डायरी दिनांक २६/०४/२०२२
शाम के छह बज रहे हैं।
अप्रेल का महीना समाप्त होने जा रहा है। इसी के साथ सीरीज लेखन पूरा करने का टार्गेट समय पास आता जा रहा है। वैसे पूरी उम्मीद है कि धारावाहिक तय समय सीमा से पहले से पूर्ण हो जायेगा।
आज सुबह से ही मम्मी की तबीयत खराब सी है। सुबह तो जुकाम और खांसी महसूस हुई। कुछ बुखार की सी स्थिति भी लग रही है। खांसी की दवा तो मम्मी ने ले ली थी पर बुखार के लिये बहुत ज्यादा कहने के बाद अभी डोलो ली है।
कल रात बहुत तेजी से आंधी आयी। आज ज्यादातर स्थानों पर बिजली व्यवस्था बाधित रही। एटा में बिजली के इंतजाम ही कुछ ऐसे हैं कि जरा सी आंधी और बारिश में व्यवस्थाएं चरमराने लगती हैं।
कभी गर्मी की छुट्टियों के दिन घूमने फिरने के दिन होते थे। घूमने में रिश्तेदारों से मेल जोल बढाने को ही अधिक तबज्जो दी जाती थी। उन दिनों रिश्तों का महत्व समझा जाता था। लोगों के मन में आंतरिक खुशी होती थी। आज वह आंतरिक खुशी बहुत हद तक नदारद है। मनुष्य बहुत हद तक मशीनी प्राणी बन चुका है जिसके भीतर कोई भी भावना नहीं है। कभी कभी तो स्थिति ऐसी आ जाती है कि मनुष्य दिखावे के लिये भी किसी को मान नहीं देना चाहता है।
बहन सोनिया जाधव के उपन्यास को सुपर लेखन अवार्ड में चौथा स्थान मिला था तथा उनका उपन्यास अब प्रतिलिपि प्रीमियम में शामिल हुआ है। इस तरह मुझे लगता है कि मेरे उपन्यास दुनिया के रंग को प्रतिलिपि प्रीमियम में आने में दो महीने तक लग सकते हैं।
मेरे बड़े धारावाहिकों में एक समस्या बार बार अनुभव होती है कि पाठक पढना तो आरंभ करते हैं पर पूरा पढ नहीं पाते। दुनिया के रंग और उसके बाद वैराग्य पथ - एक प्रेम कहानी के मामले में भी ऐसा हुआ है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।