डायरी दिनांक ०२/०४/२०२२
शाम के चार बजकर पच्चीस मिनट हो रहे हैं ।
जीवन और अनिश्चितता एक ही सिक्के के दो पहलू जैसे हैं। अब देखो, कल जब डायरी लिख रहा था, उस समय अपने गृहनगर सिरसागंज जाने का कोई योग ही नहीं था, पर अचानक कल रात तक ऐसी भूमिका बन गयी कि मैं आज सुबह ही सिरसागंज के लिये निकल गया और शाम लगभग पौने चार बजे तक वापस भी आ गया।
आज से चैत्र माह की नवरात्रि आरंभ हो चुकी हैं। इन नौ दिनों घर पर जरा अधिक व्यस्तता रहती है और विभाग के कार्यों में जरा ढिलाई भी हो जाती है। हालांकि कुछ कामों को लंबित नहीं रखा जा सकता है।
कोरोना काल के बाद से जीवन शैली में बहुत बदलाव आया है। हमारे एटा जनपद में नवरात्रि का काल भंडारों का काल होता था। हर दिन कितने ही स्थानों पर भंडारे होते थे। फील्ड में हर रोज कहीं न कहीं भंडारा मिल जाता था। मजाल है कि बिना प्रसाद पाये कोई गाड़ी निकल भी जाये। गांव के लोग अक्सर बड़े दिल के होते हैं।
नवरात्रि के अवसर पर निश्चय किया है कि प्रतिदिन डायरी में श्रीरामचरितमानस में उल्लेखित किसी महर्षि के विषय में लिखूंगा। आज महर्षि भरद्वाज के विषय में लिखना चाहता हूँ।
महर्षि भरद्वाज राम कथा के तीन प्रमुख श्रोताओं में से एक हैं। महर्षि भरद्वाज को श्री राम कथा महर्षि याज्ञवल्क्य ने सुनाई थी। श्री राम कथा के दो अन्य प्रमुख श्रोता और वक्ता निम्न प्रकार हैं।
(१) वक्ता - भगवान शंकर और श्रोता - माता पार्वती
(२) वक्ता - कागभुशुंड जी और श्रोता - पक्षीराज गरुड़
महर्षि भरद्वाज का आश्रम प्रयाग में था। वह भगवान श्री राम के समकालीन महर्षि थे। भगवान श्री राम अयोध्या से निकलकर श्रंगबेरपुर से चलकर, केवट पर कृपा कर प्रयाग में महर्षि भरद्वाज के पास ही पहुंचे थे। भगवान श्री राम को वनवास काल में चित्रकूट में रहने का सुझाव महर्षि भरद्वाज ने ही दिया था। तथा उन्होंने भगवान श्री राम को मार्ग दिखाने के लिये उनके साथ अपने चार शिष्यों को भी भेजा था।
जब भगवान श्री राम को मनाने के लिये भरत जी वन जा रहे थे तब भरत जी प्रयाग में महर्षि भरद्वाज के आश्रम में रुके। उस समय महर्षि भरद्वाज ने अपनी सिद्धियों के प्रयोग से भरत जी और अन्य अयोध्यावासियों का विशेष स्वागत किया था। पूरी रामचरित मानस में दो ही बार रिद्धि-सिद्धि का प्रयोग अतिथियों के स्वागत के लिये किया गया है। एक तो महर्षि भरद्वाज द्वारा भरत जी का स्वागत। और दूसरा जनकपुरी में बरात लेकर पहुंचे महाराज दशरथ का स्वागत खुद माता सीता ने अपनी सिद्धियों के माध्यम से किया था।
श्री रामचरित मानस के बालकांड में उल्लेख है कि महर्षि भरद्वाज प्रयाग में रहते थे। उन्हे भगवान श्री राम से विशेष अनुराग था। माघ के महीने में बहुत से ऋषि प्रयाग में त्रिवेणी पर स्नान करने आते थे और महर्षि भरद्वाज के अतिथि बनते थे। एक बार जब माघ का महीना गुजर जाने पर महर्षि याज्ञवल्क्य वापस जाने की तैयारी कर रहे थे, उस समय महर्षि भरद्वाज ने उन्हें चरण पकड़कर रोक लिया। तथा भगवान श्री राम का चरित्र सुनने की इच्छा व्यक्त की। फिर महर्षि याज्ञवल्क्य जो कि वास्तव में महर्षि भरद्वाज की पुत्री मैत्रेयी के पति होने के कारण उनके जामाता भी थे, ने उन्हें श्री राम कथा सुनायी।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।