डायरी दिनांक ०७/०४/२०२२
शाम के छह बजकर पैतीस मिनट हो रहे हैं ।
लगातार साथ रहने बाले पत्थर से भी मनुष्य को कुछ प्रेम हो जाता है। वह उस पत्थर को वहां से हटाना नहीं चाहता। उसकी आंखें हर रोज उस पत्थर को तलाशती हैं। यदि वह पत्थर न दिखे तो उसकी भी कुछ दिनों तक याद आती है। यह अलग बात है कि बाद में उसका ध्यान मन से उतर जाये।
सीरीज लेखन के लिये लिखना आरंभ किया। और आज धारावाहिक के छह भाग भी प्रकाशित हो गये। प्रतिलिपि इस धारावाहिक का एक भाग लिख जाये तो अच्छा रहेगा।
अभी तक श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित पांच महर्षियों के बारे में लिख चुका हूँ। आज श्री रामचरित मानस में उल्लिखित छठे महर्षि विश्वामित्र के विषय में बताना चाहता हूँ।
श्री रामचरित मानस के बाल कांड में वर्णन है कि एक दिन महर्षि विश्वामित्र महाराज दशरथ से मिलने आये तथा उन्होंने अपने यज्ञ की रक्षा के लिये श्री राम और लक्ष्मण की याचना की। जिसे सुन महाराज दशरथ बहुत दुखी हुए। पर महर्षि वशिष्ठ के समझाने पर उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र के साथ भेज दिया। श्री राम ने मार्ग में ही ताड़का का वध किया। फिर महर्षि विश्वामित्र ने श्री राम और लक्ष्मण को बहुत सारे अनोखे अस्त्र शस्त्रों की शिक्षा दी। तथा निद्रा और भूख को जीतने की भी शिक्षा दी।
फिर जब महर्षि यज्ञ करने लगे तब श्री राम और लक्ष्मण ने राक्षसों से यज्ञ की रक्षा की। सुबाहु का वध किया तथा मारीच को तीर से ही सौ योजन सागर पार फेंक दिया।
फिर महर्षि विश्वामित्र दोनों भाइयों को लेकर मिथिला पुरी गये। मार्ग में महर्षि गौतम के आश्रम में श्री राम ने शिला बनी अहिल्या का उद्धार किया तथा फिर मिथिला पुरी में महर्षि विश्वामित्र की आज्ञा से ही धनुष भंग कर माता सीता से विवाह किया।
महर्षि विश्वामित्र की अन्य कथाएं -
महर्षि विश्वामित्र के पिता गाधि नामक राजा थे। उनकी बहन भगवान परशुराम की माता रैणुका थीं। महर्षि वशिष्ठ से उनका विवाद हुआ। तथा जब राजसी तरीके से वह महर्षि वशिष्ठ को हरा नहीं पाये तब उन्होंने सन्यास का मार्ग अपनाया। उनकी तपस्या से भयभीत इंद्र ने मैनका अप्सरा को उनकी तपस्या भंग करने भेजा। उनकी और मैनका की पुत्री शकुंतला हुईं जो कि हस्तिनापुर के राजा दुश्यंत की पत्नी बनीं।
महर्षि विश्वामित्र ने पुनः तप आरंभ किया तब अपनी दक्षता से सभी को आश्चर्य में डाल दिया। तथा वह तप द्वारा ब्रह्मर्षि बने। फिर भी महर्षि वशिष्ठ उन्हें राजर्षि कहा करते थे। एक बार महर्षि विश्वामित्र छिपकर महर्षि वशिष्ठ के प्राण लेने पहुंचे, उस समय एकांत में महर्षि वशिष्ठ अपनी पत्नी माता अरुंधति को महर्षि विश्वामित्र के तप के विषय में बता रहे थे तथा उन्हें ब्रह्मर्षि कह रहे थे।
सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के लिये महर्षि विश्वामित्र ने अलग सृष्टि बनाना आरंभ किया। भेंस, नारियल महर्षि विश्वामित्र की बनायी रचनाएं कही जाती हैं।
त्रिशंकु के पुत्र महाराज हरिश्चंद्र की महर्षि विश्वामित्र ने बहुत कठोर परीक्षा ली तथा अंत में हरिश्चंद्र को परम सत्य व्रती स्वीकार किया।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।