हरिद्वार पैसेंजर लाहौर स्टेशन पर आकर रुकी। मुसाफिर प्लेटफार्म पर उत्तरने लगे। रेलवे वर्कशाप का एक कुली, कम्बल ओ और हाथ में दं ओज़ार लिये, लाइन की तरफ़ उतर गया। राक्षत रास्ते से आदमी को जाते देख एक सिपाही ने टोका 'अरे, कहाँ जाता है टिकट दिखाओ १ कुली ने लौट, गिड़गिड़ाते हुये टिकट दिखा दिया।
यह रास्ता है !''' इधर कहाँ जाता है?' सिपाही ने फिर सवाल किया। 'हुजूर, इधर से क्वार्टरों को निकल जाऊँगा। उधर लम्बा चर पड़ेगा।' सिपाही लौट आया और कुली एक-
'सीराम हा निहानी देखते जाना,
किसी की खाक में मिलती जवानी देखते जाना
गाता हुआ रेल का अहाता लाँच, स्टेशन के पिछवाड़े कारखानों की बीच मुक्ती हुई सड़कों पर चलने लगा।
दिसम्बर के दिन शाहौर की सर्दी कोहरे और धुर्वे से छाई सड़कों पर बिजली की रोशनी में कठिनाई से केवल कुछ पाता था। धुआं आँखों को काटे डाल रहा था।
गज़ दूर तक ही दिखाई दे बिजली के लैम्पों के नीचे धुएँ और कोहरे से भरी हवा में प्रकाश की किरणों छोलदारियों के रूप में केवल कुछ दूर तक फैल कर समाप्त हो जात। युवक कुली गुनगुनाता चला जा रहा था। अँधेर मोड़ों पर पहुँच, वह घूमकर, सड़क पर जहाँ सहाँ फैले प्रकाश की ओर नजर दौड़ा लेता। मिल के क्वार्टरों के समीप पहुँच वह बीड़ी मुलगाने के लिये लड़ा हो गया और कुछ देर पीछे की ओर देखता रहा। किसी को पीछे आते न देख, बड़ कार्टरों की लाइन में घुस गया-1
युवक ने बोरी के टाट का पद पद पड़े एक कार्टर के दरवाजे की
साँकललाई ।
फोन है भीतर से प्रश्न हुआ।
'तर ! विवाद खोल, मैं हूँ-युवक ने उत्तर दिया। 'कौन ?' भीतर से दूसरी बेर
सर यही युवक था, जिसे हम कानपुर में हरीश के नाम से जान चुके हैं। किया गये। भीतर हहुँच किवाड़ों को साँकल लगाते हुए हरीश ने कहा- “हाम नामी ! अस्तर क्या कर रहा है
'जिओ, बड़ी उम्र हो जवानी पड़े
गया
औरत ने जवाब दिया। वह ताल
रंग की फुलकारी (रेशम से कदा खर का पक्ष ) छोड़े हुए थी। शरीर पर मोटे कपड़े की सलवार और कुर्दा था। सख्त सर्दी के कारण नाक मुंह दुपट्टे में ढँके वह सिमटी जा रही थी। औरत की आवाज में गहरी उदासी अनुभव कर हरीश ने पूछा- क्यों भाभी, क्या है '
दुपट्टे से आँाँले पोछते हुए भामी ने उत्तर दिया क्या बताऊँगी, न जाने 'उसे' क्या हो रहा है शाम से। सूरज डूबे आकर मुझसे कहने लगा एक बोतल शराब लाकर रख ली है।
:--तू लड़की को लेकर गाँव चली जा
मुझे मेज देने के लिये जबरदस्ती करने लगा। मैंने कहा- चाहे मुझे मार डालो, मैं नहीं जाऊँगी। एक कसाइयों का-सा हुए भी कहीं से से आया है। दिखाकर कहने लगा, बहुत जिद करोगी तो मार भी बालूंगा। मैं रोने लगी। मैंने कहामार बाल! मैं तुझे छोड़कर नहीं जाऊँगी। तब से चुरा लिये कम्बल ओोड़े कोने में बैठा है। बोतल पास रक्खी है
पी होगी थी तो नहीं अभी जाने क्या सोच रहा है कहने लगा-' परे इसे
हूँ
मामी ने खाँले पोछते हुए उत्तर दिया पर न मुभी प्यार से पास आई तो उसे फटकार दिया।
"मीटर आओ' कहता हुआ हरीश भीतर गया।
कार्टर में आगे एक छोटा-सा सहन और फिर कोठरी थी कोठरी में, दरवाजे के एक ओर चूल्हा था। सामने पड़े, कुछ कनस्तर और डिब्बे परे थे। दाईं तरफ की दीवार पर खूंटियों में अलगनी बाँध कुछ कपड़े रंगे हुये थे।
नीचे एक खाट पर मेला पढा लिहाफ- बिस्तर पर पड़ा था। चूल्हे पर रखी मिट्टी के तेल की डियरी से कोठरी के फर्श पर कुछ लाल-सा प्रकाश और छत पर घुच्चाँ फैल रहा था। चूल्हे में जली लकड़ियों के कुछ अंगारे थे। खाट के फर्श पर कम्बल छोड़े, अस्तर बैठा था।
पास,
हरीश ने चाकर पुकारा तर मैया क्या बात है।'
अपनी ऊँटी हुई दाढ़ी बुजा अतर ने गर्दन उठा पूछा सदर आ बैठ सर्दार
'तुझे हुआ क्या है ?'- हरीश ने पूछा !
अख्तर एक गहरी साँस खींच सिर फुंकाकर बोला- 'सर्दार मेरा एक काम करेगा.....मुझे तेरा भरोसा है।'
'जो तू कडे, मैं तैयार हू'- हरीश ने अस्तर के पास बैठते हुए कहा। 'जमीला और लड़की को तू पर पहुँचा देगा १ ख़तरा तो तुझे है लेकिन तेरे गाँव से चार मील का फरक है, तुझे कोई क्या पहचानेगा सकता है इतना 'अतर ने उसकी ओर देखते हुए पूछा ।
रे की बात तू जाने दे, लेकिन मामी की मेज क्यों रहा है ' 'इन्हें अभी लेकर चला जा ने शोर दिया।
'अरे तू बतायगा भी
कभी तुमसे मैंने पर्दा किया है जीता चूल्हे के पास बैठी घुटने की ओर देख रही थी।
'कर
बड़ा अफ़सोस है, मुझसे बात छिपाता है...
वह कुरा कहाँ है ?'- हरीश ने पूछा। पर ढोदी रक्से कातर दृष्टि से दोनों मित्रों
हूँ !- एक गहरा साँस अख्तर ने खींचा और जमीला की ओर देख- कर कहा तू जरा बाहर चली जा
1
जमीला उठ खड़ी हुई परन्तु उसकी आँखों से आँसू टपक पड़े 'ठहर मामी हरीश ने टोका और फिर अन्तर को सम्बोधन कर बोला 'तुझे मामी का एतवार नहीं ? अगर यह ऐसी ही होती तो मैं यहाँ बैठा होता ?"
नू नहीं समझता, बात कुछ ऐसी ही है।अर ने समझाया । 'अच्छा भाभी, एक मिनट के लिये तू सहन में चली जा ।' हरीश ने कहा। जमीला रोती हुई सहन में चली गई। हरीश ने अस्तर के कंधे पर हाथ रखकर पूछा- 'हाँ, अब बता १'
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तर दाँत से होठ का गहरी साँस लेकर बोला मित्री ने मेरी ज़िन्दगी बरबाद कर दी। मेरा मौका था फिटर बनने का। तीन साल से यह मेरी तरकी रोके है। पिछड़े बैसाख में मैंने उसके धागे हाथ जोड़े, मिश्रत की तू जानता है, अब बुढ़ापे में जोर की मेहनत नहीं होती। फिर यह लड़की ओर हो गई। एक सड़क है। कुछ तरक्की हो तो भ्रम चले। मेरे साथ के जहूर और हरनामसिंह दो-दो साल से फिटर बने हैं। साठ-सत्तर ले रहे हैं। मेरे यही पीत हरामी "कोई न कोई झूठी शिकायत कर देता है। उसने मुझसे अस्ती रुपये माँगे चालीस में कमीला की नथ बनिये के यहाँ रखी, चालीत उससे उधार लिये, अस्मी उसे पूजे बनिये का पाँच रूपये महीना खुद चढ़ ही रहा है। तीस रुपये यह हो गये। खुद ढाई सौ महीने के मारता है, पचास-साठ ऊपर से अब मौका था, कहता है, तूने मुझे दिया ही क्या है [जार का मानना वह वाहान का नया लोडा आया है, उसे साल भर नहीं हुआ उसे फिटर बना दिया है। जानता है क्यों गाँव से बची का नया गौना कराके लाया है न! और वह मिस्त्री के घर बच्चो को खिलाने जाती है और वहाँ हरामी, खाता मिली उससे खेलता है लाइन में से कितनी ही औरतों को साथ पह मँगवाता है गाली दी उसने धीर कहता है, यह बड़ा पर्दैवाला है समझा तू यहाँ लाइन से कोई उसके पर माहू लगाने जाती है कोई कपड़े धोने........ कोई बच्चे खिलाने...समझा। वह जिल्वत बर्दास्त नहीं ऐसी सरदार अपने बच्चे भूखे मरें" इन वालों का पेट भरे और फिर ऊपर से यह बेती" इन दोनों को गाँव पहुँचा दे। मिश्री तीसरे पहर एक
मुझे
दा इंजन देखने जाता है। आज मैं खाते को खत्म कर दूँगा "और कैद मुझे होना नहीं है। अपने आपको
एक उस कश्मीरी को और फिर
ख़तम कर दूँगा तू समझता है
तू बहादुर आदमी है समा
रहा हूँ, समा
ידי
तू ही अपना एक दोस्त है.. "इसीलिये तेरा भरोसा कर
उसकी आखों की
हरीश ने हामी भरी और मामी तरफ देखा है रो-रोकर मर जायगी
तू भी तो घर-बार छोड़े बैठा है, तेरे घरवाले नहीं रोते ? इसे कह देना यह भी यही पक्षी जाय
मेरी बात कहता है अर मैं अपनी इन्त के लिये परमार कर आया हूँ हरीश ने पूछ और फिर वह दिन भूल गया जब बीमार
पड़ा था १ साल भर तुझे भाभी ने लोगों के वर्तन मल-मलकर पाला है उसका तुझ पर कोई हक नहीं ! और तू तो कभी का जेल में होता, क्या फाँसी चढ़ गया होता। याद है जब रेल से निकल पर तू बेकारी में वह बटुआ चुरा लाया था रो-रो कर इसने क्या हाल किये थे तुझे यह न सुधारती तो तेरा क्या होता और तू उसे रोने को छोड़ जायगा ' शरम नहीं आती और यह बोतल किस लिये लाया है वो हौसला
नहीं होता.. क्या हाल होगा
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"शराब पीकर खून करने जायगा और फिर तेरे बच्चों का
इसी खयाल से तो कमजोरी आ जाती है सरदार ! तभी तो यह बोतल लाया हूँ तू जानता है, जब से जमीला आई है, इसने मुझे कभी पीने नहीं दी
'तुझे तो मालूम है, इसने मेरी दुहाई किस तरह १ कारखाने से निकल मज़दूरों के साथ मैं ठेके चला जाता था। यह कारखाने के दरवाजे पर पहुँच जाती। मज़दूर हँसने लगे। मुझे बड़ी शरम आई। घर आकर मैंने उसे मारा। पहले नशे में मैंने इसे एक दो बके मारा था। उस रोज़ कहने लगी- 'अच्छा है न, मारो १ होश में रहकर मारो। पता तो लगेगा मारा है। मुझे अपना मीला बदन इसने दिखाया। मुझे ऐसा डर मालूम हुआ। मैंने उसका बदन छूकर कसम खाई, नहीं पिऊंगा फिर नहीं थी उससे पहले बीस दफ्रे कुरान की कसम खाकर फिर पी ली थी। गहरी साँस छोड़कर अख्तर ने कहा।
की आवाज़
जमीला भीतर था
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'अब आया होश ! वह बाहर सर्दी में मर रही है। यह सुन, उसके रोने मामी भाभी मीतर आओ हरीश ने पुकारा। 1 गई। वह फूट-फूटकर रोने लगी। हरीश ने अख्तर की ओर देखकर कहा शरम नहीं आती चुप करा उसे ।' अस्तर ने छत की ओर देखकर साँस लीची जब उस इंजीनियर की बात सोचता हूँ, खून उपल उठता है सर?
हरीश ने जमीक्षा की किसी तरह नहीं मानता तेरी ही बात पर सही।
"मिस्त्री को तू रहने दे। उसे मैं ठीक करा दूँगा ओर संकेत करके कहा 'उधर देख ज़रा और यदि तो छोड़ भागड़ा मुझे तो यों भी मरना ही है तेरे बच्चे क्यों बरबाद हो मेरा बचना तो मुश्किल है अब ' है, क्यों अख्तर ने पूछा ।
'यही मेरे साथी मुझसे बिगड़ गये हैं।'
अस्तर तक उठा
सचमुच तो फिर तू यही रह जमीक्षा अब भी रो रही थी। हरीश ने कहा- 'भाभी, मैं दो दिन से भूखा हूँ और तू तो सामुखाह रो रही है। यह उसने अस्तर का खुरा और बोतल ला जमीला के पाँव के पास रख दिये और फिर दोहराया- 'मामी में दो दिन से भूखा हूँ, सुनती है अब तुझे चले जाने को कोई नहीं कहेगा।' जमीला फफक-फफक कर और रोने लगी। हरीश ने अन्तर से कहा- 'उठ एक गिलास पानी पी, मामी को पिला और मुझे भी चुप करा उसे '
अख्तर ने बैठे-ही-बैठे कहा- 'चुप कर जा जमीला हो गया, अब जाने दे' अमीला चुप नहीं हुई हरीश ने अख्तर को पवेश पर कहा उठ उसे एक गिलास पानी पिता ।'
हरीश के धक्के से अस्तर हंस पड़ा। जाने भी दे वार' उसने कहा! हरीश माना नहीं, फिर धमका कर बोला- 'उठ, पानी पिला उसे..... और माफ़ी माँग '
'ले उस्ताद कह कर अस्तर उठा टीम के गिलास में पानी ले जमीला के पास जा उसने कहा'ले पीले तेरे देवर का हुकुम है। बस कर अब हो गया '
जमीला ने मानो सुना ही नहीं; वह रोती रही।
हरीश ने अस्तर को जमीला के पैर छूने का इशारा किया।
अख्तर ने हंस कर कहा
मुझे पिटवाने की सोच रही है।
बाबा तेरे पाँव पड़ता हूँ, पीले पानी, क्यों
और नहीं मानती तो वह ले... जमीला के
पाँव से अस्तर ने हाथ हुआ दिया। नमककर जमीला ने कहा- मुके नको यस काम में यहाँ न रहूँगी।"
'ले सुन लिया' प्रस्तर ने हरीश को सम्बोधन किया।
हरीश ने होठों पर हँसी दवा फिर पाँव की ओर संकेत कर छूने को कहा। 'अच्छा तो फिर पैरों पर सिर रख दूँ अख्तर ने हँसकर जमीला से पूछा और भी क्रोम दिला उसने अस्तर का हाथ झटक दिया--
बस, कह दिया मैंने, मुझे तंग न करो मैं अब यहीं नहीं रखूँगी।' 'अच्छा न रहना, मैं भी तेरे साथ चलूंगा, यह गिलास पीले नहीं तो मेरे
मरेका
'चुप करो !' कोच में मुंह उधाड़ कर जमीला ने धमकाया।
'वी, यह पानी का गिलास ! नहीं तो क़सम देता हूँ" 'मेरी कसम जो मुझे कसम दे
'तेरी कसम बड़ी है या मेरी अस्तर ने पूछ 'मैं नहीं जानता।'
हरीश हँस रहा था। उसने
कहा-अच्छा भाभी पानी न पिये तो मेरी
भी कसम, खुदा की, कुरान की सारी दुनिया की कसम !'
हाँ अब सब लोग मेरे पीछे पड़ गये 'लू पंछते हुए जमीला ने कहा और गिलास से एक घूंट ले लिया ।
'नहीं नहीं, सारे गिलास की कसम है । हरीश ने दोहराया
'न पिया जाय तो 'जमीला बिगड़ी।
तो फिर क्रम आती है। हरीश ने धमकी दी।
जमीला ने अबरदस्ती ज्यों-त्यों पानी पी लिया। हरीश ने कहा- हाँ अब
खाने पीने की बात करो मुझे सचमुच बड़ी भूख लगी है। अक्तर ने पूछा- हाँ बनाया क्या है, जमीक्षा ' क्या लाके दे गये मे मुभी भी वास के लिये रोती-
मानो होश में
बनाया है पत्थर
रोती सो गई।'
'और तू बोतलों पर पैसे खराब करने लगा साते ! हरीश ने अस्तर
की डां
'अब उसकी याद न दिला 'अस्तर ने गहरी साँस खींची।
' में नमक- बेसन डालकर रोटियाँ बाप की है। जमीला ने अस्तर को बताया।
अपने कुरते की जेब टटोल अख्तर ने हरीश से कहा- 'उहर में चार पैसे का सालन लिये भ्राता हूँ तू क्या खाया रोटी ऐसे १' 'भाभी गुरु नहीं है 'हरीश ने पूछा ।
'है तो मुझी को भी गुरु से ही तो खिलाई है. थोड़ा घी भी है, मिला दूँगीलाने दे न सालन पर बाजार का सालन क्या खायगा, निरे छोंगे।'
'देस तो नखरे 'अक्तर ने कहा- 'पाचार का सालन क्या स्वायगा रोज़ इसकी माँ रोसन जोश बनाकर इसके लिये बैठी रहती है न ?' 'हाय सच्ची 'जमीला करया से हरीश की ओर देखने लगी । "अरे मामी को ही माँ समझ लिया है मत आ, गुरु घी तो है और क्या चाहिये १ ला भाभी जल्दी कर !"
अब तू इस जाड़े में बाहर
चूल्हे के कोयले उभार कर जमीला ने एक मिट्टी के बर्तन से तामचीनी की कटोरी में घी उट्टेल चूल्हे में रख उसमें गुड़ छोड़ दिया। कटोरी पति और हरीश के बीच रख उसने कहा- 'रोडियाँ बिलकुल उगडी हो गरम कर-करके देती जाती हूँ। एक रोटी सेंक उसने उन दोनों के सामने मिट्टी की एक रकेबी पर रख दी।
तुम्हारी हो जाय तू ही बता, ज्यादा तादाद तुम्हारी है का बाहुओं की अगर तुम लोग एक हो जाओ तो बाबू तुम्हारे पीछे-पीछे नाचे।'
-
पैसा जो नहीं उस्ताद ! अँगूठा दिखाते हुये अख्तर ने कहा "पैसे बिना क्या हो ?'
पैसा पैदा तो तुम्हीं लोग करते हो और फिर उन लोगों से माँगते हो बीच में टोक दिया—'अब
'यही तो सारा लेल है' अख्तर ने तो दूसरी तरह की बातें करने लगा सदर
गई हैं,
तो यही कहता है
'क्या-फ्री यहाँ आता है
मुंह में रोटी का फोर भरते हुए हरीश ने कहा- 'भाभी तू क्या खायगी
यह तो सब हम ही खा जायेंगे. १०.
'हाय-हाय अल्ला रखे, तू खाता ही क्या है में श्राय बहुतेरा है। और फिर हरीश के मुंह
कहा- देखो तो, मुंह कैसे सूल गया है
मत भाभी, यही पड़ी दूर !' हरीश
खा तू मुझे बहुत है। घर की ओर देखते हुए उसने कहाँ कहाँ फिर आया
ने जवाब दिया।
? अरे तुम बाबू, बनियों से कहीं
१
ये यम बनाकर सुराज लेता फिरता है न सुरान लिया जाता है। इन्हें तो जायदादों की क्रिके हैं। हमें कहो न मज़दूरी और दिहात के लोगों को, एक दिन में तता पलट कर रख दें।
'तो फिर पलटता क्यों नहीं उपलट - हरीश ने सोचा दिया। पलटें क्या यह सब मिस्त्री जैसों का ही राज हो आयगा । वह भी तो काला हिन्दुस्तानी ही है "देख ले कैसे खून पीता है?"
काला हिन्दुस्तानी तो तू भी है !क्यों हो जायगा मिश्री जैसी का राज तेरे जैसों का ही क्यों न होगा जो कोशिश करेगा, राज उसी का होगा !' - हरीश ने उत्तर दिया।
"अरे हमारा राज क्या होगा ? हमें अब भी मरना, तब भी मज़दूरी तो
बढ़ नहीं पाती, राज होगा 'अस्तर ने चिढ़ाया।
'तुम भी तो निरी मज़दूरी बढ़ाने की बात करते हो ।'
'तो और क्या भगवा उठाया करें कलिस का ?'
अगर तुम सब लोग मिलकर कांग्रेस का करंडा उठाने लगी तो कांग्रेस
"रफीक की तरह रीक भी
हरीश ने पूछा।
जमीला
'हाँ वीरा यहाँ आता है। मुझे बड़ा डर लगता है उससे बीच में बोल उठी मुट्ठी भर का फेंटे जैसा आदमी, कार-कटर कैची सी यान चलाता है। चार चार, पाँच-पाँच यह लोग इकड हो जाते हैं और हड़ताल की बातें करते हैं और खूब बीड़ियाँ फूंकते हैं। कहता है, एका करो एका ! और हडताल की बातें सुनाता है। वीरा, मुझे उस छोकरे से बड़ा डर लगता है। पहले रेलय में बीस आने रोज मिलते थे अच्छे भले वारद साल पहले यहाँ हाल में निकाले गये। अब मुश्किल से रोज़ी लगी है। फिर कहीं हड़ताल की तो कहाँ जायेंगे ? वीरा, तू समझा इसे इसे तो जो दो बातें सुना देता है, बस उसी के पीछे चलने को तैयार''''' बहुत कम न कर
सिवानी है न
अख्तर ने मनावटी गुस्से से कहा तू वी
"
ठोड़ी पर उँगली रख हरीश से शिकायत करते हुए अमीला ने कहा--- 'हाय-हाय देख मुझे तो ऐसे ही डाँट देता है मुझे तो बात भी नहीं कहने देता।"
'सुन तो अस्तर ने हरीश को सम्बोधन कर पूछा- 'सोयेगा भी यहीं ' 'और कहाँ जाऊँगा अब 'हरीश ने उत्तर दिया ।
|
'मरे तब तो जाने में रजाई तो एक ही है और वह भी कटी हुई हम दोनों तो मिलाकर गरम हो जाते हैं,
फिडे मुंह (श्री: : ) हाथ फटकार जमीला ने कहा- 'जरा भी तो शरम नहीं रही और मुँह ढक लिया।
|
हँसकर हरीश ने कहा अपना गुजारा कर मैं तेरा यह कम्पल लेके पर ऱहूँगा
यह भी कोई कम्बल है,
भूसा बाँधने लायक भी नहीं 'कम्प
की ओर इशारा कर उसने कहा- 'पता फिर जमीला
'तुम दोनों अपना गुजारा करो मेरी फिकर छोड़ो'-मुंह फिरा कर हरीश ने उत्तर दिया।
'हो मारा तेरे देवर ने घुटना हिलाते हुये अस्तर ने कहा । कहती हूँ, मैं उठ जाऊँगी हाँ सब छोड़ कर, फिर ऐसी बात करोगे तो-- मा और बनावटी कोच में दिखा नाक पर दुपट्टा रख जमीला ने कहा। यही तू दीवार को जायगी में से एक-एक घूँट पीलें, फिर चाहे
तर ने राय दी।
"फिर बोटल की बात "
किये डाल रही है।'
हाँ सुन सरदारों को इस बोतल बाहर रेस में पड़े रहेंक्यों-
"वह बोतल हो तो तुम लोगों को बरबाद
'हाँ और क्या 'अमीता ने समर्थन किया। हरीश कहता गया रोज पीकर सर्दी काटने से एक रजाई न बनवा से आदमी '
अस्तर ने चिड़कर जवाब दिया- चले। यहाँ मजदूर चार ऐसे में रात जब तक पाँच होंगे तब तक बन्दा सुना कहा गया, 'और फिर तू की दस जाने की दिहाड़ी है, चार
'लगा तू फिर कांग्रेसी छाँटने रोज-रोज कानी पड़े तो पता काटते हैं। रजाई बनती है पाँच रुपये में जहथुम पहुँच जायगा । अस्तर श्रीश को करतार सिंह की छुड़ा दे तो बायूँ 'पीछे है।
'हाय रोटी भी खाओगे या बच्ते ही रहोगे अमीता ने टोका और बीबी भी कमबख्त की हरसाल यह जाती है। तीन-चार महीने का क्वार्टर का किराया सिर पर रहता है। मनिया वाले का अलग नोच-नोच खाये है। वह शेर, और जो हो, कारखाने से आया कि एक कुलिया चढ़ाकर पड़ जाता है। यह दिन कटा, अगले का अल्ला मालिक।
भला उठा।
बता करे क्या
'न पर क्यों बच्चे पैदा करता है !'- हरीश वह करता है बचे पैदा बताऊँ 'मीला की ओर संकेत कर अरे दस घण्टे अनवर की तरह मज़दूरी
"अपने आप को भूले किस तरह
क्या
इसके सामने क्या कहूँ करके आदमी आये तो फिर करे अगर मेरा बस चले तो इन
साले सब मज़दूरों की परवा लियों को जहर दे दूँ और यहाँ लाइन में से लाकर रख दूँ ।"
'सोवा-तोया क्या कुफ बकते हो खुदा से डर नहीं लगता?'- जमीला ने कहा- 'लाहो कविताकुव्वत
'कुफ की बची। पता लग जाता जो चार-पाँच नोच-नोच खाते। दो हैं सी एक को अम्मा के पास छोड़ आई है कि सामीडे पल जायगा ! तू ही बता तेरे ही होने लगते तो तू कहाँ रखती हरीश की तरफ़ देखकर और तुझे मालूम है यहाँ उस कश्मीरी ने पाँच-सात फटे जूते जैसी औरतें रखी हुई हैं। साला दुअन्नी-चुन्नी में भुगताता है और रात भर में अपने पन्द्रह-बीस खरे कर लेता है। छठे महीने पुरानियों को हाँक कर, चार छः फटीचर और कहीं से ले जाता है। इस साले ने भी सारी लाइन में सुलाफ, में आतशक फैला रखी है ...... इस साले को भी गोली मारने वाला कोई
नहीं मिलता.........
'अरे सुन तो तमंचा है। तेरे पास १ यस मुझे सीन आदमियों को मारना है। एक इंजीनियर, दूसरा साला ये कश्मीरी और तीसरा वो हरामी जायर इनके मारे सारी लाइन बरबाद है। यह जावर हरेक मज़दूर से महीनो दुनी रुपमा लिये जाता है। साले ने अपना साहूकारा अलग सोश रखा है। आना रुपया रोज का सूद लेता है, और जब अपने मज़दूर एक होने लगते हैं, साला दो-चार को निकाल बाहर करता है और नये मज़दूर ले आता है ने बीसियों बुफ़िया लगा रखे हैं तेरी कसम, इसने रफीक को पीटने के लिये गुण छोड़ रखे हैं । इन तीन को तो मैं उड़ा कर दूँ।
सच कहता हूँ, हज़ारों के दिल उपडे हो जायेंगे। जमीला ने दोनों हाथ कानी पर रखकर कहा 'हाय-हाय बीरा, देख तो क्या हो रहा है इन्हें कैसी बातें कर रहे हैं?"
1
चिढ़ के अतर ने
कहा- 'क्या कह रहा हूँ
ही नही
हो
जायगी १ उन्होंने हज़ारों
राय
कर दी. बैठ जाना जा
तू किसी के घर
तोबा, दोवा, क्या यद
वान बोलते हो, खुदा
सी रहा है क्या
अमला ने फिर टोका नीयत की सज़ा देता है अख्तर और बिगड़ उठा
देता है ख़ुदा सज़ा
दिखाई नहीं देता उसे वह साले हजारो का खून पी रहे है ?
● जायर कारखाने के लिये मज़दूर भरती करने वाला ठेकेदार
'अरे बकता जाता है, चुप कर
हरीश ने डाँटा
तो कल दूसरा इन्जीनियर, कश्मीरी और आवर या जायेंगे, [गी (शहीद) होने को फिरता है
हे जाबर को मारने '
इन्हें मार देगा क्या बना लेगा
खुद तो रिश्वत देता है, चला
"रिश्वत न दूँ तो मर जाऊँ यों भी मरना वो भी मरना 'अक्कल से बात कर... मरना है तो ढंग से मर, कि कुछ बने १ क्या करूँ फिर ? एक तो इस औरत के मारे परेशान हूँ।' 'अरे ये न होती तो तू पी-पीकर गधा बन गया होता
कुछ देर के लिये दोनों चुप हो गये। अतर दिमासलाई की सीक से दाँत खोद रहा था। अपने भूत और भविष्य जीवन की समस्यायें व्यक्तिगत और श्रेणीरूप से उसके सामने आ रही थीं। हरोश के सामने प्रश्न था अपने साथियों से मतभेद प्रकट हो जाने पर अब उसके सामने फोन मार्ग है अ तक अपने विचारों और साथियों का मोह उसे हतोत्साहित कर रहा था। संतुष्ट थी तो केवल जमीला अपने हिस्से की रोटियाँ हरीश को खिला देने के बाद यह संतोष से अपने लिये आय माँक रही थी। इस चुप को फिर अस्टर ने ही सोदा । एक बीड़ी जलाते हुये उसने कहा- 'जिधर देखो, है सब तरफ़ भगवा ही...
यह सब झगड़े मिटाने के लिये ही स्वराज्य चाहते हैं। उसे तू की घटना पाता हैरीश ने खाना खा हाथ भोते हुए कहा।
तू मुझे समझा दे, मैं
कातर ने तेश
सुराज हो जायगा तो क्या यह सब नहीं होगा आज तेरे सुराज के लिये जान दे दूँ! चल अभी चल में उपाय दिया।
तू ही बता, क्या इलाज है इसका हरीश ने पूछ
'इलाज कोई नहीं, बस मरना है और दस बरस में देखना इतने बेकार मज़दूर हो जायेंगे कि हमें चवन्नी को नहीं पूछेगा !
मज़दूरों का ही राज हो जाय तो
अमर मज़दूर तीन-चार पया
रोज़ पाने लगे, तो फिर भी तुम लोग ऐसे पैदा करते जाओगे तो फिर बेकार
खड़े होंगे और फिर तुम्हारी मज़दूरी घट जायेगी !' - हरीश ने कहा
अरे तब तो मज़दूर साहब हो जायेंगे। साहबों के कहीं इस तरह पैदा
होते हैं।' अख्तर ने जवाब दिया ।
फिर उसी की बात क्यों न हो?' रफीक वाली बात' - हरीश ने कहा । 'अच्छा' कहकर अस्तर उठा। चूल्हे के पास एक चटाई पर बोरी बिछाकर दोनों साथ लेट गये और दोनों कम्बल मिलाकर उन्होंने थोड़ लिये ! जमीला खाट पर जा लेटी ।
अस्तर के साथ लेटकर हरीश ने पूछा 'मेरे वो अच्छे वाले कपड़े तो सँभाल कर रखे हैं न?'
'हाँ, हैं तो अलगनी पर रखे हैं जमीला ने अपने नये दुपट्टे में लपेट कर । 'सुबह ही मैं चला जाऊंगा। सुन तो, रफीक से मिलाना दोस्त मुझे "तू उससे मिलकर क्या करेगा ....... करता है, बम बाज़ी छोड़ दी क्या ?'
पर तू तो बम बाला है....
नहीं, अब तो तू दूसरी तरह की बातें
नहीं, अब बम बम कुछ नहीं उसी से मिलूँगा ! हाँ तुम्हारे अपने कितने आदमी होंगे ?'- हरीश ने पूछा।
'अभी बोतल खोल दूँ तो सभी अपने हैं, नहीं तो कोई अपना नहीं !'- तर हँस दिया' अभी छोटी होने लगे, सभी जावर के क़दम चूमने चल देंगे। वह भी साला चौथे-पाँचवें बेंत फटकार कर सुना देता है," छोटी होने ही वाली है।
कुछ ही मिनटों में अख्तर की नाक बजने लगी। हरीश चिच लेटा "अंधेरे में अपनी बात सोच रहा था। उसका मन चाहा, अस्तर को उठाकर सलाह ले परन्तु अस्तर से वह क्या सलाह लेता ! अख्तर और उसके साथी दो ही बातें जानते थे, या तो निराशा या खून
अपने मन की सुविधा भूल हरीश सोचने लगा मजदूरों की इस शक्ति को, जो आकाश में गरजने वाली बिजली की भाँति दुर्दमनीय है, कैसे संगठन के तार द्वारा क्रान्ति के उपयोग में लाया जा सकता है |