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डायरी दिनांक ११/०४/२०२२

11 अप्रैल 2022

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डायरी दिनांक ११/०४/२०२२

  शाम के छह बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।

  


 हर काम का सही समय होता है। समय से पहले कभी भी किसी को कुछ नहीं मिलता है। 

  मार्च के महीने की डायरी बहुत हद तक सूक्ति परक डायरी बन गयी थी। तथा बहुत सी घटनाओं का मैंने उल्लेख किया था। १ मार्च की डायरी में मैंने महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य पर लिखा था कि किस तरह भगवान शिव विनाश के देवता हो सकते हैं।

  आज डायरी में श्री राम चरित मानस में वर्णित दसवें महर्षि के बारे में बताना चाहता हूँ। दसवें महर्षि अत्रि हैं। महर्षि अत्रि की तपोभूमि चित्रकूट थी। उनकी पत्नी का नाम अनुसुइया था। भगवान श्री राम ने चित्रकूट में महर्षि अत्रि के आश्रम के निकट ही कुटी बनाकर निवास किया था। जब भरत जी भगवान श्री राम को मनाने चित्रकूट आये, उस समय वह महर्षि अत्रि से भी मिले थे। जब भगवान श्री राम ने पिता के वचन को मान चौदह वर्ष से पूर्व वापस अयोध्या जाने से मना कर दिया, उस समय भरत जी ने वापस जाने से पूर्व चित्रकूट घूमने की इच्छा व्यक्त की। फिर महर्षि अत्रि ने भरत जी विभिन्न दिव्य स्थलों के दर्शन कराये। भगवान श्री राम का राज्याभिषेक करने के लिये भरत जी विभिन्न नदियों का जल लेकर आये थे। वह जल महर्षि अत्रि के निर्देश पर भरत जी एक कूप में प्रवाहित किया। वह कूप भरत कूप के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

  श्री राम चरित मानस के अरण्य कांड में लिखा है कि एक बार भगवान श्री राम, माता जानकी और लक्ष्मण जी के साथ महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे। फिर माता अरुंधती ने माता सीता को नारी धर्म की शिक्षा दी। उसके बाद माता अरूंधती ने माता सीता को दिव्य आभूषण भेंट किये।

  महर्षि अत्रि के विषय में अन्य तथ्य - महर्षि अत्रि वैवस्वत मन्वंतर के सात सप्तर्षियों में से एक हैं। उनके तीन पुत्र चंद्रमा, दुर्वासा और दत्तात्रेय थे। ये तीनों ही भगवान ब्रह्मा, भगवान शंकर और भगवान विष्णु के अंश कहे जाते हैं। महर्षि अत्रि और माता अनुसुइया के एक पुत्री अपाला भी थीं जिन्हें कोढ हो गया था। फिर वह इंद्र की उपासना से कोढमुक्त हुईं। अपाला परम विदुषी थीं और उन्होंने ऋग्वेद की कई ऋचाओं की खोज की थी। (वेद अनादि कहे गये हैं तथा खुद भगवान का अंश कहे जाते हैं। इसलिये वेदों की ऋचाओं को लिखने बालों को उन ऋचाओं की खोज करने बाला कहा जाता है।)

  अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।


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