डायरी दिनांक २२/०४/२०२२
शाम के छह बज रहे हैं।
कल रात मौसम ज्यादा ठंडा हो गया। चादर ओढनी पढी। लग रहा था कि कहीं बारिश हुई है। हालांकि कहीं भी बारिश होने का अनुमान गलत निकला। साथ ही साथ दिन में बहुत ज्यादा गर्मी होने लगी। कल रात के मौसम से बिल्कुल उलट मौसम हो गया।
ज्यादा जल्दी गर्मी पढने से बहुत सी फसल खराब हो गयी हैं। कोई भी जीव हो या कोई भी फसल, उनके विकसित होने का खास तरीका होता है। निर्धारित समय से पूर्व किसी को विकसित नहीं किया जा सकता है।
विभिन्न महर्षियों में सात महर्षियों को प्रमुख स्थान मिला है। उन सात महर्षियों को सप्तर्षि कहा जाता है। पर विभिन्न पौराणिक कहानियों में अलग अलग सप्तर्षियों का उल्लेख है। इससे कभी कभी संदेह की स्थिति बन जाती है।
श्रीमद्भागवत महापुराण में इस विषय में विस्तार से लिखा है। चारों युगों के मिलने से चतुर्युगी बनती है। तथा एक हजार बार चारों युग बीत जाने के काल को कल्प कहते हैं। एक कल्प में चौदह मनु होते हैं। एक मनु के काल को जो कि ७१ चतुर्युगी से कुछ अधिक ही होता है, एक मन्वंतर कहते हैं।
तो मुख्य बात यह है कि हर मन्वंतर में सप्तर्षि बदल जाते हैं। इस तरह हर मन्वंतर में सप्तर्षियों की अलग सूची होती है। दुर्वासा, अगस्त, दधीचि, विश्वामित्र जैसे महर्षि जो कि इस समय सप्तर्षि नहीं हैं, वे भी सप्तर्षि रह चुके हैं। महाराज नुहुष को श्राप देने बाले सप्तर्षि दुर्वासा ही थे।
वर्तमान में वैवस्वत मन्वंतर की अठ्ठाईसवीं चतुर्युगी चल रही है। वैवस्वत सातवें मनु हैं। तथा वैवस्वत मन्वंतर में निम्न महर्षि सप्तर्षि के रूप में विराजित हैं।
(१) कृतु
(२) पुलः
(३) पुलस्त
(४) मरीचि
(५) अत्रि
(६) अंगिरा
(७) वशिष्ठ
उपरोक्त जानकारी मेरे विचार में सही है। फिर भी भूल चूक की संभावना रहती है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।