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 न्याय !

13 सितम्बर 2023

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दकताल में माज़दूरों की जीत होगई। उत्साहित हो कर दूसरों मिलों और कारखाना के मज़दूरों ने भी मज़दूर समायें बनानी शुरू कर दीं। कई मिलों में और कारखानों के क्वार्टरों में रात्रि पाठशालायें जारी हो गई। रफीक और सुलतान मजदूरों के संगठन में हये ये रोल भी कुरबाप अपने घर में समय बिता रही थी। राम के यहाँ भी वह बन जाती हरीश से मिलना उदना आसान न पान के मेस में उसका रूप और रहन-सहन का ढंग ऐसा बन गया था कि मज समाज में उसका आना जाना कठिन था।

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शैल को शान्ति के दिन बिताते देख उसके पिता की संतुष थे मज़दूर हारे पिता-पुत्री के बीच का भागना समाप्त हो गया। समाप्त होने पर शैल को अपने शरीर में एक आलस्य और शिमला अनुभव होने लगी। इसका कारण भी वह समझ गई। परिणाम की बात सोच कर भय भी कम म जान पड़ा परन्तु उसने निश्चय कर लिया, जो भी हो, इस कठिनाई का प्रवन्ध वह करेगी एक दिन प्रकट हो कर वह उसकी गोद में आ जायगा इस कल्पना से हृदय उमे

समाज समाज क्या है समाज की व्यवस्था का नाम भी

अधिकार भी पा सके

वह इस बात का प्रबन्ध कर दोगी कि कायम रहे और वह अपने जीवन क उसे चिन्ता यी तो इसी बात की

को

अचानक एक दिन समाचार मिला कि हरीश, कृपाराम और पुलिस ने दा २९६ में अल्टर के क्वार्टर से गिरफ्तार कर लिया। पूछने पर मालूम हुआ ३९६ का अर्थ है, डी और कक्ष का माया उनका अपने शरीर की शिमला और मन की अवस्था को भुलाकर उसने वकीलों के यहाँ दो धूप शुरू की अभी से मिलकर कुछ पता से सकने का अवसर पुलिस ने न दिया ।

मैजिस्ट्र ेट के यहाँ मुकदमा पेश होने पर पुलिस के बयान से मालूम हुआ कि जीवाराम मौलानाथ के यहाँ से डकैती में जाने वाले बड़े-बड़े नोट के नम्बर खाते से पुलिस ने नोट कर लिये थे उनमें से एक नोट पकड़ा गया और नोट तुलाने वाले का पीछा कर पुलिस को कपड़ा मिल के १८ नम्बर क्वार्टर के अड्डे का पता चला। क्वार्टर पर छापा मारने पर डेढ़ हजार के नोट और मिले जिनके नम्बर मौलानाथ-जीवाराम के खाते में सही मिल गये। क्वार्टर में कृपाराम, सुलतान और बार गिरफ्तार कर लिये गये और उन पर डकेती धीर लाला जीवाराम की हत्या का मुकदमा चलाया गया। जनता को विश्वास हो गया कि इतालियों ने डकैती के रुपये से ही हताश लड़कर सफलता प्राप्त की है।

शैल और रफीक अभियुक्तों के मुकदमे की सहायता के लिये शहर में दोहते फिरते परन्तु कातिकों और वाकुओं की सहायता के लिये कौन तैयार होता ? शैल ने अपने पिता से सहायता के लिये गिड़गिड़ा कर प्रार्थना की। समय-समय पर कांग्रेस को उन्होंने हज़ारो रुपया चन्दा दिया था परन्तु जब उन्हें निश्चय था कि उन्हीं की अंगो के लोगों पर केदो करके उन्हीं की श्रेणी को नुकसान पहुँचाने के लिये कल्ल और डकैती के बल पर हकवाल सड़ी गई है तो वे इसमें किस प्रकार सहायता देने के लिये तैयार होते बाकु के प्रति शैल की सहानुभूति देख उन्हें इतनी लना और दुख हुआ कि उन्होंने घर से निकलना बन्द कर दिया। उनके मिलने वाले वयोवृद्ध सम्मानित लोग शैल के इस व्यवहार पर उनके सामने शोक प्रकट करते और उन्हें समझा कि तकियों की स्वतंत्रता उन्हें बिगाड़ देती है। लाला ध्यानचन्द ईश्वरभक्त और धर्मात्मा व्यक्ति थे। वे सोचते, अवश्य पिछले जन्म के किसी महापाप के कारण उन्हें वृद्धावस्था में यह अपमान और निरन्तर दुख और चिंता के कारण वे पलंग पर

निन्दा सहनी पड़ रही है। लेट गये।

शैल पिता के दुख और कष्ट का कारण समझती थी। पिता के प्रति उसके हृदय में अगाध अदा और प्रेम था। एक और हरीश के प्रति उसके प्रेम, उसकी वफादारी उसे खींचतो दूसरी बार पिता के प्रति कर्तव्य पिता के लिये लड़की का डाकुओं से सहानुभूति कर उनसे मिलने के लिये अदालत जाना असा था। कई दफ़ उन्होंने उसे पास बैठाकर समझाया कि उस यह व्यवहार उसका भविष्य बिगाड़ देगा। परन्तु शैल के पास केवल एक उत्तर था - " पिता जी ने डाकू नहीं है। वे मनुष्य समाज के लिये एक नये


युग का संदेश लेकर आये है। समाज के कल्याण के लिये ही वे समाज के अत्याचार को सहन कर रहे हैं।'

हुआ रोल को समझाती बेटी तेरी यह हि तेरे पिता के प्राण ले लेगी। शैल को बुआ की बात से रोमांच हो श्राता । जिस पिता ने उसे इस संसार में जन्म दिया, पाल-पोसकर बड़ा किया, उसका उस पर कितना अधि कार है। परन्तु वह क्या करे हरीश और रीक की बातें उसके सामने था जातीं। मनुष्य समाज का कितना बड़ा भाग मौजूदा व्यवस्था के कारण अपनी गोद में लिखते बच्चों का पेट न मर सकने के कारण अपनी आँखों के सामने उन्हें निष्पाप होते देखता है कितने ग़रीब अपनी आँखों के सामने अपने

वृद्ध माता-पिता को इसलिये दम तोड़ते देखते हैं कि वे उनके लिये दवाई की दो खुराकें मुहम्या नहीं कर सकते, क्योंकि वे उनके लिये डाक्टर या बैच को अन्तिम समय पर भी नहीं ला सकते। हरीश का महाक में उसे 'डाकू की बेटी' पुकारना याद आ जाता। वह कहता था तुम्हारे पिता का यह मकान जिसमें सेकड़ो गरीब आदमी गुजारा कर सकते हैं, उनकी यह सालों की सम्पत्ति क्या उनके हाथों की मेहनत है लाखों गरीबों की मेहनत का यह छीना हुआ अंश ही उनकी शक्ति है। आज यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे मकान से मुही भर भाटा उठा ले तो वह चोर है परन्तु तुम्हारे पिता कितनी मिश्रा में और बैंकों में अपनी पत्तियों लगा कर मुनाफा लेते हैं उन्हें मालूम भी नहीं कि उन मिलों में कितने मज़दूर किस प्रकार मेहनत करते हैं उन्हीं मज़दूरों की मेहनत की तो यह कमाई है वो अपना तन भी दौर नहीं सकते, जो अपना पेट भी भर नहीं सकते क्या यह चोरी नहीं तुम्हारे पिता और उनके साथियों ने अपने ज्ञान और सहूलियत के मुताबिक कानून बना लिया है कि उनकी चोरी मुनासिव है और दूसरे को नहीं बदि तुम्हारे पिता का हजारों मज़दूरों की मेहनता का हिस्सा करने प्रबन्ध से छीन लेना न्याय है तो विदेशियों का इस देश को पराधीन रख इसका शोपचा करना अन्याय कैसे है और आज अपने लाभ के लिये समाज की इस व्यवस्था को कायम रखने के लिये वे न्याय और धर्म की पुकार मचाते हैं और दम भरते हैं, हजारों मज़दूरों को रोजी देने का तुम्हारे पिता ठीक उसी तरह इन मज़दूरो

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को लाते है जैसे मुर्गी पालने वाल मुर्गियों को दाना डालकर उन्हें खाने के लिये पालता है। उड़ समय वह इन बातों से चिढ़ जाती थी। अब उसे पह सब सोचकर ग्लानि होने लगती, उसी प्रकार जैसे अस्ची को अपना अपराध सत्य मालूम होने पर लज्जा अनुभव होने लगती हैं।

वह इन विचारों को मस्तिष्क से हटा कर अपने बचपन की बात याद करती जब भी घुटनों टनों तक फ्राक पहने वह खेला करती थी। अब अपनी लदे चोर कपड़ों में धूल भरे वह पिता के गले में डालकर पिता की गोद को अपने पैरों से रौंदा करती थी। शैशव की उस स्मृति से उसकी आँख में आँसू या जाते। आँखों से धुंदली उन आँखों के सामने उसे हरीश की मूर्ति दिखाई देने लगतीं। पुलिस के पहरे में पैरों में बेड़ियां और हथकड़ियाँ पहने उसे अदालत में लाया जाता था केवल यह निश्चय करने के लिए कि किस दिन उसे फाँसी पर लटका देना है। अदालत में चाते ही हरीश की चाँ उसे हूँ देने लगतीं, उससे दृष्टि मिलने पर उसकी आँखें उत्साह से कैसे चमक उठती।

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वह काना में देखती कि एक दिन किस प्रकार हरीश उसके अपने शरीर से उसकी अपनी गोद में प्रकट होकर किलोल करेगा। पड़ोस में था राह में खेलते छोटे-छोटे बच्चों को वेलकर उसकी कल्पना में एक छोटा-सा रूप कूद पड़ता। अपना बचपन, अपने पिता का प्यार उसे भूतकाल की बात दिखाई देती और अपनी गोद में किलकते शिशु पर उसका उछलता हुआ स्नेह भविष्य की राह अपने पिता के वात्सल्य की स्मृति से एक दीर्घ निश्वास लेकर वह कहती, जीवन की क्षा को तो जारी रहना है पीछे की और फिर फिर कर देखने से ही काम नहीं चलेगा, उसके लिए धागे की चोर भी देखना होगा।

मुकद्दमा सुनने के लिये अदालत न जाना उसके लिए सम्भव न था। अपने व्यवहार के कारण पिता को चुपचाप पाँग पर पड़े छोड़कर जाते समय रोज़ दी उसकी खोजों में बाँधा जाते परन्तु वह विवश थी। अभियुक् अदालत में थाते ही नारे लगाते तार के मेहनत करने वालो एक हो । पूँजीवाद का नाश हो समाजवाद की जय हो ' वकीलों ने रोल से कहा, 'यह हरीश को समझा दे कि यह बयान में केवल अपने आपको निर्दोष बतलाये और यह कहे कि बकैती की वार्दात के समय वह किस जगह था १ परन्तु हरीश इस बात पर तुला गा कि अपने बयान में अपने उद्देश्य की बात कड़ेगा। पुलिस के बयान समाप्त हो जाने पर जज ने अभियुक्तों से अपना अयान देने के लिये कहा। अभियुक्तों की ओर से सुलतान ने बयान दिया- लोगों के पास बी के नोट पकड़े गये हैं। अदालत एम

पर डकैती का अपराध लगा रही है। जनता भी हमें डाकू समझ हमसे करेगी। बहुत सम्भव है, पुलिस द्वारा इकडी की गई गवाही के आधार पर

अदालत हमें कत्ल और डाके के अपराध का दोषी करार देकर फाँसी को दे दे। परन्तु यदि सचाई कोई चीज है तो हम दृढतापूर्वक कहते हैं कि हमने डकेती नहीं की। बफेदी में हमारा विश्वास नहीं समाज में प्रति- ष्ठित पूँजीवादी शोषण की निरन्तर डकैती का विरोध करने के लिये हमने अपना जीवन अर्पण कर दिया है। इस अदालत का उद्देश्य है, न्याय करना परन्तु यह स्थान क्या है? कुछ आसायें और व्यवस्थायें पूँजीपति श्रेणी को व्यवस्था ने पूँजीपति मेणी के अधिकारों और शासन को कायम रखने के लिये जारी की है। इस व्यवस्था का जारी रहना ही सरकार और इस अदालत की दृष्टि में न्याय है। इस श्रदा का कर्तव्य है, यह देखना कि हम उस व्यवस्था और आशा के अनुसार चलते है या नहीं। हमारा उद्देश्य उस प्रणाली को बदल देना है इसलिये हम इस अदात की दृष्टि में दोपी है परन्तु हम उसी और के के अपराधी नहीं का दोष लगा रही है कि हमारे पास बती में

यह अदालत हम पर इस बात

छीना गया रुपया पाया गया।

हम अदालत का ध्यान इस बात की ओर दिलाना चाहते है कि प्रायः तीन मात की इक्वाल में इन चार कपना मिलों ने साठ लाख रुपया हानि होने का दावा किया है। यह हानि मिश्री को इसलिये हुई कि मजबूरों की मेहनत से ज्ञान उठाने का अवसर उन्हें नहीं मिला। यह मि कई परत से चलकर करोड़ों पया इन पुरों की मेहनत से पैदा किया गया इन कर चुकी है। हम यह जानना चाहते है कि यह भी किसी डकैती में शामिल किया जायगा या नहीं

अभियुक्त को टीककर जज ने प्रश्न किया जो पा तुम कह रहे हो, उनका इस मुकदमें से क्या सम्पन्न है '

सुलतान ने उत्तर दिया- आपकी नहरों में इस डकेती के

है।

मैं भी डकैती की ही बात कह रहा हूँ। मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि आपके सामने पेश की गई गवाहियों से यह साबित हो चुका है कि इम तीनों अभियुक्त रुपया कमाने या रुपया पटोरने में अपनी जिन्दगी खर्च नहीं कर रहे थे हम अपनी जिन्दगी इस बात के लिये खर्च कर रहे थे कि किसी भी रूप में डकेती न हो सके। हम डकैती का विरोध करने में ही अपनी शक्ति और समय खर्च कर रहे थे। ऐसी अवस्था में भी आप हम पर डकैती का इलज़ाम लगा रहे है क्योंकि पुलिस यह साबित कर रही है कि दूसरे का रूपया हमारे कन्ने में पाया गया है। यह रुपया पुलिस स्वयं हमारे यहाँ लाई थी। मैं अदालत की सेवा में यही अर्ज करना चाहता हूँ कि मज़दूरों

की मेहनत की कमाई को जब आप पूँजीपतियों के कब्जे में देखते हैं तो इसे क्योंकर डकैती नहीं समझते

सरकारी वकील ने अदालत को सम्बोधन कर एतराज़ किया-'माई

अभियुक्त अपनी साई नहीं दे रहा। यह केवल अपने बाग़ी विचारों का प्रचार करने की कोशिश कर रहा है, जिनका मुकदमे की घटनाओं से कोई सम्बन्ध नहीं

सरकारी वकील की और देख सुलतान ने उत्तर दिया आप जानते हैं मैं जो कुछ कह रहा हूँ उस पर तीन व्यक्तियों का मरना जीना निर्भर है। फिर आप मुझे अपनी बात क्यों नहीं कहने देते ?'

सरकारी व हम यहाँ तुम्हारे विचार सुनने के लिये नहीं आये हैं। सुलतान क्या आप समझते हैं, विचारों का मनुष्य के कार्यों से कोई सम्बन्ध नहीं

सरकारी वकील ने अदालत की ओर देखकर कहा मैं इस विषय में अदालत का नियंग चाहता हूँ ।'

जज ने निर्णय दिया श्रमिक जो कुछ कह रहा है, उसका मुकद्दमे की पटना से कोई सम्बन्ध नहीं है। अभियुक्त को पुलिस के गयादों से कुछ जिरह करनी है तो वह कर सकता है।

सुलतान ने कहा, वह पुलिस से जिरह करेगा। सुपरिवेस्ट पुलिस, जिसने अस्तर के मकान पर छापा मार कर अभियुक्तों को गिरफ्तार किया था, अदालत के सामने पेश हुआ।

सुलतान ने अदालत से कहा गवाह शपथ ले, यह जो कुछ करेगा सच करेगा ।' अदालत के हुकुम से सुपरिटेण्डेण्ट ने शपथ ली कि वह ख़ुदा को हाज़िर नाज़िर जानकर जो कुछ कहेगा, सच कहेगा ।

साहन, आपने ख़ुदा को देखा है ?'

सुलतान ने पूछा- सुपरिटेडेट नहीं देखा तो नहीं

ख़ुदा को कौन देख सकता है ?'

सुलतान तो फिर आप पैसे कह सकते है कि खुदा आपके सामने

हाजिर नाजिर है ?'

सरकारी वकील ने खड़े होकर पाना की तंग करने की कोशिश कर रहा है। सवाल जाना चाहिये !

मुलजिम सिर्फ गवाह को

मुकदमे के मुतल्लिक पूछा


जज ने सुलतान की ओर देखकर आशा दो 'हम यहाँ ख़ुदा की हस्ती के बारे में आध्यात्मिक प्रश्नों को हल करने के लिये नहीं बैठे हैं। तुम्हें मुकदमे के सम्बन्ध में जो पूछना है, वह पूछ सकते हो !'

सुलतान ---- जनाब, मैं निहायत अदब से यह अरज करना चाहता हूँ कि जो गवाह शुरू में ही इतना बड़ा फूड बोल सकता है, यह आये सच कैसे बोलेग

जज ने कहा नहीं इसे कूड नहीं कहा जा सकता। अदालत का ऐसा ही कायदा है। और कुछ जिरह करनी हो तो सवाल पूछ सकते हो ।' सुलतान बहुत अच्छा जो हुकुम खाँ साहन, आपने कैसे समझा कि हमारे कब्ज़े में पाया गया रुपया डकैती का है !

रुपया— क्योंकि यह रुपया जीवाराम भोलाराम का है, उन्होंने इन नोटों के नम्बर अपनी रिपोर्ट में दर्ज कराये हैं।'

सुलतान 'लेकिन यह आप

मोताराम के पास आया कहाँ से

उन्हें किसी तरीके से मालूम

बता सकते हैं, हटना रुपया जीवाराम

हो सकता है यह रूपया उनका न हो

गया हो कि हमारे पास फलाने-लाने नम्बर के नोट हैं, आपने कैसे मान लिया कि उनका इतना रूपया छीना गया है तो दूर स मान सकता है कि उनका इतना रूपया गया होगा। ये कपड़े का बहुत बड़ा रोजगार करते है "

सुपरिटेज

-

सुलतान क्या वे कपड़ा इनते है '

सुप नहीं वे बुनते नहीं, कपड़ा जुलाई चुनते हैं।"

सुलतान तो फिर कपड़े के रोजगार का रुपया जुलाहों के पास होना चाहिये, जीवाराम भोला के पास नहीं।'

सुपरिटेवडेण्ट पुलिस सरकारी वकील की ओर देखने लगे।

सुलवान ने कहा आप इभर देखिये, क्या बत साहय से जवाब पूछ रहे हैं '

अदा की तब इस बात विरह अपनी साई देने के लिये अदालत का वक्त खराब करने के

सरकारी वकील ने खड़े होकर कहा की तरफ दिलाना चाहता हूँ कि मुलजिम नहीं बल्कि गवाहों को परेशान करने और लिये कर रहा है। इस मतलब सिर्फ यह है कि उस पर लगाये गये इलजाम. की उसके पास कोई सफाई नहीं।

शुके अफ़सोस है कि तुम अपने पर्वाह न कर सिह अपने उनके लिये मुनासिब जगह

जज ने सुलतान की ओर देखकर कहा- खिलाफ संगीन इलज़ामात और उनके सुनूतों की खयालात का प्रचार करने की कोशिश कर रहे हो

अदालत नहीं है और न इस बात की इजाजत ही अदालत दे सकती है।

अख्तर ने अपनी जगह से बिगड़कर कहा- हुजूर, काँसो पर लटका देना चाहते है तो यों ही लटका दीजिये। अपनी बात भी नहीं कहने देंगे ? जिवह ही क्यों नहीं कर देते ?'

सुलतान ने उसे चुप रहने के लिये इशारा कर कहा 'हमें अफसोस है कि अदालत हमारी सई सुनने के लिये तैयार नहीं जब अदालत हमार विचार नहीं जानना चाहती तो अदालत यह किस प्रकार समझ सकेगी कि डकैती जैसा काम जिसका कि विरोध करने के लिये हम अपना जीवन मशिदान कर रहे है, हम कभी नहीं कर सकते मे और न हमने उसे किया है। हमारा विश्वास है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने परिश्रम के फल पर पू अधिकार होना चाहिए। एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य से, एक श्रेणी द्वारा दूसरी श्रेणी से एक देश द्वारा दूसरे देश से उसके परिश्रम का फल छीन लेना अनुचित है, अन्याय है, अपराध है। यह समाज में निरंतर होनेवाली भयंकर हिंसा और डकैती है। इस हिंसा और शोषण को समाप्त करना ही हमारे जीवन का उद्देश्य रहा है, उसी के लिये हमने प्रयत्न किया है। हिंसा और कैती का अपराध हम पर लगाना अन्याय है। परन्तु इस अदालत से हम न्याय की आशा भी नहीं कर सकते क्योंकि यह अदालत मनुष्यता धोर नैतिकता की दृष्टि से न्याय और अन्याय का विचार नहीं कर सकती। जिन व्यवस्था को अन्याय समककर हम बदलने की चेष्टा कर रहे हैं, उसी व्यवस्था को कायम रखना इस अदालत का कर्तव्य और उद्देश्य है। इसलिये इस अदा- त की दृष्टि में हम अपराधी होगें परन्तु जी न्याय मनुष्य मात्र को एक समान समझता है और जो न्याय प्रत्येक मनुष्य की उसके परिश्रम पर अधिकार देकर दूसरे के परिश्रम को छीनने का अधिकार नहीं देता, उस न्याय की दृष्टि में हम निर्दोष हैं। हमें पूर्ण विश्वास है कि न्याय की यह धारणा जो कुछ व्यक्तियों के ऐशो आराम के अधिकारों की रक्षा के लिये ६६.९ फ़ीसदी जनता को जीवन के अधिकारों और साधना से बंचित कर देती है, एक दिन बदलेगी और हमारा बलिदान इस प्रथम में सहायक होगा ।'

जज ने अदालत मस्त करते हुए फैसला सुनाने के लिये तारीख निश्चित कर दी।


सुलतान के बयानों से शहर में सनसनी फैल गई थी इसलिये फैसला चुनने के लिये अदालत में काफी भीड़ जमा हो गई। शैल का चेहरा भय और आशंका से पीला पड़ गया था। यशोदा और अख्तर की बीबी मी उस रोज अक्षत आई थी। शैल उन्हें साथ लिये एक और बैठी थी।

ती

अदालत का निर्णन क्या होगा, इस विषय में सन्देह न था परन्तु फिर भोजन के मुख से फैसला सुनने के लिये लोग उत्सुक थे। जब ने पुलिस की गायिका कि कर उन्हें पूर्णतः विश्वास योग्य बताते हुए कहा- अभियुक्तों के डकैती और का अपराधी होने में शंका की कोई गुंजाइश नहीं। विद्वान सरकारी वकील के कपनासार अभियुक्तों ने गवादियों के प्रवा सुबूतों को देखकर अपनी खाई देने की मी कोई चेटा नहीं की बजाय इसके उन्होंने समाज की व्यवस्था के प्रति विद्रोह के विचारों का ही प्रचार करने की कोशिश की है। बजाय यह सात करने के कि उन्होंने अपराध नहीं किया श्रमिकों ने अदालत को यह समझाने की कोशिश की कि उनका करना समाज हित का काम था। ऐसी अवस्था में यह आशा करने की भी कोई गुंजाइश नहीं रह जाती कि जवानी को बेसमझी या विशेष परिस्थितियों के कारण अभियुक्तों से यह एक अपराध हो गया है और जीवन में अवसर मिलने पर वे शान्त नागरिकों का जीवन बिता सकेंगे। इसके विपरीत अभियुक्तों ने अपने घृणित कार्य को शहादत का रंग देने का प्रयक्ष किया है जो उनके अपराध की गम्भीरता को घटाने की अपेक्षा बढ़ा देता है। ऐसी अवस्था में अभि के विद्वान वकील की इस प्रार्थना को, की अदालत अभियुक्तों को जवान उम्र और उनके पहले कभी ऐसे अपराध में भाग न लेने पर विचारकर उन्हें कम-से-कम इस दे, स्वीकार करने में असमर्थ है। जय अपराध के परिस्थितियों और आकस्मिक घटना के कारण न होकर विचार और मनन से किया जाता है तो उसकी गम्भीरता बहुत बढ़ जाती है। इसलिये। अदालत न्याय और व्यवस्था के प्रति अपने कर्तव्य को समझ अभियुक्तों को डकैती और कल के अपराध में दफ़ा २६६ के अनुसार निश्चित रूप अपराधी पाकर इस धारा के लिये पूर्ण दगड, फाँसी की सज़ा देती है।"

अभियुक्त मानों इसी फैसले की प्रतीक्षा में थे। उन्होंने नारा लगाया:- 'इनकाय जिन्दाबाद! दुनिया के मेहनत करने वाले ब्रिन्दाबाद | साम्राज्य- बाद का नाश हो। संसार से शोप का नारा हो ।'

जय के अन्तिम शब्द सुन शैल पत्थर की मूर्ति की तरह बैठी रह गई। अस्तर की बीवी के जोर से रो उठने की आवाज़ से उसे चेतना हुई। यशोदा

भगवान का नाम जपती हुई अपनी सहानुभूति और करुणा का हाथ उसके पीठ पर रक्खे थी।

बात हो चुकी थी। वकील अख्तर की बीवी को बाँह से पकद एक बार अस्तर से मिला देने के लिये जा रहे थे। शैल और यशोदा भी उसके साथ-साथ गई।

की

अभियुक्त पुलिस के घेरे में खड़े नारे लगा रहे थे। गोला ने देखा, सुलतान उसी को प्रतीक्षा कर रही थी। अस्तर की बीबी अस्तर के पाँच पर गिर कर रो उठी। यशोदा सुलतान में हरीश को पहचानने का यक्ष कर रही थी। यह केवल उसकी आँख को पहचान की। उसकी आँखों में आ गये।

हरीश ने यशोदा की ओर देख मुस्कराकर कहा- 'उस दिन वो आपने मृत्यु से बचा लिया था परन्तु कहिये आज भगवान कहाँ है।' यशोदा ने नेत्र पो उत्तर दिया- 'वेदी मालिक हैं।"

हरीश ने शैता की पथराई हुई आँखो की ओर वेल मुस्कराकर कहा--- चार शैल? तुम पराओगी तुम्हीं पर तो सब जिम्मेवारी छोड़कर हम लोग जा रहे है। दादा को प्यार कहना और सहायता के लिये धन्यवाद देना अख्तर ने रोल को सम्बोधन कर अपनी का हाथ थमाते हुए कहा- बहन इस पागल को संभालना !

शेल अस्तर की बीवी को वैभाल रही थी। उसी समय पुलिस ने अभि- "युक्तों को जेल की लारी में बन्द कर दिया। और लारी अदालत के अहाते से बाहर निकल गई । अस्तर की भी अब भी अपने बाल नोचते हुए पुकार रही थी- अल्लाह,

यशोदा कह रही थी 'भगवान की इच्छा प्रबल है मनुष्य के किये क्या हो सकता है!' और रोल निस्सहाय क्रोम में पका रही थी— 'भगवान के दरबार में भी जबरस्तों का ही बोलबाला है........

यशोदा ने रोल को पागलपन की सी अवस्था में किसी प्रकार पर

पहुँचाया।

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रचनाएँ
दादा कामरेड
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दादा कामरेड पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। इसे हिंदी साहित्य में एक अग्रणी राजनीतिक उपन्यास माना जाता है। उपन्यास अर्ध-आत्मकथात्मक है, और हरीश नाम के एक युवक की कहानी कहता है जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो जाता है। उपन्यास स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है, और क्रांतिकारी संघर्ष के शक्तिशाली और मार्मिक चित्रण के लिए इसकी प्रशंसा की गई है। यह उपन्यास 20वीं सदी की शुरुआत पर आधारित है और इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में हरीश के बचपन से होती है। हरीश एक प्रतिभाशाली और जिज्ञासु लड़का है, और वह स्वतंत्रता और समानता के उन विचारों की ओर आकर्षित होता है जो उसने अपने पिता, एक गांधीवादी राष्ट्रवादी से सुने थे। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, हरीश स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गया और अंततः उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। जेल में, हरीश की मुलाकात अनुभवी क्रांतिकारी दादा से होती है, जो उसके गुरु बन जाते हैं। दादा हरीश को वर्ग संघर्ष के महत्व के बारे में सिखाते हैं, और वह हरीश को एक बेहतर दुनिया के लिए संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित करते हैं। जेल से रिहा होने के बाद, हरीश एक पूर्णकालिक क्रांतिकारी बन गया, और उसने अपना जीवन स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के संघर्ष में समर्पित कर दिया। दादा कामरेड एक शक्तिशाली और मार्मिक उपन्यास है जो स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है। यह उपन्यास हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है और क्रांतिकारी संघर्ष के यथार्थवादी चित्रण के लिए इसकी सराहना की गई है।
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 दुविधा की रात

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 मज़दूर का घर

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मनुष्य

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 दिन-रात और अगले दिन संध्या तक बरफ गिरती रहने के बाद रात में बादल पढ़ कर उस पर पाला पड़ गया। सुबह से स्वच्छ नीले आकाश में सूर्य चमक रहा था। नीचे विछे अनंत श्वेत से प्रतिबिम्बत धूप की कई गुणा मढ़ी

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गृहस्थ

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 ० आर०' और 'हरीश' वह दो नाम अमरनाथ के मस्तिष्क में बारी-बारी से चमकते अपनी शक्ति पर सन्देह करने की कोई गुंजाइश न थी "ठीक बाद था ठीक उसने अपना नाम ० कारखाना और पद उसका नाम बताती है, 'परी' ये सोचते

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 पहेली

13 सितम्बर 2023
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 मंग के सामने कुराड़ी में बेत के काउच पर राबर्ट और शैल बैठे दुबे थे। राबर्ट के एक हाथ में सिगरेट था और दूसरे हाथ में एक पर अनेक दिन के बाद प्रतोरा का पत्र आया था राम पत्र पढ़कर रोल को सुना रहा था-

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 सुलतान १

13 सितम्बर 2023
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पंजाब-मिल, सितारा-मिल, डाल्टन मिल आदि कपड़ा मिलों में डेढ़ मास ताल जारी थी। हड़ताल समाप्त होने के आसार नज़र न आते थे। जून की गरमी में जब लू धूल उड़ा-उड़ा कर राह चलने वालों के चेहरे झुलसा देती थी राबर्

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दादा

13 सितम्बर 2023
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 लाहौर की बड़ी नहर के दाँवे किनारे की सड़क पर दादा साइकल पर चले जा रहे थे। उनसे प्रायः बीस क़दम पीछे-पीछे दूसरी साइकल पर श्रा रहा था जीवन । माडलटाउन जाने वाला पुल लाँघ वे नहर के दूसरे किनारे हो गय

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 न्याय !

13 सितम्बर 2023
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 दकताल में माज़दूरों की जीत होगई। उत्साहित हो कर दूसरों मिलों और कारखाना के मज़दूरों ने भी मज़दूर समायें बनानी शुरू कर दीं। कई मिलों में और कारखानों के क्वार्टरों में रात्रि पाठशालायें जारी हो गई।

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 दादा और कामरेड

13 सितम्बर 2023
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 अदालत से लोड कर शैक्ष ज्वर में पलंग पर लेट गई। ज्वर मूर्छा में परिणित हो गया। उसे कुछ देर के लिये होश आता तो वह अपने इधर-उधर देख कर कुछ सोचने लगती और फिर बेहोश हो जाती। मुआजी उसके सिराहने बैठीं ब

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