डायरी दिनांक १९/०४/२०२२
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जैसे जैसे गर्मी बढ रही है, ठंडी वस्तुओं की खपत बढ रही है। इस बार नीबू के दाम आसमान पर चढ़ रहे हैं। मजेदार बात है कि बाजार में हर वस्तु के दामों को यूक्रेन युद्ध से जोड़ा जा रहा है। जैसे कि रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध हथियारों के बजाय नीबू फेंक कर ही लड़ा जा रहा है। कुछ वस्तुओं के दामों में हो रही वृद्धि वास्तव में आश्चर्यजनक और कल्पनातीत है।
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छबाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
कवीरदास जी की बातों से असहमति का कोई प्रश्न ही नहीं है। वास्तव में मनुष्य को उसकी कमियां बताने बाला मिलना ही बड़ा कठिन है। जो मनुष्य हमारी कमियों की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करता है, वह निश्चित ही पूजनीय है।
पर सत्य यह भी है कि आज के समय में अधिकांश निंदा सुधारात्मक उद्देश्य के लिये नहीं होती। आज निंदा का स्वरूप बहुत आगे बढ चुका है। जबकि सही गलत से बहुत आगे केवल निंदा ही उद्देश्य रह जाता है।
आज किसी मनुष्य के कर्मों की या आचरण की निंदा नहीं होती है। आज निंदा का अर्थ है केवल विरोध व्यक्त करना। बिना सोचे और समझे बेबजह किसी के मान को नष्ट करना।
मनुष्य जिन बातों से बहुतों के सम्मान का पात्र बनता है, वे ही बातें उसे निंदा का भी पात्र बना देती हैं। न जाने कितने लोग इस निंदा रूपी व्यापार में लग्न हैं। आज की राजनीति ही पूरी तरह निंदा पर आधारित है। जबकि दूसरे के हर कार्य की बुराई ही करनी है।
माना जाता है कि सुशासन के लिये एक बेहतर विपक्ष की महती भूमिका होती है। शक्तिशाली विपक्ष का महत्व स्वीकार करना बहुत हद तक निंदक के अस्तित्व को महत्ता देना ही है।
साबुन कार्वनिक वसीय अम्लों के सोडियम या पोटेशियम लवण होता है। इनमें से पोटेशियम लवण नहाने के लिये प्रयुक्त होता है। जबकि सोडियम लवण कपड़ा धोने के लिये प्रयोग किया जाता है। साबुन से सफाई का सिद्धांत बहुत हद तक कोशिकीय सिद्धांत पर आधारित है। पानी के साथ साबुन हल्के झाग रूप में बदलता है। जो कि शरीर के रोमछिद्रों अथवा कपड़े के वारीक छिद्रों के मध्य जाकर सफाई कर देता है। साबुन का इतिहास निश्चित ही कबीरदास जी से पुराना है।
आज के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।