डायरी दिनांक २९/०४/२०२२
शाम के छह बजकर पांच मिनट हो रहे हैं ।
जो नवीन मकान तलाश किया है, उसके गृहस्वामी जी ने संदेश दिया कि मकान की पैंटिंग का कार्य पूर्ण हो चुका है। फिर थोड़ी ही देर में वह मुझसे मिलने भी आ गये। मम्मी से बात कर यही निश्चित किया है कि अगले सप्ताह ही उस घर में शिफ्ट हो जाना चाहिये।
लोगों के व्यवहार को पूरी तरह समझ पाना कभी आसान नहीं होता है। कौन कब किस बात पर रूठने लगे, कहा नहीं जा सकता है। कभी कभी तो कुछ लोग ऐसे ही धारणा बना लेते हैं। तथा धारणा का कारण हमेशा अज्ञात ही रहता है।
अभी थोड़ी देर पूर्व बहन मीरा परिहार की डायरी पढ रहा था। किस तरह कुछ लोग दूसरों की शराफत का लाभ उठाते हैं, यह चिंता का विषय है। फिर कभी कभी शरीफ व्यक्ति भी अपनी शराफत छोड़ने को मजबूर हो जाता है।
जब मथुरा में रहकर पढाई कर रहा था, उस समय कुछ समय एक घर में किराये पर रहा था। मकान मालिक, उनकी पत्नी और सारे बच्चे बहुत ज्यादा ही स्वार्थी है। हमेशा मेरी चीजों पर उनकी नजर गढी रहती। मैं मध्यमवर्गीय परिवार का विद्यार्थी, फिर भी उन सभी की अभिलाषा यही रहती कि मैं उनके ऊपर खर्च करता रहूं। बच्चे भी कोई अबोध नहीं थे।पर उन्हें घर में टोकने बाला कोई नहीं। हालत यह हो गयी कि मुझे मकान बदलना पड़ा।
जब मैं आगरा में नौकरी करने लगा तब फिर एक बार उनसे पाला पड़ा। हुआ यह कि उनका तीसरे नंबर का लड़का आगरा में कोई कोर्स करने आ गया। अब आगरा में तो पंडित जी हैं ही। उनके साथ लड़का रह लेगा। खाने पीने का खर्च भी पंडित जी करते रहेंगें। मैंने बहुत समझाया कि भाई को कोई रूम दिलबा दूंगा। मेरा समय अलग है।मेरे रहने का तरीका भी अलग है। पर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। जब खर्च करने बाला मौजूद है तो बेकार में खर्च क्यों किया जाये। आखिर में स्पष्ट बोला। फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ा। तब मकान बंद कर तीन दिन की छुट्टी लेकर घर आ गया। इसतरह उनसे जान छूटी।
यह मात्र एक छोटा सा उदाहरण है। ऐसी कितनी ही घटनाएं हर रोज होती रहती हैं। उधार लेकर वापस न करना कितनों का जन्म सिद्ध अधिकार होता है। एक महोदय ने तो बाबूजी को पत्र लिख कहा कि बेटी के विवाह में या तो फ्रिज या रंगीन टीवी (उन दिनों रंगीन टीवी बहुत कम के पास होती थी) का सहयोग आवश्यक है। अब रिश्तेदार ही तो सहयोग करेंगें। खैर बाबूजी ने न तो फ्रिज दिया और न ही टीवी दी।
मनुष्य को हमेशा अच्छी अच्छी बातों का ही चिंतन करना चाहिये। पर ऐसी चालाकी भरी यादें कभी भूलती नहीं हैं। संभावना यह भी है कि चालकों की चालाकी के कारण वे लोग भी सहायता नहीं प्राप्त कर पाते जो कि वास्तव में सहायता के हकदार होते हैं। सच और झूठ का पता करना बहुत कठिन है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।