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 दुविधा की रात

11 सितम्बर 2023

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यशोदा के पति अमरनाथ बिस्तर में लेटे अलवार देखते हुए नींद की प्रतीक्षा कर रहे थे। नोकर भी सोने चला गया था। नीचे रसोईघर से कुछ खटके की थापालाई कुँमलाकर यशोदा ने सोचा- 'विशन नालायक जरूर कुछ नंगा उपाड़ा छोड़ गया होगा अनिच्छा और खत्म होने पर भी उठना पड़ा। वह जीना उतर रसोई में गई चाटने के प्रयन में जिस वर्तन को बिल्ली खटका रही थी, उसमें पानी डाला। लेटने के लिये फिर ऊपर जाये से पहले उसने बैठक की सकल को भी एक बेर देख लेना उचित समझा। नौकर का क्या भरोसा बिजली का बटन दबा उजाला कर उसने देखा कि t बैठक के किवाड़ों की सफल और चिटखनी दोनों लगी हैं।

बिजली बुना देने के लिये यशोदा ने बटन पर दुबारा हाथ रखा ही था कि बाहर से मकान की कुर्सी की सीढ़ी पर दो चुस्त कदमों की आहट और माथ ही किवाड़ पर थाप सुनाई दी। आने वाले को दरवाज़े और खिड़की के काँच से रोशनी दिखाई दे ही गई थी। लोले बिना चारा न था। अलसाए ने सि-स्वर में यशोदा ने पूछा 'फोन है ?'

उत्तर में फिर थाप सुनाई दी, कुछ अधिकारपूर्ण सी आगे बढ़ चटनी और सफल खोली ही थी कि किवाड़ धक्के से खुल गये और एक आदमी ने शीमता से भीतर घुस किवा बन्द कर कहा 'मुझाऊ फोजिये..............

अपरिचित व्यक्ति को दो बलपूर्वक भीतर आते देख यशोदा के मुख से भय और विस्मय से 'फोन निकला ही चाहता था कि उस व्यक्ति ने अपने कोट के दाये जय से पिस्तीत निकाल कर यशोदा के मुख के सामने कर, दबे हुए परन्तु जोरदार ढंग से कहा-'चुप नहीं तो गोली मार दूंगा।'


मय की पुकार गले में ही रुक गई और यशोदा के शरीर में कंपकपी था गई। वह अवाक खड़ी थी। आगन्तुक ने बायें हाथ से किवाड़ की सकिल

लगादी परन्तु दायें हाथ से वह यशोदा के मुख के सामने पिस्तौल थामे रहा। उसकी सतर्क से भी उसी ओर थीं

मीतर के दरवाजे की ओर संकेत कर आगन्तुक बोला- 'बलिये !'''' बिजली बुझा दीजिये

!"

यशोदा काँपती हुई भीतर के कमरे की ओर चली कमरे में पहुँच श्रागन्तुक ने कहा- रोशनी कर लीजिये।' कांपते हुए हाथों से, अभ्यस्त स्थान उडोल कर यशोदा ने बिजली जगा दी।

आगन्तुक अब भी पिस्तोल यशोदा की शोर किये था परन्तु उसके मुख के भाव और स्वर में कुछ कोमलता

और दीनता आ गई। वह बोला-'मैं आपका कुछ बिगाड़ने नहीं आया हूँ मैं आपको कष्ट न देता परन्तु कोई चारा न था। केवल कुछ पराठे आप मुझे यहां बैठे रहने दीजिये एक हिन्दुस्तानी के नाते मैं आपसे इतनी प्रार्थना कर रहा हूँ।"

उस व्यक्ति के व्यवहार से यशोदा का भय कुछ कम हुआ। उसने देखा कि आगन्तुक की साँस भी तेज़ चल रही है। वह भागकर खाया जान पड़ता था। उसके माथे पर पसीने की महीन बनी बुदे अलक रही थीं। उसकी आयु अधिक नहीं थी। वह भयानक मनुष्य भी न जान पड़ रहा था। उसके सिर पर पगड़ी थी, मुख पर कम उम्र की हलकी- इसकी दाढ़ी-मूंछ रही थी। दोनों हाथों की उँगलियों को आपस में दबाते हुए भयभीत और धीमे स्वर में यशोदा ने पूछा—'आप कौन है ?'

तीम दृष्टि यशोदा के मुखं पर डालते हुए उसने उत्तर दिया--'क्रान्ति- कारी पार्टी के लोगों का नाम आपने सुना होगा हम लोग जेल में थे। आज हमें दूसरे मुकद्दमे के लिये अमृतसर ले जाया जा रहा था। हमारे साथियों ने पुलिस पर आक्रमण कर हमें हुड़ा लिया। कोई जगह न होने रोशनी देल यहाँ आ गया हूँ। यदि मैं यों हीं भटकता फिरूँ तो जरूर पकड़ लिया जाऊँगा। आप जानती हैं कि मुझे कम-से-कम बीस बरस जेल में रखा जायगा प्योर तो शायद फाँसी हो जाय १ सुबह सूरज निकलने से पहले ही मैं चला जाऊँगा। देखिये, मैंने किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं हम लोग केवल देश की स्वतंत्रता के लिये यक्ष कर रहे थे।'

यशोदा कुछ कह न

सकी। उसकी घबराहट अभी दूर न हो पाई थी।


उचित-अनुचित कर्तव्य वह कुछ न समझ सकी। उसे केवल समझ श्राया- -मीत से भागता हुआ एक व्यक्ति जान बचाने के लिये उसके पैरों के पास या पका है। भय के अचानक धक्के से जो मूढ़ता उसके मस्तिष्क पर छा गई थी, उसका धुन्ध शनैः-शनैः साफ होने लगा। हाथों की उँगलियाँ उसी तरह दबाये वह उस नवयुवक की ओर देख रही थी। जिस व्यक्ति से यह इतना डर गई थी, यही गिड़गिड़ाकर उससे प्रायों की मिक्षा मांग रहा था। अपनी निप्पलक घाँखो के सामने उसे दिखाई दिया बहुत से लोग तलवार- बन्दूक लिये उस नवयुवक को मार डालने के लिये चले आ रहे थे। वह उसके पैरों में उसके आँचल में दुबक कर जान बचाना चाहता है। अब भी यह कुछ न बोल सकी। केवल निस्तन्य उस शरणागत की ओर देखती रही। यह तो जो कुछ देर पहले उसके माथे की ओर तना हुआ था, अब युवक के हाथ में नीचे लटक रहा था। यशोदा को चुप देख नवयुवक एक कदम समीप नहीं बैठा रहूँगा ।

चाकर धीमे स्वर से बोला-

यशोदा ने एक साँस ले कर परेशानी में युवक की ओर ध्यान से देखा। युवक ने यशोदा को विश्वास दिलाने के लिये फिर कहा- मैं यहाँ बैठा

रहूँगा आपका कुछ नुकशान न होगा। आप आराम कीजिये !'

काँपते हुए स्वर में यशोदा पक्षी-उनसे पूछ

युवक ने आईस्वर में स्वीकार किया अच्छा परन्तु फिर एक पर बोला मैं आ ही गया हूँ। वे शायद धरायें। चुपचाप रहने दीजिये। खटका न होना ही अच्छा है। जरासी बात से कुछ का कुछ हो जा सकता है। मैं सुबह तक चला जाऊँगा। उस समय आप उन्हें सब कुछ सगम्य सकेंगी। इसमें कुछ भी दर्ज न होगा। आप धाराम कीजिये।

आधा मिनट तक यशोदा फिर सोचती रही। वह ठीक ही कह रहा था, वह आ तो गया ही था। अब उसे निकाला कैसे जाय चुप के सिवा और कोई राह नहीं थी। कुछ पल वह अपनी पोती में सिमटीले नोचे किये सही रही फिर लाचारी और स्वीकृति के माथ से सिर हिला जीने की ओर चल दी। जीने पर उसके पैर रखते ही नोचे कमरे में बिजली बुझ गई। अंधेरे में जीना चढ़ते समय उसके पैर काँप रहे थे और दिल धड़क रहा था परन्तु उत्त पर निश्चय का एक भाव या यह सहना ही होगा।

अमरनाथ भी अखबार देख रहे थे। कमरे में चाइट पर उन्होंने अचार पर से दृष्टि उठाये बिना पूछा—'आ गई ?' एक दोष सी

कर यशोदा अपने पलंग पर लेट गई। हृदय की उत्तेजना के कारण उसे गरमी अनुभव हो रही थी। उसके मुंदे हुए नेत्रों के सामने वही दृश्य फिर दिखाई देने लगा, अनेक लोग माला-तलवार और बन्दूके लिये उस नवयुवक को मार डालने के लिये झपट रहे हैं। वह हाँफता हुआ आकर यशोदा के पैरों में, उसके आँचल में छिप गया है। उसके हृदय में एक प्रबल आवेग सा उठ रहा था, जिसके बाहर निकलने की कोई राह न थी। वह उसके मस्तिष्क और शरीर को विक्षुब्ध किये दे रहा था।

बिजली के टेबल लैम्प के नीचे लगी पट्टी की ओर देख धमरनाथ बोले- “खाड़े दस !

अपनी बेचैनी छिपाने के लिये यशोदा ने करवट बदल ली। पति ने कुछ शंकित से स्वर में पूछा क्यों क्या है ?'


'नहीं कुछ नहीं ऐसे हो, सीढ़ियां चढ़ने से किसी समय हो जाता है।'यशोदा ने उत्तर दे कर चेहरे पर हाथ रख लिया यशोदा को कभी- कभी 'दिल बने' का सा दौरा हो जाता था। इसी समास से पति ने फिर एक बेर पूछा 'कुछ बराहट तो नहीं मालूम होती ?"

'नहीं, ऐसे ही रोशनी आँख में लग रही है।'

टेबल लैम्प बुभाकर अमरनाथ लेट गये। कुछ ही मिनिट में उनका सम और गम्मीर श्वास शांत निद्रा का परिचय देने लगा। यशोदा ने बेचैनी से फिर करवट बदली। वह अंधेरे में आँखें खोले पड़ी थी निद्रागत पति के समश्यास के साथ घड़ी की टिक-टिक और अपने हृदय की धड़कन उसे सुनाई दे रही थी। बीच-बीच में सशस्त्र लोगों के उस नवयुवक पर भाटने सहसा घर के किवाड़ों के खुलने और पिस्तौल के सामने आजाने का दृश्य उसकी आँखों के सामने आ जाता और फिर पति के श्वास, घड़ी की ठिक-ठिक और उसके हृदय की गति के शब्द को दबाकर उस युवक की ये बातें सुनाई देने लगतीं। चारम्भ में उसका पिस्तौल दिखाना उसका डरावना भयानक रूप और फिर उसकी यह त्राह माँगती कातर आँखें यह सोचने लगी नीचे कमरे के में वह किसी कुर्सी पर बैठा अब भी भय से काँप रहा होगा।

उसे अनुभव हुआ कि बहुत देर से प्यास लगी है; परन्तु जल पीने का ध्यान नहीं थाया। धीमे से उठ कर उसने लोटे से गिलास में पानी लिया। गिलास ओठी तक ले जाने से पहले ही ख्याल आया यह प्यासा होगा; भागकर कैसे होता हुआा धाया था जरूर बहुत प्यासा होगा।


गिलास भर कर अधेरे में ही बिना आइट किये, बहुत धीमे-धीमे यह जीने से नीचे उतरी। कमरे में पहुँच उसने बिजली का बटन दबाया। उसने देखा, नवयुवक की सतर्कता से उस दरवाजे की और पिस्तौल किये घूर रहा

या जिस ओर से यशोदा के थाने की छाइट मिली थी। प्रकाश हो जाने पर उसने पिस्तौल नोचे कर लिया। बिना कुछ कहे यशोदा ने जल का गिलास उसकी ओर बढ़ा दिया । कृतशा से यशदा की और देख यह गिलास को एक ही साँस में पी गया।

वह दबे स्वर में 'धन्यवाद' दे समीप पड़ी छोटी तिपाई पर गिलास रखने जा रहा था। यशोदा को हाथ बढ़ाते देख उसने संकोच से गिलास उसके हाथ में दे दिया। गिलास से यशोदा कमरे से बाहर गई। कुछ ही सेकेंड में और जलता उसने गिलास फिर उसके सामने कर दिया। अब की युवक की आँखो में कृशता का भाव और भी गहरा था। आधा जल पी उसने गिलास तिपाई पर रख दिया।

यशोदा को स्याल आया कि इसे भूख भी होगी, कम-से-कम रात में उह तो लगेगी ही और क्या सारी रात कुर्सी पर बैठकर बिताई जा सकती है। परन्तु वह क्या करे ? छिप-छिर कर चोरी से सब ईनाम यह केसे कर सकती है जीने का कोना पकड़े लड़ी वह कुछ देर सोचती रही, फिर आया कि यदि उनकी नींद खुल जाय या मौजी चौंक पड़े बेबसी की गह साँस को दबाकर वह फिर शनैः शनैः जीना चढ़ लेटने के लिये चली गई। कुछ मिनिट लेटने के बाद उसे याद आया कि जल तो मैने पिया ही नहीं जल पीत ही अनुभव होने वाली उगड की सिहरन से नीचे कुर्सी पर भूले बैठे, सद में काँपते हुए युवक के ख्याता ने उसे बेचैन कर दिया। उससे रहा न गया। फिर दुबारा अंधेरे में बिना साइट के दम रखती हुई यह असवाद रखने के कमरे में गई। नीचे दिखाने के लिये कुछ मोटा कपड़ा एक कम्बल और तकिये के बोझ को उठाये वह बहुत सँभल-सँभल कर लीना उतरने लगी।

कमरे की बिजली इस बीच में फिर बुझ चुकी थी। यशोदा के दोनो हाथ यो सँभाले थे। कुछ एक सय वह निरुपाय खड़ी थी कि युवक ने टोल कर बिजली जला दी। उसे इतना बोझ उठाये देख युवक संकोच और अति कृतशा के स्वर में बोला- इसकी तो कोई जरूरत नहीं थी, आपने पी ही कट किया।

बिस्तर के कपड़े एक कुर्सी पर रख वह फिर लौट गई। चार-पाँच मिनिट बाद एक तश्तरी में खाने के लिये कुछ लेकर जब वह लौटी तो युवक दीवार

के साथ लगे सोऊ के सहारे बहुत छोटा सा बिस्तर लगा चुका था। तारी तिचाई पर रखकर लौटते हुए घूमकर उसने धीमे स्वर में पूछा किसी और चीज़ की ज़रूरत होगी '

यशोदा के व्यवहार से युवक का साहस बढ़ चुका था। समीप था, अपने कपड़ों की ओर संकेत कर उसने कहा-' इन्हीं कपड़ों में मेरा कया बाहर जाना ठीक न होगा; पहचान लिया जाऊंगा। प्राप मुझे एक धोती या इस तरह का कोई कपड़ा और एक कोट या कोई चीज़ ओढ़ने के लिये और चार-पाँच रुपये सुबह बाहर जाने से पहले दे सकें तो बड़ी सहायता होगी हो सका तो आपकी ची लौटा देने की भी कोशिश करूँगा ।


कुछ सोचकर यशोदा बोली- 'वे सुबह छः बजे के करीब उठ जाते हैं। नौकर भी सफ़ाई करने नीचे आयेगा। मांजी तो और भी पहले उठ जाती हैं। वे नहाने नीचे खायेंगी।'

अपनी दोनों बाहें सीने पर समेटते हुए युवक ने चिन्ता से कहा-छः बजे से पहले तो सड़कों पर बिलकुल सुनसान होगी, मीड़ में ज़रा चच्छा रहता.... हाँ, आपके नौकर के कपड़े मिल जायें तो ज्यादा अच्छा रहे।

यशोदा फिर अँधेरे जीने से बढ़ अपने बिस्तर पर पहुँची, घड़ी में अमी बारह भी नहीं बजे थे। उसकी पबराहट अब पहले से कम हो गई थी। घबराहट की जगह लेली भी आशंका ने प्रायां पर आक्रमण के भय का स्थान अ 1 ले लिया था परिणाम के भय ने जो हृदय की गति की अपेक्षा मस्तिष्क की किया पर अधिक बोझ डालता है। नींद कहीं कोसों पारा न थी विचार 1 उठता था कि एक नौजवान, कितना भला लड़का, घरवार से विधवा हुआ, उसके प्राण संकट मे लोग उसे पकड़ कर सारी उम्र औद कर देना चाहते है, उसे मार डालना चाहते हैं, रहा है। उसका हसला भी कितना है देश के जान खतरे में डाल रहा है। उसकी आँखों के सामने कांग्रेस के कुलूसों का प्य दिखाई देने लगा। सेवा हजारों लोग अनेक नारे लगाते हुए उड़ा चलते हुए दिखाई देने लगे शहर में महात्मा गाँधी के खाने पर छत में उसने यह जुलूस देखा था और भी कई जुलूम उमने देखे हैं। 'भारत माता की जय' | 'हिन्दोस्तान जिन्दाबाद' 'वन्देमातरम' के नारे सुन उसके शरीर में रोमांच हो आता था।

"वह प्राण बचा कर भाग लिये वह घरवार छोड़ कर

उसके पति धमरनाथ कांग्रेस में भाग लेते थे। अपने मोहल्ले की कांग्रेस कमेटी के सेक्रेटरी थे। चुनाव में खूब दिलचस्पी लेते। उस के घर में स्वामा


दयानन्द, तिलक और गांधी जी की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लटक रही थीं, गांधी जी के प्रति उसे बहुत अद्धा और भक्ति थी। वह जानती थी कांग्रेस और गाँधी जी देश में हिन्दुस्तानियों का राज चाहते हैं बड़े-बड़े जुलूस और सभाएँ देख कर उसके मन में एक उत्साह सा भर खाता था। वह यह भी जानती थी कि सरकार और पुलिस इन बातों से नाराज़ होती है। स्वराज्य माँगने के लिये जुलूम और सभा करने पर लाठियां और गोलियां चलती है, लोगों को जेल में बन्द कर दिया जाता है। ऐसी ख़बरों से उसे भय और दुःख होता था। उसने यह भी सुना था कि देश की स्वतंत्रता के लिये लड़ने वाले और लोग भी हैं जो यम और गोली चलाते हैं। सरकार उन्हें पकड़ जेलों में बन्द कर देती है या फाँसी लगा देती है। यह लोग बड़े भयानक और निडर होते हैं। जंगलों में छिपे रहते हैं और सरकार से लड़ते रहते हैं। इन लोगों में से किसी के पुलिस द्वारा पत्र लिये जाने पर या इन लोगों के किसी उपद्रव का समा चार मिलने पर ही उनका चर्चा होता था। अनेक विचित्र और भयानक बातें उन लोगों की बात सुनी जाती थीं। इस नवयुवक में कोई भी वैसी विचित्र या भयानक बात उसे दिखाई न पड़ी। हाथ में पिस्तौल होने पर भी वह निस्स- हाय हो प्राण रक्षा की भीख माँग रहा था। यशोदा का अपना सबका उदय जिस प्रकार निरसहाय है, दादी और माँ की सहायता की जरूरत जिस प्रकार उसके लड़के को रहती है, ठीक वैसा ही; परन्तु उससे कई वरस यड़ा यह लड़का है। उसका अपना लड़का दादी की बगल में सुरक्षित सोया हुआ है परन्तु किसी दूसरी माँ का लड़का मौत के विकराल दाँतों से निकल भागने की में उसके आँचल में आा पड़ा है।

“सुबह छः बजे से पहले तो सह के खूनी सी रहती हैं।' नवयुवक की वह बेदी उसके कानों में गूँज गई। पर वह क्या करे ? नीचे सड़क पर किसी आने-जाने वाले के पैरों की आहट सुन उसका कलेजा धक-धक करने लगता । कभी अधिक आदमियों के पैरों की आहट थाने से उसे और भी

भय जान पड़ता ।

उसके पलंग की दाई ओर की खिड़की से नीचे कुछ दूर पर सड़क का भाग दिखाई देता था। बिजली के खम्भों की रोशनी में आने-जाने वाले व्यक्ति यहाँ से दिखाई पड़ते थे। वह उसी और टक लगाये भी सड़क पर की की चाह पा उसने देखा, वहाँ पहिने और कंधे पर बन्दूक रक्खे पुलिस के कई सिपाही हाथों में बिजली की बढी पड़ी पक्तियाँ लिये चले था रहे थे। हाथ की बचियों की रोशनी यह सड़क किनारे के अंधेरे स्थानों और

मकानों पर डालते जाते थे यशोदा के हृदय की गति का वेग बढ़ गया। ज्यों- क्यों उनके कदमों की ग्राहट समीप आती जाती; उसके हृदय की धड़कन का शब्द बढ़ता जाता जान पड़ा, उसके घर के किवाड़ों पर ज़ोर-ज़ोर की चोटें पड़ रही है। उसकी आँखें मुंद गई साँस रुक गई, और अनुभव होना बन्द हो गया।

चेतना लौटने पर पुलिस के पैरों की आहट दूर चली गई थी जान पड़ा, जो पंजा उसका गला दबोच उसका श्वास रोक रहा था, वह हट गया। गहरी साँस खींच उसने अपना सिर हिलाया और चेतना अनुभव करने की चेष्टा की। पड़ी की ओर देखा। एक बजने को था। रूपात खाया, मीचे नवयुवक ने कुछ कपड़े और रुपये माँगे थे, " परन्तु सुबह छः बजे से पहले तो सड़कें सूनी होती हैं। ख्याल आया पति को उठा इस संकट में सलाह ले । वह अकेली क्या कर सकती है। करवट ले उसने पति की बाँह पर हाथ रखा पर उसी समय ध्यान आया, यदि चौक कर ज़ोर से बोल उठें या बात सुन एक दम घबरा जायें] हृदय से उठे आवेग को गले में ही रोक कर उसने हाथ पीछे खींच लिया।

छत की कड़ियों की ओर देखती हुई वह सोचती रही। वह क्या करे कुछ समझ न आता था । आँखे मूंद वह बार-बार भगवान को पुकार रही थी संकट में वही एक मात्र सहायक है। अव्यन्त अनुनय से उसने भगवान की रक्षा में नवयुवक और अपने आपको समर्पित कर दिया। शनैः शनैः उसे विश्वास होने लगा, भगवान उन दोनों की रक्षा कर रहे हैं। वह उन्हीं को याद कर रही थी। उसे फिर अपने ओठ और तालू सूत्रते जान पड़े। जल पीने के लिये उठकर उसने देखा, अढ़ाई बज चुके थे।

वह फिर बिस्तर से उठी। शरीर निढाल हुआ जा रहा था परन्तु संकट की अवस्था और नीचे बैठे युवक की बात के ख्याल से उसने शरीर को यश में किया। यह फिर साथ रखने के कमरे में गई। बहुत सावधानी से बन खोला। जरा सी लाइट से हो साथ के कमरे में मौजी के जाग पड़ने का भय या एक मर्दानी धोती; एक कमीज़ और एक कोट उसने निकाल लिया। फिर अपने कमरे में लोड, अपनी खास श्रालमारी बहुत सावधानी से खांसी । एक छोटी सी डिबिया खोलकर देखा आठ रुपये ये और कुछ नोट उसने दस का एक नोट और आठों रुपये उठा लिये। जीना उत्तर वह नीचे कमरे में पहुँची। युवक ने उठ बिजली का बटन दबाया। कम्बल थोड़े बैठा वह रात गुज़ार रहा था। कपड़े और रुपये मेन पर रख यशोदा गिलास उठा श्रीर अल लाने जा रही थी।


उसे सम्बोधन कर युवक ने कहा- "सुबह तड़के जाने के लिये नौकरों के कपड़े मिल जाते तो अधिक अच्छा होता। स्वीकृति सूचक सिर झुका यशोदा चली गई और कुछ देर में इधर-उधर से हूँद नौकर के मेले-कुचैले, बेढंगे कपड़े और जल का गिलास ला उसने तिपाई पर रख दिया।

संतोष से युवक ने कहा – 'यह ठीक है। मैं पौने छः बजे चला जाऊँगा ।' एक गहरी साँस ले यशोदा लौट रही थी। रुककर उसने पूछा- 'अब कोई डर तो नहीं ?'

'क्या कहा जा सकता है परन्तु इन कपड़ों से बड़ी सहायता मिलेगी। इसके साथ ही कोई टोकरी वा फालतू कनस्तर हो तो बहुत अच्छा हो। परे एक बात का ख्याल आप रखियेगा, मुझे यहाँ रखने की चर्चा भूल कर भी किसी से न कीजिये १ चाहे कोई कितना ही अपना क्यों न हो इससे प्राप मुसीबत में पड़ जायेंगी। भागे हुए कैदी या फ़रार क्रान्तिकारियो को शरण देना सरकारी कानून के अनुसार जुर्म है। उसके लिये पाँच-सात बरस की कैद हो जाती है। मैं इस बात का ख्याल रखूँगा कि मुझे यहाँ से निकलते कोई देख न पाये ! परन्तु यदि मैं फिर पकड़ा जाऊँ और आप से पूछा जाय तो श्राप साफ इनकार कर दीजिये। तीन बजने को हांगे, 'छ' से पहले ही मैं चला जाऊँगा । संकट मेल मेरे प्रति आपने जो सहानुभूति दिखाई है, उसके लिये मैं तो आपका जन्म र कृश रहूंगा ही इसके इलावा हमारे दल के साथी और हमारे दल से सहानुभूति रखने वाले सभी लोग आपके कृत होगे। हाँ, जाने के बाद जो कपड़े मैं यहाँ छोड़ जाऊँ, उन्हें तुरन्त जलवा दीजिये

रात के सन्नाटे में बैठक की दीवारगीर पड़ी ने टन टन करके सोन बजा दिये। युवक कृतज्ञता के भाव से सिर झुकाये लड़ा था। उसे और कुछ नहीं कहना है, यह समझ यशोदा चलने लगी। उसकी ओर देख युवक बोला-- 'पौने छः बजे आप नीचे था किवाद बन्द कर लीजियेगा ।'

लोटकर यशोदा पिस्तर पर लेट गई। अंधकार में छत की और लगी उसकी आँखों के सामने फिर वही कांग्रेस के जुलूसों के दृश्य, युवक का पिस्तोल सामने कर देना, उसकी वह कातर प्राण-निक्षा सब अनेक बेर सामने आने लगा। पति के करवट बदलने या किसी अंग के हिलने की ब्राइट से यह उस और देख लेती, कभी घड़ी की और कभी उसे अनुभव होता कि पड़ी की सुइयाँ बहुत धीमे 1 चल रही हैं और कभी जान पड़ता कि सुई पन्द्रह बीस मिनट सहसा कूद गई। पड़ोस में किसी के गाने का क्षीण स्वर सुनाई देने लगा। उसने घड़ी की ओर देखा दोनों सुइयाँ चार पर इकट्टी हो रही थीं। कहीं दूर से मुगों की

माँग सुनाई दे रही थी। कहीं पड़ोस से पानी के नल की तेल भार खाली वाल्टी में गिरने का शब्द सुनाई दिया। माँ जी के कमरे से खाँसने-खखारने की आवाज़ आने लगी। इसके बाद उनके धीरे-धीरे गुनगुनाने का शब्द सुनाई दियाड जाग मुसाफिर मोर सई माँ जी अपनी भक्ति का गीत सुबह


बहुत धीमे स्वर में गाती हैं और ममता से धीरे-धीरे उदय की पीठ सहलाती जाती है। माँ जी का यह गीत उदय के लिये मीठी नींद लाने के लिये लोरी है परन्तु जान बचाने के लिये सचमुच ही उठ कर चल देने का संदेश है। पड़ी में पाँच भी बन चुके थे यशोदा को जान पड़ा कि उसकी सहानु भूति और दया का पात्र मेहमान अब बहुत जल्दी चला जायगा। वह कुछ देर और क्यों न ठहरे संकट और भय से वह सदा के लिये क्यों न मुक्त हो आय पदी की सुहाँ उसे बहुत तेजी से धागे बढ़ती जान पड़ रही थीं। लड़की से दिखाई पड़ने वाले आकाश के भाग में ऊपा की प्रथम आभा छा गई थी परन्तु यशोदा को जान पड़ता था-अभी तो पौ फटने में देर है, अभी ती सब सुनसान हैं। नीचे सड़क पर कमेटी के मेहतरों की आवाज़ और वृक्षों पर कौचों का स्वंर भी सुनाई देने लगा। पैने छः बहुत जल्दी बज गये ! दो ही तीन मिनट शेप थे। वह नीचे जाने के लिये उठ बैठी । उसके खड़े होते ही सड़क से अख़बार वाले की पुकार सुनाई दी 'धमफेस का कैदी भाग गया- आज की ताज़ी ख़बर । एक धके से वह फिर पलंग पर गिर पड़ी परन्तु तुरन्त ही सॅमल कर नीचे पहुँची।

युवक, नौकर के मैले-कुचैले कपड़े पहन एक फटा मेला सा कपड़ा कानों पर बाँचे, उसकी प्रतीक्षा में बैठा था। उसे देखते ही यह उठ खड़ा हुआ। मैं कुछ कह नहीं सकता, आपने जो दया दिखाई है, आपका कल्याण हो !' द्रवित स्वर में वह बोला परन्तु उसकी जिह्वा से पहले उसकी दृष्टि ने बहुत कुछ कह दिया किमान सोल, खाली कनस्तर बगल में दबाये वह फुर्ती 1 से सड़क पर उतर गया।

"

उसे यों जाते देख यशोदा का हृदय मुँह को आने लगा, ठीक उसी तरह जैसे उद के छत की मुंडेर पर झुकने से वह काँप उठती किवाड़ों की सकल लगा लिड़की के काँच से सड़क पर जहाँ तक दृष्टि जा सकती थी, यशोदा देखती रही। वह युवक सर्दी से सिकुड़ता, बगल का कनस्तर बजाता; बेपरवाही से चला जा रहा था। जब कुछ दिखाई न दिया तब भी वह अपनी पथराई इसी ओर लगाये रहो। सड़क पर दूसरे लोगों को प्राते-जाते देख उसे याद शाया-बैठक से यह सब सामान उसे तुरंत दूर कर देना है।

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रचनाएँ
दादा कामरेड
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दादा कामरेड पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। इसे हिंदी साहित्य में एक अग्रणी राजनीतिक उपन्यास माना जाता है। उपन्यास अर्ध-आत्मकथात्मक है, और हरीश नाम के एक युवक की कहानी कहता है जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो जाता है। उपन्यास स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है, और क्रांतिकारी संघर्ष के शक्तिशाली और मार्मिक चित्रण के लिए इसकी प्रशंसा की गई है। यह उपन्यास 20वीं सदी की शुरुआत पर आधारित है और इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में हरीश के बचपन से होती है। हरीश एक प्रतिभाशाली और जिज्ञासु लड़का है, और वह स्वतंत्रता और समानता के उन विचारों की ओर आकर्षित होता है जो उसने अपने पिता, एक गांधीवादी राष्ट्रवादी से सुने थे। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, हरीश स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गया और अंततः उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। जेल में, हरीश की मुलाकात अनुभवी क्रांतिकारी दादा से होती है, जो उसके गुरु बन जाते हैं। दादा हरीश को वर्ग संघर्ष के महत्व के बारे में सिखाते हैं, और वह हरीश को एक बेहतर दुनिया के लिए संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित करते हैं। जेल से रिहा होने के बाद, हरीश एक पूर्णकालिक क्रांतिकारी बन गया, और उसने अपना जीवन स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के संघर्ष में समर्पित कर दिया। दादा कामरेड एक शक्तिशाली और मार्मिक उपन्यास है जो स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है। यह उपन्यास हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है और क्रांतिकारी संघर्ष के यथार्थवादी चित्रण के लिए इसकी सराहना की गई है।
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 नये ढंग की लड़की

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 मध्यम रही अनिथित स्थिति के लोगों की एक अद्भुत चमेली है। कुछ लोग मोटरों और शानदार बंगलों का व्यवहार कर विनय से अपने आपको इस श्रेणी का अंग बताते है। दूसरे लोग मज़दूरी की सी असहाय स्थिति में रहकर भी

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 नये ढंग की लड़की

11 सितम्बर 2023
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 मध्यम रही अनिथित स्थिति के लोगों की एक अद्भुत चमेली है। कुछ लोग मोटरों और शानदार बंगलों का व्यवहार कर विनय से अपने आपको इस श्रेणी का अंग बताते है। दूसरे लोग मज़दूरी की सी असहाय स्थिति में रहकर भी

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 केन्द्रीय सभा

11 सितम्बर 2023
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 कानपुर शहर के उस संग मोहल्ले में आबादी अधिकतर निम्न श्रेणी के लोगों की ही है। पुराने ढंग के उस मकान में, जिसमे सन् २० तक भी बिजली का तार न पहुँच सका था, किवाड़ विज्ञायों के नहीं कंदरी और देखा के

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 मज़दूर का घर

11 सितम्बर 2023
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 हरिद्वार पैसेंजर लाहौर स्टेशन पर आकर रुकी। मुसाफिर प्लेटफार्म पर उत्तरने लगे। रेलवे वर्कशाप का एक कुली, कम्बल ओ और हाथ में दं ओज़ार लिये, लाइन की तरफ़ उतर गया। राक्षत रास्ते से आदमी को जाते देख ए

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 तीन रूप

11 सितम्बर 2023
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 शैलपाला अपने कमरे में बैठी जरूरी पत्र लिख दी थी। नौकर ने जबर दी, दो आदमी उससे मिलने आये हैं। लिखते-लिखते उसने कहा- नाम पूछकर श्रो लोटकर बोकर ने उसे एक चिट दियां चिट देखते ही वह तुरन्त बाहर आई। ह

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मनुष्य

11 सितम्बर 2023
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 दिन-रात और अगले दिन संध्या तक बरफ गिरती रहने के बाद रात में बादल पढ़ कर उस पर पाला पड़ गया। सुबह से स्वच्छ नीले आकाश में सूर्य चमक रहा था। नीचे विछे अनंत श्वेत से प्रतिबिम्बत धूप की कई गुणा मढ़ी

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गृहस्थ

13 सितम्बर 2023
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 ० आर०' और 'हरीश' वह दो नाम अमरनाथ के मस्तिष्क में बारी-बारी से चमकते अपनी शक्ति पर सन्देह करने की कोई गुंजाइश न थी "ठीक बाद था ठीक उसने अपना नाम ० कारखाना और पद उसका नाम बताती है, 'परी' ये सोचते

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 पहेली

13 सितम्बर 2023
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 मंग के सामने कुराड़ी में बेत के काउच पर राबर्ट और शैल बैठे दुबे थे। राबर्ट के एक हाथ में सिगरेट था और दूसरे हाथ में एक पर अनेक दिन के बाद प्रतोरा का पत्र आया था राम पत्र पढ़कर रोल को सुना रहा था-

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 सुलतान १

13 सितम्बर 2023
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पंजाब-मिल, सितारा-मिल, डाल्टन मिल आदि कपड़ा मिलों में डेढ़ मास ताल जारी थी। हड़ताल समाप्त होने के आसार नज़र न आते थे। जून की गरमी में जब लू धूल उड़ा-उड़ा कर राह चलने वालों के चेहरे झुलसा देती थी राबर्

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दादा

13 सितम्बर 2023
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 लाहौर की बड़ी नहर के दाँवे किनारे की सड़क पर दादा साइकल पर चले जा रहे थे। उनसे प्रायः बीस क़दम पीछे-पीछे दूसरी साइकल पर श्रा रहा था जीवन । माडलटाउन जाने वाला पुल लाँघ वे नहर के दूसरे किनारे हो गय

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 न्याय !

13 सितम्बर 2023
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 दकताल में माज़दूरों की जीत होगई। उत्साहित हो कर दूसरों मिलों और कारखाना के मज़दूरों ने भी मज़दूर समायें बनानी शुरू कर दीं। कई मिलों में और कारखानों के क्वार्टरों में रात्रि पाठशालायें जारी हो गई।

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 दादा और कामरेड

13 सितम्बर 2023
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 अदालत से लोड कर शैक्ष ज्वर में पलंग पर लेट गई। ज्वर मूर्छा में परिणित हो गया। उसे कुछ देर के लिये होश आता तो वह अपने इधर-उधर देख कर कुछ सोचने लगती और फिर बेहोश हो जाती। मुआजी उसके सिराहने बैठीं ब

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