डायरी दिनांक १७/०४/२०२२
दोपहर के तीन बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।
मनुष्य जितना अधिक प्राकृतिक माहौल में रहता है, उतना ही स्वस्थ रहता है। आज भी गांव के लोग कम बीमार होते हैं। तथा बीमार हो जाने पर जल्द स्वस्थ भी हो जाते हैं। कोरोना जैसी बड़ी बीमारी में भी गांव के लोगों का रिकवरी रेट ज्यादा अच्छा रहा है।
गर्मी के कारण चारों तरह त्राहि त्राहि मच रही है। एक अनुमान के अनुसार अभी तक अप्रेल के महीने में कभी इतनी गर्मी नहीं हुई है। इसके कारणों पर मौसम वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं। पर इतना निश्चित है कि यह निश्चित ही जलवायु परिवर्तन का उदाहरण है।
जब से धरती बनी है, धीरे-धीरे लगातार बदलाव होता रहा है। सभी स्थानों के मौसम में भी बदलाव हुआ है। पर वह बदलाव धीरे धीरे था। यकायक एक बड़ा बदलाव कभी भी अच्छा नहीं माना गया है।
श्री राम चरित मानस में वर्णित सभी महर्षियों के विषय में लिख चुका हूँ। फिर भी पूर्ण विश्वास से नहीं कह सकता कि इनके अतिरिक्त किसी अन्य महर्षि का उल्लेख नहीं है। कारण कि अध्ययन में त्रुटि हो सकती है। जानकारी जुटाने में कुछ कमियां रह सकती हैं। पर जितने महर्षियों के बारे में लिखा है, उनका वर्णन श्री राम चरित मानस में है, यह निश्चय से कह सकता हूँ।
अंत में श्री राम चरित मानस में वर्णित एक बेनामी तपस्वी के विषय में बताता हूँ।
श्री राम चरित मानस के अयोध्या कांड में वर्णित है कि भगवान श्री राम के वन गमन के दौरान एक तपस्वी उन्हें मार्ग में मिले। वह तपस्वी अपने प्रभु को पहचान भगवान श्री राम के चरणों में लोटने लगे। फिर भगवान श्री राम ने उन्हें बड़े प्रेम से उठाकर अपने गले लगाया। प्रभु श्री राम के बाद लक्ष्मण जी ने उन्हें गले से लगाया।
वह तपस्वी कौन थे, इस विषय में सही सही कहा नहीं जा सकता है। इस तरह का कोई भी प्रसंग बाल्मीकि रामायण या अध्यात्म रामायण में नहीं है।
श्री राम चरित मानस की टीका में श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी लिखते हैं कि यह गोस्वामी तुलसीदास जी की खुद की परिकल्पना है। संभवतः वह तपस्वी हनुमान जी थे। पर हनुमान जी के विषय में गोस्वामी जी द्वारा विस्तार से न बताने का कोई कारण नहीं है। दूसरा अनुमान है कि गोस्वामी तुलसीदास जी भावलोक में खुद से प्रभु श्री राम के मिलन की कल्पना कर रहे थे। वैसे भी हिंदू धर्म पुनर्जन्म के सिद्धांत पर विश्वास करता है।
प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार श्री अमृतलाल नागर जी ने अपने उपन्यास मानस के हंस में यही लिखा है कि कथा कहते समय तुलसीदास जी खुद से प्रभु श्री राम के मिलन की कल्पना करने लगे तथा वही कथा श्रोताओं को सुनाने लगे।
वैसे यह माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने सन्यास लेने के लगभग चालीस वर्ष बाद श्री राम चरित मानस लिखना आरंभ किया था। उस समय तक गोस्वामी तुलसीदास जी श्री राम कथा सुनाते थे तथा प्रभु श्री राम पर आधारित अन्य छोटे ग्रंथ जैसे वरवै रामायण, दोहावली, गीतावली आदि लिख चुके थे। श्री राम चरित मानस के बाद गोस्वामी जी का लिखा ग्रंथ विनय पत्रिका है। तथा लोकोक्ति के अनुसार उनका आखरी ग्रंथ हनुमान वाहुक है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।