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डायरी दिनांक २०/०४/२०२२

20 अप्रैल 2022

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डायरी दिनांक २०/०४/२०२२

  शाम के पांच बजकर पचास मिनट हो रहे हैं ।

  कई बार मनुष्य कुछ कामों को करने में असहज महसूस करता है। स्थिति तब और ज्यादा भीषण बन जाती है जबकि वह कार्य अति आवश्यक हो।

   मेरा लेखन बहुत हद तक संवादों पर आश्रित नहीं है। अपितु मैं ज्यादातर अंतर्द्वंद और मनोविज्ञान का अधिक चित्रण करता हूॅ। पर कल ऐसी स्थिति आ गयी जबकि मैं आवश्यकता से अधिक असहज हो गया। पर स्थिति यहीं तक न रुकी। मम्मी को कल का लेखन सुनाया नहीं था। वह बार बार सुनाने के लिये कह रहीं थीं। फिर आज मैंने कल का और आज लिखा भाग सुनाया। कल के भाग को सुन कुछ मम्मी भी असहज हो गयीं। इसतरह कल का भाग पूरी तरह न मैंने मम्मी को सुनाया और न मम्मी ने पूरी तरह सुना।

  असहजता किसी भी व्यक्ति की वह स्वाभाविक कमजोरी होती है जिसे वह अन्य तरीकों से पूरी करने का प्रयास करता है ।असहजता एक कमजोरी से निपटने का तरीका भी तैयार करती है। असहजता कई बार सहजता की तरफ जाने बाले मार्गों की खोज भी करती है। कई बार असहजता को पार कर मिली सहजता अपेक्षाकृत अधिक बेहतर भी होती है।

  लोग क्या चाहते हैं, यह अधिक महत्वपूर्ण है अथवा हम क्या चाहते हैं, यह अधिक महत्वपूर्ण है। लोगों की राय के अनुसार अपनी राय बनाना अधिक उपयोगी है, अथवा लोगों को खुद की राय को स्वीकार कराना अधिक उचित है।

  मुझे लगता है कि उपरोक्त प्रश्न बहुत कठिन है। इन प्रश्नों का उत्तर कोई भी सहजता से नहीं दे सकता है। पर इन प्रश्नों का सार्थक उत्तर ढूंढना अति आवश्यक है।

   खुद के भीतर की कमियों को तलाशना हमेशा बड़े लोगों की निशानी होती है। खुद की कमियों को दूर करना बड़े लोगों का ही काम है। पर कई बार कमियों और अच्छाइयों में अंतर करना बहुत कठिन होता है। बहुत बार अच्छी बातों को बुरी बात मान लिया जाता है। और बुरी बातों की पूजा की जाती है।

  शिक्षक जो कि समाज का निर्माता कहा जाता है, यदि वही आचरण का दोषी पाया जाये तब किसी को क्या कहा जा सकता है। जनपद एटा में ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है। एक शिक्षक महोदय जो कि लगातार अनुपस्थित थे, विद्यालय पहुंचे तथा प्रधानाध्यापक को धमकी देकर उपस्थिति रजिस्टर में अपनी उपस्थिति दर्ज करने लगे। प्रधानाध्यापक द्वारा रोकने पर उन्होंने अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर से प्रधानाध्यापक को गोली भी मार दी।

  बाबूजी का कहना था कि यदि पूरा समाज भी पथभ्रष्ट हो जाये फिर भी समाज को जगाकर सही राह पर लाया जा सकता है। पर शिक्षकों के पथभ्रष्ट होने के बाद समाज की उन्नति की आशा करना ही गलत है।

  आज भले ही समाज का हर वर्ग गलत राह पर चल रहा है। पर प्रमुख चिंता की बात है, शिक्षकों का गलत राह पर चलना। शिक्षकों का शिक्षकीय आदर्श से गिरते जाना यह संकेत दे रहा है कि भविष्य अधिक भयानक है।

अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।

 

 


भारती

भारती

बहुत ही बढ़िया

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