दिलों की क़ैद से बाहर निकल,
नज़ारा देख रुक थोडा संभल।
बिखरने दो अभी खुश्बू हवा में,
ना जाने कौन ,कब जाये बदल।
तुम्हारा काम,बातें बनाना छोड़,
बढाया ताप गर तू जायेगा उबल।
तमाशा बन गया क्यों आदमी तू,
ना पैसा काम आयेगा ना महल।
बुलंदी ठीक है ऊंचा ना उड़ना पंख,
जमींनो से जुडो,उठो आगे निकल।
कल्पना साथ मे,कर्तव्य करता जा,
तुम्ही संकल्प हो सुन्दरतम सरल।
शुक्रिया आज फिर से जिंदगी तेरा,
नया विश्वास जागा थी उम्दा पहल।