डायरी दिनांक ०४/०४/२०२२
रात के आठ बजकर पचास मिनट हो रहे हैं ।
आज का दिन अति व्यस्तता भरा रहा । अचानक जी एम के दौरे का प्रोग्राम बन गया। जिस कारण अति व्यस्तता रही। घर आते आते लगभग पौने आठ बज गये। फिर भोजन आदि करने के बाद डायरी लिखने बैठा हूँ।
श्री रामचरित मानस में वर्णित तीसरे महर्षि अगस्त हैं। अगस्त ऋषि को कुंभज के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि महर्षि अगस्त का जन्म घड़े (कुंभ) से हुआ था।
श्री रामचरित मानस के बाल कांड में वर्णन है कि एक बार त्रेता युग में भगवान शिव और माता सती अगस्त मुनि के आश्रम में गये। वहाँ वे कुछ दिन रुके तथा भक्त और भगवान के मध्य भगवान श्री राम की कथा और नाम महत्व पर वार्तालाप होता रहा।
भगवान शिव ने वापसी के समय भगवान श्री राम को नरलीला करते हुए माता सीता के वियोग में दुखी देखा। उपयुक्त समय न होने के कारण भगवान शिव भगवान श्री राम को प्रणाम कर चल दिये। पर माता सती के मन में संदेह उत्पन्न हो गया। वह भगवान श्री राम की नरलीला को देख ऐसी भ्रमित हुईं कि उन्हें भगवान भी नहीं मान रही थीं। फिर भगवान शिव से आज्ञा लेकर माता सती ने भगवान श्री राम की परीक्षा लेने के लिये माता सीता का रूप रखा। इसी कारण भगवान शिव ने माता सती का त्याग कर दिया।
महर्षि अगस्त का श्री राम चरित मानस में पुनः वर्णन अरण्य कांड में मिलता है जबकि भगवान श्री राम महात्मा सुतीक्षण के साथ अगस्त मुनि के आश्रम में गये। वहीं अगस्त मुनि की प्रेरणा से भगवान श्री राम ने राक्षसों के नाश की प्रतिज्ञा की।
निशिचर हीन करहुं महि, भुज उठाया प्रण कीन्ह।
सकल मुनिन के आश्रमन, जाहि जाहि सुख दीन्ह।।
महर्षि अगस्त की अन्य कथाएं
(१) महर्षि अगस्त में सागर में छिपे राक्षसों को बाहर निकालने के लिये पूरा समुद्र पी लिया था।
(२) सुमेरु पर्वत को आसमान में बढने से रोकने के लिये महर्षि अगस्त दक्षिण भारत में रहने लगे। भगवान श्री राम से उनका मिलन भी दक्षिण भारत में ही हुआ था।
(३) ब्राह्मणों की छल से हत्या करने बाले आतापी बातापी नामक दो भाइयों में से उन्होंने बातापी का अंत किया था।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।