शैलपाला अपने कमरे में बैठी जरूरी पत्र लिख दी थी। नौकर ने जबर दी, दो आदमी उससे मिलने आये हैं। लिखते-लिखते उसने कहा- नाम पूछकर श्रो
लोटकर बोकर ने उसे एक चिट दियां चिट देखते ही वह तुरन्त बाहर आई। हाथ जोड़, नमस्कार कर दोनों आदमियों को भीतर के कमरे में से गई। दोनों को सो कुर्तियों पर बैठा उसने बी० एम० की ओर देख मुस्करा कर पूछा-हुत दिनों में दर्शन दिये, कुशल तो है '
सरसरी नज़र से बी० एम० के साथी की ओर उसने देखा बतान हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति जिसके चेहरे पर शारीरिक ना की गंभीरता विराजमान थी। बड़ी-बड़ी जिनसे कोमलता नहीं, बढ़ता उपक रही थी। शैल ने फिर बी० एम० को धीमे स्वर में सम्बोधन किया जाये हरीश का क्या है
बी० एम० ने अपने पीछे दीवार में खिड़की की ओर संकेत कर पूछा- 'यहाँ कुछ बातचीत कर सकते है
मुस्कराहट की जगह शैलपाला के चेहरे पर गम्भीरता की मुद्रा छा गई। '' उसने सिर झुकाकर कहा और फिर उठ परदे के पीछे वाले कमरे में जा, उस कमरे का दरवाजा इधर से बन्द कर वह अपनी कुर्सी उनके समीप खीच बैठ गयी।
बी० एम० ने अपने साथी की ओर संकेत कर धीमे स्वर में परिचय कराया- आप दादा है।'
शैलबाला ने दादा की ओर देख फिर नमस्कार किया और आदर से मुस्कराकर बोली- 'प्रापका चर्चा अनेक बेर सुना था, आज दर्शन हुए
बी० एम० ने कहा- 'दादा आपने कुछ पूछना चाहते हैं' दादा ने सहसा पूछा 'हरीश कहाँ है ?'
कुछ आश्चर्य और आशंका से शेलवाला ने उत्तर दिया- 'क्यों मुझे तो नहीं मालूम। लगभग तीन सप्ताह हुए वे यहाँ आये ये
यहाँ
उन्हें किसी से मिलना था वो तो शायद आप ही लोगों से मिलने गये थे। उसके बाद वह इधर नहीं आये।
दूधर तीन सप्ताह में हरीश आप से नहीं मिला 'आपको मालूम है, यह कहाँ मिल सकता है ?' दादा
पी० एम० ने पूछा । के प्रश्न से शैलवाला के मन में आशंका उत्पन्न हो गई थी कि होश फिर गिरफ्तार न हो गया हो ? परन्तु बी० एम० के प्रश्न से उसे कुछ और ही बात जान पड़ो ।
दादाने वाला की कुर्सी की ओर देखते हुए कहा- 'आपको बता देना चाहिए, वह कहाँ है '
मानो दादा ठीक बात न कह सके हों, इसलिए बी० एम० ने तुरन्त ही खाँ कर कहा 'एक बहुत ही जरूरी काम है ।'
शेल ने विस्मय से दोनों की ओर देखा। दादा के स्वर का क्रोध और बी० एम० का यात सम्भालने का प्रयत्न दोनों ही उससे छिपे न रहे। उसने विस्मय के स्वर में पूछा- यह आप लोग क्या कह रहे हैं। मैं कुछ समझ नहीं सकी
'बात यह है, पार्टी का बहुत नुकसान हो रहा है, उसके न मिलने से और यह आश्चर्य की बात है कि वह यहाँ आये और आपसे न मिले १- बी० एम० ने बात जारी रखते हुए कहा क्योंकि यहीं से तो प्रायः हम लोगों के संदेश आते जाते हैं।'
शैलवाला दादा को बिना देखे ही उनके मस्तिष्क में बढ़ते असंतोष को अनुभव कर रही थी। उनकी आशा अनुकूल दादा ने कहा- देखिये सीधी बात यह है; 'आपके लिये पार्टी की बात का महत्व अधिक है या हरीश की '
श्रागे न जाने क्या आनेवाला है, इस आशंका में शैलबाला ने विस्मय से फैली शॉलो से दादा की ओर देख उत्तर दिया- 'महल मेरे लिये पार्टी का ही अधिक है परन्तु मैं आपकी बात नहीं समझ पा रही हूँ।'
दादा ने और अधिक तीव्र स्वर में पूछा—' श्रापका इरीश से क्या सम्बन्ध है '
अधिक विस्मित हो लाला ने उत्तर दिया- मेरे (मित्र) हैं?
दादा की आँखों के बोरे फैल गये अपने आपको रोकते हुए उन्होंने महार "के बाकियों और सड़कों की शिप (मित्रता के क्या माइने
शैवाला चकित रह गई। कुछ मी उत्तर देने में असमर्थ, वह कुछ
की ओर देखती रही। उसका मन्दुमी चेहरा गुलामी हो गया. दादा को सम्बोधन कर उसने कहा मेरे हृदय में आपके लिये बहुत आदर है। मैं समन्तती थी, आप लोगों के विचार बहुत उदार होते हैं लेकिन मैं कुछ
और ही देख रही हूँ बी एम ने जियों की स्वतंत्रता और पुराने संस्कारों के बारे में कुछ और ही कहा था" “और जो भी हो मेरे गित सम्बन्धों से आपको क्या मतलब है, में नहीं समझ सकी। रोल ने विनीत
स्वर में बात कहना आरम्भ किया था परन्तु अन्तिम राहते उसका स्वर तीखा हो गया। उसी आवेश में पी०एम० को सुना, खिड़की की ओर सुखकर वह कहती गई जहाँ तक बन पड़े मैं आप लोगों की सहायता
करना चाहती हूँ परन्तु अपने व्यक्तिगत सम्बन्धों की आलोचना में पिताजी के अतिरिक्त किसी से भी नहीं सुन सकती
दादा के पैरों तले से जमीन खिसक गई ये हैरान थे। श्री के प्रति सम्यता के से वे इस अपमान को पी गये। अपने निश्वास को रोक मंथों की दाँत से काटते हुए उन्होंने पूँछों आप क्या पार्टी की मेम्बर नहीं है। पार्टी की मेम्बर होकर आप को विसिप्लिन में रहना होगा। आप जानती है, आपने हमारा कितना नुकसान किया है
विस्मय से साँस रोके और बी० एम०
दादा की
देख रहे थे। इस बात का कुछ भी स्पात न कर वे कहते चले गये- 'आपने हमारी पार्टी के दायें हाथ को काम कर दिया। जो आदमी एक दिन अपना सिर होती पर लिये फिरता था, आपकी इस
जान बचाने के लिये जनता के संगठन का बहाना हूँ दवा फिरता है आप आई थीं हमारी सहायता करने के लिये आपने हमारा सत्यानाश कर दिया और अब भी पार्टी के डिसिप्लिन को न मानकर उसका पता बताने से इनकार करती है ?
लमा, आँखों में
चोम और अपमान से नाला का गता ॐ गया। उसकी आगये, उनकी पर्वाह किये बिना ही उसने
दलिये
आप लाग व्यय मेरा अपमान कर रह
आपक चादर का सवाल कर
मैं यह सुन गई परन्तु आप बढ़ते जाते हैं। कौन कहता है, मैंने किसी को जान बचाने के लिये कहा ? ( उसने पी० एम० की ओर देखा ) कौन कहता है मैं पार्टी की मेम्बर हूँ मुझे मालूम नहीं, और मैं पार्टी की मेम्बर हूँ शक्ति भर उमने आँसू प्रकट न होने देने की चेा की। उसके शरीर में कंपकपी आग उसके दायां पर टपक पड़े। अपने आँखों से मित हो, दीवार की ओर मुंह कर वह उन्हें आँचल से पड़ ही रही थी कि बाहर पैरों की आहट सुनाई दी। अधिकार पूर्वी स्वर में उसने कहा 'ठहरो!" बाहर से आवाज़ आई 'बी'
अरने पड़ एक हाथ से उन्हें बैठे रहने का संकेत कर वह बाहर गई।
शैल की अनुपस्थिति में दादा ने बी० एम० की ओर देखकर पूछा- 'तुमने मुझे बताया था कि वह पार्टी की मेम्बर है. पार्टी के काम के लिये घर छोड़ना चाहती है !'
रहे हैं
सीसीएम ने उत्तर दिया आप उसका रवैया देख
ॐ भाकर अपना हाथ नावे पर मारते हुए दावा ने कहा कुछ नहीं समझ सकता कितना अपमान मेरा हुआ ?'
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माता के बाहर आने पर नौकर ने उसे एक पुर्णा और एक लिखा दिया। पुर्जे पर अंग्रेजी में केवल एक अरH (C) तिला था। कोच में पागल हो शेतवाला ने कमरे की ओर कदम बढ़ाया कि कहते तुम्हारा हरीश, जिसके लिये मेरा तिर खा रहे हो परन्तु एक उसके लिये कदम रोक लिये। फिर हाथ में लिये वह लोटकर बाहर आई। उसे देख हरीश अँगे से उतर आया।
-
शैवाला ने पूछा- तुम कहाँ से आये
तो आगगा
आशंका ने
हरीश ने उसकी लाल चों की ओर देखकर पूछा- पहा!'
'कुछ नहीं
ने
कोई तुम्हारी सुरक्षित जगह नहीं है
एकदम जाओ........
शैलबाला की व्यता देख हरीश ने बेपरवाही से कहा- मेरी कोई
नहीं
"पर क्यों
कोई मार्ग न देख शैलबाला ने हाथ में लिया के को मरो कहा- 'जाओ, यशोदा के यहाँ चले जाओ!
यहाँ कैसे जा सकता हूँ?' बेबसी से हरीश ने पूछा।
तुम्हारे पैरों पकती हूँ, नहीं जाओ आवे घरटे में आकर तुम्हें ले आऊँगी जल्दी करो ---विश्लाकर उसने कार इन्हें छो
हरीश को ले मोटर सड़क पर निकल गई। हाथ के लिखने को खोलती हुई वह कमरे की ओर लौट रही थी। लिफाफे के भीतर कागज पर अंग्रेजी टाइप में केवल पंक्ति थी-Dada and B. M. want to shoot Harish. Save him. A friend of the party (दादा और बी० एम० हरीश के माथ लेना चाहते हैं। उसे बचाओ-पार्टी का शुभ- चितक)। रोल की धौलो के सामने आग की लपटें नाच गई। उसके कदम काँप गये। दूसरे ही उसने मुक्ति का साँस लिया है भगवान ! नौकर को पुकार शैल ने पूछा- 'हलिकाका कौन दे गया था नौकर ने बताया — दोनों बाबू जब आये, तभी पाँच मिनट बाद एक बाबू साइकल पर आकर लिया दे गये कि बीबी जी के हाथ में तुरन्त देना ।
गहरी साँस लेकर अभिमान से सिर उठाये वह कमरे में आई दादा की ओर देखकर उसने कहा- आप अपनी पार्टी के डिसिप्लिन की बात करते हैं? आप कहते हैं, मैंने आपकी पार्टी का सत्यानाश कर दिया यह लीजिये अपनी पार्टी का डिसिप्लिन' कहते-करते यह पर्चा उसने दादा के सामने कर दिया।
दादा रुक-रुक कर पर्चे को पढ़ रहे थे। पर्चा उनके श्वास के प्रहार से रहा था। हाथ बढ़ाकर पी० एम० पर्चा से लेना चाहता था। शैलवाला ने भन कर पर्चा से मोड़कर अपने न्हाउन में सोच लिया।
बी० एम० मे कहा यह पर्चा दे दीजिये !
शैवाला ने रूखे स्वर में उत्तर दिया- कौजिये गलती हो गई, इससे अधिक विश्वासघात नहीं कर सकती है
दादा उठकर लड़े हो गये। अने दोनों हाथों की उँगलियाँ चलाते हुए दीवार की ओर देख उन्होंने कहा 'मुखा कीजिये मुक बेअदबी हुई। मुझे कहा गया था कि आप पार्टी की मेम्बर है। इसी बाते
मैंने आप से इतना कुछ कहा। वर्ना आपसे आलोचना करने का कोई अभि- कार न था । मुझे अफसोस है।'
इतना कह दादा चल दिये। बी० एम० भी गुड बाई ' कह दादा के पीछे चला जा रहा था। रोलवाला कई कदम उनके पीछे-पीछे गई। उसका मन चाहता था दादा से क्षमा माँग से उनकी कठोर बातों का उत्तर दिये विना वह न रह सकी परन्तु उनकी बेबसी के सामने वह पानी-पानी हो गई। उसके आत्मसम्मान और तथा ने, जो एक ही वस्तु के दो रूप हैं, उसके शरीर को निश्चल कर दिया। उसका मन चाहा, खड़ी होकर से ले परन्तु उसी समय मस्तिष्क में बिजली-सी कौंध गई—'यशोदा !'
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शैलबाला के मकान से यशोदा का मकान अधिक दूर न था। कार से वहाँ पहुँचने में हरीश की चार मिनट भी न लगे इसी बीच उसके दिमा में न जाने कितनी ही बातें घूम गई। यशोदा के पति अमरनाथ इस समय घर पर न हो तो उसकी जान बचे। लेकिन वे तो हांगे, जरूर होंगे। किस तर आया था यह यहाँ बितायेगा ? क्यों वह इस समय यशोदा के यहाँ जा रहा है इससे कहीं यशोदा ही संकट में न पड़ जाय वह न आता तो अच्छा था। उसी समय शैक्कराला का अत्यन्त व्याकुल चेहरा उसके सामने आ खड़ा हुआ जाओ, जल्दी जाओ मैं तुम्हारे पाँव पड़ती हूँ। आये चराटे में मैं आकर तुम्हें ले जाऊँगी उसकी वह घबराहट, उसका अत्यन्त समीप खाकर खड़े हो जाना दबे हुए परन्तु जोरदार शब्दों में बोलना, उसकी साड़ी का काला किनारा, उसकी वह भीमी सी सुगन्ध | हरीश ठीक तौर पर कुछ निश्चित न कर पाया था कि गाड़ी यशोदा के मकान के सामने जाफर खड़ी हुई। अमरनाथ को यह पहचानता भी तो नहीं। वह क्या करेगा क्या करेगा ?
ड्राइवर ने गाड़ी का दरवाज़ा खोल दिया। अब पीछे हटने का मौका न था। हरीश उत्तर पड़ा। गाड़ी फिर चल दी। वह शनैः-शनैः मकान की कुर्ती की दो सीढ़ियाँ चढ़ा। जेब में पिस्तोल को अनुभव किया। कुछ खाँसा फिर गले की नेकटाई को सीधा किया। बैठक का दरवाजा खुला ही था। विक उठाकर वह भीतर चला गया।
मैले शरीर के एक स्वस्थ सज्जन सदर के कपड़े पहने बैठक में एक ओर सोफा कुर्सी पर बैठे सामने तिपाई पर कुछ लिख रहे थे। जिस समय हरीश ने प्रवेश किया वे अपना फाउण्टेन पेन तिपाई पर रख सामने रखा पानी
का गिलास उठाकर पीना ही चाहते थे, एक सजन को भीतर आते देख गिलास फिर उन्होंने क्यों का त्यों रख अभ्यर्थना से कहा- आइये !! और सोफा पर बैठने का संकेत किया।
हरीश ने नमस्ते कह बेपरवाही से बैठते हुए कहा 'मेरा नाम जे० द्वार शुक्ला है मैं 'जिरेमी एन्ड जानवन' कम्पनी में ट्रेवलिंग इंजीनियर हूँ। मकान मेरा यहाँ लाहौर में ही है लेकिन मुझे काफी करना पड़ता है।
अगर आपको एतराज न हो में आई है स्मोक १' (एक सिगरेट जला हूँ) मँगाता हूँ' उठने का उपक्रम करते हुए अमरनाथ बोले ।
'नहीं-नहीं, यह देखिये मेरे पास है जेब से एक नये ढंग का हत्ती कीमत का सिगरेट के निकाल उसे अमरनाथ के सामने कर हरीश ने कहा- 'आप भी लीजिये न !'
विनय से हाथ जोड़ अमरनाथ बोले-'शौक कीजिये, मुझे आदत नहीं ।' "ओह, लेकिन मेरे पीने से तो आपको बुरा न मालूम होगा १ हरीश उनकी ओर देख मुस्करा दिया
'नहीं, नहीं बिलकुल नहीं। आप शोक कीजिये ।' अमरनाथ ने विश्वास दिलाया दियासलाई जला हरीश ने सिगरेट सुलगाया और अमरनाथ से बचा धुएँ का लम्बा तार छोड़ दिया। इस सब दौरान में यह वही निश्चय कर रहा था उसे यहां कहना क्या है
से
तकरीवन यह और कभी-कभी तीन
हो बात यह है— सोफे पर आराम से पसरते हुए उसने कहा- "मुझे कम्पनी के काम से सफर बहुत करना पड़ता है। समझ लीजिये कि महीने में दो हफ्ते कम से कम हफ़्ते । फिर एक लम्बा का सोच उसने कहा 'सफ़र में कुछ न कुछ खतरा रहता ही है। पिछले महीने पेरा सूटकेस ट्रेन चोरी चला गया और अभी मैं खुद ही एक्सीडेण्ट से बच्चा हूँ एक और लम्बा उसने लींचा मुझे कम्पनियों के एजेण्टल ने इंश्योरेंस के लिये मीच (कहा) किया है लेकिन मैं कुछ बेपरवाह सा आदमी हूँ और फिर आप यह भी जानते हैं कि जब कोई अप्रोच करे तो आदमी बचने की कोशिश करता हरीश ने दिया 'हालांकि मुझे स्वयं भी इंजीनियरिंग फर्म बाली को अप्रोच करना पड़ता हैं।
उसकी हँसी में योग देते हुए अमरनाथ ने कहा-गुड, देउमाइस (खूब खूब)। पानी का गिलास उठाते हुए पूछा- 'जल पीजिये न
'आप पीजिये, मैं पी लूँगा, आप पीजिये हरीश ने कहा- 'यह आप पीजिये और था जायगा, अभी ज़रूरत नहीं।' अमरनाथ ने जल पी लिया।
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'हाँ तो हरीश ने कहा-'आज में बाल-बाल बचा हूँ। यह समझ लीजिये कि हास्पिटल रोड से मैं एक दोस्त की गाड़ी में जा रहा था. यही गाड़ी जो मुझे अभी यहाँ छोड़कर गई है कि सामने के मोड़ से एक तारी घूम पड़ी और बाई ओर से एक टाँगा मैं नहीं जानता, बस जिन्दगी ही थी। लारी और गाड़ी दोनों के महगाई टूट गये। दोस्त के यहाँ पहुँचा । उसने मुझे सलाह दी कि मरना जीना तो भाग्य की बात है परन्तु आज राम से पहले अपना बीमा करा लो १' हरीश ने फिर एक लम्बा कश खींचकर दीवार पर लगी घड़ी की ओर छोड़ा लगभग ग्यारह मिनट गुजर चुके थे।
अमरनाथ ने हँसकर कहा को विश्वास न हुआ, अनुभव ने
ठीक है, तो जिस बात पर दलील से आप आपको समझा दिया। मेरा अपना फायदा
तो यह है ही नहीं कि लोगों के पीछे पड़ा जाय। जैसे आपने फ़र्माया लोग चौंकते हैं। और दरअसल है वह एक सर्विस चाहिए तो यह कि सोसाइटी. और गमेंट प्रबन्ध करे। आप जानते हैं रूस में हर एक का बीमा
होता है, हर एक का
यह तो एक सामाजिक आवश्यकता है। आपके लिये
सब प्रबन्ध कर दूँगा। आप निश्चिन्त रहिये ।'
हरीश अपसुंदी आँखों से सिगरेट पीता हुआ अमरनाथ की और संतोष
से देख रहा था कि भला आदमी समय काटने के कठिन काम में स्वयम उसकी सहायता कर रहा है। अमरनाथ के चुप होते ही हरीश ने फिर कहा- 'हाँ वो मेरी शादी भी नई-नई हुई है। सनग्राह भी अभी कुछ कम ही है। कुल मिलाकर अढ़ाई सो सफर में खर्च भी होता ही है और मैं चाहता हूँ 1 दुर्घटना और चोरी के बीमे की पालिसी सब कम्पनियाँ तो ऐसा करती नहीं। आपकी बीमा कम्पनी स्वदेशी है कुछ स्वदेशी का भी ख़याल मुझे ज़रूर है। तो आप प्रबन्ध ऐसा कर दीजिये, कम मार्च में याज्ञानशीनी हो जाय दरीश हँस दिया एक दोस्त से आप की कम्पनी का ज़िक्र सुनकर आया हूँ।"
यह तो आप की कृपा है लेकिन' - अमरनाथ ने उठते हुये कहा- 'सर्विस आपको इस कम्पनी देसी कहीं नहीं मिलेगी १ देखिये रेडंस और जरूरी कल मैं आपको एक मिनिट में भीतर से ला देता हूँ। मुझे इस समय एक बहुत ही ज़रूरी काम से एक जगह जाना है। आप उन काराजों को देख लीजिये और फिर कल या आज शाम को ही मैं आपके यहाँ आ जाऊँगा।
ज़रा डाक्टरी मुआइना हो जायगा । इसमें उलझन का काम कोई नहीं tr ...मैं एक मिनट में खाया '
अमरनाथ जा ही रहे थे कि हरीश ने कहा-'अगर तकलीफ़ न हो, एक गिलास पानी..........
'अवश्य अभी लीजिये । लेमोनेड मंगवाऊँ ?'- आमह से अमरनाथ ने पूछानो प्लेन वाटर (नहीं केवल जल) - हँसकर हरीश ने कहा। 'बहुत अच्छा' अमरनाथ दूसरे कमरे में गये और वहीं से पुकारा- 'देखना, एक गिलास पानी जल्दी से और मेमना ।'
'अच्छा' ऊपर से मांजी की आवाज़ आई और उन्होंने नौकर को पुकारा- 'विशन !' कोई उत्तर न पा उन्होंने यशोदा की ओर देखकर कहा-बेटी ही दे आ, उसे बाहर जाना होगा ।'
यशोदा बैठी खिलाई कर रही थी। विज्ञाई एक ओर रख खीझते हुए उसने कहा- 'यह लड़का भी बाज़ार जाता है तो तीन घण्टे से पहले लोटने का नाम नहीं लेता।'
पानी का गिलास लेकर वह नीचे जा रही थी। साड़ी का आँचल ठीक करते हुए उसने सोचा इस समय बैठक में कौन होगा ? वे तो बाहर जा रहे है ? परन्तु बैठक का परदा हटाने पर गैर पुरुष को देख वह ठिठक गई। स्वयम यशोदा को जल लाते देख हरीश सहसा खड़ा होगया। अपना आँचल सम्भालते हुए विस्मय से यशोदा ने कहा- 'आप '
उसी समय अमरनाथ भी दूसरे कमरे से काराव लेकर आ पहुँचे यशोदा का विस्मय, उसका 'याए, कहना और हरीश का संकोच उन्होंने देखा। दोनों की ओर सरसरी नज़र उन्होंने डाली हरीश ने पतलून की जेब में हाथ डालते हुए परिस्थिति सँभालने के लिये यशोदा से पूछा- 'आप ठीक हैं?' मैं ज़रा बीमे के बारे में कुछ बात आप से करने आया था। फिर अमरनाथ की ओर देखकर समझाने के अभिप्राय से उसने कहा- 'यहाँ है न वो, कविस में कुछ काम करती है, उन्हीं के यहाँ आप को एक दफे देखा था।' इतने में यशोदा चली जा चुकी थी।
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अमरनाथ अभी स्थिति समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि बैठक की चिक से शैलवाला ने काँका 'आइये, मैं तैयार हूँ'- हरीश ने कहा और फिर अमरनाथ की तरफ़ देखकर बोला- 'आप ही के यहाँ तो उनसे परिचय हुआ था।
शैलयाला कुछ घबराहट और जल्दी में थी अमरनाथ को संक्षिप्त सा नमस्कार पर उसने हरीश से कहा 'आइये ?'
अमरनाथ के हाथ से कागज़ से हरीश ने कहा-'नमस्ते, फिर स्वयम् आऊँगा ।' और वह रोलवाला के साथ मोटर में जा बैठा।
हरीश के बाहर चले जाने पर अमरनाथ कुछ क्षण सोचते रहे। फिर बाहर जाने की बात भूल, भाटते हुए जीना चढ़ ऊपर पहुँचे। 'देखना !' उन्होंने यशोदा को पुकारा इस आदमी का क्या नाम था ?
यशोदा ने अपनी आशंकित बड़ी-बड़ी
हरीश कहते हैं।'
भएका उत्तर दिया- इन्हें
सिर जाते हुए अमरनाथ ने दोहराया 'हरीश ?' और कुछ सोचते हुए वे फिर नीचे उतर गये और अचकन पहन जहाँ जाना था चले गये परन्तु यशोदा का विस्मय, जे० आर० शुक्ला का संकोच और 'हरीश' यह दोन बस्तु एक-एक कर उनके मस्तिष्क में चमकने लगीं बार-बार ये सोचत जे० धार शुद्ररीश
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शैलबाला ड्राइवर को साथ न ला खुद हो गाड़ी चला रही थी। कुछ ही कदम वे गये होगे, हरीश ने चिन्ता के स्वर में कहा- एक और मुसीबत !' 'शैवाला की नज़र सामने सड़क पर थी। उसने पूछा 'वह क्या!' हरीश ने कहा- यहाँ उसके पति को मैंने अपना नाम बताया था जे० आर० शु मुझे क्या मालूम था, यशोदा जल लेकर नीचे आयेगी । अमरनाथ ने उसे मुझे पहचानते देख लिया। अब उससे मेरा जिक्र करेगा तो वह नाम बतायेगी हरीश
'छोटो उसे 'शैलवाला ने कहा 'तुम मेरा पर्स (बा) खोलकर देखो। 'क्या है' हरीश ने पूछा और उसका बटुवा खोलकर कहा-यह काग़ज़ हरीश ने पढ़ा अंग्रेजी के टाइप में शिला मा Dada and B. M. want to shoot Harish. Save him.-A friend of the party. चिन्ता से माथे पर त्यो चढ़ा हरीश ने पूछा—'यह क्या "
"यह अभी मुझे मिला है। जब तुम आये थे। भीतर बैठे थे इसीलिये मैने तुम्हें यहाँ भेज दिया ठिकाना ने उत्तर दिया।
दादा और बी० एम०
।
सड़क की ओर नज़र
कहाँ हैं वे लोग मैं उनमे मिलूंगा' हरीश ने कुसलाकर कहा।
"क्या हो रहा है तुम्हें हरीश क्या काम होगा इससे
सामने देखती रही।
A
चुम्ब हो
'तुम समझती हो, मैं जान बचाने के लिये भागता फिरता हूँ मैं उन
लोगों से एक दफे फैसला करूँगा । हरीश ने जोर दिया।
बाज़ार में भीड़ अधिक थी। शैलबाला ने कहा-चुप रहो
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दिल सत करो, एक्सीडेट हो जायगा चौक के सिपाही को दाहिनी तरफ घूमने का इशारा कर उसने कार घुमा दी अपेक्षाकृत मी कम होने पर नाराजगी के स्वर में हरीश ने कहा, तुम सुनती नहीं हो
कर
ने गाड़ी को
'सुनती हूँ मालरोड की तरफ घुमा दिया ! दो मिनट में मारोड से फीरोजपुर रोड की सुनसान में पहुँच गये। यहाँ गाड़ी धीमी कर उसने हरीश से पूछा- कहो क्या कहते हो क्या तुम ललना चाहते हो उन्हें शूट करना चाहते हो बदला लोगे?"
'नहीं' हरीश ने उत्तर दिया- मैं उनसे बात करना चाहता हूँ '
"और यदि उन्होंने बात सुने बिना तुम पर गोली चला दी फिर तो खाई होगी। यह तुम्हारा पार्टी के लिये बहुत अच्छा होगा, क्यों जिस आदमी ने तुम्हें यह संदेश मेना है, वह विश्वासघाती बनेगा। मे विश्वास-
घाती बनूंगी। इससे लाभ " शेल ने पूछा। हरीश चुप चाप सामने लगे गाड़ी के पूर्वो की ओर देख रहा था। शैलपाडा फिर बोली- हारा क्या पाल है, इस सबका कारण क्या है '
हरीश ने बिना सिर उठाये कहा- यह सब बी० एम० की शरारत है। वजह है, ईष! वह चाहता है, अपना महत्व बढ़ना और फिर मेरा स्माल है, तुम भी इसकी वजह होश ने उत्तर दिया।
'तुम यो करो, तुम्हारी राम के लोग मोजो कोई होंगे, तुम उनसे सलाह कर लो यह पर्चा तुम्हारे स्थाल में किसने मेजा है। उसी मे सलाह कर हो ! तुम कुछ दिन के लिये दक्ष जाओ !' लाल ने सलाह दी। कुछ उत्तर न दे हरीश ने अपना सिर शैलाला के कंधे पर रख दिया। दायें हाथ से गाड़ी का थामकर शैलबाला ने अपने बायें हाथ से उसका सिर सम्भाल लिया। गाड़ी शहर के बाहर पहायलपुर रोड पर चली जा रही थी। बच्चों के से अधीर स्वर में हरीश ने पूछा- 'मुझे कहाँ लिये जा रही हो त
यही तो सोच रही हूँ'शैल ने उत्तर दिया 'यहाँ पास ही मेरे एक मित्र का बँगला है। यहाँ तुम सुरक्षित भी रहोगे और तुम्हें आराम भी मिलेगा।' हरीश ने पूछा तो वहाँ भी मुझे नाटक करना होगा !'
'वे भाई बहन है, क्रिश्चियन्स ! उस लड़की से तो तुम्हें नाटक करना ही होगा। हाँ, मर्द से तुम बेशक खुल सकते हो। परन्तु कह नहीं सकती, वह इस समय मिलेगा या नहीं परवाह नहीं, चलो ! उस मोड़ से मुड़ चजें।'
परन्तु यह है कौन १ ऐसा विश्वासपात्र १ हरीश ने पूछा। कहा तो एक मित्र है 'शैल ने मुस्कराकर उत्तर दिया- 'तुम्हें उसी के हाथ सौंदूंगी जिसके हाथ अपनी जान सौंप सकूं समझे
'तुम्हारे मित्रों की गिनती का भी तो ठिकाना नहीं' हरीश ने विस्मय से कहा।
'तुम भी वह कहने लगे ?' उसकी ओर देख शेल ने पूछा लेकिन हरि सब समाप्त है। अब तो यहाँ एक है और एक तुम हो।" मैं भी हूँ' - हरीश ने पूछा—'यह भी मेरे जैसा ही है।' 'नहीं' ने कुछ मते हुए कहा- 'तुम-तुम हो, यह वह है हरी जीवन की इस नौका को ठिकाने लगा ही दूंगी बहुत ठोकरें खा और सबसे तो सुना ही था, आज तुम्हारे कान्तिकारियों से भी सुन लिया शैल के स्वर में उदासी भर गई।
कैसे'
'म पूछो ! तुम्हारे दादा कहते थे, लड़कियों और लड़कों की फ्रेंडशिप कैसी ?'
'उनकी बात जाने हो, वह उदरे दादा | उन्हें केवल एक ही चीज दिखाई देती है पर यह क्रिश्चियन कौन है ?'
"
'उसका नाम है राबर्ट !-दीर्घ निश्वास लेकर रोल ने कहा-'यदि भाग्य में हुआ तो उसी से विवाह करूंगी क्यों तुम्हें एतराज है ' 'नहीं, मुझे क्या दाराज, मैं तो उम्मीदवार नहीं हूँ परन्तु तुम्हारे पिताजी ..
'देखा जायगा !' ---- एक और लम्बी श्वास लेकर शैल ने उत्तर दिया- परन्तु मनुष्य का सौदा करनेवालों की अपेक्षा एक आदमी के पहले पहूंगी।'
एक बंगले
सात संध्या
में जाकर मोदी में गाड़ी खड़ी हो गई। बंगले के बीच के कमरे में पदों की से प्रकाश दिखाई दे रहा था। का अन्धकार छा गया था। शैल ने पूछा- हाँ क्या नाम बताऊँ?
जी. एम. मिराजकर, महाराष्ट्र
'नैनसी, नैनसी' शैल ने पुकारा और मोटर का हार्न बजा दिया। जनाने जूतों की लटलट आवाज कमरे से सुनाई दी और एक बाइ भरत की लड़की ने खाकर उत्तर दिया- 'इलो, शैल'
'हाँ' ने उत्तर दिया कमी है?
तुम भी क्या कहती हो
फोन किया तुम थीं कहाँ
आज शाम को चार दफे उन्होंने तुम्हारे यहाँ पाँच बजे से गये हुए है। कुछ सामान लाना
था। हम मंसूरी जा रहे हैं न कला
इस मौसम में मरेगी क्या कमरे में प्रवेश करते हुए शैल
ने पूछा। 'तुम क्या जानी, तार आया है, खूब बर्फ गिरा है। ज़रा इंजोय करेंगे महा दोगे
रोल ने हरीश की ओर इशारा करते हुए कहा मेरे दोस्त मि०जी० एम० मिरावकर, आप जिरेमी जानसन कम्पनी में इंजीनियर हैं।' नैनसी ने हाथ आगे बढ़ा दिया। हरीश ने तुरंत पतलून की जेब से हाथ निकालकर उससे हाथ मिलाया।
रोल ने कहा- चैनसी, यह हुम्हारे मेहमान रहेंगे एक दो दिन मेरे यहाँ इन्हें काफी आराम नहीं रह सकेगा, इसलिये तुम्हारे यहाँ से आई हूँ. 'जी', नैनी ने कहा-'हमारे यहाँ तो वहा मारी महत है न फिर हरीश की ओर देखकर सर माथे पर वे एक मेहमान और
सिफारिश
'सामान इन सब मेरे यहाँ ही परन्तु इन्हें कोई तकलीफ न हो 'अरे आप भी यहीं रहिये'
की
पड़ा है। अब इस समय नहीं आ ने फिर वाकीद की
चैनसी ने नगर काखामान की क्या
नैनसी ने उन्हें छोड़ा और कुर्सियों पर बैठाते हुए कहा- रेल, खाना साकर जाना करीब था तो है ही। राबर्ट भी मा आयेंगे।
'अच्छा तो फोन कर दूँ !' –शैल ने कहा ।
शैल दूसरे कमरे में फोन करके लौट रही थी। नैनसी ने हरीश से अँग्रेजी में पूछा - 'कुछ पीजियेगा, प्यास लगी होगी '
दिया।
एक गिलास जल जरूर पी सकता हूँ हरीश ने भी अंग्रेजी में उत्तर
१ सोडा-हिस्की लीजिये या दो बूँद बगडी १ डिनर (खाने) से पहले अच्छा रहेगा 'नैनसी ने पूछा।
नहीं, इस समय कुछ तबीयत नहीं चाहतीस भगवान का आशीर्वाद जल ही दीजिये।' हरीश ने उत्तर दिया।
शैल ने टोककर कहा-'ले क्यों नहीं लेते आधा आउंस ब्राण्डो १- परेशानी दूर हो जायगी !
हरीश ने सिर हिलाकर इनकार कर दिया। शैल ने मना किया— 'महाशय ही रहे डर लगता है ?
हरीश ने स्वीकार कियाहाँ नई चीज़ से घर ही लगता है। तुम लो तो मैं भी ले लूँ ' रोल ने भी सिर हिलाकर इनकार कर दिया।
नैन्सी के लोटने पर ऐश ने कहा-'मिराणकर, यह तो आपको मैंने बताया ही नहीं कि नैना मैं इसे नैना कहती हूँ की आर्ट (कलाकार) है। वायलिन तो ऐसा बजाती है कि पत्थर भी दिल उठते हैं और नाचने का कहना ही क्या है एक तो आवाज कम की—पस बुलबुल को मात कर देती है। हाँ, नैना कुछ सुनाओ, मिराजकर बड़े शौकीन हैं ? भई सुनाओ कुछ इस समय यही तबीयत है, ज़रा दिमाग़ से परेशानी दूर हो
नैनसी ने सिर हिलाकर कहा सब कुछ पैक करके भेज दिया आज सुबह की गाड़ी से
'तुम से कहा न मंसूरी ! तुम भी चलोगी न राबर्ट तो तुमको इसीलिये फोन कर रहे थे। पोल, राय इन्तजाम है, कोठी भी है चलो सचमुच ' यूँ तुम चलोगे मिराजकर १
निश्चितता से हरीश ने हाथ फैलाकर कहा-'मुझे तो महीना भर छुट्टी है, कहो तो गौरीशंकर, कंचनचंगा, नागा पर्वत नहीं कही चल सकता हूँ ।" 'लेकिन मैं पिता जी में पूछे बिना क्या कह सकती हूँ
'अरे कह दो, स्वास्थ्य को बहुत फ़ायदा होगा और होगा भी तुम्हारे पिता तो तुम्हारे स्वास्थ्य के लिये आसमान से तारे भी तोड़ ला सकते हैं नैनसी ने उत्तर दिया।
'परन्तु अकेले ?'
'दाय, बिलकुल बेबी हैन' ने नसी ने ताना दिया कहना, मैं जा रही हूँ। इन्तज़ाम है पिता जी कभी इन्कार नहीं करेंगे।'
हँसकर शैल ने हरीश की ओर देखा
आ जायगी '
अच्छा रहेगा ताजगी
नैनसी ने उत्सुकता से कहा- रात में तैयारी कर लो। हम लोग सुबह ही कार से चलेंगे, चार आदमियों के लिये जगह है हो, सचमुच वा मज़ा रहेगा।
बाहर से जहां की चाहर आई और रावर्ट ने कमरे में प्रवेश किया। प्रसन्नता के स्वर में उसने कहा चाह, तुम यहाँ हो और मैं तुम्हारे यहाँ जाफर खाना हूँ।'
नैनसी ने पुलकित हो कर कहा 'रूबी, रौता मंसूरी चलेगी
'अभी मैंने कहाँ का है अभी तो मेरे महमान की ही बात हो रही थी ' शैल ने राबर्ट से मिराणकर का परिचय कराया।
आखिर हो गया कि अगले दिन वे लोग बरफ़ देखने के लिये मंजूरी आयेंगे।