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 केन्द्रीय सभा

11 सितम्बर 2023

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कानपुर शहर के उस संग मोहल्ले में आबादी अधिकतर निम्न श्रेणी के लोगों की ही है। पुराने ढंग के उस मकान में, जिसमे सन् २० तक भी बिजली का तार न पहुँच सका था, किवाड़ विज्ञायों के नहीं कंदरी और देखा के ये छत पर सेल का छप्पर था।

छः नौजवान, कुछ दीवार का सहारा लिये और कुछ अपनी कोहनी की टेक लिये किसी प्रतीक्षा में बैठे थे। बाई ओर एक नवयुवक ईंट पर चलती हुई मोमबत्ती के प्रकाश में कोई पुस्तक पढ़ रहा था। उसके पास ही दूसरा चित्त लेटा देख रहा था। दो जने आपस में बैंगला में बात कर रहे थे। बीच में बैठा युवक विशेष स्वत्म्य जान पड़ता था। यह एक पिस्तोल के कारतूस एक ओर रख उसे साफ़ करता हुआ, अपने समीप बैठे युवक से बात कर रहा था।

बंगला में बात करने वाले दो युवकों में से एक ने कुछ आगे वह बीच में बैठे युवक को सम्बोधन कर कहा-दादा, देखो. पगारात हमारा तो तीन कला का गाड़ी नहीं पंकक लेने से नहीं होता है

चार पढ़ने वाले युवक ने

चार एक ओर

कर कहा-

तो फिर शुरू करो

नहीं कि वह

के

जो किताब पढ़ रहा था उसमे

का

तो पहले ही कह चुका हूँ,

उपर से नहीं आती

किताब के पन्नों में उँगली रखते हुए

बँगला में बात करने वाले दूसरे नौजवान ने

हुए पूछ But has he bren informed

भी मिली है) उसके उत्तर में किताब पढ़ने वाले में विशेष से कह

राम चार बजे के बाद कोई और ट्रेन

अपना कम्पसँभालते

(लेकिन उसे सूचना


'Ofcourse I Idid inform him myself' ( निश्चय, मैंने स्वयम्

सूचना दी थी।

1

दादा ने बारी-बारी से उन दोनो की तरफ देखा अपनी भूल समझ उस युवक ने कहा हम बोलता, जो उसको खबर ठीक से दिया गया था नहीं क्या ?' किताब पढ़ने वाले युवक ने अपना उत्तर फिर से दोहराया- 'तीन दिन पहले ही खबर दे दी थी। मैंने खुद खबर दी थी।

दादा ने सबकी ओर देखकर पूछा तो फिर क्या किया जाय '

अनबार पढ़ने वाले युवक ने अखबार एक ओर फेंक बैठते हुए कहा-- "कोई मुश्किल राह में आ गई होगी, नहीं आ सका । उसके लिये सकर करना भी तो बहुत मुश्किल है।'

किताब पढ़ने वाले ने हंसकर ताने के स्वर में कहा हाँ दिल ही न करे दादा ने ॐ भला कर कहा 'लेकिन इस मामले में उसका यहाँ होना जरूरी बात उसके मुंह पर होनी चाहिये ।'

बंगाली साथी चिन्ता से अपने गहरे साँवले चेहरे पर अपनी बड़ी बड़ी घुमाते हुए बोला पर हमारा खाना तो ऐसे नहीं हो सकता। इन इधर से जाकर ईस्ट (पूर्व) चला जायगा ।"

दूसरे बंगाली ने अपने साथी को सम्बोधन किया- 'अखिल ! बंगाल का बारे में जो बात है तुम अपना कह दो और बात ये लोग अपना फॉर बी करने सकता है

खत दुबला पतला, छरहरे बदन और गहरे साँवले रंग का खास पूर्वी बंगाली नशिल का युवक या हिन्दी बोलने के कठिन प्रयज्ञ में उसके चेहरे की स्वाभाविक गम्भीरता और भी गहरी मालूम पड़ती थी। अपने भाष व्यक्त करने में कठिनाई अनुभव करते हुए वह के लाइन के बारे में आपको क्या ख्याल है है। पुलिस का नियंत्रण बहुत कठिन है। कुछ

बोला-'फ्यूचर (भविष्य ) बंगाल में तो बोल मुश्किल भी बिलकुल नई करने से

तो सब खतम हो जायगा । पुराना जो दादा लोग है, वो तो सिर्फ बड़ा बड़ा बात करता है और कांग्रेस का पार्टीबाजी में है" "हमारा एक्सप्लोतिय ( विस्फोटक पदार्थ) में एक्सपर्ट (चतुर) कोई नई होने से कुछ कर नहीं सकता । को यंगमैन है; उसको कम्युनिस्ट खींचता जाता है

किताब पढ़ने वाले ने हँसकर ठोक दिया—'और एक्सप्लोसिव ( विस्फोटक पदार्थ ) बाला चाची हाथ में से सबको नचाता फिरता है।'


दादा चिन्ता से होंठ काटते हुए मोमबची की ओर देखने लगे। उनकी दोनों गहरी भूरी पुतलियों में मोमबती के दो प्रतिविम्ब काँप रहे थे। उसी समय जीने से आवाज़ आईन !'

ने

दादा ने सिर उठाकर पूछा कौन ?'

जीने से आवाज़ आई 'नाइन - नाइन एड-एट

अपनी सतर्क खाँले सन्तोय से भरकर दादा ने कहा- 'आने दो

कुछ ही सेकेण्ड में एक और नौजवान देश के इंजनपर के कुक्षियों से नीले कपड़े पहरे और एक सस्ता कम्बल ओढ़े सामने आया। उसे देख सभी ने उसका स्वागत किया। परन्तु स्वागत का प्रकट रूप मित्र मित्र या दादा कुछ न केवल सिर हिला दिया, जिसका अर्थ या 'तुम आये तो ! अखिल ने चमकते नेत्रों से उसकी ओर देख कर कहा Oh you have come after all' (आखिर तुम आ ही गये) दूसरे बंगाली ने इंसकर बंगला में कहा- एशो-एथो, हरीश !'

अखबार पढ़ने वाले ने किताब पढ़ने वाले की ओर देखकर कही एम० तुम तो छोड़ बैठे थे

बी० एम० ने दादा की ओर देखकर कहा- चार बजे ट्रेन या जाती

है, आखिर इतना समय

दादा ने अपनी आँखों की पुतलियाँ ऊपर उठा हरीश की ओर देखकर पूछा 'कहाँ ये तुम? आने के बाद तुम मिले क्यों नहीं ? तुम्हें मालूम नहीं था; यहाँ नौ बजे पहुँच जाना चाहिये था ? बी एम ने बंगाली साथी की ओर देखकर कहा He will give some nice story (कोई न कोई गध्य यह सुना ही देगा ) ।

हरीश एक बाँह टेक बैठ गया था। इस ब्ती पर विग उसने कांध

में कहा- तुम्हारा मटलय में सैर कर रहा था

दादा ने क्रोम से डाँटीबाट क्यों नहीं करते

हरीश ने दादा की ओर देखकर उत्तर दिया- इसने यह सीधी बात "वह आपको नहीं सुनाई दी

कही है

हाने बनाता हूँ ?'

"इसका मतलब है

दादा चुप हो गये। श्री एम और दादा को छोड़ रोप लोग कहने लगे नो नो नो !'

दादा के समीप बैठे युवक ने हंसकर हरीश के कपड़ों की ओर संकेत कर कर कहा 'अरे यह तुमने क्या योग बनाया है ।"

दादा ने अपनी बात को दुहराते हुए पूछा- 'पर तुम ये कहाँ इतनी देर ?' 'अभी स्टेशन से आ रहा हूँ दादा - हरीश ने उत्तर दिया । अलवार पढ़ने वाले युवक ने विस्मय से पूछा- परन्तु इस समय ट्रेन कोन आती है

हरीश बोला— सवारी गाड़ी से नहीं आया हूँ। अली, तुम जानते हो, उत स्टेशन पर गाड़ी चढ़ना मेरे लिये कितना मुश्किल है। मैंने मालूम कर लिया था, रात सवा दो बजे एक मालगाड़ी मसराय के लिये चलने वाली थी। उसमें आये से अधिक कोयले के खाली ट्रक ( बिना छत की गाड़ी ) थे। यह कपड़े पहन लोको के रास्ते जा एक ट्रक में सो गया। मालगाड़ी जिस चाल से चलती है, तुम जानते ही हो १ गाड़ी अभी ही पहुँची है; वो भी स्टेशन के प्रासीर में खड़ी हुई। वहाँ से उतर कर अभी आ रहा हूँ। कारण सुन सबकी शिकायत दूर हो गई। अखिल ने अपने साथी की और देश अनुमोदन किया बार, सूप अच्छा ' अती ने पूछा कम

रात जाना नहीं लगा

'द्धियाँ अक गर्मी हरीश ने कहा- 'लेकिन उतना नहीं जितना पुलिस की नज़र पड़ने से लगता है।'

" दादा के साथ बैठा युवक मौला अली, हितोपदेश की यह कहानी पढ़ी है एक गीदड़ शहर में घुस गया था। कुत्तों के डर के मारे वह भागता हुआ रंगरेज़ के नीले रंग के कूड़े में गिर पड़ा। बाहर निकला तो यह हो गया नीता जंगल के जानवरों ने देखा तो भमराये और लगे उसके सामने सिर सुने और वह गीदड़ जंगल का राजा बन गया ।'

बी० एम० ने खुश होकर कहा-'हेयर, हेयर !'

दादा ने अपने साथ बैठे युवक की ओर देखकर डॉट जीवन, तुम बाज़ नहीं आओगे

जीवन ने कुछ शरमाकर हरीश की ओर देखकर कहा-दादा, मेरा कुछ दूसरा मतलब नहीं था, क्यों हरीश

अली ने अपनी औ पर हाथ मारकर कहा इसमें क्या शक हरीश पुलिस के जानवरों को बरा आया है लेकिन अथ उसके साथ के गीवक डॉ


हा न करने लगें तब १ वरना साथियों के साथ तो उसे भी बोलना पड़ेगा। कड़कर वह हंस दिया। अली, जीवन और हरीश ने एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्करा दिया। बी० एम० ने मी जरा होंठ घुमाकर मुस्कराहट का अभि नय कर दिया। और लोग शायद समझे नहीं या उन्होंने ध्यान नहीं दिया। अखिल ने कहा- ' Now comrades let us come to the point (कामरेड अब काम की बात शुरू की जाय )'

दादा बोले हाँ लेकिन कुछ जरूरी बातों का फैसला आगे का काम निश्चित करने से पहले कर लेना होगा। उन बातों का ठीक निश्चय किये बिना हम लोग एक साथ किसी गम्भीर काम को कर नहीं सकेंगे ? दादा बहुत शान्ति से अपनी बात कहने की चेष्टा कर रहे थे परन्तु मन में दबी उत्तजना के कारण उनके नयनो और स्वर का कम्पन प्रकट हो जाता था ।

दादा की बात सुनकर उनके रवैये को देख दोनों बंगाली साथियों ने

कुछ समझ पाने की चेष्टा में अपने चारों ओर देखा। अपनी बात समाप्त कर दादा सामने की दीवार की ओर देखने लगे। उनके चेहरे पर भावों का संघर्ष अब भी प्रकट था। हरीश विस्मय से दादा के मुख की ओर, जीवन अपनी उँगलियों के नाखूनों की ओर, बी० एम० अपनी पुस्तक की ओर और अली बी० एम० की ओर देख रहा था। परवार का वैराग्य, साम्राज्य शाही शक्ति का विरोध, देश द्वारा उपेक्षा, प्राणों का निरंतर भय और प्राणों की बाजी लगाकर देश के लिये कुछ कर जाने की उमंग यह तब साभी भावनायें जिन कान्तिकारियों को उद्देश्य की एकता और मित्रता के गूढ़ बन्धन में बाँधकर एक किये हुए थीं, जिस स्नेह और सहानुभूति के मुकाबले में एक पेट से उत्पन्न माइयों और प्रयान्ध प्रेमियों का प्रेम मी पीछे रह जाता है, विश्वास के उस सरत बन्धन में कुछ ऐंठ या गई थी। इस भावना के प्रकट होने से प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी स्थिति अस्थिर और अरक्षित समझ रहा था। कुछ चय के लिये एक भयावह सन्नाटा सा छा गया जैसा कि अत्यन्त शोकपूर्ण समाचार के सहसा सुन लेने से हो जाता है।

कुछ भी न समझ अलित ने दबे स्वर में पूछा—'क्या मतलब उसका कुछ उत्तर दिये बिना ही दादा ने बी० एम० को सम्बोधन किया-बोली !' अपनी ऊँगली के मानून को दाँत से काटते हुए बी० एम० ने कहा- 'आप दी कहिये, आप सब कुछ जानते हैं। केवल जीवन को छोड़कर और. सब लोग बी एम की ओर देख रहे थे। वह उनकी तीन दृष्टि को अपने चेहरे पर अनुभव कर रहा था।

दृष्टि नीचे किये ही बी० एम० को सम्बोधन कर, अपनी उत्तेजना को रोकते हुए दादा ने फिर कहा-'तुम कहते क्यों नहीं हो जी आाखिर बात का फैसला कैसे होगा ?'

निमकते हुए स्वर में बी० एम० ने उत्तर दिया मेरा कोई पर्सनल (निजी) मामला तो है नहीं ?'

'लेकिन तुम्हीं को तो सब बात का पता लगा है ?' दादा ने कहा। साहस एकत्र कर बी० एम० ने उत्तर दिया परन्तु जानते आप भी हैं।' जीवन और अली की ओर हाथ में पकड़ी पुस्तक से संकेत कर उसने कहा-- यह भी जानते हैं।'

दादा के ओठ फड़क उठे। वे कुछ कहना ही चाहते थे कि जीवन ने आद्र स्वर में कहा मैं ही कहे देता हूँ दादा।"

क्षोभ के निश्वास को छोड़ अपनी शून्य दृष्टि से की और किये दादा ने मानों मुक्ति पा कहा कहो !'

कंठ की आद्रता सँभालने के लिये उँगलियों से चटाई पर लकीरें खींचते हुये जीवन मे कहना शुरू किया 'बात यह है, दादा के पास कुछ शिकायतें पहुँची हैं। उन्हें आपके सामने रख देना ज़रूरी है। पार्टी के अनुशासन और उद्देश्य के विरुद्ध यदि प्रत्येक व्यक्ति काम करने लगेगा और अपनी-अपनी पार्टी अलग बनाने का यज्ञ करेगा तो पार्टी कैसे चल सकती है और हम बिना कुछ किये व्यर्थ में ही मारे जायेंगे ।'

जीवन की कातर मुद्रा और इस भूमिका से सपरेल की छत से छायी उस कच्ची कोठरी का बातावरण आशंका से और भी गम्भीर हो गया। दादा की दृष्टि मोमबत्ती की लो पर स्थिर थी। उसका प्रतिनिधि उनकी आँखों की पुतलियों में नाच रहा था। मन की जिस उत्तेजना को वे दबाये बैठे थे, उससे आँखों का श्वेत भाग गुलाबी हो गया। मानीं, दूर क्षितिज पर कहीं अग्नि का विचार हो जाने से रक्तिमा छाये आकाश में अग्नि की जी लपट दिखाई दे रही है। शेष सभी व्यक्ति जीवन के झुके हुए चेहरे और जल नेत्रों की ओर देख रहे थे।

कठिन कर्तव्य के बोझ से साँस लेने के लिये वह कुछ

का धर

फिर उसने कहना शुरू किया बात हरीश के बारे में है।' यह शब्द विशेष कठिनाई से उसके मुख से निकले 'शिकायत यह है कि वह पार्टी के विरुद्ध कार्य कर रहा है। पार्टी को सहायता देने की अपेक्षा वह लोगों


से कांग्रेस के काम में और खास तौर पर कम्युनिस्टों के काम में सहायता देने को कह रहा है। जो लोग पार्टी के गुप्त कार्य में सहायक हो सकते है, उन्हें यह कांग्रेस के व्यर्थ आन्दोलन में या दूसरे सार्वजनिक काम में भाग लेने को कह कर पार्टी से दूर रखना चाहता है। पार्टी इस समय आर्थिक संकट में है। हमारे कुछ आदमी कई स्थानों पर बन्द पड़े हैं। किराया वगैरह न होने की बजह से उन्हें संकट के स्थानों से निकल कर दूसरी जगह नहीं भेजा जा सकता। कई-कई दिन से वे दो-दो पैसे के चनों पर निर्वाह कर रहे हैं। हरीश को अमृतसर में एक डकैती का प्लेन ( plan) देकर प्रबन्ध करने के लिये कहा गया था परन्तु कहा जाता है, उसने जान-बूककर उसे यत दिया। इसके इलावा यह शिकायत है कि वह रुपया बर्बाद कर रहा है। वह काफी

कीमती सूट पहनता है, बड़े-बड़े होटलों में खाना खाता है, शराब पीता है। मोटरों में घूमता है, बदनाम लड़कियों से उसकी नाजायज दोस्ती है।'

दादा ने टोककर कहा- क्यों नहीं कहते ।'

जीवन ने कुछ संकोच से कहा- शिकायत है कि एक लड़की जो पार्टी को सहायता देती आई है और जो पार्टी के काम के लिये घर छोड़कर आना चाहती थी, उसे हरीश ने केवल अपनी प्रेमिका बनाये रखने के लिये कहीं के दूसरे लोगों से मिलने और पर छोलने के लिये मनाकर दिया है। यह लोगों को यह समझता है कि पार्टी का काम व्यर्थ है और दादा और पार्टी के दूसरे मेम्बर मूर्ख हैं वे कुछ नहीं समझते। दादा और दूसरे मेम्बर कुछ पड़े-से नहीं कुछबी (अध्ययन) नहीं करते ढंग से होना चाहिये।

जीवन चुप हो गया। एक दो अपनी

पार्टी का काम दूसरे

जेब से रूमाल निकाल

उसने नाक भी किया। उसकी आँखों से आँसू नहीं उपके से परन्तु

हो रही थीं।

जीवन की बात समाप्त हो जाने पर सभी उपस्थित व्यक्ति बिलकुल स्तब्ध रह गये। दादा अपनी मोमबत्ती की ओर से हटा उपस्थित लोगों के बीच फर्म की ओर देखते हुए चुप रहे।

हरीश ने अनुभव किया सब लोग उसके उत्तर की प्रतीक्षा में है। विस्मय और आशंका से उसका रोम-रोम सतर्क था उसने दादा के खाँले मुकाये चेहरे की और देखते हुये कहा मुझे आश्चर्य है कि प्रदेश का इतना विकट जाल रच कर आप लोगों के सामने रखा गया है। उसकी इस बात से अली और दोनों बंगालियों का विशेष संतोष हुआ। दादा और बी० एम०

के चेहरे पर कोई परिवर्तन दिखाई न दिया । जीवन ने कुछ अधिक सुनने की आशा से उसकी ओर देखा ।

हरीश ने फिर कहा 'कुछ बातों में मेरी राय दूसरी हो सकती है और उस विषय में हम लोग यहाँ विचार कर सकते हैं। परन्तु यह कहना कि मैं पार्टी से लोगों की सहानुभूति हटाता हूँ या अपनी पार्टी अलग बनाने की चेष्टा कर रहा हूँ, या पार्टी के दूसरे मेम्बरो को मूर्ख बताता हूँ, खरारत है। पार्टी का रुपया बर्बाद करने या दुश्चरित्र होने के लांछन मुझ पर लगाये गये हैं। अगर यह शिकायतें ईषों के कारण है तो इनका कोई इलाज नहीं। यदि इनका कारण गलतफहमी है, तो यह जरूर दूर हो सकती हैं पहली बात तो यह कि मैं अच्छे कपड़े पहनता हूँ? उसके लिये स्पष्ट बात यह है कि मुझे जिस तरह के समाज में जाना होगा, उसी तरह की पोशाक मुझे पहननी होगी वन में उन चादमियों से मिल नहीं सकता। सूट पहन कर में माल गाड़ी में नहीं आ सकता था और न यह कुलियों के नीले कपड़े पहन कर मैं भले आदमियों के बीच जा सकता हूँ।"

अखिल ने दादा और दूसरे साथियों की ओर देख कर संदीप से अपना घुटना हिलाते हुए कहास, वैटिन राहट, ठीक है।' 'और फिर हरीश बोला अपने निजी

नहीं करता। मेरे सकता हूँ?'

'इन बातों पर खर्च भी मैं पार्टी का रुपया परिचित हैं, जिनसे मैं आवश्यक खर्च ले

बी० एम० ने दादा की ओर देख कर पूछा- पार्टी के मेम्बर के निजी परिचित का क्या अर्थ है ? पब्लिक की सहानुभूति यदि किसी मेम्बर के प्रति है तो वह पार्टी के काम की वजह से है। पार्टी में सबको एक जैसी सुविधा होनी चाहिये।'

हरीश के स्वर में तेजी आ गई, उसने कहा ता हूँ, लेकिन कपड़ों को कपड़ों की खातिर नहीं

मैं इन सब बातों को सम पहरा जाता । यदि पार्टी वह उनका व्यवहार कर दे देने को तैयार हूँ। अब यदि किसी आदमी से मैं वह आदमी मुझे किसी होटल में निमंत्रण देता है कह दूँ, मैं क्रान्तिकारी र व्यक्ति हूँ, मुझसे आप अंधेरी रात में च के नीचे मिलिये १ वरना परिचय पहले दिवे बिना मुझे उसके विचारों पर प्रभाव डालना है और फिर होटल का खर्च भी उसी

के किसी दूसरे मेम्बर को उन कपड़ों की अरूरत हो, स; मैं ने कपड़े उसे मिलना चाहता हूँ

मैं उसे यह

व्यक्ति के सिर पड़ता है तो इससे पार्टी का क्या हर्ज है


अली और दूसरे आदमियों ने सिर हिला समर्थन किया। बी० एम० ने पूछा- 'नवम्बर के महीने में निशात होटल की पार्टियों में कितना खर्च हुआ '

हरीश इस समय तक चिढ़ गया था। उसने कहा—फैक्टरी की बात जनाब यह है ......... जब आप तीन आदमियों से दिन भर 'चिक्रिक एसिड' और 'गन-कार' बनाने को कहेंगे जब टोली गैस से उन्हें दिन भर उल्टियाँ आती रहेंगी और उनका सिर चकराता रहेगा, उनके हाथों में 'पिकिट-एसिड' इतना रच जाय कि वे जिस चीज़ को हुये यह कड़वी हो जाय, जब उन्हें अपने आप को सँभालने का होश न हो, उस समय यदि वे अपना पेट भरने के लिये और दिमाग़ ताजा करने के लिये, होटल में जाकर आमलेट और आइसक्रीम खा लें और वे दोषी समझे जायें तो मैं कुछ कह नहीं सकता है बाकी रहा प्रेमिका बनाने के लिए लड़की को दूसरों से न मिलने देना, यह बिलकुल बकवास है। कोई किसी से न मिलना चाहे तो मैं जवरदस्ती किसी को गले नहीं बाँध दे सकता। यह अपना-अपना व्यवहार है। किसी का व्यय- हार दूसरे को पसन्द नहीं आता तो उसके लिए मैं क्या कर सकता हूँ और यदि मैं समझता हूँ, कोई लड़की पर छोड़ने के बजाय हमारे काम को पर पर रहकर अधिक अच्छी तरह कर सकती है तो उसे वहीं रहने दिया जाय न कि अपने शौक के लिये उसे साथ लिये फिरा जाय जिस लड़की का जिम है मैं जानता हूँ, वह अपनी जगह पर ही अधिक उपयोगी हो सकती है। यदि वह वहाँ से आकर अधिक उपयोगी हो सकती तो दूसरी बात थी। शेष रहा काम के तरीके की बाबत मैं यह समझता हूँ, हमें उस पर फिर विचार करना चाहिये। अब तक हमारी अधिकतर शक्ति डकैतियाँ करने में और कुछ राजनैतिक हत्याओं में काम आई है। परन्तु हमारा उद्देश्य तो वही नहीं। हमारा उद्देश्य तो है, इस देश की जनता का शोषण समाप्त कर उनके लिए आत्म निर्णय का अधिकार प्राप्त करना स्वराज्य का आखिर है क्या? अब तक हमारा सम्पूर्ण प्रयत्न रहा है गुप्त समितियाँ बनाने में जनता से दूर, गुफाओं और तहखानों में बन्द रहकर हम न तो जनता का सहयोग पा सकते हैं और न उनका नेतृत्व कर सकते हैं। यह पिस्तोल, रिवाल्वर और बम एक तरह से हमारी क्रान्ति के मार्ग की स्कायट ही नहीं बन रहे बल्कि यह हमें खाये जा रहे हैं। हमारी सम्पूर्ण शक्ति समाप्त हो जाती है एक डकैती करने में, ताकि हम और हथियार प्राप्त कर सकें या एक राजनेतिष हत्या कर सकें। इस डकैती से हमें क्या मिलता है जनता की सहानुभूति से हम वंचित हो जाते हैं। एक डकैती या एक हत्या के बाद कुछ न कुछ

आदमी जरूर पकड़े जाते हैं और हमारा शीराजा बिखर जाती है। हम सो- पचास श्रादमी तो स्वराज्य ले नहीं सकते। स्वराज्य तो जनता का संयुक्त प्रयत्न ही ला सकता है और हम जनता से इतनी दूर हैं। कभी-कभी जनता हमारे नाम पर शाबाश कह देती है मानो हम अच्छे कलाबाज़ या बाजीगर हो [''''लीडर हमें गालियाँ देकर जनता को हमारे प्रभाव से दूर रखने का यज्ञ करते रहते हैं। ठीस धरत से हम और हमारे साथी इस तरीके को आजमाते चले आ रहे हैं। हमने जो भी कुर्बानियों की हों, लेकिन जनता तो जहाँ थी, वहीं है। जनता तक हमारा अप्रोच (पहुँच) कहाँ है हमें अपना टेक्नीक (तरीका) बदलना चाहिए बजाय शहादत के परिणाम की ओर ध्यान देना चाहिए। इसके लिये गहरी स्टडी ( अध्ययन) की ज़रूरत है हमें देखना चाहिए, रूस ने क्या किया हम अपने आदमियों के रिये कविस में घुसे और दूसरे जन-आन्दोलनों में कदम उठायें

ठोक कर कर बी० एम० ने कहा- यही तो बात है आप क्रान्तिकारी पार्टी की टोडीशन ( क्रमागत धारणा ) को बदलना चाहते हैं। सोशल और इकनामिक (सामजिक और आर्थिक ) काम करने वाले तो और दूसरे कई संगठन है। क्रान्तिकारी पार्टी का काम तो केवल राजनैतिक है, सशस्त्र विद्रोह? इसके खिलाफ लोगो को समभावना पार्टी को तोड़ना नहीं तो और क्या है १ अखिल ने सिर हिलाकर कहा- ये तो ठीक नई है। इट इज सीरियस (यह मामला संगीन है) 1

अली ने पूछा 'सो तो ठीक है, परन्तु पार्टी का उद्देश्य क्या है

हरीश ने जिस समय अपनी सफाई देनी शुरू की थी, उसने अनुभव किया था कि उपस्थित लोगो की सहानुभूति उसी की ओर है परन्तु पार्टी के कार्यक्रम पर उसने जो कुछ कहा उससे साथियों का दल बदलने लगा। उसने अपनी पूरी शक्ति से अपनी बात को स्पष्ट करने के लिये कहा इसका अर्थ पार्टी को तोड़ना नहीं है। यदि पार्टी अपने कार्यक्रम पर विचार करे तो क्या पार्टी टूट आयगी और फिर जनाब का कहना है कि मैं नयी पार्टी बना रहा हूँ कहाँ है वह नई पार्टी

बी० एम० ने कहा- 'असल बात तो है, मौजूदा पार्टी को तोड़ना जय वह टूटेगी तो फिर दूसरी पार्टियाँ अपने आप बनती-बिगड़ती रहेंगी कुछ दूसरे लोग बोलना चाहते थे परन्तु हरीश ने उत्तेजना से कहा- - "वृद्धि 新 पार्टी के लोगों को डी] (अध्ययन) करने और अपने कार्यक्रम के क्षेत्र पर विचार कर उसे बढ़ाने के लिये कहता हूँ तो यह पार्टी को तोड़ना है ?'


अखिल, बी० एम० और अली तीनों ही बोलना चाहते थे परन्तु दादा की ओर देख वे रुक गये। दादा ने अपनी अाँखें फिर मोमबत्ती की ओर कर मरोए हुए स्वर में कहा और नये टेक्नोक ( अध्ययन और नई प्रणाली) की यह नयी-नयी बातें न मैं जानता हूँ और न मुझे इनसे मतलब है। इतने समय तक सड़कर मैंने निभाया है और आगे भी लड़ता रहूंगा ! जीते जी मुझे कोई छू नहीं सकता यह मैं जानता हूँ। कमाण्डरीका मुझे शोक नहीं है न मैं कमागार बनने के लिये पार्टी में आया था। आप ही लोगों ने यह बोल सुरू पर डाला था। मैंने सदा सब की सलाह से काम किया इसलिये मुझे मूर्ख' और अनपढ़ कहा जाता है मैं अब अध्ययन करूँगा मैं जानता हूँ मरना "और मारना इससे अधिक की मुझे t फुरसत नहीं ? अब बड़े-बड़े बी० ए०, एम० ए० लोग आप लोगों में आ गये। हैं, यही काम चलायें..... अपनी स्टडी को और टेक्नीक चलायें मुझे मुखा कीजिये। अब तक सब की सप्ताह और अपनी समझ से मुझसे जी कुछ बना किया अब किसी से कुछ मतलब नहीं। अपनी जेब में हाथ डालते हुए उन्होंने आगे कहा- 'यह अपना एक पिस्तोल मैं ज़रूर अपने पास रखूंगा क्योंकि मुझे पुलिस के हाथ पढ़ बंदरिया का नाच नाचकर फाँसी के राह पर नहीं भूलना है और बाकी जितनी चीजें (शल ) हैं, उन सबका हिसाब में दिये देता हूँ। पार्टी के पैसे से चीज़े खरीदी गई हैं, पार्टी की है। मुझे स्टडी कराने और टेक्नीक बताने ' उनका क्रो आँखों के रूप में उबल पड़ा। उन्होंने धोती के सूंड से अपनी आँखे पोंछ लीं। जो क्रोध शत्रु के सामने केवल उसका खून बहाकर ही शांत होता, इस समय अपने साथी रूपी हाथों को अपने से ख़ुदा होते देख उसे अपनी ही निर्बलता समझ, अपनी गर्मी से स्वयम अपने आपको ही गलाये दे रहा था।

दादा की बात का प्रभाव क्या होगा, इसे हरीश खूब समझता था। सबसे अधिक बराहट उसे इस बात से थी कि उसके अभिप्राय को बिलकुल उल्टा समझा जा रहा है। उसने साहस कर फिर कहा 'मुझे अफसोस है कि मेरा अभिप्राय गलत समझा जा रहा है। मैंने व्यक्तिगत रूप से आपके या किसी दूसरे साथी के विरुद्ध कोई बात कभी नहीं कहीं। मेरा मतलब यह नहीं कि कोई शिक्षित है या अशिक्षित अध्ययन से मतलब मेरा अमेज़ी की दस-याँच किताबों से नहीं बल्कि अपने उद्देश्य से है। उसी के लिये हमें बहुत कुछ सीखना है। दादा ने कुछ नहीं कहा। वे फिर जलती हुई मोमबत्ती की ओर देखने लगे परन्तु अलिस ने दोनों हाथ फैलाकर अपनी भाषा की कठिनाई को

संतों की सहायता से पूरा करने क्या सीखना बस, सेक्रेफाइस ले के वास्ते मरने को सीखना कोत बात से ज़रूरत'

की चेष्ठा करते हुए कहा 'क्रान्तिकारी को बस, मरना सीखना देश के वास्ते, मदर- खोद अपने हाथ से मरना सीखना और

दादा ने किसी की ओर न देख, सभी को सम्बोधन किया यह सब बस आप फिर करते रहिये। मेहरबानी करके मुझे छुट्टी दीजिये ! अपनी चीज़ों का चार्ज ले लीजिये मुझे अब कुछ सीखना नहीं है।'

आप भी क्या कह रहे हैं आपके बिना आप सबसे पुराने

अली ने कहा- दादा पार्टी का अस्तित्व ही क्या को केन्द्र बना कर हम लोग एकत्र हुए हैं

और अनुभवी हैं। आप ही आप यह कैसी बातें कर रहे हैं जीवन ने अपना स्वर सँभालते हुए कहा-एक आदमी की राय से ही तो कुछ नहीं हो सकता औरो की भी तो सुन लीजिये १'

दादा ने एक दीर्घ निश्वास ले उत्तर दिया- 'अब मुझे और कुछ नहीं सुनना। जिस आदमी का इतना अधिक मरोता था, जिसके साथ मौत का इतनी बार सामना किया, जब वही ऐसी बातें कर रहा है तो अब हम लोग किस तरह एक साथ चल सकते हैं हरीश से कई बातों में मेरा मतभेद हुआ, हम कई दफ़ भगड़े, परन्तु वह बात दूसरी थी। यह बात सिद्धान्त की है। उसे अब मुझ पर विश्वास नहीं है।' दादा ने फिर एक बार अपनी खाँले पौड़ ली।

अली ने कुछ आगे बढ़कर कहा 'दादा हरीश ने यह तो नहीं कहा कि उसे आप पर विश्वास नहीं उसने तो पार्टी के सामने एक नया विचार रक्ता है। उसे हम चाहे स्वीकार करें या न करें ।'

हरीश ने फिर कहा-मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि उद्देश्य को ध्यान में रखकर आन्दोलनों को अपने कार्यक्रम में परिवर्तन करना पड़ता है। रूस में भी पहले स्वतन्त्रता के आन्दोलन ने श्रीकवादी कार्यों का रूप लिया या उस समय रूस में धाम जनता का आतंकवादियों के कार्यों से कोई सम्बन्ध नहीं था लेनिन ने रूस के क्रान्तिकारियों की इस कमज़ोरी को समझा। उसने क्रान्तिकारियों को अपनी शक्ति राजनैतिक हत्याओं में नष्ट न कर सर्व- साधारण जनता के जीवन के प्रश्नों को लेकर जनता में चेतना और अधिकार की भावना पैदा करने के लिये कहा।"

अखिल ने दोनों हाथ और सिर हिलाते हुए कहा-नो नो बी डोट बांड दिस रशियन पोरा-नहीं यह कुछ नहीं माँगा '

एक अंग्रेज़ों की

जीवन

क्या हुआ है

पी० एम० ने जोर से हंस कर कहा थाबू साहब गुलामी से अभी छूटे नहीं, ऊपर से रूल की गुलामी और लादले की ओर देख उँगली के दूसरे से उसने पूछा- जीवन ने अपनी कलाई की पड़ी की ओर देख कर उत्तर दिया- '' अखिल ने चिन्ता से कहा तो यह जायूचर (भविष्य का काम का बात उसके मुंह की बात पकड़ बी० एम० ने कहा काम की बात कैसे काम के बारे में राम ही नहीं मिलती तो काम की बात कैसे की जा सकती है काम की बात तो यही लोग करेंगे जिनको राय मिलती हो ? यदि आप पार्टी का कार्यक्रम बदल कर आगे बात करना चाहते है तो एम उठ जायें। दादा को भी उससे फिर कोई सरोकार न होगा। यदि पुराने ढंग पर ही काम करना है तो जिन्हें उस पर विश्वात नहीं, वे उस में करेंगे

1

कोठरी में फिर स्तम्भता छा गई। हरीश के मस्तिष्क और हृदय पर आरी-सी चल रही थी। एक छलना, एक पमन्त्र उसे इस प्रपध की तह में अनुभव हो रहा था परन्तु वह उस जाल में फैल गया था। उसे तोड़ सकना उसके आत्म-सम्मान के लिये सम्भव न था । गले में आये आँखों को पी

वाटसने पूछा- तो फिर क्या मैं चला जाऊँ'

किसी और से कोई उत्तर न मिला। सभी लोग एक दूसरे की दृष्टि बचा इधर-उधर देख रहे थे। बहुत देर तक कोई शब्द सुनाई न दिया। फिरे जीवन का कातर और तरल शब्द सुनाई दिया'यदि तुम्हें इस कार्यक्रम में विश्वास नहीं..बो उसमें तन-मन से सहयोग कैसे दे सकोगे

गम्भीर परिणाम का विचार कर अली ने तुरन्त कहा लेकिन फिलहा तो तुम पार्टी के कार्यक्रम में सहयोग दोगे न १

बेबसी के स्वर में हरीश ने उत्तर दिया- द ही रहा है।'

उत्साह की भावना से दोनों बंगालियां और जीवन ने हरीश की ओर देखा । स्वयम् उसे भी अनुभव हुआ, मानो भयंकर संकट टल गया। उसी समय बी० एम० ने दादा की ओर देखकर पूछा- डकैती में माग लोगे आतुर परन्तु दृढ़ स्वर में हरीश बोला- मैं उसके विरुद्ध हूँ के उद्देश्य को हानि पहुँचती है।

दादा की ओर ही देखते हुए पी० एम० ने पूछा- फिर ए

उसले पा

दो अक्षर के इस शब्द ने एक अनिवार्य दुखान्त परिणाम सभी के सामने लाकर खड़ा कर दिया। दादा निश्चल थे। जीवन ने एक लम्बी साँस ली। अली चुप रह गया। अलिक ने सिर हिलाकर कहा-नो होम, कोई उपाय 'नहीं' और उसके साथी ने भी सिर हिला दिया।

फिर यही निस्तम्भता कोई और उपाय न देख हरीश ने सिर झुकाये हुये कहा - 'जैसा आपका निश्चय यदि कभी जरूरत हो तो मैं फिर हाज़िर होऊँगा।' ओठों को दाँतों से दबाये, आँख में आये आँखों को छिलने के लिये सहसा सड़े हो, वह जीने की राह नीचे उतर गया।

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हृदय का जोन आँखों की राह बरस न पड़े, इस भय से हरीश दाँतों से खोठों को दबाये चला जा रहा था। उसका सिर अप्रत्याशित तसेच गया था। यह चला जा रहा था, बिना कुछ समके बुके बद्दी राह जिस राह वह स्टेशन से खाया था। जिस तरह ताँगे के घोड़े को जिस राह से जाया जाय, लौटते समय वह स्वयम यही राह पकड़ता जाता है, उसी तरह हरीश के पैर भी अभ्यास से परिचित राह पर उठते जा रहे थे। गली सौंपकर यह सूने बाज़ार में पहुँचा और चलता गया।

ज़ोर की एक डॉट सुन उसने पीछे घूमकर देखा-लाल फाड़ी और सम्पा ढीला-ढाला सरानकोट पहचाना पुलिस का सिपाही है।

सिपाही ने माँ-बहिन की बनी गालियाँ दोहरा, क्रोध और अधिकार के स्वर में पूछा 'कहाँ घूम रहा है ?

परिस्थिति के अनुसार हरीश ने उत्तर दिया- 'कहीं नहीं हुजूर ! उसकी आवाज़ भय से काँप रही थी।

'यहाँ कहाँ ठेके पर गया था क्या 'सिपाही ने हरीश के मुख से निकला – 'हुजूर !'

साले पीकर आया है?

तो फिर मां की गया था।' सिपाही ने बहुत ही बेहूदा शब्दों का प्रयोग किया, जिन्हें सुन कोई भी भद्र पुरुष आपे से बाहर हो जाता। हरीश इस समय भद्र पुरुष नहीं था। वह शराबी कुली और अपराधी की अवस्था में था। उसने गिड़गिड़ा कर काँपते हुए स्वर में केवल कहा-'हुगड ।'


'चल याने १ - सिपाही ने धमकायासाले पोकर रात में वेद लगाने की फिकर में फिर रहा है

हरीश ने फिर गिड़गिड़ाकर उत्तर दिया- नहीं हुजूर ग़रीब-कुली आदमी अपने पर जा रहा हूँ।'

नित्य इसी प्रकार की विनय सुनते-सुनते सिपाही का हृदय पत्थर हो चुका था। यह दो बजे रात को गरीब आदमी नहीं गलियों में किए करते ?" फिरते हैं या तो तमासमीन वा चोर क्या है तेरे पद दिखा दिखाई दे जाने पर वह और गुतीमत हट अपना कम्बल भागते हुए उसने "सिरफ तत्रा खाने हैं। ठेके पर

हरीश की कमर में मिली यां में फँसा जाता । भय से एक कदम पीछे कहा कुछ भी नहीं मेरे पास गया था सो भन्दा

'कुछ नहीं है तो चल पाने सिपाही ने वाही से कहा और उसे

ले एक ओर चल दिया। हरीश दुविधा

में खुशामद के जोर पर घर चले चिता जा रहा था।

जाने की इजाजत माँगता हुआ विवाहो के

सिपाही राम कहे जा रहे थे—'तुम ऐसे हो हमारे ससुर लगते हो न जो तुम्हें घर जाने दें। सभी तो तुम्हारे ऐसे है। सभी को छोड़ दें तो चालान या अपने ससुर का करें

सामने से साइकल पर रांद को स्यूटी का दूसरा सिपाही और आ गया। रोश मन में पढ़ता रहा था, अकेले से छुट्टी या जाता तो मला या वहाँ दो हो गये। दोनों सिपाहियों में दुआ सलाम हुआ। साइपाले ने पूछ 'क्या है?'

पैदल सिपाही ने हरीश की तरफ इशारा कर कहा- पहा इस वक्त जाने किस फिराक में यहाँ धूम रहा था। इसे थाने लिये जा रहा हूँ साइ- किल वाले सिपाही ने कहा 'चलो यही ही कुछ कारगुजारी हुई अपनी साइकल पैदल सिपाही की और बड़ा उसने कहा---' पकड़ी ज

यशीर ने साथी का मतलब समझ, हरीश की और देस हुकुम दिवा- ने साइत खड़ा क्या देखता है और धन्ने साथी तिवी से बोला पंडित, तनिक माचिस तो दो साली बड़ी सरदी है। नीकी लगायें

पंडित सिपाही ने बायें हाथ से जेब से माचिस निकाल बशीर को दी और दायें हाथ से जनेऊ कान पर चढ़ाते हुए नाही की ओर बढ़ गये।

बशीर माचिस जला बीड़ी से फूंक खींच रहा था। हरीश ने साइकल बिजली के खम्भे से सटा कर और अपनी पूरी शक्ति से वशीर को दूसरे सिपाही पर ढकेल दिया और साइकल से तेजी से दौड़ चला। अभी बिजली का एक खम्भा ही उसने पार किया था कि सिपाही की सीटी की तीखी आवाज़ उसके कान में पड़ी। वह समीप की गली में घूम गया। उस गली से दूसरी में, फिर तीसरी में वह अंधाधुन्ध चला जा रहा था। सामने फिर सड़क आ गई और सड़क पर बिजली के खम्भे के नीचे फिर एक सिपाही लाल पगड़ी खीर बरान कोट पहने हाथ में सीटी, लिये सतर्कता से खड़ा था। साइकिल को बहुत भीमा कर वह सीधा सिपाही के ही पास जा पहुँचा।

सलाम, हवलदार साहब वह सीटी कैसी बज रही है - उसने सिपाही से पूछा।

सिपाही ने उसकी ओर देखे बिना ही उत्तर दिया जाने इधर दक्खिन से बन रही है।'

'हम डर गये।' हरीश ने कल की हँसी हँसते हुए कहा कहीं दंगा

हो गया क्या

"तुम कहाँ जा रहे हो ?' 'यही 'एट डाउन' पर जा

सिपाही ने पूछा।

रहा हूँ। इंजन पर क्यूटी है। तीन बजे

शक की छूटती है न आदाब अर

प्रादाय सिपाही ने मुँह फेर किया।

हरीश फिर स्टेशन पर पहुँच गया। साइकिल एक ओर छोड़ दी। इलाहाबाद की गाड़ी छूट रही थी वह उसी में बैठ गया।

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हरीश के उस कोठरी से चले जाने के बाद फिर निराशा और निरुत्साह की स्थम्यता छा गई, जिसे फिर अखिल ने ही तोड़ा। दोनों हाथों की मुडियां को बढ़ता से दोनों बगलों में दबाते हुये दादा की ओर देख उसने कहा- 'तो ...

दादा ने गर्दन हिला और फर्श की ओर देखते हुए उत्तर दिया आप केन्द्र का यह किसी दूसरे आदमी को दीजिये ! मुझसे यह सब बलेवा नहीं होता। मुझे जो काम दिया जायगा, उसे पूरा करूंगा नहीं तो अकेले किसी पहाड़ पर निकल जाऊँगा मैं सिपाही आदमी हूँ मुझे इन

बहस मुबाहिसों से काम नहीं ।'




उनकी इस बात को किसी ने भी स्वीकार न किया। बी० एम० ने शेष साथियों की ओर देखते हुए कहा जिसे आपके इन्चार्ज होने पर आपत्ति

थी, वह चला गया। अब आप ऐसी बात क्यों कहते है ?'

सभी ने फिर उड़ता से 'नो नो' कहा और सिर हिलाकर बी० एम० की बात का समर्थन किया। अली ने एक गहरा साँस लिया। शायद वह कुछ कहना चाहता था परन्तु फिर उसे अनावश्यक समझ बिना कहे ही साँव छोड़कर सिर झुका लिया ।

पिछली चिन्ता दूर भगाने के लिये सिर हिलाते हुए अमित ने फिर

ही

बी. एम. ने अपने हाथ में धमी किताब की जिद पर नाखून से लकीर खींचते हुए कहा- 'आगे का कार्यक्रम निश्चित करने से पहले जरूरी यह है कि वर्तमान स्थिति को संभाल लिया जाय जब पार्टी का एक मेम्बर ऐसा हो, जो एक प्रान्त भर का इंचार्ज हो, पार्टी में जिसकी खास स्थिति हो, पार्टी के सभी ऐक्शनों (त्रों से जो परिचित हो, जिसके पीछे दो एक ख़ास एकशनों (आतंकवादी कार्यों में भाग लेने का सेहरा हो, जो अपनी पार्टी अलग बनाने का प्रथक करता रहा हो, दादा को मूर्त और निकम्मा बताकर जो प्रान्त के मेम्बर का कनेक्शन केवल अपने साथ रख रहा हो, पार्टी के नाम पर जिसने काफ़ी रुपया इकट्ठा कर लिया हो, वह पार्टी को कितना नुकसान पहुँचा सकता है !''' सब से बड़ी बात तो यह है कि लड़कियों से उसने जो सम्बन्ध बना रखे हैं, उनका परिणाम क्या होगा ? क्या हम गर्भपात की दवाइयों का इंतजाम करते फिरेंगे १ अब तक क्रान्तिकारियों के विरुद्ध चाहे जो कुछ कहा जाता रहा हो परन्तु उनके चरित्र पर किसी ने संदेह नहीं किया था और फिर जो रुपया पार्टी के नाम पर ले लेकर उड़ाया जाता है, उसके लिये जवाबदेही किसके सिर है। पंजाब में हम जिससे जाकर रुपये की बात करते हैं, वह यही कहता है- हरीश ले गया 1 कम-से-कम पंजाब तो हमारे हाथ से गया। यहाँ दो पार्टी की ओर से मुख दिखाने लायक हम नहीं रहे। आगे और कदम बढ़ाने से पहले आप इस बात को सोच लीजिये। जब तक इसका उपाय न हो, हम पंजाब में कुछ नहीं कर सकते । अखिल के साथी बंगाली ने गम्भीर स्वर में कहा- पंजाब इस वेरी इम्पोर्टेड' (पंजाब का तो विशेष महत्व है 1)

अली ने बी० एम० की ओर देखकर कहा--'तुम्हारा मतलब क्या है, हरीश को शह ( गोली मार देना) कर दिया जाय !'

अली की बात से सभी चौंक उठे। केवल दादा निश्चल बने रहे। बी० एम० ने कहा- 'निश्चय आप लोगों को करना है। स्थिति जो है, मैंने आपके सामने रख दी है।'

अली ने बी० एम० की ओर देखते हुये कहा 'लेकिन अब तक उसने क्या किया है, उसका कितना प्रभाव है, यह आपको मालूम है '

'यदि आप उसे पार्टी से अधिक महत्व देते हैं तो दूसरी बात है। बी० एम. ने उत्तर दिया ।

'नो नो नोबोडी इज ग्रेटर देन पार्टी (नहीं, पार्टी से अधिक महत्व किसी का नहीं) १ अखिल ने सिर उठा दृढ़ स्वर में कहा।

अपने नाखूनों की ओर देखते हुए जीवन बोला- 'लेकिन अब तो वह पार्टी के नाम पर काम नहीं कर रहा।'

परन्तु उसका रुख पार्टी से उदासीन नहीं। वह पार्टी के क्षेत्र पर कज़ा कर रहा है।' बी० एम० ने उत्तर दिया।

अखिल ते सिर हिलाकर कहा-'शह हिम (गोली मार दो) उसके माथी ने समर्थन किया (हाँ ठीक है)।'

अली ने पूछा- केवल मतभेद को इतना उम्र रूप देना क्या उचित है जो कुछ बी० एम० ने रुपये या लड़कियों आदि की बात कहा है, वह ठीक हो सकता है परन्तु दादा आप एक बार उधर आकर स्वयं देख क्

नहीं आते १

बी० एम० ने कहा- 'दादा को पंजाब ले जाने की जिम्मेवारी मैं नहीं लेता। जिस हालत में वह यहाँ से भाग गया है....'' ........सब कनेक्शन ( सूत्र ) उसके पास हैं....''

दादा ने अपनी मूँछे दाँत से काटते हुए सिर ऊँचाकर कहा दिखूंगा, मुझ पर कोम हाथ उठाता है। मैं जाऊँगा हरीश | पेश हुरी चीन है। यह ककियो का झगड़ा ! सन् सत्रह में भी एक दो ऐसा हो

अखिल ने कहा- 'नहीं यह कुछ नहीं, अपना आदमी का हमको एतचार करना है। शूट हिम ' उसके साथी ने भी समर्थन किया-यस- यस' ! दादा ने सुनाया 'यह बहुत गम्भीर मामला है...' बी० एन० ने पूछा-'आपका मतलब, "इसमें भय है।"


दादा ने उसकी ओर पूर कर कहा-'भय नहीं, मैं किसी की परवाह नहीं करता। लेकिन अब निश्चय करोगे तो करना होगा ।

अखिल और उसके साथी ने फिर जोर दिया- 'यस यस

ने

'तुम क्या कहते हो जीवन !' दादा ने पूछा।

'जो आप कहें ।'

"मैं कुछ नहीं कहता, अपना वोट दो!"

जीवन ने उत्तर दिया- 'जो पार्टी कहे ?'

'पार्टी तुम्हारे सामने है'- दादा ॐ झला उठे। उन्होंने बी० एम० की ओर देखा ।

उसने उत्तर दिया- 'शह !'

असित के साथी ने कहा-'यस, यह

जीवन ने सिर उठाये बिना ही कहा 'यत शह १'

दादा के आगे अली था। उसने दादा की ओर देखकर कहा 'मैजो रिटी (बहुमत) का निर्णय मंजूर है।'

कुछ देर चुप रहकर दादा ने कहा- 'वह पंजाब आयगा । फिर पी० एम की ओर देखकर उन्होंने पूछा- 'तुम्हें दूसरा आदमी कौन चाहिये ।' 'जीवन १' बी० एम० ने उत्तर दिया।

जीवन की ओर देखकर दादा ने पूछा—'मर है '

-

हाँ जीवन ने उठाकर कहा।

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रचनाएँ
दादा कामरेड
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दादा कामरेड पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। इसे हिंदी साहित्य में एक अग्रणी राजनीतिक उपन्यास माना जाता है। उपन्यास अर्ध-आत्मकथात्मक है, और हरीश नाम के एक युवक की कहानी कहता है जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो जाता है। उपन्यास स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है, और क्रांतिकारी संघर्ष के शक्तिशाली और मार्मिक चित्रण के लिए इसकी प्रशंसा की गई है। यह उपन्यास 20वीं सदी की शुरुआत पर आधारित है और इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में हरीश के बचपन से होती है। हरीश एक प्रतिभाशाली और जिज्ञासु लड़का है, और वह स्वतंत्रता और समानता के उन विचारों की ओर आकर्षित होता है जो उसने अपने पिता, एक गांधीवादी राष्ट्रवादी से सुने थे। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, हरीश स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गया और अंततः उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। जेल में, हरीश की मुलाकात अनुभवी क्रांतिकारी दादा से होती है, जो उसके गुरु बन जाते हैं। दादा हरीश को वर्ग संघर्ष के महत्व के बारे में सिखाते हैं, और वह हरीश को एक बेहतर दुनिया के लिए संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित करते हैं। जेल से रिहा होने के बाद, हरीश एक पूर्णकालिक क्रांतिकारी बन गया, और उसने अपना जीवन स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के संघर्ष में समर्पित कर दिया। दादा कामरेड एक शक्तिशाली और मार्मिक उपन्यास है जो स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों की पड़ताल करता है। यह उपन्यास हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है और क्रांतिकारी संघर्ष के यथार्थवादी चित्रण के लिए इसकी सराहना की गई है।
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 दुविधा की रात

11 सितम्बर 2023
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  यशोदा के पति अमरनाथ बिस्तर में लेटे अलवार देखते हुए नींद की प्रतीक्षा कर रहे थे। नोकर भी सोने चला गया था। नीचे रसोईघर से कुछ खटके की थापालाई कुँमलाकर यशोदा ने सोचा- 'विशन नालायक जरूर कुछ नंगा

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 नये ढंग की लड़की

11 सितम्बर 2023
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 मध्यम रही अनिथित स्थिति के लोगों की एक अद्भुत चमेली है। कुछ लोग मोटरों और शानदार बंगलों का व्यवहार कर विनय से अपने आपको इस श्रेणी का अंग बताते है। दूसरे लोग मज़दूरी की सी असहाय स्थिति में रहकर भी

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11 सितम्बर 2023
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 केन्द्रीय सभा

11 सितम्बर 2023
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 कानपुर शहर के उस संग मोहल्ले में आबादी अधिकतर निम्न श्रेणी के लोगों की ही है। पुराने ढंग के उस मकान में, जिसमे सन् २० तक भी बिजली का तार न पहुँच सका था, किवाड़ विज्ञायों के नहीं कंदरी और देखा के

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 मज़दूर का घर

11 सितम्बर 2023
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 हरिद्वार पैसेंजर लाहौर स्टेशन पर आकर रुकी। मुसाफिर प्लेटफार्म पर उत्तरने लगे। रेलवे वर्कशाप का एक कुली, कम्बल ओ और हाथ में दं ओज़ार लिये, लाइन की तरफ़ उतर गया। राक्षत रास्ते से आदमी को जाते देख ए

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 तीन रूप

11 सितम्बर 2023
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 शैलपाला अपने कमरे में बैठी जरूरी पत्र लिख दी थी। नौकर ने जबर दी, दो आदमी उससे मिलने आये हैं। लिखते-लिखते उसने कहा- नाम पूछकर श्रो लोटकर बोकर ने उसे एक चिट दियां चिट देखते ही वह तुरन्त बाहर आई। ह

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मनुष्य

11 सितम्बर 2023
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 दिन-रात और अगले दिन संध्या तक बरफ गिरती रहने के बाद रात में बादल पढ़ कर उस पर पाला पड़ गया। सुबह से स्वच्छ नीले आकाश में सूर्य चमक रहा था। नीचे विछे अनंत श्वेत से प्रतिबिम्बत धूप की कई गुणा मढ़ी

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गृहस्थ

13 सितम्बर 2023
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 ० आर०' और 'हरीश' वह दो नाम अमरनाथ के मस्तिष्क में बारी-बारी से चमकते अपनी शक्ति पर सन्देह करने की कोई गुंजाइश न थी "ठीक बाद था ठीक उसने अपना नाम ० कारखाना और पद उसका नाम बताती है, 'परी' ये सोचते

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 पहेली

13 सितम्बर 2023
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 मंग के सामने कुराड़ी में बेत के काउच पर राबर्ट और शैल बैठे दुबे थे। राबर्ट के एक हाथ में सिगरेट था और दूसरे हाथ में एक पर अनेक दिन के बाद प्रतोरा का पत्र आया था राम पत्र पढ़कर रोल को सुना रहा था-

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 सुलतान १

13 सितम्बर 2023
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पंजाब-मिल, सितारा-मिल, डाल्टन मिल आदि कपड़ा मिलों में डेढ़ मास ताल जारी थी। हड़ताल समाप्त होने के आसार नज़र न आते थे। जून की गरमी में जब लू धूल उड़ा-उड़ा कर राह चलने वालों के चेहरे झुलसा देती थी राबर्

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दादा

13 सितम्बर 2023
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 लाहौर की बड़ी नहर के दाँवे किनारे की सड़क पर दादा साइकल पर चले जा रहे थे। उनसे प्रायः बीस क़दम पीछे-पीछे दूसरी साइकल पर श्रा रहा था जीवन । माडलटाउन जाने वाला पुल लाँघ वे नहर के दूसरे किनारे हो गय

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 न्याय !

13 सितम्बर 2023
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 दकताल में माज़दूरों की जीत होगई। उत्साहित हो कर दूसरों मिलों और कारखाना के मज़दूरों ने भी मज़दूर समायें बनानी शुरू कर दीं। कई मिलों में और कारखानों के क्वार्टरों में रात्रि पाठशालायें जारी हो गई।

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 दादा और कामरेड

13 सितम्बर 2023
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 अदालत से लोड कर शैक्ष ज्वर में पलंग पर लेट गई। ज्वर मूर्छा में परिणित हो गया। उसे कुछ देर के लिये होश आता तो वह अपने इधर-उधर देख कर कुछ सोचने लगती और फिर बेहोश हो जाती। मुआजी उसके सिराहने बैठीं ब

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