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 सुलतान १

13 सितम्बर 2023

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पंजाब-मिल, सितारा-मिल, डाल्टन मिल आदि कपड़ा मिलों में डेढ़ मास ताल जारी थी। हड़ताल समाप्त होने के आसार नज़र न आते थे। जून की गरमी में जब लू धूल उड़ा-उड़ा कर राह चलने वालों के चेहरे झुलसा देती थी राबर्ट, रफीक, शैक्ष और उनके साथी सुबह-शाम लाहौर की गतियां में जुलूस निकालते और मोरी गेट के बाहर जा कर के हस्ताक्षियों के साथ सहानुभूति के प्रस्ताव पास कराते नैनसी और यशोदा भी उनका साथ देतीं। इड़तालियों के बाल-पथों के कई-कई दिन भूले होने के चित्र जनता के सामने सींचे जाते हड़तालियों का पेट भरने के लिये चन्दा इका किया जाता। बाज़ार कर्मचारी संघ के बहुत से नौजवान और कालिजों के विद्यार्थी भी इकतालियों की मदद के लिये इनके साथ फिरते। जनता की सहानुभूति प्रायः इनके साथ थीं। कांग्रेस की ओर से मी अनेक जलसे बता- लियों की सहानुभूति में किये गये परन्तु मालिक न विषले रावर्ट हड़ताल कमेटी की ओर से मालिकों से लिखा पढ़ी कर रहा था। कोई फल निकलता दिखाई न देता था। मिलों के फाटकों पर लगातार धरना दिया जा रहा था। सुलतान कपड़ा कर्मचारी कमेटी का सेक्रेटरी था। वह दिन भर उस मिल से उस मिल साइकल पर चकर लगाता रहता। मिल मालिकों ने जानवरों की मार्फत एक हज़ार के करीब नये मज़दूर अमृतसर, धारीवाल, कानपुर-नागपुर आदि से मँगा लिये थे। वे मिलों में काम पर जाने के लिये तैयार थे। ऊँची मज़दूरी के पाने वाले मिस्त्री वगैरा भी काम पर जाना चाहते थे परन्तु पुराने मज दूर मिल के दरवाज़ों के सामने दूर-दूर तक लेटकर उन्हें भीतर जाने से रोके रहते। चार- चार पर मिलों के सामने लेटने के बाद इक्ताशी मज़दूरों की ब्यूटी बदलती। किराये पर लाये गये मजदूर लेटे हुए मज़दूरों के शरीर पर पैर रख कर भीतर जाने की कोशिश करते। इससे झगड़ा हो जाता। पुलिस को लाठी चार्ज

करनी पड़ती। कई मजदूरी को जेल भेज दिया गया। उनकी जगह भरना देने के लिये दूसरे मज़दूर आ गये। भगड़ा चल रहा था।

कपड़ा मज़दूर कमेटी कहती थी। मजदूर अपनी माँगों से एक क़दम भी पीछे नहीं हट सकते । जितने मज़दूरों को मन्दी के बहाने निकाला गया है, उन्हें मिलों में काम देना होगा मज़दूरी में किसी प्रकार की कमी वे बरदाश्त नहीं कर सकते। मजदूरी के समय के साथ तरकी की दर मुकर्रर होनी चाहिये? किसी मज़दूर को सजा देनी हो तो मज़दूरों की 'आय-पंचायत' में उसका फैसला करना होगा। मालिक यह शर्ते स्वीकार करने के लिये तैयार न थे।

मालिकों का कहना था कि मिलें उनकी मिल्कियत हैं, मजदूरों की नहीं । उनकी शर्तें जिन मज़दूरों को मंजूर नहीं, वे काम न करें। दूसरे मज़दूरों को काम से रोकने का उन्हें क्या अधिकार सुलतान, रफीक और कृपाराम प्रत्येक मिल के दरवाज़े पर दिन में दो दो बार लेक्चर देते। उनके लेक्चरों की रिपोर्ट पुलिस लेती। उनके लेक्चर होते थे मजदूर माइयो | यह मिले तुम्हारे और तुम्हारे भाइयों की मेहनत से बनी हैं। तुम्हारे बिना यह मिलें एक सेकम भी नहीं चल सकतीं। इनसे धागे का एक तार भी तैयार नहीं हो सकता। तुम्हारी मेहनत की कमाई से मिलों के मालिक और हिस्सेदार बैठ- बैठे संसार के सब सुख लूटते हैं और तुम सब कुछ पैदा करके भी पेट मर अनाज नहीं पा सकते। मंदी का बहाना कर आज तुम में से कुछ को निकाला जा रहा है। कल तुम्हें निकाल दिया जायगा और तुम्हारी जगह सस्ती मजदूरो पर दूसरे मज़दूर मरती कर लिये जायेंगे जब तुम्हारे सैकड़ों भाई बेकार हो जायेंगे तो वे रोटी कपड़ा कहाँ से खरीदेंगे खरीदने वाले न होने से फिर और मंदी होगी और तुम्हें निकालने का बहाना बनेगा। तुम्हारी ही मेहनत काट-काटकर पूँजी तैयार की जाती है और नई मि लोकर तुम् पर लगाया जाता है और तुम्हारा खून चूसा जाता है। यद्यपि यह मिलें मजदूर भाइयों की ही मेहनत से तैयार की गई हैं परन्तु मजदूर मिलों का सब मुनाफा नहीं माँगते। उनका कहना है कि तेज़ी के समय उनकी मेहनत से जो लाभ उठाया गया था, वह कहाँ गया ? मन्दी के समय मालिकों के मुनाफ में कमी की जाय। उनके पास गुज़ारे के लिये कमी नहीं। मज़दूरों पर, जिनके पेट पहले ही खाली है, जुल्म न किया जाय ? मज़दूर भाइयो, इम सूखी रोटी के निवाले माँग रहे हैं और मालिक लोग अ| पनी देशो-इशरत के लिये जिद कर रहे हैं। हम मर जायेंगे परन्तु पीछे नहीं हटेंगे |

कहा यहीं जाता था कि मज़दूर डटे हुए हैं परन्तु मजदूर कार्यकर्ता भीतरी

मेद जानते थे। ये मज़दूरों के पांच उलड़ने के भय से कांप रहे थे। मज़दूरी के बेकार हो जाने से उन्हें उधार भी न मिलता था। तीन-तीन दिन के भूखे मज़दूर आकर सुलतान, कृपाराम और रफीक के आगे रोते– 'हम क्या करें तुमने हमारा वेळा गरक कर दिया ।' स्वयम् सेवक भोलियों में चंदा और आय माँग-मांगकर लाते। उससे एक लंगर चलाया गया। कुछ मज़दूरों को आया जाता और कुछ को चना चबेना। दिन भर धूप में घूमने से कई बजे सुलतान की नाक से खून बहने लगता। केवल चने और पानी पर रहने से उसे पेचिश हो गई परन्तु वह फिर भी साइकल पर भूत की तरह चकार लगाता रहता। कोई और उपाय न देख कर राबर्ट ने अपने मकान की जमानत पर रुपया उधार लेकर दिया परन्तु मालिक टस से मस न हुए । मालिक राबर्ट को विश्वास दिलाते थे कि मजदूर बिना शर्त हस्ताल समाप्त कर दें तो उनके साथ सख्ती न की जायगी परन्तु रफीक, कृपाराम और सुलतान इसके लिये तैयार न थे।

शनैः शनैः इहवाल विरोधी प्रदर्शन भी होने लगे। हड़तालियों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने और उनकी सहायता के लिये चन्दा एकत्र करने के लिये जो समायें की जातीं, उनमें मश्न और शंका करने वाले खड़े हो जाते। कुछ लोग कहने लगे कि यह कम्युनिस्टों का यंत्र है जो इस्तानियो को भड़का रहे हैं। भला कहीं नौकर मालिक बन सकते हैं। कुछ ने कहा कि यह कांग्रेस की शक्ति को कमजोर कर मुकाबले में संगठन कायम करने को तैयारियाँ है। कुछ ने कहा कि देश के उद्योग-धन्दे को चक्का पहुँचाना राष्ट्रीय आत्महत्या है। मालिकों की ओर से मिल के क्वाटरों में रामायण की कथा शुरू की गई जिसमें बताया जाता था कि मालिक का नमक लाकर उसका विरोध करना पाप है कुछ मोची भी कहते कि ख़ुदा की कुदरत के खिलाफ जाने वाले ये हड़ताली रूसियों के एजेण्ट हैं। इनकी बात सुनना गुनाह है। हड़ताल के कंटों की वजह से रोल को घर लौटने में प्रायः देर हो जाती। उसके पिता उसकी प्रतीक्षा में बैठे रहते। पिता को इस प्रकार अपनी प्रतीक्षा में बैठे देख वह शरम से मर जाती परन्तु बेवस मो, देर हो ही जाती। इसमें उसका कुछ बस न था। वे कई दफे उसे समझा चुके थे कि इस मामले में उसका उलझना ठीक नहीं यह यह नो जानती थी कि उसके पिता की सहानुभूति तालियां के साथ नहीं है। स्वभाव से दयालु और न्यायप्रिय होते हुये भी उनकी सहानुभूति मालिकां के साथ ही थी। इसका कारण केवल यही नहीं था कि वे स्वयम् 'पंजाब कपड़ा मिल' के डाइरेक्टर में बल्कि मज़दूरों

की माँग को वे अन्याय समझते थे। एक दिन रोल ने पिता से कुछ रुपयों के लिये ज़िक्र किया। वे समझ गये कि शैल रुपया किस लिये चाहती है। उस समय उन्होंने केवल इतना कहा इस विषय में फिर बात करूँगा !' पिता को अपनी प्रतीक्षा में बैठे देख संकोच से शैल ने कहा- 'पिताजी, आप आराम कीजिये । आपको मेरे कारण बहुत कष्ट होता है परन्तु मैं कुछ ऐसे हीट में फँस गई हूँ कल से कोशिश करूँ ग्रो कि समय पर लौट आऊँ।'

पिता ने समझाया- बेटा, तुम अपना खाना मँगा तो तुम खाना खाओ मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूँ तुमने रूपये के लिये कहा था। तुम्हें रुपया जिस काम के लिये चाहिए, वह मैं समझता हूँ मज़दूरों के प्रति तुम्हारी सहानुभूति को भी मैं समझता हूँ। यह भी मैं जानता हूँ कि ये लोग बहुत कष्ट उठा रहे है। परन्तु बेटा, जिस प्रकार तुम उनकी सहायता करना चाहती हो, उस तरह उनकी सहायता नहीं हो सकती। मैंने कभी तुम्हारे विचारों पर बन्धन नहीं लगाया मेरे लिये बेटा या बेटी सभी कुछ तुम्हीं हो। तुम्हारे मानसिक विकास पर कोई रोक लगाना मैंने उचित नहीं समझा परन्तु बेटा, इस मामले में तुम भूल कर रही हो। इस मामले में मज़दूर अन्याय और गलत राह पर हैं। इस मार्ग पर चलने में यदि तुम उनकी सहायता करोगी तो वे

मार्ग

पर और आगे बढ़ेंगे और इससे अपना और समाज का नुकसान करेंगे। समाज एक फ़ायदे पर चल रहा है। जिस प्रकार शरीर के अंगों के अलग-अलग स्थान और काम हैं, उसी प्रकार समाज में भी मनुष्यों के स्थान, कर्तव्य और अधिकार अलग अलग है। हवास करने वाले मजदूर आज मालिक बन बैठना चाहते हैं परन्तु तुम सोचो, जिन लोगों ने अपनी पीढ़ियों को कमाई लगाकर इन मिलों को तैयार किया है, उनका क्या कुछ अधिकार नहीं इन मिलों को लाने वाले मिलों के कितने हिस्सेदारों के प्रति जिम्मेदार हैं जनता के प्रति उनकी कितनी जिम्मेदारी है। देश के सारे आर्थिक प्रबन्ध को कुछ चुने हुए पूँजीपति ही चलाते है। उनकी जिम्मेदारी को तुम समझ सकती हो। उन्हें एक व्यापार का दूसरे व्यापार से सम्बन्ध देखना पड़ता है, पैदावार का बाज़ार से मिलान करना पड़ता है। एक मजदूर को सिवा अपना पेट भरने के कोई जिम्मेदारी नहीं तुम सम्पूर्ण समाज की व्यवस्था को चलाने की जिम्मेवारी उनके साथ देने के लिये तैयार हो ...........

परन्तु उनकी मेहनत का फल उनसे छीनकर आप यदि जिम्मेवारी अपने हाथ में ले लें तो मंजदूर क्या करें ? उन्हें भी तो अपने प्राण बचाने हैं।'- शैल ने प्रश्न किया ।

बेटा अधिकार और जिम्मेवारी एक दिन में बीनकर नहीं दी जाती। वह तिल-तिल कर जोड़ी जाती हैं और फिर उसकी रक्षा करनी होती है। जो लोग आज मालिक है, वे एक दिन में मालिक नहीं बन बैठे एक प्रकार से यह उनकी श्रेणी की विरासत है और उनका यह कर्तव्य है कि भविष्य के लिये इस विरासत को अपनी सन्तान और श्रेणी के लिये सुरक्षित रखें। यदि इस स्थिति में न होता तो, क्या तुम्हारी शिक्षा का इस प्रकार प्रबन्ध कर सकता जिन धर्मार्थ कार्यों को मैं चला रहा हूँ, क्या उन्हें चला पाता हम लोग इस अवस्था में आज इसीलिये है कि आर्थिक अवस्था की चाबी हमारे हाथ में है। खाज मज़दूर अपनी मजदूरी स्वयम् निश्चित कर यह चाबी हमसे छीनने का यत्न कर रहे हैं। इसका अर्थ होगा कि समाज के धन का, समाज में पैदा होनेवाली वस्तुओं का बंटवारा मज़दूरों की इच्छा के अनुसार हो। ऐसी अवस्था में हमारी अशी की क्या स्थिति होगी यह एक आना या दो आना मज़दूरी बढ़ाने का सवाल नहीं। यह समाज की व्यवस्था की चाबी एक श्रेणी के हाथ से दूसरी श्रेणी के हाथ में चले जाने का सवाल है। इसमें दया 1 और सहानुभूति का ख्याल नहीं। तुम सोचकर देखो यह जीवन-मृत्यु का सपा है। हमारी श्रेणी जो अब तक समाज का नियंत्रण करती जा रही है, उसके मरने- जीने का । यह सवाल है, समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी का । समाज की यह व्यवस्था इमने सकी की है। मज़दूरों का स्वेच्छाचार समाज को और स्वयं उन्हें भी नए कर देगा। व्यक्तिगत रूप से मैं बूढ़ा हो गया हूँ, कुछ बरस का मेहमान हूँ परन्तु अपनी श्रेणी के अधिकार पर मज़दूरों के इस आक्रमण का सामना यदि मैं दृढ़ता से नहीं करता तो मैं अपनी श्रेणी के साथ और आनेवाली सन्तान के साथ, तुम्हारे साथ धोखा करता हूँ। मेय, दान और दया एक बात है और अपनी जड़ काट लेना दूसरी बात है। बेटा, मैंने तुम्हें सदा स्वतंत्रता दी है क्योंकि तुम्हें अपना मार्ग खुद निश्चित करना है। इस पर की जो कुछ सम्पत्ति है तुम्हारी है परन्तु तुम्हें अपने प्रति और समाज के प्रति अपने कर्तव्य को सममता चाहिये। मैं तुम्हारे हृदय की कोमलता और दया की मापना की सराहना करता हूँ। तुम्हारे हृदय में दया देख मुझे सुख होता है। परन्तु यह दवा नहीं; यह अपनी हस्ती नियना है। साधनहीन होकर तुम दया भी न कर सकोगी। मैं या तुम व्यक्तिगत त्याग पर सकते है परन्तु अपनी भैयो और समाज के प्रति विश्वासघात नहीं कर सकते । तुम चाहो तो मैं दस-बीस हजार रूपया इन मजदूरों के बच्चों की पाठशाला या अस्पताल के लिये दे सकता हूँ परन्तु यह हक्ताल तो युद्ध है।

अपने कष्ट स्वयं मज़दूरों ने खड़े किये हैं, हमें मिटा देने के लिये। जिस प्रकार देश के प्रति कर्तव्य है, उसी प्रकार अपनी श्रेणी के प्रति भी हमारा एक कर्तव्य है........

शैल के सामने भोजन की थाली रक्खी थी, रोटी के कई ग्रास तोक उसने कटोरियों में डाल दिये ताकि पिता यह न समझें कि वह खा नहीं रही परन्तु

एक भी ग्रास निगलना उसके लिये सम्भव न या । हाथ

धोकर वह पलंग पर

जा लेटी हरीश का सुलतान के मेस में रूप, जो कई दिन से वह देख रही थी, दाढ़ी मूंछ बढ़ाये, फटे कपड़े पहने, बीमारी में चेहरे की हड्डियाँ निकाले, लाल तुर्की टोपी सिर पर रखे उसकी आँखों के सामने आ रहा था-'तुम कुछ नहीं कर सकोगी रोल क्या हम हार जायेंगे '

शेत खूप रोई जब तकिया आँसु से भीग गया, उसने उसे पलट दिया। हरीश से कल वह क्या कहेगी ? उसने सारी रात रो-रो कर गुज़ार दी। यदि कहीं से वह कुछ रुपया ला सकती तो शायद हरीश को कुछ शांति दे सकती। कई दफ़ उसे ख़याल आया कि अब इस घर में रहना उसके लिये धिकार है। सुबह उठ नहाने के बाद जलपान किये बिना ही यह राबर्ट के यहाँ जाने के लिये तैयार है। गई। अने के सामने जा कर उसने देखा कि रात भर रोने से उसकी आँखें सूकर सु हो गई हैं। ऐसी आँखें ले वह बाहर किस प्रकार जाये । उसने धूप की ऐनक लगा ली। उसे फाटक के बाहर जाते देख ड्राइवर ने मुखानी माँगने के लिये कहा 'बीबी जी, अभी दो मिनिट में आता हूँ?'

'गाड़ी नहीं चाहिये !'

ड्राइवर को उत्तर मिला शैल पैदल ही चली। उसने

सोचा कि धागे टाँगा है लेगी परन्तु टाँगे

वाले को दाम कैसे देगी अपना बटुआ भी तो नहीं लाई। उसमें जो दो चार रुपये थे, वे पिता जी की सम्पत्ति थे। खैर, सवारी के दाम ही दे देगा । X

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X

से

छोड़कर रावर्ट हन्ताल के ही

भरी लू की आँधी में मोटर पर जवानी के प्रारम्भ में ईसाइयत उसके भीतर से उठा था परन्तु

लगभग दो महीने से और सब काम कंट में फंसा था। उसका दिन भर धूल या पैदल सड़कों के चक्कर काटते बीत जाता के प्रचार का जो जो उसे था, वह स्वयम् यह मजदूरों का राज्य कामय करने का जिहाद उस पर जबरदस्ती खादा गया था। जवानी के आरम्भ में निष्ठा और जोश से कर्मक्षेत्र में उत्तर, संसार

यह स ढंग, और विनोद मानो कहानी हो गये। गये

जीवनक्रम की बात और अपने वे सब समान साथीकहाँ

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गप सुबह बिस्तर से उड़ सिगरेट जलाकर बरामदे में ला चाय की प्याली की प्रतीक्षा कर रहा था। उसे उठते ही एक प्याली चाय लेने की यादत थी। शेल को इतने सुबह आते देख उन्ने आश्चर्य से पूछा सुबह कैसे रियत तो है '

उसके पलंग के पास ही पही कुर्सी पर बैठ रोल ने उत्तर दिया- 'इस इक्ता के मारे खैरियत कहाँ

"ठीक है तुम्हारा कहना मैं भी तंग आ गया है। बहुत भर पाया में स्वयम् ही आज तुमसे कहने वाला यह सुनकर शैल स्तब्ध रह गई। आँखों से ऐनक उतार उसने पूछा-रूबी, क्या कह रहे हो ?

शैल की ओर नज़र बिना किये, जम्हाई लेकर अपनी बालों से भरी माँ को आलस्य से बुलाते हुए उसने कहा मेरे सामर्थ्य की हद झा गई रफीक और हाँ लतान मानते नहीं। जहाँ तक मुझने बना, किया अ नहीं होता।"

चाय आ गई थी। 'तुम भी एक कप लोगी ? या हाथ में से उसने शैल की ओर देखा-'अरे, यह तुम्हारी आँखों को क्या हुआ "

कुछ नहीं, लों में गर्द पड़ गईरो ने उत्तर दिया। गय की बात से वह इतना पथरा गई थी कि अपने असमर्थ होकर रोने की बात कहने का साहस न हुआ सामर्थ्य की हद हो जाने की बात क्या

रहेन ने पूछा।

यही मैं शुरू से इस हताश के पत में न था परन्तु तुमने और हरीश ने उसमें फैला दिया तो निमाना पड़ा। अधिकाधिक मैं इतना करत हूँ कि डाइरेक्टर लोग मज़दूरों के बिना शर्त हड़ताल खतम कर देने पर उनकी माँगों पर सहानुभूति से विचार करें। मैं मानता है, यह हमारी जीत नहीं परन्तु हम जीत सकते भी नहीं। यदि मजदूरों में जीतने लायक शह हो तो हस्ताक्ष किये बिना भी सफल हो जाये। जनता कुछ सहायता दे नहीं रही, देगी भी नहीं। अब वे लोग बिजली पर और पानी में टकराने

की धमकी दे रहे हैं। इससे सरकार भी इन्हें अच्छी तरह पीसेगी। मैं दो इज़ार को लेकर लगा चुका हूँ। इसके आगे हिम्मत नहीं । तुम जानती हो, प्रोरा को सहायता देने का वचन दे चुका हूँ। उसे कम-से-कम एक हज़ार पूजना पड़ेगा। फिर पिता की सम्पत्ति में नैनसी का भी एक है। उसे जाने क्या हो गया है अपनी कमज़ोरी छिपाने से क्या लाभ हरीश या रफीक जिस तरह चलते हैं, वह मेरे बस का नहीं। मुझे निर्वाह के लिये कुछ-न-कुछ रखना ही है यदि मैं हड़ताल कमेटी का सेक्रेटरी बना रहूँगा तो मेरा यह नैतिक कर्तव्य होगा कि अपने आपको बेचकर भी इस काम में लगाऊं वह मेरे लिये सम्भव नहीं । सिद्धान्त रूप से मैं मानता हूँ कि हरीश और रफीक ठीक राह पर हैं परन्तु क्रियात्मक नीति में यह बात ठीक नहीं बैठी । जहाँ तक मुझसे निभा, निभाया। मैं उनसे कह चुका हूँ कि इस समय सुलह कर लो !

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वे लोग एक ज़िद्दी है मर जायेंगे, मानेंगे नहीं। इसलिये माई मेरा सलाम !' 'रूबी क्या कह रहे हो ?'शेल ने आतुर स्वर में पूछा !

'शैल में ठीक कह रहा हूँ तुम शायद मेरी बात से सहमत न होगी यह मैं पहले ही सोच रहा था। इसका कारण या तो हरीश के प्रति तुम्हारा मोह है या तुम भी उन्हीं की तरह सोचती हो।'

शैल चुपचाप उठकर चल दी। शबर्ट ने पुकारा 'सुनो तो परन्तु उसने पलटकर न देखा देखना सम्भव भी न था । सड़क पर संनिमाले ने पूछा- 'लोट के चलना होगा ?'

'हाँ' रोल ने उत्तर दिया। आधी राह में ख्याल आया क्यों न यशोदा के यहाँ होती चले टाँगेवाले को उसने ग्यालमराडी चलने के लिये कहा।

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मकान का दरवाजा श्रभी बन्द था। शैल ने साँफत खटकाई । प्रायः दो मिनट बाद दरवाजा खुला दरवाजा नौकर ने खोला और मिभककर बोला जीवी कहते है कि यहाँ न आमा करें ।'

शैल नौकर की ओर देख हैरान रह गई परन्तु साहस कर उसने नोकर से पूछा किसने कहा, यशोदा बीबी जी ने कि बाबू जी ने १ कुछ पराकर नौकर ने कहा- 'जी हाँ उन्होंने ।'

शैल समझ गई। एक गहरी साँस से वह लौटकर टाँगे में बैठ गई। उसे कमी स्वप्न में भी आशा न थी कि वह सब ओर से इस कार दुत्कार दी जायगी।

1भर को ईसा के चरणों में घसीट लाने का प्रयक्ष कर और स्वयं उस प्रयत्न की निस्वारता और बेहूदगी को अनुभव कर अब उसके लिये किसी भी एक ही मार्ग को पूर्ण सत्य मानकर उस पर आँख मूंदे चले चलना सम्भव न रहा। अपने ही विचार और निश्चय को एकमात्र सत्य मानकर उसे दूसरों पर खादने के जोश में उसे बचपन दिखाई पड़ता। उसकी प्रवृत्ति नितान्त अन्तर- मुखी हो गई थी। वह चाहता था केवल विचार करना और प्रत्येक विचार में शंका के लिये स्थान छोड़कर विवेचना करना स्वयम् चलने के स्थान पर यह दूसरों को चलते देख उसकी वृत्तियों का अनुशीलन करना चाहता था परन्तु उनके स्वभाव और प्रवृत्ति के विरुद्ध उसे सीट लिया गया। मज़दूरों के इस झगड़े में एक मिनिट भी चुप बैठ सकने का उसे अवसर न था। कोई न कोई संदेश पहुँच ही जाता-सुलतान ने कहता मेजा है; रफी ने बहुत

दयाहै; प्रतीक्षा कर रही है !सब से कठिन काम था, लोगों से चंदा माँगते फिरना । इस सुतीबत से बचने के लिये ही उसने स्वयम् उधार ले दो हज़ार रूपया इदवासियों को दे दिया था। पैंतीस हजार मजदूरों के पेट भरने के लिये यह एक बूँद के बराबर था। परन्तु वह करे तो क्या चीखते-चिल्लाते चारों ओर से नारे लगाते मजदूरों के साथ सड़कों पर घूमने में उसे संकोच और ग्लानि भी होती। वह सिर तोड़ प्रयत कर रहा था कि किसी तरह सुलह हो जाय और यह मुसीबत से बचे परन्तु रफीक और सुलतान मानें तब १ बाहिर उसे इसमें मजदूरों के नेताओं की ज्यादती जाय पड़ने लगी। उसने सोचा, इन लोगों का तो स्वभाव ही यह है, मैं कहाँ तक इनका साथ दूँ ?

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उस रात अपनी कोठी पर होने वाली हस्ताल की तैयारी की सभा के याद से नैनसी को हरीश बिलकुल दिखाई न दिया। हड़ताल के सम्बन्ध में जुलूस और समायें आरम्भ होने पर नैनसी भी उनमें जाने लगी थी। शैल ने ही उसे साथ देने के लिये कहा सही परन्तु वह दिखा देना चाहती थी रोल से आगे बढ़ कर उसे विश्वास था, हरीश कहीं न कहीं से यह सब देखता होगा और आखिर अपनी भूल समझ पायेगा। हरीश का ज़िक्र कमी- कमी वह सुन पाती परन्तु उससे अधिक सुलतान और रफीक का। उसे यह मी सन्देह हुआ कि रोज ने हरीश का उनके यहाँ आना बन्द कर दिया है। परन्तु सभाओं और गुलूसों में भी वह कभी दिखाई न दिया। इस बीच में रफीक की बातें सुनकर वह यह भी सोचती कि रफीक हरीश से कहीं अधिक

विद्वान् और प्रभावशाली है परन्तु हरीश की वह उपेक्षा की चोट ही नैनसी का ध्यान उसकी ओर से हटने न देती थी, यह उसकी पराजय थी।

संध्या के साढ़े नौ बज चुके थे और राबर्ट अभी तक लौटा न था । भोजन के लिये राबर्ट की प्रतीक्षा करते-करते नैनसी की भूल क्रोध में बदलती जा रही थी। रावर्ट ने आते ही हाथ के काग़ज मेज पर पटक सिर पर हाथ रखकर कहा- 'भर पाया इस मुसीबत से

कहाँ इतनी देर तक 'नैनसी ने पूछा।

'यही हरीश और शैल'

से चोटी तक आग निकल गई।

राबर्ट ने उत्तर दिया। नैनसी के एडी

'क्या कहते हैं वे लोग उसने पूछा।

'किसी तरह भी सुलह के लिये तैयार नहीं चाहते हैं, आज ही सोवियत कायम हो जाय....और चाहते हैं रुपया ?'

रुपमा शैल क्यों नहीं देती

शैल दे ही क्या सकती है

'नैनसी ने पूछा।

पिता की इच्छा बिना गाड़ी के पेट्रोल तक

के लिये उसे पैसा नहीं मिल सकता में हैरान हूँ शैल और सुलतान बजाय परिस्थिति सुलझाने की कोशिश के रफ़ीक की इकताल जारी रखने की जिद का श्री समर्थन करते हैं कुर्सी की पीठ पर सिर टिका राबर्ट ने बेबसी से कहा। 'यह सुलतान कौन है? बीच में क्यों कूदता है ?' नैनसी ने पूछा । राबर्ट ने नैनसी की ओर देखा; सोचा क्या नैनसी को हरीश के सुलतान बन जाने का भेद नहीं मालूम इस प्रश्न का उत्तर न दे उसने कहा-- परन्तु यह रुपये की जिम्मेवारी मैं कहाँ तक उठा सकता हूँ हमारी अपनी ही स्थिति कौन अच्छी है ?'

जो लोग सुलह न कर हड़ताल चलाने की जिद्द करते हैं, वे ही रुपया भी सायें उठी, अब तो खाना खाओ !' नैनसी ने उत्तर दिया।

राबर्ट को नैनसी की यह बात उचित न ऊँची परन्तु भाव उसका भी यही था। भोजन करते समय दोनों चुप रहे। रूपये के सम्बन्ध में नैनसी का माथ जानकर राबर्ट आगे के लिये अपना मार्ग सोच रहा था और नैमसी कोच में सोच रही थी यदि हरीश किसी की सहायता चाहता है तो उसे स्वयम् आकर बात करने में क्या आपत्ति है दो मास की इस हड़ताल की चल- चल के प्रति विरक्ति अनुभव कर, वह सोच रही थी, उससे पहले के अपने

जीवन कम की बात

वह सब ढंग और विनोद कहानी हो गये और अपने वे सब सज्जन साथी काँग

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गप सुबह बिस्तर से उड़ सिगरेट बताकर बरामदे में प्याली की प्रतीक्षा कर रहा था। उसे उठते ही एक प्याली चाय लेने की चादथी शेल को इतने पूछा- आज सुबह कैसे

खड़ा चाय की

आते देख उन्ने आश्चर्य से "तो है "

उसके पलंग के पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठ शेल ने उत्तर दिया- 'स इकताल के मारे सैरियत कहाँ

'ठीक है तुम्हारा कहा मैं भी तंग आ गया है। स्वयम् ही आज तुमसे कहने वाला या

बहुत भर पाया!

सुनकर शेत स्तम्ब रह गई। आँखों से ऐनक उतार उसने पूछा—'बी, क्या कह रहे हो ?'

शैल की ओर नगर बिना किये, जम्हाई लेकर अपनी मालों से भरी बाँह को बालस्य से बुलाते हुए उसने कहा मेरे सामर्थ्य की हद श्रा गई। रफीक और हरी-हाँ वान मानते नहीं। जहाँ तक मुझने ना किया नहीं होता

चाय का गई थी। तुम भी एक रूप लोगी ? शैल की और देखा-'अरे, यह तुम्हारी आँखों को क्या हुआ

कुछ नहीं

मेंों में गई पड़ गई

ने

हाथ में से उसने

उत्तर दिया। इतना परा गई थी कि अपने असमर्थ होकर रोने की साम की हद हो जाने का

गय की बात से बात कहने का साहस न हुआ

कह रहे

ने पूछा।

यही मैं एक से इस तास के पक्ष में न था परन्तु तुमने और हरीश ने उसमें पैसा दिया तो निमाना पड़ा

हूँ कि बाइरेक्टर लोग मज़दूरों के बिना

कि इतना कर सक हस्ताल राम पर देने पर उनकी

माँगों पर सहानुभूति से विचार करें मैं मानता है, यह हमारी जीत नहीं परन्तु हम जीत सकते भी नहीं यदि मजदूरों में जीतने सायक शक्ति हो तो

वे

हड़ताल किये बिना भी सफल हो जाये जनता कुछ सहायता दे नहीं रही, देवी भी नहीं। अब वे लोग बिजली पर और पानी में वास कराने

दो

की धमकी दे रहे हैं। इससे सरकार भी इन्हें अच्छी तरह पीसेगी। हज़ार क लेकर लगा चुका हूँ। इसके आगे हिम्मत नहीं । तुम जानती हो, लोरा को सहायता देने का वचन दे चुका हूँ। उसे कम-से-कम एक हज़ार पूजना पड़ेगा। फिर पिता की सम्पत्ति में नैनसी का भी इक है। उसे जाने क्या हो गया है। अपनी कमजोरी छिपाने से क्या लाभ हरीश या रफीक जिस तरह चलते हैं, वह मेरे बस का नहीं मुझे निर्वाह के लिये कुछ-न-कुछ रखना ही है यदि में ताल कमेटी का सेक्रेटरी बना रहूँगा तो मेरा यह नैतिक कर्तव्य होगा कि अपने आपको बेचकर भी इस काम में लगाऊँ वह मेरे लिये सम्भव नहीं विज्ञान्य रूप से मैं मानता हूँ कि हरीश और रफीक ठीक राह पर है परन्तु क्रियात्मक नीति में यह बात ठीक नहीं बैठी। जहाँ तक मुझसे निमा, निभाया। मैं उनसे कह चुका हूँ कि इस समय सुलह कर लो !

मे लोग एक हिंदी है। मर जायेंगे, मानेंगे नहीं। इसलिये माई मेरा सलाम!' 'की क्या कह रहे हो 'शेल ने आतुर स्वर में पूछा !

शैल में ठीक कह रहा हूँ तुम शायद मेरी बात से सहमत न होगी यह मैं पहले ही सोच रहा था। इसका कारण या तो हरीश के प्रति तुम्हारा मोह है या तुम भी उन्हीं की तरह सोपी हो।'

शैल चुपचाप उठकर चल दी। राबर्ट ने पुकारा 'सुनो तो परन्तु उसने पलटकर न देखा देखना सम्भव भी न था । सड़क पर निदाले ने पूछा- 'लोट के चलना होगा !'

'हाँ' गेल ने उत्तर दिया। भी यह में खयाल आया क्यों न यशोदा के यहाँ होती चले टाँगेवाले को उसने ग्यालमराडी चलने के लिये कहा।

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मकान का दरवाजा अभी बन्द या शैल ने सफल उका प्रायः दो मिनट बाद दरवाजा खुला दरवाजा नौकर ने खोला और किकर बोल श्री वो कहते है कि यहाँ न आया करें

शेवा नौकर की ओर देख हैरान रह गई परन्तु साहस कर नौकर से पूछा- 'किसने कहा, यशोदा बीवी जी ने कि साबू जी ने कुछ कर नौकर ने कहा-'जी हाँ उन्होंने '

गोल समझ गई एक गहरी साँध से वह लौटकर टाँगे में बैठ गई। उसे कमी स्वप्न में भी आश न थी कि वह सब ओर से इस कार कार दी जायगी।


सब ओर से निराश हो रोल अपने घर जा पलंग पर लेट गई। वह कुछ

नहीं कर सकती, यह सबर हरीश को दे मुँह से जाम हरीश के दादी

बड़े

से उसका कलेजा मुँह को जाने लगता

आना जरूरी था परन्तु वह किस

अत्यन्त अन्त रोगी मुख के ध्यान तिस पर यह निराका समाचार

सुन कर उसका और उसके साथियों का क्या हाल होगा इस काम के लिये अदम उठाने की उसे हिम्मत न होती परन्तु वास्तविक अवस्था समय देना भी तो उसका कर्तव्य था। कहीं बेचारे व्यर्थ बोले में न मारे जायें। इसी मुसीबत में यह कर क्या सकती है सोचते-सोचते स हो गई। खिर यह उठी। इच्छा न होने पर भी मोटर लेने के सिवा चारा न था स्वयम् ग्रा की वह मिलों की और चली।

हम और बेरोनकी क रही थी। महदूरों को दोशियाँ नहीं बैठी थीं। उन लोगों के उदास चेहरे और दुर्बल शरीर देखकर उसका मन और मां निराश हो गया।

एक मि के फाटक पर रोक एक कनटर पर खड़ा मजदूरों को उ रहने के लिये उपदेश दे रहा था। यह उन्हें विश्वास दिला रहा था कि दूसरे शहरों कानपुर, बम्बई और अहमदाबाद के मजदूरों ने उन्हें देश मे है कि वे उनकी सब प्रकार से सहायता करेंगे। यह देश भर के मजदूर माइयों मोर्चा है।

रोल व गई कि हम किसी दूसरी जगह होगा। दूसरी मिल की ओर जयने पर उसे कृपाराम आता दिखाई दिया। रोव ने उससे कहन को आज शाम कुछ देर के लिये मेन दोगे

कृपाराम ने उत्तर दिया

कि तुम उसे साथ ले आती तो अच्छ हो रही है

रहता। उसकी तबीयत बहुत

मिलेगा

मैं कह दूँगा।'

पर मालूम नहीं कहाँ

हि नौ बजे आ जाय उसी रास्ते जैसे पहले आया था।

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फिर अपने कमरे में जा रोटी

लिया। नौ बजे से कुछ पहले वह मोटने का दरवाज़ा खोल

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अपना खाना मंगाकर नहीं रख

सात और कपड़े पहने से तर

के सामने कुर्सी पर बैठकर अपना

कर हरीश ने कहा-

बीस मिनट में हरीश का गया। उसकी

ये

बर्ट भी छोड़ गया और जो हो ! कैसे मौके पर लोग धोखा दे जाते हैं ! शैल, सिर में चकर आ रहा है।'

शैल ने बाप का गुसलखाना दिखा कर कहा हा डालो !'

'नहा डालूँ, पर यह कपड़े कैसे पहगा, इनसे कैसी दुर्गन्ध आ रही है शैल ने अपना एक रंगीन रेशमी स्लीपिंग सूट निकाल दिया इसे पहन लो, छोटा होगा "क्या हुआ !"

हरीश नहाकर आया। खाना सामने रख रोल बोलो जालो !' सिर हिलाकर हरीश ने कहा-'तथीपत नहीं होती। मुँह हुआ हो रहा है।"

'नहीं, थोड़ा खाचो ऐसे तबीयत और खराब हो जायगी । शैल ने दूध का गिलास उसके सामने कर कहा अच्छा वह तो पीली '

हरीश ने सिर हिला दिया। रोल ने गिलास उसके मुँह से लगाकर कहा- मेरा कहा मानी पीना होगा । हरीश ने दूध पी लिया । सो कितने दिन से नहीं

तो कपड़ा

'समय नहीं मिला और कभी मिलता है तो नींद नहीं मि में का मिश्री ने कुछ इक्ताशियों को पीट दिया था। अन्तर कुछ दूसरे आदमी उसका खून करने को तैयार हो गये। अगर कहीं उन्होंने यह गलती कर दी तो सब किया कराया चौपट हो जायगा। बड़ी मुश्किल से उनके पाँच पकड़ उन्हें रोका है।'

'अच्छा तुम लेट जाओ..हो यो ।'

'जानती हो, सिर में ऐसे आवाज़ हो रही है, जैसे चकी चलती है। बर लगाता है कहीं पागल न हो जाऊँ

'भूख और उनींदी से खुश्की हो गई है। यह नींद आये बिना ठीक न होगा सो जाओ लेटी में लाती हूँ।उसे पलंग पर लिटा उसके सिर पर हाथ फेरते हुए रेल ने कहा।

T

पर मेरे दिमाग से तो यह ध्यान नहीं हटता दूर किस तरह बायसे हो गये है बिना किसी शक्ति के इन हजारों आदमियों को सम्भावाना कैसे सम्भव है? दरीश ने परेशानी से उत्तर दिया।

'हरीश थोड़ी देर के लिये सब भूलकर आँखें बन्द कर लो १ हाथ जोड़ती

हूँ

"मानो 

शैल क्या करूँ ? यह मेरे बस की बात नहीं ।'

अपने माथे पर उप्प से गिरे, आँसू हाथ से अनुभव कर उसने पूछा- "यह बया तुम तो रोती हो ! कहीं रोने से काम चलता है शैल —शैल का सिर झुकाकर उसने अपनी बाहों में ले लिया । शैल और अधिक रोने लगी । हरीश उसे पलंग पर अपने समीप खीच कर चुप कराने लगा। शैल ने उसे अपनी बाहों में ले हृदय से लगा लिया। उसके हृदय की धड़कन हरीश के कानों में गूँजने लगी। उसके शरीर पर हाथ फेरते हुए हरीश बार-बार उसके बालों को चूमने लगा। कुछ देर में शैल के शरीर के स्पर्श से जाग उठी उत्तेजना में उसकी सत्र चिन्ता और चोम डूब गया। उसकी चेष्टायें सीमा को लाँघने लगीं। शैल का शरीर सिहर उठता। परन्तु प्रत्येक सिहरन से वह हरीश के और भी समीप हां जाने का यक्ष कर उसे आलिंगन में और भी अधिक बल से जकड़ लेती। उसे भय था कि हरीश का मटका हुआ मस्तिष्क कहीं फिर उन चिन्ताओं में न फँस जाय शरीर की अनुभूति उसको सब चेतनाओं को डुबा देना चाहती थी परन्तु प्रकृति से लड़कर वह अपनी चेतना बनाये थी । इस समय उसे अपनी नहीं, हरोश की परवाह थी। हरीश उत्ते- जना की चरम सीमा पर पहुँच कर अपने आपको भूल गया। शैल उसकी इच्छा को राह देती गई । कुछ देर में शिथिल होकर हरीश बिलकुल बेदुध सो गया। शैल उस समय भी जाग रही थी। वह लगातार टकटकी लगाये इरोश के मुख को देखती रहीं। एक समय का उसका सुन्दर चेहरा, अब जलकर काला और विरूप हो गया था परन्तु शैल को वह श्रान और भी सुन्दर जान पड़ रहा था। शैल की आँखों और होठों पर मुस्कराहट थी। अपनी सफलता से गद्गद होकर वह बार-बार हरीश की मुँदी हुई आँखों, माये और चोठों को चूम रही थी।


उठकर उसने हरीश के मैले बदबूदार कपड़ों को अपने नहाने के सुगन्धित साबुन से धो दिया और बिजली का पंखा तेजकर कपड़ों को कुर्सी पर सूखने डाल दिया। वह फिर हरीश के साथ श्रा लेटी उसकी बाहें हरीश को सम्भाले 1

थीं मानों वह सब चिन्तायां से उसकी रक्षा कर रही है। की, रेडियम से चमकती, सुइयों की ओर थीं। शांति से सुला सकती है, यही वह सोच रही थी।

आँखें उसकी घड़ो

कितनी

तीन बजे

देर तक बह उसे हरीश को उठा

तीन

बज गये, और

देना चाहिये था परन्तु वह उसे उठा न सकी। जब साढ़े

चारा न था । उसने हरीश के होठों को चूमकर जगाने की कोशिश की परन्तु

वह न जगा । उसकी नींद तोड़ने से शैल को दुख हो रहा था परन्तु विवश थी। चूम-चूमकर, प्यार से पुकार पुकार वह उसे उठा रही थी, हरी" उठोन अब!'

आँखे खोल आश्चर्य से हरीश ने कहा- 'हैं १' मानो वह कुछ समझ नहीं सका ।

'अब उठो, साढ़े तीन बज गये। यह हैं तुम्हारे कपड़े ।"

हरीश ने कपड़ों की ओर देखा, घड़ी की ओर देखा। कपड़े पहन वह तैयार हो गया। बीती रात की घटना मस्तिष्क में जाग उठी। अटकते हुए उसने कहा- 'शैल, अभी तो जाने को मन नहीं होता ।'

'जाना तो है ही, तुम्हारा काम जो है । उसका सिर चूमकर शैल ने कहा। कोई कि या संकोच उसके मन में शेष न था ।

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रचनाएँ
दादा कामरेड
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दादा कामरेड पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। इसे हिंदी साहित्य में एक अग्रणी राजनीतिक उपन्यास माना जाता है। उपन्यास अर्ध-आत्मकथात्मक है, और हरीश नाम के एक युवक की कहानी कहता है जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो जाता है। उपन्यास स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है, और क्रांतिकारी संघर्ष के शक्तिशाली और मार्मिक चित्रण के लिए इसकी प्रशंसा की गई है। यह उपन्यास 20वीं सदी की शुरुआत पर आधारित है और इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में हरीश के बचपन से होती है। हरीश एक प्रतिभाशाली और जिज्ञासु लड़का है, और वह स्वतंत्रता और समानता के उन विचारों की ओर आकर्षित होता है जो उसने अपने पिता, एक गांधीवादी राष्ट्रवादी से सुने थे। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, हरीश स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गया और अंततः उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। जेल में, हरीश की मुलाकात अनुभवी क्रांतिकारी दादा से होती है, जो उसके गुरु बन जाते हैं। दादा हरीश को वर्ग संघर्ष के महत्व के बारे में सिखाते हैं, और वह हरीश को एक बेहतर दुनिया के लिए संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित करते हैं। जेल से रिहा होने के बाद, हरीश एक पूर्णकालिक क्रांतिकारी बन गया, और उसने अपना जीवन स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के संघर्ष में समर्पित कर दिया। दादा कामरेड एक शक्तिशाली और मार्मिक उपन्यास है जो स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है। यह उपन्यास हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है और क्रांतिकारी संघर्ष के यथार्थवादी चित्रण के लिए इसकी सराहना की गई है।
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 दुविधा की रात

11 सितम्बर 2023
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  यशोदा के पति अमरनाथ बिस्तर में लेटे अलवार देखते हुए नींद की प्रतीक्षा कर रहे थे। नोकर भी सोने चला गया था। नीचे रसोईघर से कुछ खटके की थापालाई कुँमलाकर यशोदा ने सोचा- 'विशन नालायक जरूर कुछ नंगा

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 नये ढंग की लड़की

11 सितम्बर 2023
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 मध्यम रही अनिथित स्थिति के लोगों की एक अद्भुत चमेली है। कुछ लोग मोटरों और शानदार बंगलों का व्यवहार कर विनय से अपने आपको इस श्रेणी का अंग बताते है। दूसरे लोग मज़दूरी की सी असहाय स्थिति में रहकर भी

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 नये ढंग की लड़की

11 सितम्बर 2023
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 मध्यम रही अनिथित स्थिति के लोगों की एक अद्भुत चमेली है। कुछ लोग मोटरों और शानदार बंगलों का व्यवहार कर विनय से अपने आपको इस श्रेणी का अंग बताते है। दूसरे लोग मज़दूरी की सी असहाय स्थिति में रहकर भी

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 केन्द्रीय सभा

11 सितम्बर 2023
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 कानपुर शहर के उस संग मोहल्ले में आबादी अधिकतर निम्न श्रेणी के लोगों की ही है। पुराने ढंग के उस मकान में, जिसमे सन् २० तक भी बिजली का तार न पहुँच सका था, किवाड़ विज्ञायों के नहीं कंदरी और देखा के

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 मज़दूर का घर

11 सितम्बर 2023
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 हरिद्वार पैसेंजर लाहौर स्टेशन पर आकर रुकी। मुसाफिर प्लेटफार्म पर उत्तरने लगे। रेलवे वर्कशाप का एक कुली, कम्बल ओ और हाथ में दं ओज़ार लिये, लाइन की तरफ़ उतर गया। राक्षत रास्ते से आदमी को जाते देख ए

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 तीन रूप

11 सितम्बर 2023
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 शैलपाला अपने कमरे में बैठी जरूरी पत्र लिख दी थी। नौकर ने जबर दी, दो आदमी उससे मिलने आये हैं। लिखते-लिखते उसने कहा- नाम पूछकर श्रो लोटकर बोकर ने उसे एक चिट दियां चिट देखते ही वह तुरन्त बाहर आई। ह

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मनुष्य

11 सितम्बर 2023
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 दिन-रात और अगले दिन संध्या तक बरफ गिरती रहने के बाद रात में बादल पढ़ कर उस पर पाला पड़ गया। सुबह से स्वच्छ नीले आकाश में सूर्य चमक रहा था। नीचे विछे अनंत श्वेत से प्रतिबिम्बत धूप की कई गुणा मढ़ी

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गृहस्थ

13 सितम्बर 2023
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 ० आर०' और 'हरीश' वह दो नाम अमरनाथ के मस्तिष्क में बारी-बारी से चमकते अपनी शक्ति पर सन्देह करने की कोई गुंजाइश न थी "ठीक बाद था ठीक उसने अपना नाम ० कारखाना और पद उसका नाम बताती है, 'परी' ये सोचते

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 पहेली

13 सितम्बर 2023
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 मंग के सामने कुराड़ी में बेत के काउच पर राबर्ट और शैल बैठे दुबे थे। राबर्ट के एक हाथ में सिगरेट था और दूसरे हाथ में एक पर अनेक दिन के बाद प्रतोरा का पत्र आया था राम पत्र पढ़कर रोल को सुना रहा था-

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 सुलतान १

13 सितम्बर 2023
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पंजाब-मिल, सितारा-मिल, डाल्टन मिल आदि कपड़ा मिलों में डेढ़ मास ताल जारी थी। हड़ताल समाप्त होने के आसार नज़र न आते थे। जून की गरमी में जब लू धूल उड़ा-उड़ा कर राह चलने वालों के चेहरे झुलसा देती थी राबर्

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दादा

13 सितम्बर 2023
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 लाहौर की बड़ी नहर के दाँवे किनारे की सड़क पर दादा साइकल पर चले जा रहे थे। उनसे प्रायः बीस क़दम पीछे-पीछे दूसरी साइकल पर श्रा रहा था जीवन । माडलटाउन जाने वाला पुल लाँघ वे नहर के दूसरे किनारे हो गय

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 न्याय !

13 सितम्बर 2023
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 दकताल में माज़दूरों की जीत होगई। उत्साहित हो कर दूसरों मिलों और कारखाना के मज़दूरों ने भी मज़दूर समायें बनानी शुरू कर दीं। कई मिलों में और कारखानों के क्वार्टरों में रात्रि पाठशालायें जारी हो गई।

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 दादा और कामरेड

13 सितम्बर 2023
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 अदालत से लोड कर शैक्ष ज्वर में पलंग पर लेट गई। ज्वर मूर्छा में परिणित हो गया। उसे कुछ देर के लिये होश आता तो वह अपने इधर-उधर देख कर कुछ सोचने लगती और फिर बेहोश हो जाती। मुआजी उसके सिराहने बैठीं ब

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