डायरी दिनांक ०३/०४/२०२२ - महर्षि याज्ञवल्क्य
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कल अपनी डायरी में मैंने श्रीरामचरित मानस में वर्णित महर्षियों के विषय में लिखने के बारे में बताया था तथा महर्षि भरद्वाज के विषय में अपनी बुद्धि से लिखा भी था। आज महर्षि याज्ञवल्क्य के विषय में बताना चाहता हूँ।
विभिन्न शास्त्रों तथा धर्म ग्रंथों के अनुसार ऋषि परंपरा में आयु श्रेष्ठता का आधार नहीं होती अपितु ज्ञान को ही श्रेष्ठता का आधार माना जाता है। कम आयु का ब्रह्म ज्ञानी भी अधिक आयु के महर्षि से बड़ा माना जाता है। वह अधिक आयु के ऋषि द्वारा भी पूजित होता है।
विभिन्न पुराणों के वक्ता और श्रोता श्री लोमहर्षण सूत जी और श्री शौनक जी के विषय में भी यही माना जाता है कि सूत जी की आयु शौनक जी से कम थी। फिर भी लाखों मुनियों के मध्य सूत जी को श्रेष्ठ माना जाता था।
महर्षि याज्ञवल्क्य श्रीरामचरित मानस में उल्लेखित दूसरे महर्षि हैं। उन्होंने महर्षि भरद्वाज जी को प्रयाग में श्री राम कथा सुनाई थी। महर्षि याज्ञवल्क्य महर्षि भरद्वाज जी के दामाद थे। यह कल की डायरी में भी लिखा था।
अन्य धर्म ग्रंथों के अनुसार महर्षि याज्ञवल्क्य के प्रसिद्ध आख्यान निम्न प्रकार हैं -
(१) एक बार मिथिला नरेश महाराज जनक ने यज्ञ के मध्य घोषणा की कि वह एक सहस्र सवत्स गायों का दान ब्रह्म के तत्व को जानने बाले ज्ञानी को करेंगें। अतः आप में से जो ब्रह्म ज्ञानी है, वह गायों को ले जाये।
गायों की इच्छा तो बहुत को थी पर कोई भी आगे बढने को तैयार न था। फिर महर्षि याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्य आनंद को गायों को ले चलने की आज्ञा दी। उसके बाद उपस्थित सभी विद्वानों से महर्षि याज्ञवल्क्य का शास्त्रार्थ हुआ। महर्षि याज्ञवल्क्य ने अकेले ही सभी विद्वानों को शास्त्रार्थ में हरा दिया।
उसके बाद उसी सभा में उपस्थित परम विदुषी गार्गी और महर्षि याज्ञवल्क्य के मध्य शास्त्रार्थ आरंभ हुआ। जो कई दिनों तक चलता रहा। माना जाता है कि महर्षि याज्ञवल्क्य व गार्गी संवाद की पृष्ठभूमि महाराज जनक की इच्छा थी। वह खुद समाज को गार्गी देवी की विद्वत्ता से परिचित कराना चाहते थे। जिसमें महर्षि याज्ञवल्क्य ने उनका साथ दिया था। अंत में परम विदुषी गार्गी ने महर्षि याज्ञवल्क्य को सबसे अधिक विद्वान स्वीकार किया था।
(२) याज्ञवल्क्य मैत्रेयी संवाद - मैत्रेयी महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी और महर्षि भरद्वाज की पुत्री थीं। मैत्रेयी के अतिरिक्त महर्षि याज्ञवल्क्य की कात्यायनी नाम की पत्नी भी थीं। एक दिन महर्षि याज्ञवल्क्य ने सन्यास लेने की इच्छा व्यक्त करते हुए अपनी संपदा दोनों पत्नियों में बांटने का निश्चय किया। उस समय मैत्रेयी ने अपने पति से आत्मज्ञान की शिक्षा मांगी। उसके बाद महर्षि याज्ञवल्क्य ने सरलतम शव्दों में आत्मतत्व की शिक्षा देवी मैत्रेयी को दी।
महर्षि वेदव्यास ने विभिन्न वेदों और पुराणों का संकलन किया था। महर्षि बाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण की रचना की थी। उसी तरह महर्षि याज्ञवल्क्य ने कानून, न्याय और व्यवस्था के लिये याज्ञवल्क्य संहिता की रचना की। अधिकांश पाठकों को पता नहीं होगा कि वर्तमान विभिन्न हिंदू कानूनों में याज्ञवल्क्य संहिता का क्या योगदान है। वास्तव में संविधान के अनुसार विभिन्न कानून व्यक्ति की धार्मिक मान्यताओं को देखकर बनाने का नियम है। वर्तमान अधिकांश हिंदू कानून याज्ञवल्क्य संहिता से लिये गये हैं। याज्ञवल्क्य संहिता के दायभाग में महर्षि ने बटबारे की पूर्ण व्यवस्था लिखी थी। महर्षि के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति केवल उसके पुत्रों के मध्य ही वितरित नहीं होनी चाहिये। संपत्ति पर प्रथम अधिकार उसकी विधवा पत्नी का होना चाहिये। पैत्रिक संपत्ति के बटबारे का भी अलग नियम लिखा है। तथा व्यक्ति की मृत्यु पूर्व उसकी लिखित इच्छा (वर्तमान बसीयत) का प्रावधान भी दायभाग में लिखा हुआ है।
प्रायः माना जाता है कि वर्तमान तलाक व्यवस्था पाश्चात्य देशों की देन है। पर सही बात है कि लगभग पूरा हिंदू मैरिज एक्ट जिसमें तलाक, गुजारा भत्ता जैसे प्रावधान हैं, याज्ञवल्क्य संहिता से लिया गया है। जिन स्थितियों में वैवाहिक संबंध विच्छेद के विषय में महर्षि ने लिखा है, वे स्थितियां ही हिंदू मैरिज एक्ट में तलाक का आधार रखी गयी हैं। हालांकि कुछ नये आधार भी जोड़े गये हैं।
संबंधित कानून के न होने पर याज्ञवल्क्य संहिता को आधार मानकर निर्णय लेने का न्यायाधीश को अधिकार है बशर्त है कि संबंधित पक्षकार हिंदू धर्म के अनुयायी हों।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।