“दोहा मुक्तक”
यह तो प्रति हुंकार है, नव दिन का संग्राम।
रावण को मूर्छा हुई, मेघनाथ सुर धाम।
मंदोदरी महान थी, किया अहं आगाह-
कुंभकर्ण फिर सो गए, घर विभीषण राम॥-१
यह दिन दश इतिहास में , विजय पर्व के नाम।
माँ सीता की वाटिका, लखन पवन श्रीराम।
सेतु बंध रामेश्वरम, शिव मय राम महान-
लंका नगरी राक्षसी, टिके न पापी नाम॥-२
दश दश माथ दशानना भुजा बीस बेकार।
अमृत नाभि निहारता, लेकर वर नादार।
छल कल मन भरता गया, भक्त प्रथम लंकेश-
था अति प्रिय कैलाश का, खंडित किया करार॥-३
धन्य कोशलाधीश प्रभु, पहुँचे सरयू तीर।
माता कौशल्या मिली, भ्राता भरत अधीर।
अगवानी में सज गई, अवली दीप कतार-
नवरात्रि सुख संपदा, दीपावली अमीर॥-४
तरह तरह व्यंजन भरे, शुद्ध स्वाद पकवान।
सजे कार्तिक व्याहता, घर तुलसी धनवान।
नित्य साँझ दीपक जले, पूनम को बारात-
शरद ऋतू अति पावनी, माँ महिमा पहचान॥-५
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी