डायरी दिनांक ०६/०४/२०२२
शाम के छह बजकर दस मिनट हो रहे हैं ।
अभी अप्रेल का आरंभ ही है। पर गर्मी कुछ ज्यादा ही हो गयी है। तापमान ४२ डिग्री के लगभग रह रहा है। आफिस में भी बहुत गर्मी रहती है। ऐसे मौसम में बीटीएस में तकनीकी कमियां भी बढ रही हैं। वास्तव में मनुष्यों की तरह मशीनों की क्षमता मौसम पर निर्भर करती है। किसी भी तरह की अति फाल्टों को बढाती ही है। अधिक गर्मी, बारिश और कुहरे की अधिकता से कार्य क्षमता गिरती ही है तथा हार्डवेयर अधिक फाल्टी होते हैं।
आज श्री राम चरित मानस में वर्णित पांचवें महर्षि के बारे में बताना चाहता हूँ। उन महर्षि का नाम महर्षि श्रृंगी है। श्री रामचरित मानस के बालकांड में वर्णन है कि महाराज दशरथ संतान न होने के कारण दुखी थे। उन्होंने अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ से इस विषय में प्रार्थना की। फिर महर्षि वशिष्ठ ने महर्षि श्रृंगी को बुलाया तथा महर्षि श्रृंगी ने पुत्रेष्ठि यज्ञ किया। फिर अग्नि देव ने प्रगट होकर एक पात्र में खीर दी। महर्षि श्रृंगी ने वह खीर महाराज दशरथ को रानियों में बांटने को दीं। महाराज दशरथ ने खीर के दो भाग किये तथा महारानी कौशल्या व महारानी कैकेयी को दिया। फिर दोनों रानियों ने अपनी अपनी खीर में से आधा आधा भाग महारानी सुमित्रा को दिया। जिससे तीनों रानियाँ गर्भवती हुईं और महाराज दशरथ के घर चार पुत्रों का जन्म हुआ।
महर्षि श्रृंगी के विषय में वह तथ्य जो श्री रामचरित मानस में वर्णित नहीं हैं -
सर्वप्रथम यह मानना गलत है कि भगवान श्री राम के जन्म से पूर्व महाराज दशरथ निःसंतान थे। वास्तव में महाराज दशरथ और महारानी कौशल्या की सबसे बड़ी संतान एक कन्या थी जिसका नाम शांता था। किन्हीं कारणों से शांता को महाराज दशरथ ने अपने एक मित्र को दे दिया था। वहीं शांता का पालन पौषण हुआ। शांता परम ज्ञानी और वैरागी थीं। उन्होंने खुद की इच्छा से परम संयमी ऋषि श्रृंगी से विवाह किया। इस तरह महर्षि श्रृंगी महाराज दशरथ के दामाद थे। संभवतः शांता और महर्षि श्रृंगी का मत था कि महाराज दशरथ को पुत्रों की ही चाहत है। इस कारण उन्होंने अपनी कन्या का पालन खुद नहीं किया। महर्षि वशिष्ठ को यह सारे तथ्य ज्ञात थे। इसलिये उन्होंने खुद पुत्रेष्ठि यज्ञ न कर महाराज व रानियों को अपनी बेटी और दामाद को मनाने के लिये भेजा। महर्षि श्रृंगी ने वह यज्ञ केवल अपनी पत्नी शांता के कहने पर किया तथा वह अपनी पत्नी के साथ ही अयोध्या आये। उल्लेख है कि देवी शांता एक बार और अयोध्या आयीं थी जबकि चारों राजकुमारों का विवाह हो चुका था। उस समय उन्होंने अपने भाइयों को मिल कर रहने की शिक्षा दी थी।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।