डायरी दिनांक ०९/०४/२०२२
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आज दुर्गा अष्टमी है। आज के दिन हमारे घर पर उपवास रखा जाता है और नवमीं को कन्या पूजन किया जाता है। वैसे कुछ परिवारों में अष्टमी को ही कन्या पूजन किया जाता है।
आज एक लेख पढा जिसमें बताया गया था कि किन कन्याओं का पूजन करना चाहिये। मेरे विचार में किसी भी जाति, वर्ण की छोटी कम आयु की कन्याओं का पूजन करना चाहिये। तथा अन्य बहुत सी बातें महत्वहीन हैं। यदि कोई कन्या विकलांग है, यदि किसी कन्या का पिता मृत्यु को प्राप्त हो चुका है, इन कारणों से कोई कन्या पूजनीय नहीं है, ऐसा मानने का कोई भी आधार नहीं है।
यथार्थ में आज यक्ष प्रश्न कुछ अलग है। कन्या पूजन किसे करना चाहिये, कौन कन्या पूजन का अधिकारी ही नहीं है, यह प्रश्न अधिक महत्वपूर्ण है। कन्या भ्रूण को जन्म से पूर्व ही मार डालने बाले माता पिता तथा उनका सहयोग करने बाले डाक्टर, दाई आदि किसी भी तरह कन्या पूजन के अधिकारी नहीं हो सकते। बेटा और बेटी में भेदभाव करने बाले भी कन्या पूजन के अधिकारी नहीं हो सकते। बुजुर्ग माता पिता का सम्मान न करने बाले कन्या पूजन के अधिकारी नहीं हो सकते। मेरी राय में कन्या पूजन के लिये अयोग्य लोगों के परिवारों में किसी को अपनी कन्या को पूजन के लिये नहीं भेजना नहीं चाहिये।
आज श्री राम चरित मानस में वर्णित आठवें महर्षि के बारे में बताना चाहता हूँ। श्रीराम चरित मानस में वर्णित आठवें महर्षि परशुराम हैं। बालकांड में उल्लेख है कि जब भगवान श्री राम ने भगवान शिव के धनुष पिनाक को तोड़ दिया तब महर्षि परशुराम क्रोधित हो कर स्वयंवर सभा में आ गये। फिर परशुराम और लक्ष्मण जी के मध्य संवाद हुआ। अंत में जब भगवान श्री राम ने महर्षि परशुराम के धनुष कार्मुक की प्रत्यंचा चढा दी तब महर्षि परशुराम भगवान श्री राम को भगवान विष्णु का अवतार मान और उनकी स्तुति कर विदा हुए।
महर्षि परशुराम के विषय में अन्य तथ्य -
महर्षि परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार कहा जाता है। वह महर्षि जमदग्नि और रैणुका के पुत्र थे। महर्षि विश्वामित्र उनके मामा लगते थे। क्योंकि महर्षि विश्वामित्र की माता रैणुका महर्षि विश्वामित्र के पिता गाधि की पुत्री थीं।
महर्षि परशुराम का नाम परम पित्रभक्तों में लिया जाता है। हालांकि पिता के वचन का पालन करने के लिये उनके द्वारा माता के वध की आलोचना होती रही है। फिर भी उन्होंने अपने पिता से आशीर्वाद में माता का जीवन ही मांगा जो कि उनकी मात्रभक्ति का प्रतीक है।
पिता जमदग्नि की हत्या करने बाले अधर्मी राजा सहस्रबाहु का उन्होंने वध किया था। सहस्रबाहु इतना शक्तिशाली बताया जाता है कि सहस्रबाहु ने रावण जैसे बली को हराकर उसे वंदी बना लिया था। फिर पुलस्त मुनि ने रावण को सहस्रबाहु की कैद से आजाद कराया। हालांकि यह रावण के जीवन की आरंभिक घटना बतायी जाती है।
महर्षि परशुराम ने इक्कीस बार धरती से क्षत्रियों का संहार किया तथा वह क्षत्रिय द्रोही के रूप में जाने जाते हैं।
महाराज जनक के पास जो पिनाक धनुष था, वह धनुष महाराज निमि को महर्षि परशुराम ने ही दिया था। महर्षि परशुराम को पिनाक खुद भगवान शिव ने दिया था। तथा पिनाक वही धनुष था जिससे भगवान शिव ने जलंधर का अंत किया था।
भगवान श्री राम का धनुष कार्मुक उन्हें महर्षि परशुराम ने स्वयंवर सभा में ज्या चढाने को दिया। फिर वह धनुष उन्होंने भगवान श्री राम को अवतार के उद्देश्य पूर्ण करने के लिये दे दिया। कार्मुक से ही भगवान श्री राम ने विभिन्न दैत्यों का वध किया।
महर्षि परशुराम ने गंगापुत्र देवव्रत भीष्म को शस्त्र और शास्त्रों की शिक्षा दी थी। उनके और भीष्म के मध्य इक्कीस दिनों के बाद भी युद्ध अनिर्णयीत रहा था।
महर्षि परशुराम ने कर्ण को भी शस्त्र शिक्षा दी थी। हालांकि धोखा देने के कारण कर्ण को श्राप भी उन्होंने ही दिया था। फिर भी महर्षि परशुराम ने कर्ण को विजय नामक धनुष और अजेय भार्गव अस्त्र का ज्ञान दिया। खुद भगवान श्री कृष्ण ने स्वीकार किया था कि भार्गव अस्त्र का उनके पास भी कोई तोड़ नहीं है। अद्भुत बात थी कि कर्ण ने इंद्र की वासवी शक्ति सहित बहुत सारे अस्त्र शस्त्रों पर विश्वास किया पर महर्षि परशुराम के अजेय भार्गव अस्त्र पर विश्वास नहीं किया।
मान्यता है कि जब भगवान कल्कि संभल क्षेत्र में अवतार गृहण करेंगें, उन्हें महर्षि परशुराम ही अस्त्रों की शिक्षा देंगें। तथा देवी वैष्णवी उनकी शक्ति बन उनका साथ देंगीं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।