडो बन्द कर कहा स्त्रियों का स्थान घर के भीतर है। एक मर्यादा के भीतर रहने से काम ठीक चलता है। सतौर पर यह सबकी लाला शहर में कितनी बदनाम है, शायद तुम्हें नहीं मालूम "र तो मैं कुछ नहीं कहना चाहता,
परन्तु हमारे समाज का आचार जैसा है, वह मैं जानता हूँ। खियाँ यदि सा जनिक कामों में भाग ले तो उनके बारे में कितनी बातें बनती हैं उनकी ओर कितनी उँगलियाँ उठती हैं, इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये मैं अपनी स्त्री की बाबत ऐसा देखना-सुनना पसन्द नहीं करता।'
अमरनाथ के चुप हो जाने पर यशोदा ने कहा घर के काम के बारे में कोई त्रुटि न हो इस बात का मुझे ध्यान है। शैलवाला को तो मैं बहुत अच्छा समझती हूँ वो तो किसी भी सी पर लोग खामुखाह सन्देह कर सकते है त्रियों पर पुरुषों को सदा ही अविश्वास रहता है। कोई यों ही उँगली उठाये या बातें बनाये तो उसके लिये क्या किया जा सकता है !''''जब मुझे पिताजी ने पढ़ने के लिये भेजना शुरू किया था तब भी कितने ही लोगों ने बातें बनाई थीं। आप पहले कांग्रेस में काम करने वाली स्त्रियों की परांचा करते थे। यदि मुझमें ही कोई खास बात आपने देखी हो वो मुझे बताइये। शेप आप यह चाहें कि दूसरों की स्त्रियाँ कति का काम करें परन्तु मैं न करूँ
तो मुझमें ही कोई दोष है, आप मेरा दोष बताइये । इत तो सभी की एक सी है। यदि आप समझते हैं कि खियों इस विश्वास के योग्य नहीं कि वे पर से बाहर निकल सकें तो घर में ही उनका क्या विश्वास है यदि आपको मुझ पर विश्वास नहीं तो कहिये
का भी यदि अमरनाथ यशोदा पर बन्धन लगाते तो वह बन्धन केवख शारीरिक हो सकते थे। उसका मतलब होता कि उन्होंने स्वीकार कर लिया है। कि उन्हें यसोदा से भय है। वे उसकी आँख में गिर गये हैं। उन्हें अपने ऊपर विश्वास नहीं केवल एक ही राह थी। उन्होंने कहा- नहीं, मेरा वह मतलब नहीं मेरा मतलब इतना था कि सोच हो मेरी और तुम्हारी भाई एक ही बात में है।'
दिनी देर यशोदा उनके सामने बैठी रही उसने अपने होठ काटकर मुखों को रोक रखा। फिर गुसलखाने में वा वह खूब रोई। उसने निश्चय कर लिया कि कदम उठा लेने के बाद वह पीछे नहीं हटेगी वर्ना उसका अ तक का यह काम पापाचरय हो जायगा ।
अमर सोच रहे थे कि क्या हरीश को वाचत उनका सन्देह निराधार ही है। अनेक प्रकार अपने आपको समझाने पर भी उन्हें संतोष न होता । एक बात से इनकार की गुंजाइश न थी कि अब यशोदा के हृदय के केवल एकमात्र स्वामी ने दी नहीं जो हो, अब वह अपने काप को उनके चरणों की धूल न बनाकर स्वयम् मनुष्य बनने की बात सोच रहा है| यसोदा में दोष कुछ पा सकने पर भी अब यशोदा फेमस मात्र उनकी ही वस्तु नहीं रह गई थी। अब मोदा के लिये यही सब कुछ नहीं रह गये थे पर में पैर रखने पर सभा-सोसाइटी और जुलूस में शामिल होनेवाली यशोदा को अपने सुख की खामी समझ उसे पुचकारने की हिम्मत न पाती। उन्हें पता कि मालिक न रहकर एक साधारण मामूली व्यक्ति रह गये है।