डायरी दिनांक ०५/०४/२०२२
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कल की तरह आज का दिन भी व्यस्तता भरा रहा। कुछ विभागीय समस्याएं पूरे दिन परेशान करती रहीं। जिनका कोई निदान नहीं मिला। कभी कभी समस्याएं कुछ ज्यादा ही जिद्दी हो जाती हैं। उन्हें पुचकारकर जितना भी शांत करने का प्रयास करो, उतना ही ज्यादा सर उठाती हैं। फिर कभी कभी नजरंदाज करना भी आवश्यक हो जाता है। बहुत सी समस्याएं स्वतः ही शांत होती हैं।
श्री रामचरित मानस में वर्णित चौथे महर्षि वशिष्ठ हैं। महर्षि वशिष्ठ न केवल सप्तर्षियों में एक हैं, भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं तथा साथ ही साथ इक्ष्वाकु वंश के कुलपुरोहित भी थे। महर्षि वशिष्ठ का उल्लेख श्री रामचरित मानस के बालकांड, अयोध्या कांड, लंका कांड और उत्तर कांड में है।
श्री रामचरित चरित मानस के बाल कांड में महर्षि वशिष्ठ को महाराज दशरथ का गुरु बताया है। उनकी पत्नी का नाम अरुंधती था। उन्हीं की सलाह पर महर्षि श्रृंगी ने पुत्रेष्ठि यज्ञ किया और भगवान श्री राम अपने तीनों भाइयों के साथ अवतरित हुए। महर्षि वशिष्ठ ने चारों भाइयों का नामकरण उनके भविष्य के गुणों को देखकर किया। महर्षि वशिष्ठ ने ही भगवान श्री राम और उनके भाइयों को शस्त्र और शास्त्रों की शिक्षा दी। हालांकि बाद में भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी को महर्षि विश्वामित्र जी ने भी अनोखे शस्त्रों की शिक्षा दी थी। भगवान श्री राम की बरात में महर्षि वशिष्ठ के रथ को सबसे पहले तैयार कर आगे रखा गया था। माता कैकेयी द्वारा वर मांगने के समय उत्पन्न परिस्थितियों में महर्षि वशिष्ठ राजपरिवार के साथ रहे। महाराज दशरथ के निधन के बाद उन्होंने ही महाराज के शव को सुरक्षित किया था। भरत के साथ महर्षि वशिष्ठ भी चित्रकूट आये थे। रावण का वध कर जब भगवान श्री राम अयोध्या वापस आये तब उन्होंने सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ का ही अभिवादन किया था। महर्षि वशिष्ठ ने ही भगवान श्री राम का राज्याभिषेक किया था।
श्री रामचरित मानस के उत्तर कांड में महर्षि वशिष्ठ और भगवान श्री राम के मध्य संवाद भक्त और भगवान के रूप में पहली बार वर्णित है। महर्षि वशिष्ठ भगवान श्री राम की स्तुति करते समय कहते हैं कि जब भगवान ब्रह्मा ने उन्हें रघुकुल का पुरोहित बनने को कहा था तो महर्षि वशिष्ठ ने पुरोहित के कार्य को निंदित कार्य बताकर अस्वीकार कर दिया था। फिर भगवान ब्रह्मा ने उन्हें बताया कि इस कुल में खुद भगवान अवतरित होंगें। इसीलिये उन्होंने रघुकुल का पुरोहित बनना स्वीकार किया।
महर्षि वशिष्ठ की अन्य कथाएं जिनका श्री राम चरित मानस में उल्लेख नहीं है -
(१) साधन की आरंभिक अवस्था में सभी में कुछ कमियां होती हैं। एक कथा के अनुसार महर्षि वशिष्ठ के अकारण क्रोध का उल्लेख है। जबकि वह इक्ष्वाकु वंश के साथ साथ मिथिला के राजाओं और इंद्र के भी पुरोहित थे( बाद में इंद्र ने बृहस्पति को तथा मिथिला नरेशों ने महर्षि गौतम को अपना पुरोहित बनाया। महर्षि गौतम के बाद महर्षि गौतम के पुत्र शतानंद मिथिला के पुरोहित बने) । एक बार उन्हें मिथिला नरेश महाराज निमि ने यज्ञ करने का निमंत्रण दिया। उसी समय इंद्र का निमंत्रण भी उन्हें यज्ञ कराने के लिये मिला। महर्षि वशिष्ठ महाराज निमि को इंतजार करने को कहकर इंद्र का यज्ञ कराने चले गये। दूसरी तरफ महाराज निमि ने विचार किया कि अच्छे कार्यों में देर नहीं करना चाहिये। तथा दूसरे पुरोहितों से यज्ञ पूर्ण करा लिया। इस बात से महर्षि वशिष्ठ को इतना क्रोध आया कि उन्होंने महाराज निमि को श्राप देकर ही नष्ट कर दिया। फिर उनकी कृपा से ही महाराज निमि को लोगों के पलकों पर स्थान भी दिया।
(२) महर्षि वशिष्ठ ने संध्या नामक युवती को धर्म की शिक्षा दी। बताया जाता है कि वही संध्या अगले जन्म में माता अरुंधती बनीं।
(३) महर्षि वशिष्ठ ने साधन करते हुए खुद को सभी विकारों से ऊपर उठा लिया। जरा सी बात पर महाराज निमि पर क्रोध करने बाले महर्षि वशिष्ठ ने क्रोध को पूरी तरह जीत लिया। माता कामधेनु की पुत्री नंदिनी उनके आश्रम में धेनु के रूप में रहने लगीं। माता नंदिनी की कृपा से महर्षि के आश्रम में कोई भी कमी नहीं थी।
(४) नंदिनी धेनु प्राप्त न कर पाने के कारण क्रोध में शक्तिशाली राजा विश्वामित्र ने महर्षि वशिष्ठ के सभी सौ पुत्रों को मार दिया। फिर भी वह क्रोध पर विजय पाते रहे। विश्वामित्र जो कि वास्तव में उनके शत्रु थे, उन्हीं की कृपा से ब्रह्मर्षि बन पाये।
(५) महर्षि के सौ पुत्रों में शक्ति बहुत विद्वान, संयमी, ज्ञानी और महर्षि को अति प्रिय थे। शक्ति की पत्नी भी एक विदुषी महिला थीं जिससे महर्षि खुद की पुत्री की भांति स्नेह करते थे। महर्षि वशिष्ठ के पुत्र शक्ति का वध भी विश्वामित्र जी के हाथों ही हुआ। कहीं कहीं ऐसा भी उल्लेख है कि विश्वामित्र जी द्वारा भेजे किसी अन्य राजा के हाथों हुआ।
(६) महर्षि वशिष्ठ ने ही देवसभा में कहा था कि एक बार धर्म भी धर्म से डिग जायें पर अयोध्या के राजा हरिश्चंद्र कभी भी धर्म से नहीं डिगेंगें। फिर महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा ली थी।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।